गुरुवार, 01 जुलाई, 2021
वर्ष का तेरहवाँ सप्ताह
पहला पाठ : उत्पत्ति 22:1-19
1) ईश्वर ने इब्राहीम की परीक्षा ली। उसने उस से कहा, ''इब्राहीम! इब्राहीम!'' इब्राहीम ने उत्तर दिया, ''प्रस्तुत हूँ।''
2) ईश्वर ने कहा, ''अपने पुत्र को, अपने एकलौते को परमप्रिय इसहाक को साथ ले जा कर मोरिया देश जाओ। वहाँ, जिस पहाड़ पर मैं तुम्हें बताऊँगा, उसे बलि चढ़ा देना।''
3) इब्राहीम बड़े सबेरे उठा। उसने अपने गधे पर जीन बाँध कर दो नौकरों और अपने पुत्र इसहाक को बुला भेजा। उसने होम-बली के लिए लकड़ी तैयार कर ली और उस जगह के लिए प्रस्थान किया, जिसे ईश्वर ने बताया था।
4) तीसरे दिन, इब्राहीम ने आँखें ऊपर उठायीं और उस जगह को दूर से देखा।
5) इब्राहीम ने अपने नौकरों से कहा, ''तुम लोग गधे के साथ यहाँ ठहरो। मैं लड़के के साथ वहाँ जाऊँगा। आराधना करने के बाद हम तुम्हारे पास लौट आयेंगे।
6) इब्राहीम ने होम-बली की लकड़ी अपने पुत्र इसहाक पर लाद दी। उसने स्वयं आग और छुरा हाथ में ले लिया और दोनों साथ-साथ चल दिये।
7) इसहाक ने अपने पिता इब्राहीम से कहा, ''पिताजी!'' उसने उत्तर दिया, ''बेटा! क्या बात है?'' उसने उत्तर दिया, ''देखिए, आग और लकड़ी तो हमारे पास है; किन्तु होम को मेमना कहाँ है?''
8) इब्राहीम ने उत्तर दिया, ''बेटा! ईश्वर होम के मेमने का प्रबन्ध कर देगा'', और वे दोनों साथ-साथ आगे बढ़े।
9) जब वे उस जगह पहुँच गये, जिसे ईश्वर ने बताया था, तो इब्राहीम ने वहाँ एक वेदी बना ली और उस पर लकड़ी सजायी। इसके बाद उसने अपने पुत्र इसहाक को बाँधा और उसे वेदी के ऊपर रख दिया।
10) तब इब्राहीम ने अपने पुत्र को बलि चढ़ाने के लिए हाथ बढ़ा कर छुरा उठा लिया।
11) किन्तु प्रभु का दूत स्वर्ग से उसे पुकार कर बोला, ''इब्राहीम! ''इब्राहीम! उसने उत्तर दिया, ''प्रस्तुत हूँ।''
12) दूत ने कहा, ''बालक पर हाथ नहीं उठाना; उसे कोई हानि नहीं पहुँचाना। अब मैं जान गया कि तुम ईश्वर पर श्रद्धा रखते हो - तुमने मुझे अपने पुत्र, अपने एकलौते पुत्र को भी देने से इनकार नहीं किया।
13) इब्राहीम ने आँखें ऊपर उठायीं और सींगों से झाड़ी में फँसे हुए एक मेढ़े को देखा। इब्राहीम ने जाकर मेढ़े को पकड़ लिया और उसे अपने पुत्र के बदले बलि चढ़ा दिया।
14) इब्राहीम ने उस जगह का नाम ''प्रभु का प्रबन्ध'' रखा; इसलिए लोग आजकल कहते हैं, ''प्रभु पर्वत पर प्रबन्ध करता है।''
15) ईश्वर का दूत इब्राहीम को दूसरी बार पुकार कर
16) बोला, ''यह प्रभु की वाणी है। मैं शपथ खा कर कहता हूँ - तुमने यह काम किया : तुमने मुझे अपने पुत्र, अपने एकलौते पुत्र को भी देने से इनकार नहीं किया;
17) इसलिए मैं तुम पर आशिष बरसाता रहूँगा। मैं आकाश के तारों और समुद्र के बालू की तरह तुम्हारे वंशजों को असंख्य बना दूँगा और वे अपने शत्रुओं के नगरों पर अधिकार कर लेंगे।
18) तुमने मेरी आज्ञा का पालन किया है; इसलिए तुम्हारे वंश के द्वारा पृथ्वी के सभी राष्ट्रों का कल्याण होगा।''
19) इब्राहीम अपने नौकरों के पास लौटा। वे सब बएर-शेबा चले गये और इब्राहीम वहाँ रहने लगा।
सुसमाचार : मत्ती 9:1-8
1) ईसा नाव पर बैठ गये और समुद्र पार कर अपने नगर आये।
2) उस समय कुछ लोग खाट पर पडे़ हुए एक अद्र्धांगरोगी को उनके पास ले आये। उनका विश्वास देखकर ईसा ने अद्र्धांगरोगी से कहा, ’’बेटा ढारस रखो! तुम्हारे पाप क्षमा हो गये हैं।’’
3) कुछ शास्त्रियों ने मन में सोचा- यह ईश-निन्दा करता है।
4) उनके ये विचार जान कर ईसा ने कहा, ’’तुम लोग मन में बुरे विचार क्यों लाते हो ?
5) अधिक सहज क्या है यह कहना, ’तुम्हारे पाप क्षमा हो गये हैं अथवा यह कहना, ’उठो और चलो-फिरो’?
6) किन्तु इसलिए कि तुम लोग यह जान लो कि मानव पुत्र को पृथ्वी पर पाप क्षमा करने का अधिकार मिला है’’ तब वे अद्र्धांगरोगी से बोले ’’उठो और अपनी खाट उठा कर घर जाओ’’।
7) और वह उठ कर अपने घर चला गया।
8) यह देखकर लोगों पर भय छा गया और उन्होंने ईश्वर की स्तुति की, जिसने मनुष्यों को ऐसा अधिकार प्रदान किया था।
📚 मनन-चिंतन
पाप और हमारी बीमारी-विपत्तियों का क्या सम्बन्ध है? हमारी परेशानियों और हमारे पापों में कोई सम्बन्ध है भी या नहीं? इस प्रश्न को हम सीधे शब्दों में इस तरह भी पूछ सकते हैं- ‘धर्म का और विज्ञान आपस में क्या सम्बन्ध है?’ क्योंकि कुछ लोगों के अनुसार पाप, धर्म का विषय है, और बीमारियाँ विज्ञान का विषय. लेकिन इस बात को नाकारा नहीं जा सकता कि इन दोनों का इश्वर से गहरा सम्बन्ध है. आदिकाल से न तो धर्म था और न विज्ञान था, था तो सिर्फ सनातन ईश्वर. सब कुछ उसी के द्वारा सृष्ट किया गया है, इसलिये सब कुछ का सम्बन्ध ईश्वर से है, हम मनुष्यों का और हमारे जीवन के हर पहलु का.
सन्त योहन के सुसमाचार 15:1-8 में प्रभु येसु हमें समझाते हैं कि प्रभु दाखलता हैं और हम उसकी डलियाँ हैं और प्रभु से जुड़ा रहता है वही खूब फलता है, और जो ईश्वर से नहीं जुड़ा रहता वह सूख जाता है. यानि कि यदि हम ईश्वर के साथ जुड़े हैं, हमारा सम्बन्ध ईश्वर के साथ मजबूत है तो हमें आशीष और कृपायें मिलेंगी, वहीँ अगर हम ईश्वर से नहीं जुड़े हैं तो हमारे दुःख-संकटों और विपत्तियों में ईश्वर हमारे साथ नहीं रहेगा. ईश्वर से हमारा सम्बन्ध हमारे पापों के कारण ख़राब हो जाता है. अगर हमारा सम्बन्ध ईश्वर से और एक-दूसरे से फिर से स्थापित होना है तो हमारे पापों की क्षमा ज़रूरी है. क्योंकि ईश्वर 'हमारे सभी अपराध क्षमा करता और हमारी सारी बीमारियाँ दूर करता है. (स्तोत्र 103:3).
📚 REFLECTION
What is the connection between sin and our sicknesses? Is there any connection between sin and our problems at all? In other words, one could ask – What is the relation between religion and science? Because some people think that our sins relate to religion and sicknesses are the subject of science. We cannot ignore the fact these both are deeply related with God. God is from eternity even before religion or science were born. Everything came into being through Him and nothing came into being without Him. (cf. John 1:3). Hence everything has its origin from God and exists in relation with God, even every aspect of our human life.
Jesus, in the Gospel of John (15:1-8) tells us that he is vine and we are the branches and those who remain in him, bear much fruit and those who do not abide in Him, they wither away. So, if we remain in God, then we shall flourish in all that we do, and if we break our relationship with God then we are bound to wither, we will not find God in our sorrows and difficulties of life. Our sins are the cause for putting our relationship with God in danger. If we have to establish and build our relationship with God, our sins should be forgiven. God is ready to forgive us as the psalmist says, “Bless the LORD, O my soul, and forget not all his benefits, who forgives all your iniquity, who heals all your diseases...” (Ps 103:2-3).
✍ -Br Biniush Topno
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