शुक्रवार, 02 जुलाई, 2021
वर्ष का तेरहवाँ सप्ताह
पहला पाठ : उत्पत्ति 23:1-4, 19; 24:1-8, 62-67
1) सारा एक सौ सत्ताईस वर्ष की उमर तक जीती रही
2) और कानान के किर्यत-अरबा, अर्थात् हेब्रोन में उसका देहान्त हो गया। इब्राहीम ने उसके लिए मातम मनाया और विलाप किया।
3) इसके बाद वह उठ खड़ा हुआ और मृतक को छोड़ कर हित्तियों से बोला,
4) ''मैं आपके यहाँ परदेशी और प्रवासी हूँ। मुझे मक़बरे के लिए थोड़ी-सी जमीन दीजिए, जिससे मैं उचित रीति से अपनी मृत पत्नी को दफ़ना सकूँ।''
19) इसके बाद इब्राहीम ने कनान देश के मामरे, अर्थात् हेब्रोन के पूर्व में, मकपेला के खेत की उस गुफा में अपनी पत्नी सारा को दफ़नाया।
1) उस समय तक इब्राहीम बहुत बूढ़ा हो गया था और प्रभु ने उसे उसके सब कार्यों में आशीर्वाद दिया था।
2) इब्राहीम ने अपने सब से पुराने नौकर से, जो उसकी समस्त सम्पत्ति का प्रबन्ध करता था, कहा, ''अपना हाथ मेरी जाँघ के नीचे रखो
3) और आकाश तथा पृथ्वी के ईश्वर की शपथ ले कर मुझे वचन दो कि जिन कनानियों के बीच मैं रहता हूँ, उनकी कन्याओं में से किसी को भी मेरे पुत्र की पत्नी नहीं बनाओगे,
4) बल्कि मेरे देश और मेरे सम्बन्धियों के पास जाओगे और वहाँ मेरे पुत्र इसहाक के लिए पत्नी चुनोगे।''
5) नौकर ने कहा, ''हो सकता है कि वहाँ कोई ऐसी स्त्री नहीं मिले, जो मेरे साथ यह देश आना चाहती हो। तो, क्या मैं आपके पुत्र को उस देश ले चलूँ, जिसे आपने छोड़ दिया है?''
6) इब्राहीम ने उत्तर दिया, ''तुम मेरे पुत्र को वहाँ कदापि नहीं ले जाना।
7) प्रभु, आकाश और पृथ्वी के ईश्वर ने मुझे मेरे पिता के घर और मेरे कुटुम्ब के देश से निकाला और शपथ ले कर मुझ से कहा कि वह यह देश मेरे वंशजों को प्रदान करेगा। वही प्रभु तुम्हारे साथ अपना दूत भेजेगा, जिससे तुम वहाँ से मेरे पुत्र के लिए पत्नी ला सको।
8) यदि कोई स्त्री तुम्हारे साथ चलने के लिए तैयार न हो तो तुम अपनी इस शपथ से मुक्त होगे, किन्तु मेरे पुत्र को वहाँ कदापि नहीं ले जाना।''
62) इसहाक लहय-रोई नामक कुएँ से लौटा था, क्योंकि उस समय वह नेगेब प्रदेश में रहता था।
63) इसहाक, सन्ध्या समय, खेत में टहलने गया और उसने आँखें उठा कर ऊँटों को आते देखा।
64) रिबेका ने भी आँखें उठा कर इसहाक को देखा।
65) उसने ऊँट से उतरकर सेवक से कहा, ''जो मनुष्य खेत में हमारी और आ रहा है, वह कौन है?'' सेवक ने उत्तर दिया, ''यह मेरे स्वामी है।'' इस पर उसने पल्ले से अपना सिर ढक लिया।
66) सेवक ने इसहाक को बताया कि उसने क्या-क्या किया है।
67) इसहाक रिबेका को अपनी माता सारा के तम्बू ले आया। उसने उसके साथ विवाह किया और वह उसकी पत्नी बन गयी। इसहाक रिबेका को प्यार करता था और उसे अपनी माता सारा के देहान्त के बाद सान्त्वना मिली।
सुसमाचार : मत्ती 9:9-13
9) ईसा वहाँ से आगे बढ़े। उन्होंने मत्ती नामक व्यक्ति को चुंगी-घर में बैठा हुआ देखा और उस से कहा, ’’मेरे पीछे चले आओ’’, और वह उठकर उनके पीछे हो लिया।
10) एक दिन ईसा अपने शिष्यों के साथ मत्ती के घर भोजन पर बैठे और बहुत-से नाकेदार और पापी आ कर उनके साथ भोजन करने लगे।
11) यह देखकर फरीसियों ने उनके शिष्यों से कहा, ’’तुम्हारे गुरु नाकेदारों और पापियों के साथ क्यों भोजन करते हैं?’’
12) ईसा ने यह सुन कर उन से कहा, ’’नीरोगों को नहीं, रोगियों को वैद्य की ज़रूरत होती है।
13) जा कर सीख लो कि इसका क्या अर्थ है- मैं बलिदान नहीं, बल्कि दया चाहता हूँ। मैं धर्मियों को नहीं, पापियों को बुलाने आया हूँ।’’
📚 मनन-चिंतन
आज के वचनों में प्रभु हमको आश्वासन देते हैं कि वे धर्मियों को नहीं पापियों बुलाने आये हैं. इसका उदाहरण भी हम आज के सुसमाचार के मुख्य पात्र मत्ती अर्थात् लेवी के जीवन में देखते हैं. अगर इस दुनिया में पाप नहीं होता और पापी नहीं होते तो शायद प्रभु येसु को स्वर्ग से उतरकर आने की ज़रूरत नहीं पड़ती, उन्हें क्रूस पर कष्टकारी मृत्यु की पीड़ा से नहीं गुजरना पड़ता. आखिर ऐसा क्यों है कि प्रभु धर्मियों की अपेक्षा पापियों को अधिक प्यार करते हैं? इसे समझने के लिए हमें प्रभु के स्वाभाव को समझना होगा, उनके स्वभाव को समझना होगा. प्रभु दयासागर हैं, अनुकम्पा से परिपूर्ण हैं.
अगर किसी को दया या अनुकम्पा की ज़रूरत है तो वह है पापी मनुष्य. अगर कोई डॉक्टर है तो उसका डॉक्टर होना तभी सार्थक है जब वह बीमारों को ठीक करे. हमारी पाप की स्थिति सदा के लिये स्थायी नहीं है. लेकिन अगर हम पश्चाताप न करें और ईश्वर हम पर दया न करे तो यह स्थिति स्थायी हो सकती है. वास्तव में हम ईश्वर की सन्तानें हैं, और वही हमारी वास्तविक और स्थायी स्थिति है, प्रभु येसु हमारी उसी स्थायी स्थिति को लौटाने के लिए आये हैं. वह हमारा ईश्वर के साथ मेल कराकर वापस हमें उसके पुत्र-पुत्रियाँ बनने के लिए बुलाने के लिए आये हैं. हम अपने मन में झाँककर देखें कि क्या मैं पापी हूँ? अगर हाँ तो प्रभु निश्चय ही मुझे ही बुलाने आये हैं. मुझे उनकी आवाज़ सुननी है और उनके पास जाना है.
📚 REFLECTION
Today Jesus assures each one of us that He has come to call the sinners not the righteous. This is substantiated with the example of the call of Matthew or Levi the tax collector. If there was no sin and sinners in the world, then Jesus wouldn’t need to come down from heaven, He wouldn’t have to undergo sufferings and painful death on the cross. Why is it that God loves sinners more than the righteous ones? In order to understand this, we first, need to understand the nature of God. God is full of mercy and compassion.
If there is anyone who needs mercy and compassion most, is the sinner. If there is a doctor, his being doctor is of use only if he uses his ability and knowledge in treating the sick. Our sinfulness is not permanent state. But if we do not repent and God is not merciful and compassionate towards us, than this state can become a permanent state. Our permanent status is that of children of God. Jesus came to restore that original identity of whole humanity. He has come to call us to repent and reconcile and thus again become the true children of our Heavenly Father. Let us look within ourselves, am I a sinner? If yes then I am eligible to be saved, Jesus has come to call me. I just need to listen to his voice and come to him. Amen.
✍ -Br Biniush Topno
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