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Duliajan, Assam, India
Catholic Bibile Ministry में आप सबों को जय येसु ओर प्यार भरा आप सबों का स्वागत है। Catholic Bibile Ministry offers Daily Mass Readings, Prayers, Quotes, Bible Online, Yearly plan to read bible, Saint of the day and much more. Kindly note that this site is maintained by a small group of enthusiastic Catholics and this is not from any Church or any Religious Organization. For any queries contact us through the e-mail address given below. 👉 E-mail catholicbibleministry21@gmail.com

शुक्रवार, 31 दिसंबर, 2021

 

शुक्रवार, 31 दिसंबर, 2021

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पहला पाठ : योहन का पहला पत्र 2:18-21



18) बच्चो! यह अन्तिम समय है। तुम लोगों ने सुना होगा कि एक मसीह-विरोधी का आना अनिवार्य है। अब तक अनेक मसीह-विरोधी प्रकट हुए हैं। इस से हम जानते हैं कि अन्तिम समय आ गया है।

19) वे मसीह-विरोधी हमारा साथ छोड़कर चले गये, किन्तु वे हमारे अपने नहीं थे। यदि वे हमारे अपने होते, तो वे हमारे ही साथ रहते। वे चले गये, जिससे यह स्पष्ट हो जाये कि उन में कोई भी हमारा अपना नहीं था।

20) तुम लोगों को तो मसीह की ओर से पवित्र आत्मा मिला है और तुम सभी लोग सत्य जानते हो।

21) मैं तुम लोगों को इसलिए नहीं लिख रहा हूँ कि तुम सत्य नहीं जानते, बल्कि इसलिए कि तुम सत्य जानते हो और यह भी जानते हो कि हर झूठ सत्य का विरोधी है।



सुसमाचार : सन्त योहन का सुसमाचार 1:1-18


1) आदि में शब्द था, शब्द ईश्वर के साथ था और शब्द ईश्वर था।

2) वह आदि में ईश्वर के साथ था।

3) उसके द्वारा सब कुछ उत्पन्न हुआ। और उसके बिना कुछ भी उत्पन्न नहीं हुआ।

4) उस में जीवन था, और वह जीवन मनुष्यों की ज्योति था।

5) वह ज्योति अन्धकार में चमकती रहती है- अन्धकार ने उसे नहीं बुझाया।

6) ईश्वर को भेजा हुआ योहन नामक मनुष्य प्रकट हुआ।

7) वह साक्षी के रूप में आया, जिससे वह ज्योति के विषय में साक्ष्य दे और सब लोग उसके द्वारा विश्वास करें।

8) वह स्वयं ज्यांति नहीं था; उसे ज्योति के विषय में साक्ष्य देना था।

9) शब्द वह सच्च ज्योति था, जो प्रत्येक मनुष्य का अन्धकार दूर करती है। वह संसार में आ रहा था।

10) वह संसार में था, संसार उसके द्वारा उत्पन्न हुआ; किन्तु संसार ने उसे नहीं पहचाना।

11) वह अपने यहाँ आया और उसके अपने लोगों ने उसे नहीं अपनाया।

12) जितनों ने उसे अपनाया, और जो उसके नाम में विश्वास करते हैं, उन सब को उसने ईश्वर की सन्तति बनने का अधिकार दिया।

13) वे न तो रक्त से, न शरीर की वासना से, और न मनुष्य की इच्छा से, बल्कि ईश्वर से उत्पन्न हुए हैं।

14) शब्द ने शरीर धारण कर हमारे बीच निवास किया। हमने उसकी महिमा देखी। वह पिता के एकलौते की महिमा-जैसी है- अनुग्रह और सत्य से परिपूर्ण।

15) योहन ने पुकार-पुकार कर उनके विषय में यह साक्ष्य दिया, ‘‘यह वहीं हैं, जिनके विषय में मैंने कहा- जो मेरे बाद आने वाले हैं, वह मुझ से बढ़ कर हैं; क्योंकि वह मुझ से पहले विद्यमान थे।’’

16) उनकी परिपूर्णता से हम सब को अनुग्रह पर अनुग्रह मिला है।

17) संहिता तो मूसा द्वारा दी गयी है, किन्तु अनुग्रह और सत्य ईसा मसीह द्वारा मिला है।

18) किसी ने कभी ईश्वर को नहीं देखा; पिता की गोद में रहने वाले एकलौते, ईश्वर, ने उसे प्रकट किया है।


📚 मनन-चिंतन


आज वर्ष 2021 का अंतिम दिन है। माता कलीसिया आज शब्द पर मनन-चिंतन करने के लिए आमंत्रित करती है। प्रारंभ में ईश्वर ने संसार कि सृष्टी अपने शब्द मात्र से की थी। आज वही शब्द मानव बनकर संसार मे प्रवेश करता है। वह देहधारण कर लेता है। यह शब्द पृथ्वी पर मनुष्य बनकर जीवन में प्रकाश और सत्य के रूप में लोगों के बीच रहने लगा। वह स्वयं जीवन है और दूसरों को अनंत जीवन प्रदान करने आया। "मार्ग सत्य और जीवन मैं हूँ ? (योहन 14:6)

ईश्वर ने शब्द को हमारे बीच इसलीए भेजा क्योंकि वह हमसे प्यार करता है। "ईश्वर ने संसार को इतना प्यार किया कि उसने उसके लिए अपने एकलौते पुत्र को अर्पित कर दिया, जिससे जो उसमे विश्वास करता है, उसका सर्वनाश न हो, बल्कि अनन्त जीवन प्राप्त करे " (योहन 3:16)

आज वर्ष का अंतिम दिन है। अपने अन्तकरण की जाँच करें और स्वंय से पुछे, ईश्वर ने अपने पुत्र को हमारे लिए भेजा। उसे हम अपने जीवन में कितना महत्व देते है।



📚 REFLECTION




Today is the last day of the year 2021. Today the mother church invites us to meditate on word. In the beginning of the world, God created the whole universe with a word. Today the same Word has become flesh and entered the world. Word takes the form of flesh. After coming to the world and becoming a human this word has lived in form of life. It is life in itself and it provides the eternal life to others.

“I am the way, truth and life” (John 14:6)

God has sent the word among us so that He could love us continuously.

“For God so loved the world that he gave his one and only Son, that whoever believes in him shall not perish but have eternal life.” (John 3:16)

Today is the last day of the year. Let us examine our conscience and ask ourselves that, God sent his only begotten son and how much importance we give to this gift.


मनन-चिंतन - 2


आज सुसमाचार लेखक संत योहन हमें ईश्वर के पुत्र के अवतार के रहस्य में गहराई से उतरने के लिए आमंत्रित करते हैं। येसु के जन्म को बेतलेहेम के गोशाले में पेश करने के बजाय, वे उनके पूर्व-अस्तित्व और शाश्वत जन्म के बारे में हमें बताते है। वे उन्हें 'लोगोस' - शब्द के रूप में प्रस्तुत करते हैं। यह शाश्वत शब्द येसु मसीह में मांस बन जाता है। उन्हें एक प्राणी के रूप में प्रस्तुत करने से हट कर, वे उन्हें उस सृष्टिकर्ता के रूप में प्रस्तुत करते हैं जिनमें सब कुछ बनाया गया था। येसु को प्रकाश के रूप में भी प्रस्तुत किया गया है जो अंधेरे को दूर करता है। सुसमाचार के लेखक प्रकाश और अंधेरे के बीच निरंतर लड़ाई को भी हमारे सामने रखते हैं और दावा करते हैं कि अंतिम जीत प्रकाश की ही होती है। आज हमें बालक येसु की चरनी के आगे घुटने टेकने और ईश्वर के रहस्य पर ध्यान देने के लिए आमंत्रित किया जाता है जो स्वर्ग से पृथ्वी पर आकर हम में से हर एक के साथ रहे। येसु को स्वीकार करने वाले सभी लोगों को परमेश्वर की संतान बनने की शक्ति प्रदान की जाती है।



REFLECTION


Today St. John the evangelist invites us to delve deep into the mystery of the Incarnation of the Son of God. Instead of presenting the birth of Jesus in the manger of Bethlehem, he speaks about his pre-existence and eternal birth. He presents him as ‘logos’ – the Word. This eternal Word becomes flesh in Jesus Christ. Far from presenting him as a creature, he presents him as the creator in whom everything was created. Jesus is also presented as the light that dispels the darkness. The evangelist also acknowledges the constant battle between the light and the darkness but asserts that the ultimate victory is of the light. Today we are invited to kneel before the crib and meditate upon the mystery of God who has come down from heaven to the earth to be with each one of us. All those who accept Jesus are given the power to become the children of God.


 -Br. Biniush Topno


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मंगलवार, 28 दिसंबर, 2021

 

मंगलवार, 28 दिसंबर, 2021

ख्रीस्त जयन्ती सप्ताह 
पवित्र बालकपन का त्योहार

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पहला पाठ: योहन का पहला पत्र 1:5-2:2


5) हमने जो सन्देश उन से सुना और तुम को भी सुनाते हैं, वह यह है- ईश्वर ज्योति है और उस में कोई अन्धकार नहीं!

6) यदि हम कहते हैं कि हम उसके जीवन के सहभागी हैं, किन्तु अन्धकार में चल रहे हैं, तो हम झूठ बोलते हैं और सत्य के अनुसार आचरण नहीं करते।

7) परन्तु यदि हम ज्योति में चलते हैं- जिस तरह वह स्वयं ज्योति में हैं- तो हम एक दूसरे के जीवन के सहभागी हैं और उसके पुत्र ईसा का रक्त हमें हर पाप से शुद्ध करता है।

8) यदि हम कहते हैं कि हम निष्पाप हैं, तो हम अपने आप को धोखा देते हैं और हम में सत्य नहीं है।

9) यदि हम अपने पाप स्वीकार करते हैं, तो वह हमारे पाप क्षमा करेगा और हमें हर अधर्म से शुद्ध करेगा; क्योंकि वह विश्वसनीय तथा सत्यप्रतिज्ञ है।

10) यदि हम कहते हैं कि हमने पाप नहीं किया है, तो हम उसे झूठा सिद्ध करते हैं और उसका सत्य हम में नहीं है।

1) बच्चो! मैं तुम लोगों को यह इसलिए लिख रहा हूँ कि तुम पाप न करो। किन्तु यदि कोई पाप करता, तो पिता के पास हमारे एक सहायक विद्यमान हैं, अर्थात् धर्मात्मा ईसा मसीह।

2) उन्होंने हमारे पापों के लिए प्रायश्चित किया है और न केवल हमारे पापों के लिए, बल्कि समस्त संसार के पापों के लिए भी।



सुसमाचार : सन्त मत्ती 2:13-18



(13) उनके जाने के बाद प्रभु का दूत युसुफ़ को स्वप्न में दिखाई दिया और यह बोला ’’उठिए! बालक और उसकी माता को लेकर मिस्र देश भाग जाइए। जब तक में आप से न कहूँ वहीं रहिए क्योंकि हेरोद मरवा डालने के लिए बालक को ढूँढ़ने वाला है।

(14) यूसुफ उठा और उसी रात बालक और उसकी माता को ले कर मिस्र देश चल दिया।

(15) वह हेरोद की मृत्यु तक वहीं रहा जिससे नबी के मुख से प्रभु ने जो कहा था, वह पूरा हो जाये - मैंने मिस्र देश से अपने पुत्र को बुलाया।

(16) हेरोद को यह देख कर बहुत क्रोध आया कि ज्योतिषियों ने मुझे धोखा दिया है। उसने प्यादों को भेजा और ज्योतिषियों से ज्ञात समय के अनुसार बेथलेहेम और आसपास के उन सभी बालकों को मरवा डाला, जो दो बरस के या और भी छोटे थे।

(17) तब नबी येरेमियस का यह कथन पूरा हुआ-

(18) रामा में रूदन और दारुण विलाप सुनाई दिया, राखेल अपने बच्चों के लिए रो रही है, और अपने आँसू किसी को पोंछने नहीं देती क्योंकि वे अब नहीं रहे।



📚 मनन-चिंतन


आज कलीसिया उन नन्हे मुन्ने बेगुनाह शहीदों को याद करती है जो क्रूर राजा हेरोद के कारण अपने रक्त के द्वारा ख्रीस्त के साक्षी बने। निर्दोष बच्चों की हत्या राजा हेरोद की क्रूरता को दर्शाता है। जब मनुष्य अपने पद या पावर को लेकर स्वार्थी बन जाता है तब उसे भी राजा हेरोद कि तरह भय लगा रहता है कि मेरी कुर्सी व पावर छीन न जाए। वह अच्छाई और बुराई में फर्क नहीं कर पाता है। उसका हृदय छल कपट से भर जाता है। ऐसे मंत्री अपनी कुर्सी बचाने के लिये कुछ भी करने को तैयार हो जाते हैं। राजा हेरोद भी येसु का जन्म का संदेश सुनकर भय और चिंता से घिर जाता है। अपने स्वार्थ के कारण बालक येसु को नहीं पहचान पाता है। अपने सिंहासन के लिए निर्दोष बच्चों को तलवार के घाट उतार देता है। हम भी छोटे बच्चों की तरह अपने हृदय को शुद्ध तथा विनम्र बनाये। और ईश्वर के साक्षी बने ।



📚 REFLECTION



Today, Catholic Church remembers the innocent infant martyrs. Who witnessed Christ through their blood, because of cruel king herod. The massacre of the innocent infant babies shows the cruelty and selfishness of the king Herod. When person becomes selfish only for power and post, then like King Herod, he also gets scared of losing his post and power. He cannot differentiate between good and evil.

Their heart fills with the wickedness; such persons are ready to do anything to save their post and power. Likewise king herod gets frightened and worried after hearing the birth of Jesus. He could not recognize Jesus due to his selfishness. He massacred innocent infants in order to save his power and position.

Let us make our hearts pure and humble like children and become true witness of Christ.



मनन-चिंतन - 2



आज हम राजा हेरोद महान द्वारा बालक येसु को मार डालने के प्रयास में, मारे गए दो वर्ष से कम आयु के बालकों के सम्मान में पर्व मना रहे हैं। पूर्व से आये तीन राजाओं से राजा हेरोद महान ने कहा था कि वे बालक येसु से मिलने के बाद वापस आकर उन्हें खबर दें, लेकिन यह जान कर कि राजा हेरोद बालक येसु को नुकसान पहुंचा सकते थे, वे अलग रास्ते से चले गए। गुस्से में, राजा ने आसपास के क्षेत्र में उन सभी बच्चों को मारने का आदेश दिया, जो दो वर्ष से कम उम्र के थे। इन मारे गए बच्चों को पारंपरिक रूप से ख्रीस्तीय धर्म के प्रथम शहीदों के रूप में सम्मानित किया जाता है। अपने स्वार्थ में राजा हेरोद ने कई निर्दोष बच्चों को मार डाला। आज गर्भपात के माध्यम से, कई माता-पिता स्वयं अपने स्वार्थ में अपने बच्चों को ही मार डालते हैं। हमारे समाज में कई ऐसे लोग हैं जो इस अपराध में सहायता करने को तैयार हैं। गर्भ में पल रहे ये बच्चे असहाय और रक्षाहीन होते हैं; वे उन्हीं के द्वारा अपराध के शिकार बनते हैं जिन्हें ईश्वर ने उनकी रक्षा और पोषण करने की जिम्मेदारी सौंपी है। यह सामान्य हत्या से ज़्यादा गंभीर है क्योंकि यह ऐसे व्यक्तियों द्वारा किया जाता है, जिन्हें उन बच्चों के रक्षक बनने के लिए ईश्वर द्वारा बुलाया गया है। बच्चों के खिलाफ अपराध और उनके शोषण हमारे समाज में व्याप्त हैं। आज हमें दुनिया के विभिन्न प्रकार के सभी निर्दोष पीड़ितों को याद करना चाहिए। आइए हम न केवल उनके लिए प्रार्थना करें, बल्कि उन्हें खतरों से बचाने के लिए हमारी ओर से प्रयास भी करें।


REFLECTION



Today we celebrate the Feast of the Holy Innocents in honour of the male children of the age of two and under, killed by King Herod the Great, in an attempt to kill the infant Jesus. The three kings were supposed to report back to Herod about the whereabouts of Jesus, but they went away through a different route, knowing the harm the king could do to child Jesus. In anger, Herod ordered the killing of all children in the surrounding area who are at the age of two and under. These slain children are traditionally honoured as the first martyrs of Christianity. Herod in his selfishness got many innocent children killed. Today through abortion, many parents themselves in their selfishness kill their children. There are also many in our society who are willing to assist at this crime. These children in the womb are helpless and defenceless victims of a crime committed by those who are supposed to protect and nurture them. This is much worse than ordinary murder because it is performed by the very persons who are intended to be protectors of these defenceless infants. The crimes against children and their exploitation are rampant in our society. Today let us remember all innocent victims of various types in the world. Let us not only pray for them, but also resolve to do our bit in saving them from dangers.


 -Br. Biniush Topno


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शुक्रवार, 24 दिसंबर, 2021

 

शुक्रवार, 24 दिसंबर, 2021

आगमन का चौथा सप्ताह

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पहला पाठ : समुएल का दुसरा ग्रन्थ 7:1-5 8b-12.14a16



1) जब दाऊद अपने महल में रहने लगा और प्रभु ने उसे उसके चारों ओर के सब शत्रुओं से छुड़ा दिया,

2) तो राजा ने नबीनातान से कहा, ‘‘देखिए, मैं तो देवदार के महल में रहता हूँ, किन्तु ईश्वर की मंजूषा तम्बू में रखी रहती है।’’

3) नातान ने राजा को यह उत्तर दिया, ‘‘आप जो करना चाहते हैं, कीजिए। प्रभु आपका साथ देगा।’’

4) उसी रात प्रभु की वाणी नातान को यह कहते हुए सुनाई पड़ी,

5) ‘‘मेरे सेवक दाऊद के पास जाकर कहो - प्रभु यह कहता है: क्या तुम मेरे लिए मन्दिर बनवाना चाहते हो?

8) तुम भेड़ें चराया करते थे और मैंने तुम्हें चरागाह से बुला कर अपनी प्रजा इस्राएल का शासक बनाया।

9) मैंने तुम्हारे सब कार्यों में तुम्हारा साथ दिया और तुम्हारे सामने तुम्हारे सब शत्रुओं का सर्वनाश कर दिया है। मैं तुम्हें संसार के सब से महान् पुरुषों-जैसी ख्याति प्रदान करूँगा।

10) मैं अपनी प्रजा इस्राएल के लिए भूमि का प्रबन्ध करूँगा और उसे बसाऊँगा। वह वहाँ सुरक्षित रहेगी। कुकर्मी उस पर अत्याचार नहीं कर पायेंगे। ऐसा पहले हुआ करता था,

11) जब मैंने अपनी प्रजा इस्राएल का शासन करने के लिए न्यायकर्ताओं को नियुक्त किया था। मैं उसे उसके सब शत्रुओं से छुड़ाऊँगा। प्रभु तुम्हारा वंश सुरक्षित रखेगा।

12) जब तुम्हारे दिन पूरे हो जायेंगे और तुम अपने पूर्वजों के साथ विश्राम करोगे, तो मैं तुम्हारे पुत्र को तुम्हारा उत्तराधिकारी बनाऊँगा और उसका राज्य बनाये रखूँगा।

14) मैं उसका पिता होऊँगा, और वह मेरा पुत्र होगा।

15) किन्तु मैं उस पर से अपनी कृपा नहीं हटाऊँगा, जैसा कि मैंने साऊल के साथ किया, जिसे मैंने तुम्हारे लिए ठुकराया।

16) इस तरह तुम्हारा वंश और तुम्हारा राज्य मेरे सामने बना रहेगा और उसका सिंहासन अनन्त काल तक सुदृढ़ रहेगा।’’



सुसमाचार : सन्त लूकस का सुसमाचार 1:67-79



67) उसका पिता पवित्र आत्मा से परिपूर्ण हो गया और उसने यह कहते हुए भविष्यवाणी कीः

68) धन्य है प्रभु, इस्राएल का ईश्वर! उसने अपनी प्रजा की सुध ली है और उसका उद्धार किया है।

69) उसने अपने दास दाऊद के वंश में हमारे लिए एक शक्तिशाली मुक्तिदाता उत्पन्न किया है।

70) वह अपने पवित्र नबियों के मुख से प्राचीन काल से यह कहता आया है

71) कि वह शत्रुओं और सब बैरियों के हाथ से हमें छुड़ायेगा

72) और अपने पवित्र विधान को स्मरण कर हमारे पूर्वजों पर दया करेगा।

73) उसने शपथ खा कर हमारे पिता इब्राहीम से कहा था

74) कि वह हम को शत्रुओं के हाथ से मुक्त करेगा,

75) जिससे हम निर्भयता, पवित्रता और धार्मिकता से जीवन भर उसके सम्मुख उसकी सेवा कर सकें।

76) बालक! तू सर्वोच्च ईश्वर का नबी कहलायेगा, क्योंकि प्रभु का मार्ग तैयार करने

77) और उसकी प्रजा को उस मुक्ति का ज्ञान कराने के लिए, जो पापों की क्षमा द्वारा उसे मिलने वाली है, तू प्रभु का अग्रदूत बनेगा।

78) हमारे ईश्वर की प्रेमपूर्ण दया से हमें स्वर्ग से प्रकाश प्राप्त हुआ है,

79) जिससे वह अन्धकार और मृत्यु की छाया में बैठने वालों को ज्योति प्रदान करे और हमारे चरणों को शान्ति-पथ पर अग्रसर करे।’’



📚 मनन-चिंतन



प्रभु का आगमन नजदीक आ गया है। हमारे पास अभी भी समय है कि हम प्रभु के जन्म के लिये अपने मन और हृदय को तैयार करे। प्रभु के जन्म की तैयारी हृदय की तैयारी होनी चाहिए। इस जन्म पर्व का आधार संदेश, प्रेम तथा क्षमा होनी चाहिए तब ही हम योग्य रीति से उनका स्वागत अपने हृदय में कर सकते हैं, जो शीघ्र आने वाले है।

सुसमाचार में जकरियस के भजन का वर्णन किया गया है। जकरियस एक याजक था। वह योहन के जन्म तक लगभग नौ महीने तक गूंगा रहा। योहन के जन्म के बाद उसके मुख के बंधन खुल गये। उनका पहला शब्द ईश्वर की स्तुति गाने के लिए निकला। धन्य है प्रभु इस्राएल का ईश्वर! उसने अपनी प्रजा की सुध ली"

आज के भागदौड़ भरी जिंदगी में हम भी कुछ क्षण शांत रहे। ईश्वर पर अपना ध्यान केंद्रित करे और दूसरों के लिए प्रभु की वाणी बने ।




📚 REFLECTION




The coming of the Lord is near. We still have time to prepare our mind and heart for the birth of the Lord. The preparation for the birth of the Lord should be the preparation of the heart. The base message of this birth festival should be love and forgiveness, then we can welcome him in our hearts in a worthy manner. Which are to come soon.

The Gospel describes the psalm of Zacharias. He was a priest. He remained dumb for nine months until John was born. After the birth of John, the shackles of his mouth were opened. His first words came out to praise God. "Blessed be the Lord God of Israel, for he has looked favorable on his people."

In today's run-of-the-mill life, let us also remain calm for a few moments. Focus your attention on God. And be the voice of the Lord to others.



मनन-चिंतन - 2



संत लूकस के सुसमाचार के पहले दो अध्यायों में तीन स्तुतिगीत हैं। पहले अध्याय में मरियम का भजन (Magnificat) और ज़करियस का भजन (Benedictus) हैं और दूसरे अध्याय में सिमयोन का भजन (Nunc dimittis) हैं। ये तीनों गीत क्रिसमस की खुशी को व्यक्त करते हैं। मरिया-गान उस सर्वशक्तिमान ईश्वर की स्तुति है जो अपने पुत्र के देहधारण के माध्यम से इस दुनिया में अपना सबसे बड़ा आश्चर्य का कार्य करते हैं। ज़करियस का भजन मुख्य रूप से मसीह के आगमन और संत योहन बपतिस्ता, अग्रदूत की भूमिका के बारे में भविष्यवाणी का गीत है। लंबे समय की प्रतीक्षा के बाद मसीह के आगमन के व्यक्तिगत अनुभव का आनंद सिमयोन का भजन व्यक्त करता है। क्रिसमस की अवधि में प्रत्येक ख्रीस्तीय विश्वासी को इन गीतों को सार्थक रीति से गाने के लिए सक्षम बनना चाहिए। इसके लिए क्रिसमस के अनुभव को निजीकरण की आवश्यकता होगी। ज़करियस नौ महीनों से अधिक समय से मौन साध रहे थे। वे नौ महीनों से बात ही नहीं कर पा रहे थे। लूकस 1:64 में, सुसमाचार-लेखक ने नोट किया, "उसी क्षण ज़करियस के मुख और जीभ के बन्धन खुल गये और वह ईश्वर की स्तुति करते हुए बोलने लगा।"। जब ज़करियस को बोलने की क्षमता प्राप्त हुयी तब उनकी सब से पहली प्रतिक्रिया सर्वशक्तिमान की प्रशंसा की थी। अपनी चुप्पी में वे ईश्वर के देहधारण के रहस्य और उस कहानी में खुद की भूमिका पर मनन-ध्यान कर रहे थे, जो उनके सामने धीरे-धीरे प्रकट हो रहे थे। वे उस आंतरिक आनंद को अपने दिल के अन्दर समाहित करने में सक्षम नहीं थे जो सर्वशक्तिमान की प्रशंसा में फूट निकला था। अब मेरे अपने व्यक्तिगत मनन-चिंतन के लिए कई सवाल उठते हैं। क्या मैं प्रभु की प्रतीक्षा कर रहा हूँ? क्या मेरा इंतज़ार सिमयोन के इंतजार की तरह तीव्र है? क्या मैंने अपने उद्धारक के आने के अनुभव को निजीकृत करने की कोशिश की है? क्रिसमस की पूर्व संध्या पर इन सवालों को संबोधित करना मेरे लिए अच्छा है, ताकि क्रिसमस का जश्न मेरे लिए एक व्यक्तिगत अनुभव हो। वास्तव में, कलीसिया प्रतिदिन की प्रभात-प्रार्थना में ज़करियस के भजन को शामिल कर उसे हर रोज सार्थक रूप से गाने के लिए हमें आमंत्रित करती है।



REFLECTION


There are three canticles in the first two chapters of the Gospel of St. Luke. They are the Canticle of Mary (Magnificat) and, Canticle of Zachariah (Benedictus) in chapter one, and the Canticle of Simeon (Nunc dimittis) in chapter two. All these three songs express the joy of Christmas. The canticle of Mary is praise of God who carries out his greatest wonder through the Incarnation of the Son of God. The Canticle of Zachariah is primarily a song of prophecy about immediate arrival of the Messiah and the role of St. John the Baptist, the precursor. The Canticle of Simeon expresses the joy of the personal experience of the arrival of the Messiah after a long period of waiting. In the season of Christmas every Christian should be able to sing these songs with great meaning. This would require personalisation of the experience of Christmas. Zachariah was silent for over nine months. He was not able to talk for nine months. In Lk 1:64, the evangelist notes, “his mouth was opened and his tongue freed, and he began to speak, praising God”. When Zachariah regained the power of speech, the first movements of his tongue were praises of the Almighty. In his silence he was contemplating the mystery of the Incarnation and his own role in that story that unravelled petal by petal before him. He was not able to contain the inner joy that broke out in praises of the Almighty. Many questions arise for my own personal reflections. Have I been waiting for the Lord? Has my waiting been intense like that of Zachariah? Have I tried to personalise the experience of the coming of my redeemer? It is good for me to address these questions on the eve of Christmas, so that the celebration of Christmas will be a personal experience for me. In fact, the Church invites us to meaningfully sing the Benedictus every day by making it part of the morning prayer of every day in the Divine Office.


 -Br. Biniush Topno


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गुरुवार, 23 दिसंबर, 2021

 

गुरुवार, 23 दिसंबर, 2021

आगमन का चौथा सप्ताह

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पहला पाठ: मलआकी का ग्रन्थ 3:1-4.23-24


1) प्रभु-ईश्वर यह कहता है, “देखो, मैं अपने दूत भेजूँगा, जिससे वह मेरे लिए मार्ग तैयार करे। वह प्रभु, जिसे तुम खोजते हो, अचानक अपने मन्दिर आ जायेगा। देखो, विधान का वह दूत, जिस के लिए तुम तरसते हो, आ रहा है।

2) कौन उसके आगमन के दिन का सामना कर सकेगा? जब वह प्रकट होगा, तो कौन टिकेगा? क्योंकि वह सुनार की आग और धोबी के खार के सदृश है।

3) वह चाँदी गलाने वाले और शोधन करने वाले की तरह बैठ कर लेवी के पुत्रों को शुद्ध करेगा और सोने-चाँदी की तरह उनका परिष्कार करेगा।

4) तब वे योग्य रीति से ईश्वर को भेंट चढ़ायेंगे और प्रभु-ईश्वर प्राचीन काल की तरह यूदा और यरूसलेम की भेंट स्वीकार करेगा।

23) “देखो, उस महान् एवं भयानक दिन के पहले, प्रभु के दिन के पहले, मैं नबी एलियाह को तुम्हारे पास भेजूँगा।

24) वह पिता का हृदय पुत्र की ओर अभिमुख करेगा और पुत्र का हृदय पिता की ओर। कहीं ऐसा न हो कि मैं आ कर देश का सर्वनाश कर दूँ।“



सुसमाचार : सन्त लूकस 1:57-66



57) एलीज़बेथ के प्रसव का समय पूरा हो गया और उसने एक पुत्र को जन्म दिया।

58) उसके पड़ोसियों और सम्बन्धियों ने सुना कि प्रभु ने उस पर इतनी बड़ी दया की है और उन्होंने उसके साथ आनन्द मनाया।

59) आठवें दिन वे बच्चे का ख़तना करने आये। वे उसका नाम उसके पिता के नाम पर ज़करियस रखना चाहते थे,

60) परन्तु उसकी माँ ने कहा, ’’जी नहीं, इसका नाम योहन रखा जायेगा।’’

61) उन्होंने उस से कहा, ’’तुम्हारे कुटुम्ब में यह नाम तो किसी का भी नहीं है’’।

62) तब उन्होंने उसके पिता से इशारे से पूछा कि वह उसका नाम क्या रखना चाहता है।

63) उसने पाटी मँगा कर लिखा, ’’इसका नाम योहन है’’। सब अचम्भे में पड़ गये।

64) उसी क्षण ज़करियस के मुख और जीभ के बन्धन खुल गये और वह ईश्वर की स्तुति करते हुए बोलने लगा।

65) सभी पड़ोसी विस्मित हो गये और यहूदिया के पहाड़ी प्रदेश में ये सब बातें चारों ओर फैल गयीं।

66) सभी सुनने वालों ने उन पर मन-ही-मन विचार कर कहा, ’’पता नहीं, यह बालक क्या होगा?’’ वास्तव में बालक पर प्रभु का अनुग्रह बना रहा।



📚 मनन-चिंतन



मनुष्य का जन्म ईश्वर का अनमोल वरदान है। ईश्वर हम प्रत्येक जन को प्यार करते है। हम सभी का जन्म संयोगवश नही लेकिन ईश्वरीय योजना के तहत हुआ है- जैसे योहन बपतिस्ता का जन्म । उनका जन्म दूसरों की ही तरह था लेकिन उनके जन्म की एक विशेषता थी। इसी विशेषता के कारण वे पूरी मानव जाति के लिए एक संदेशवाहक बन गये । उन्होंने आने वाले मुक्तिदाता के मार्ग को प्रशस्त किया और आने वाले मुक्तिदाता को दुनिया के सामने प्रकट किया। हर व्यक्ति अपने नाम से नहीं बल्कि अपने कार्यों से महान होता है। योहन अपने कर्मों से महान बन गये | इनके माता पिता भी धार्मिक और कर्तव्यनिष्ठ थे। इसलिये ईश्वर ने उन्हें बुढ़ापे में पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया।

सुनने में यह असंभव सा प्रतीत होता है। लेकिन ईश्वर के लिए कुछ भी असंभव नहीं है। हम भी धार्मिक व कर्तव्यनिष्ठ बने और ईश्वर के वरदानों को ग्रहण करे।



📚 REFLECTION




Man's birth is a priceless gift of God. God loves each and every one of us. We are all born not by chance but according to the divine plan. Like the birth of John the Baptist. He was born like everyone else. But there was one specialty of his birth. Due to this specialty, he became a messenger for the entire human race. He paved the way for the coming Savior, and also revealed the coming Savior to the world.

Every person is great not by his name but by his actions. John became great by his actions. His parents were also religious and conscientious. Therefore God gave them the boon of having a son in their old age. It seems impossible to hear. But nothing is impossible for God. Let us also become religious and conscientious and accept the blessings of God.



मनन-चिंतन - 2


ज़करिया के परिवार को ईश्वर की योजनाओं के साथ तालमेल बिठाना पड़ा। एलिजाबेथ बांझ थीं। ज़करिया और एलिजाबेथ दोनों बूढ़े हो चले थे। प्रभु ने उस दंपति को अपने बुढ़ापे में एक बच्चा दे कर आशीर्वाद दिया, एक बच्चा जो मसीहा का अग्रदूत बनेगा। उन्हें प्रभु की मांग को पूरा करने के लिए पिता के नाम पर बच्चे का नामकरण करने की परंपरा से हटना पड़ा। जकरियस और एलिजाबेथ के परिवार के अनुभवों से हम सीखते हैं, सबसे पहले, कि बच्चे ईश्वर के हैं और ईश्वर के उपहार हैं। इसलिए बच्चों को ईश्वर से धन्यवाद और निष्ठा के साथ प्राप्त किया जाना चाहिए। उनमें से प्रत्येक की इतिहास में एक विशिष्ट भूमिका है और प्रभु की उनमें से प्रत्येक के लिए एक विशिष्ट योजना है। हमें उनका ऐसा पालन-पोषण करना चाहिए कि वे प्रभु द्वारा निर्धारित व्यक्तित्व बन जाये। जकरियस के परिवार की तरह, हमारे परिवारों को अपने पड़ोसियों और संबंधियों के लिए खुला रहना है।



REFLECTION


The family of Zachariah had to adjust to God’s designs. Elizabeth was barren. Both Zachariah and Elizabeth were advanced in years. The Lord blessed the couple in their old age with a child, a child who would become the precursor of the Messiah. They had to depart from the tradition of naming the child after the father in order to fulfill the demand of the Lord. From the experiences of the family of Zachariah and Elizabeth we learn, first of all, that children belong to God and are gifts of God. We should not take children for granted. Hence children are to be received with thanksgiving and loyalty to God. Each of them has a unique role to play in history and the Lord has a specific plan for each one them. We need to nurture them to become what they are indented to be by the Lord. Like the family of Zachariah, our families are to be open to their neighbors and relations.


 -Br. Biniush topno


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बुधवार, 22 दिसंबर, 2021

 

बुधवार, 22 दिसंबर, 2021

आगमन का चौथा सप्ताह

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पहला पाठ : समुएल का पहला ग्रन्थ 1:24-28


24) जब अन्ना समूएल का दूध छुड़ा चुकी, तो उसने उसे अपने साथ कर लिया। वह तीन वर्ष का बछड़ा, आधा मन आटा और एक मषक अंगूरी ले गयी और समूएल को षिलो में प्रभु के मन्दिर के भीतर लायी। उस समय बालक छोटा था।

25) बछड़े की बलि चढ़ाने के बाद, वे बालक को एली के पास ले गये।

26) अन्ना ने कहा, ‘‘महोदय! क्षमा करें। महोदय! आपकी शपथ! मैं वही स्त्री हूँ, जो यहीं प्रभु से प्रार्थना करती हुई आपके सामने खड़ी थी।

27) मैंने इस बालक के लिए प्रार्थना की और प्रभु ने मेरी प्रार्थना स्वीकार कर ली।

28) इसलिए मैं इसे प्रभु को अर्पित करती हूँ। यह आजीवन प्रभु को अर्पित है।’’ और उन्होंने वहाँ प्रभु की आराधना की।


सुसमाचार : सन्त लूकस का सुसमाचार 1:46-56


46) तब मरियम बोल उठी, ’’मेरी आत्मा प्रभु का गुणगान करती है,

47) मेरा मन अपने मुक्तिदाता ईश्वर में आनन्द मनाता है;

48) क्योंकि उसने अपनी दीन दासी पर कृपादृष्टि की है। अब से सब पीढि़याँ मुझे धन्य कहेंगी;

49) क्योंकि सर्वशक्तिमान् ने मेरे लिए महान् कार्य किये हैं। पवित्र है उसका नाम!

50) उसकी कृपा उसके श्रद्धालु भक्तों पर पीढ़ी-दर-पीढ़ी बनी रहती है।

51) उसने अपना बाहुबल प्रदर्शित किया है, उसने घमण्डियों को तितर-बितर कर दिया है।

52) उसने शक्तिशालियों को उनके आसनों से गिरा दिया और दीनों को महान् बना दिया है।

53) उसने दरिंद्रों को सम्पन्न किया और धनियों को ख़ाली हाथ लौटा दिया है।

54) इब्राहीम और उनके वंश के प्रति अपनी चिरस्थायी दया को स्मरण कर,

55) उसने हमारे पूर्वजों के प्रति अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार अपने दास इस्राएल की सुध ली है।’’

56) लगभग तीन महीने एलीज़बेथ के साथ रह कर मरियम अपने घर लौट गयी।


📚 मनन-चिंतन


जो व्यक्ति ईश्वर पर श्रध्दा रखता है वह ईश्वर का महिमागान करता है। जैसे की माता मरियम ने किया। ईश्वर ने माता मरियम के जीवन में जो महान कार्य किये थे उन सभी कृपाओं के लिए ईश्वर के प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट करती है। माता मरियम भजन के द्वारा बतलाती है, कि ईश्वर कि दया सिर्फ उसे ही प्राप्त होगी, जो घमण्डी नही करुन वरन विनम्र है । जो शक्तिशाली नहीं वरन दुर्बल है और जो तृप्त है नहीं वरन जो भूखे हैं। आज के पहले पाठ में भी अन्ना अपने समुएल के लिए ईश्वर के मंदिर गयी। जो कुछ ईश्वर ने उनके जीवन में किया था उसके लिए ईश्वर का धन्यवाद एवं गुणगान किया और प्रभु को निर्धारित भेंट चढ़ायी। हमने भी ईश्वर से अनेक वरदान व कृपा पायी है। उन सभी के लिए हमेशा ईश्वर के प्रति कृतज्ञ बने रहे।


📚 REFLECTION



A person who has faith in God, He glorifies God, Just as Mother Mary did in her life. The great things God had done in the life of Mother Mary. She expresses her gratitude to God for all those graces.

Mother Mary praises God through hymns that only he will get the mercy of God. One who is not proud but humble, who is not strong but weak, and who is not satisfied but hungry.

In today's first reading also tells that Anna went to the temple of God for her son Samuel. Whatever God had done in her life, she thanked and praised God for that. And she offered the prescribed offering to the Lord.

We too have received many boons and blessings from God. Always remain grateful to God for all of them.


 -Br. Biniush topno


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सोमवार, 20 दिसंबर, 2021

 

सोमवार, 20 दिसंबर, 2021

आगमन का चौथा सप्ताह

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पहला पाठ: इसायाह का ग्रन्थ 7:10-14


10) प्रभु ने फिर आहाज़ से यह कहा,

11) “चाहे अधोलोक की गहराई से हो, चाहे आकाश की ऊँचाई से, अपने प्रभु-ईश्वर से अपने लिए एक चिन्ह माँगो“।

12) आहाज़ ने उत्तर दिया, “जी नहीं! मैं प्रभु की परीक्षा नहीं लूँगा।“

13) इस पर उसने कहा, “दाऊद के वंश! मेरी बात सुनो। क्या मनुष्यों को तंग करना तुम्हारे लिए पर्याप्त नहीं है, जो तुम ईश्वर के धैर्य की भी परीक्षा लेना चाहते हो?

14) प्रभु स्वयं तुम्हें एक चिन्ह देगा और वह यह है - एक कुँवारी गर्भवती है। वह एक पुत्र को प्रसव करेगी और वह उसका नाम इम्मानूएल रखेगी।


सुसमाचार : सन्त लूकस 1:26-38


26) छठे महीने स्वर्गदूत गब्रिएल, ईश्वर की ओर से, गलीलिया के नाजरेत नामक नगर में एक कुँवारी के पास भेजा गया,

27) जिसकी मँगनी दाऊद के घराने के यूसुफ नामक पुरुष से हुई थी, और उस कुँवारी का नाम था मरियम।

29) वह इन शब्दों से घबरा गयी और मन में सोचती रही कि इस प्रणाम का अभिप्राय क्या है।

30) तब स्वर्गदूत ने उस से कहा, ’’मरियम! डरिए नहीं। आप को ईश्वर की कृपा प्राप्त है।

31) देखिए, आप गर्भवती होंगी, पुत्र प्रसव करेंगी और उनका नाम ईसा रखेंगी।

32) वे महान् होंगे और सर्वोच्च प्रभु के पुत्र कहलायेंगे। प्रभु-ईश्वर उन्हें उनके पिता दाऊद का सिंहासन प्रदान करेगा,

33) वे याकूब के घराने पर सदा-सर्वदा राज्य करेंगे और उनके राज्य का अन्त नहीं होगा।’’

34) पर मरियम ने स्वर्गदूत से कहा, ’’यह कैसे हो सकता है? मेरा तो पुरुष से संसर्ग नहीं है।’’

35) स्वर्गदूत ने उत्तर दिया, ’’पवित्र आत्मा आप पर उतरेगा और सर्वोच्च प्रभु की शक्ति की छाया आप पर पड़ेगी। इसलिए जो आप से उत्पन्न होंगे, वे पवित्र होंगे और ईश्वर के पुत्र कहलायेंगे।

36) देखिए, बुढ़ापे में आपकी कुटुम्बिनी एलीज़बेथ के भी पुत्र होने वाला है। अब उसका, जो बाँझ कहलाती थी, छठा महीना हो रहा है;

37) क्योंकि ईश्वर के लिए कुछ भी असम्भव नहीं है।’’

38) मरियम ने कहा, ’’देखिए, मैं प्रभु की दासी हूँ। आपका कथन मुझ में पूरा हो जाये।’’ और स्वर्गदूत उसके पास से चला गया।



📚 मनन-चिंतन


आज के सुसमाचार में स्वर्गदूत गब्रिएल ईश्वर का संदेश ले कर माता मरियम के पास आते हैं। स्वर्गदूत माता मरियम को आदर और सम्मान के साथ प्रणाम करते हैं। स्वर्गदूत उनसे कहते हैं, आप प्रभु की कृपापात्री है। प्रभु आपके साथ है। आपको ईश्वर कि कृपा प्राप्त हैं। माता मरियम ईश्वरीय कृपाओं से परिपूर्ण थी। इसीलिए स्वर्गदूत भी उनका आदर करते थे। सुसमाचार में स्वर्गदूत गब्रिएल उनसे निवेदन करते है कि क्या वे प्रभु की माता बनेंगी | माता मरियम ने ईश्वर की आज्ञायों को स्वीकार किया। "मैं प्रभु की दासी हूँ, आपका कथन में पूरा हो जाये। येसु को सबसे करीब से कोई जानता है? तो माता मरियम ही हमें प्रभु येसु के नजदिक ला सकती है। हम ईश्वर से प्रार्थना करे कि माता मरियम का सानिध्य हमारे साथ रहे और माता मरियम कि तरह ईश्वर हमें भी अपनी कृपाओ से भर दें।



📚 REFLECTION




In today's gospel, the angel Gabriel came to Mary with the message of God. The angel bow downs to Mother Mary with reverence and respect. The angel tells her; you are the grace of the Lord. Lord is with you. You have got the grace of God. Mary was full of divine grace. That is why the angel also respected her. In the Gospel the angel Gabriel appeals to her that ‘Will you be the mother of the Lord?’ Mary accepted the command of God saying; "I am the servant of the Lord; may your words be fulfilled.” If anyone knows Jesus very closely that is Mother Mary. Therefore, Mother Mary can bring us near to the Lord Jesus. We pray to God that the company of Mother Mary be with us. And like Mother Mary, may God fill us with his grace.



मनन-चिंतन - 2



जब स्वर्गदूत गब्रिएल ने ज़करियस के सामने योहन बपतिस्ता के जन्म की घोषणा की, तब उन्होंने एक सवाल पूछा, “इस पर मैं कैसे विश्वास करूँ? क्योंकि मैं तो बूढ़ा हूँ और मेरी पत्नी बूढ़ी हो चली है।” (लूकस 1:18)। योहन के जन्म तक स्वर्गदूत ने उसे चुप करा दिया। स्वर्गदूत का व्यवहार हमें कठोर लग सकता है। दूसरी ओर, छठे महीने में, वही स्वर्गदूत गेब्रिएल कुँवारी मरियम के पास गये और उन्होंने उनके सामने येसु के जन्म की घोषणा की। मरियम का भी एक सवाल था, "यह कैसे हो सकता है? मेरा तो पुरुष से संसर्ग नहीं है।" स्वर्गदूत ने धैर्यपूर्वक स्पष्ट किया कि पवित्र आत्मा की शक्ति से ही यह संभव होगा। कोई यह सवाल कर सकता है कि स्वर्गदूत की प्रतिक्रिया में यह अंतर क्यों है। यदि हम यह देखते हैं कि स्वर्गदूत की घोषणा के समय मरियम के साथ क्या होता है, तो हम यह पायेंगे कि मरियम हैरान और भयभीत हो गयी थीं और अपनी विनम्रता के साथ उन्होंने उस रहस्य को समझने के लिए मदद मांगी जो उनके सामने प्रकट किया जा रहा था। दूसरी ओर, ज़करियस नम्रता के साथ स्पष्टीकरण नहीं मांग रहे थे, लेकिन अविश्वास में सबूत माँग रहे थे। उनका सवाल था - "इस पर मैं कैसे विश्वास करूँ?" वे सुसमाचार के कुछ फरीसियों और सदूकियों की तरह जवाब देते हैं जो येसु से एक चिह्न की मांग करते हैं। इसलिए उन्हें शुद्धीकरण के समय से गुजरना पड़ा क्योंकि योहन ईश्वर की पवित्र योजना के अनुसार जन्म लेने वाले थे।



REFLECTION



When Angel Gabriel announced the birth of John to his Father Zachariah, he asked a question, “How will I know that this is so? For I am an old man, and my wife is getting on in years” (Lk 1:18). The Angel silenced him until John was born. The angel seems to be harsh with him. On the other hand, in the sixth month, the same Angel Gabriel appeared to Mary and announced about the birth of Jesus. Mary too had a question, “How can this be, since I am a virgin?” The angel patiently clarified that this would be possible with the intervention of the Holy Spirit. Someone may question as to why this difference in the response of the angel. If we look at what happens to Mary at the time of the annunciation, we can see that Mary was perplexed and confused and in her humility she asked for help to understand what was being unfolded before her. On the other hand, Zachariah was not seeking a clarification in humility, but was asking for a proof in disbelief. His question was – “How will I know that this is so?” He seems to respond like some Pharisees and Scribes who demanded a sign from Jesus. He therefore had to go through a time of purification before John would be born according to the sacred plan of God.


 -Br. Biniush topno


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इतवार, 19 दिसंबर, 2021

 

इतवार, 19 दिसंबर, 2021

आगमन का चौथा इतवार

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पहला पाठ : मीकाह का ग्रन्थ 5:1-4a


1) बेथलेहेम एफ्राता! तू यूदा के वंशों में छोटा है। जो इस्राएल का शासन करेगा, वह मेरे लिए तुझ में उत्पन्न होग। उसकी उत्पत्ति सुदूर अतीत में, अत्यन्त प्राचीन काल में हुई है।

2) इसलिए प्रभु उन्हें तब तक त्याग देगा, जब तक उसकी माता प्रसव न करे। तब उसके बचे हुए भाई इस्राएल के लोगों से मिल जायेंगे।

3) वह उठ खडा हो जायेगा, वह प्रभु के सामर्थ्य से तथा अपने ईश्वर के नाम प्रताप से अपना झुण्ड चरायेगा। वे सुरक्षा में जीवन बितायेंगे, क्योंकि वह देश के सीमान्तों तक अपना शासन फैलायेगा

4) और शांति बनाये रखेगा।



दूसरा पाठ: इब्रानियों के नाम पत्र 10:5-10


5) इसलिए मसीह ने संसार में आ कर यह कहा: तूने न तो यज्ञ चाहा और न चढ़ावा, बल्कि तूने मेरे लिए एक शरीर तैयार किया है।

6) तू न तो होम से प्रसन्न हुआ और न प्रायश्चित्त के बलिदान से;

7) इसलिए मैंने कहा - ईश्वर! मैं तेरी इच्छा पूरी करने आया हूँ, जैसा कि धर्मग्रन्थ में मेरे विषय में लिखा हुआ है।

8) मसीह ने पहले कहा, ’’तूने यज्ञ, चढ़ावा, होम या या प्रायचित्त का बलिदान नहीं चाहा। तू उन से प्रसन्न नहीं हुआ’’, यद्यपि ये सब संहिता के अनुसार ही चढ़ाये जाते हैं।

9) तब उन्होंने कहा, ’’देख, मैं तेरी इच्छा पूरी करने आया हूँ’’। इस प्रकार वह पहली व्यवस्था को रद्द करते और दूसरी का प्रवर्तन करते हैं।

10) ईसा मसीह के शरीर के एक ही बार बलि चढ़ाये जाने के कारण हम ईश्वर की इच्छा के अनुसार पवित्र किये गये हैं।


सुसमाचार : सन्त लूकस का सुसमाचार 1:39-45


39) उन दिनों मरियम पहाड़ी प्रदेश में यूदा के एक नगर के लिए शीघ्रता से चल पड़ी।

40) उसने ज़करियस के घर में प्रवेश कर एलीज़बेथ का अभिवादन किया।

41) ज्यों ही एलीज़बेथ ने मरियम का अभिवादन सुना, बच्चा उसके गर्भ में उछल पड़ा और एलीज़बेथ पवित्र आत्मा से परिपूर्ण हो गयी।

42) वह ऊँचे स्वर से बोली उठी, ’’आप नारियों में धन्य हैं और धन्य है आपके गर्भ का फल!

43) मुझे यह सौभाग्य कैसे प्राप्त हुआ कि मेरे प्रभु की माता मेरे पास आयीं?

44) क्योंकि देखिए, ज्यों ही आपका प्रणाम मेरे कानों में पड़ा, बच्चा मेरे गर्भ में आनन्द के मारे उछल पड़ा।

45) और धन्य हैं आप, जिन्होंने यह विश्वास किया कि प्रभु ने आप से जो कहा, वह पूरा हो जायेगा!’’



📚 मनन-चिंतन



आज के सुसमाचार में मरियम और ऐलिजाबेथ के मिलन को पाते हैं। मरियम ने ज्यों ही एलिजाबेथ का अभिवादन किया एलिजाबेथ उँचे स्वर से बोल उठीं, "आप नारीयों में धन्य है और धन्य है आपके गर्भ का फल"(लूकस 1:42) एलिजाबेथ ने माता मरियम के ईश्वर पर अटूट विश्वास के कारण उन्हें धन्य कहा। वह विश्वास के कारण ही ईश्वर की माता बनने के लिए चुनी गयी। उनके द्वारा इस संसार को मुक्तिदाता मिल गये | "धन्य हैं आप, जिन्होंने यह विश्वास किया कि प्रभु ने आपसे ने जो कहा वह पूरा हो जायेगा।" (लूकस 1:45)

हम भी धन्य बन सकते हैं अगर हम ईश्वर पर विश्वास तथा उनके वचनों का पालन करते हैं तो। धन्य है वे जो धार्मिकता के भूखे हैं और प्यासे है, वे तृप्त किये जायेंगे। (मत्ती: 5:6) "किन्तु वे कहीं अधिक धन्य है, जो ईश्वर का वचन सुनते और उसका पालन करते हैं" (लूकस 11:28) आइये हम भी ईश्वर की नज़रों में धन्य बनने की कोशिश करे।


📚 REFLECTION




In today's gospel we find that Mary is meeting Elizabeth. As soon as Mary greeted Elizabeth, Elizabeth exclaimed with a loud voice, "Blessed are you among women and blessed is the fruit of your womb." (Lk 1:42). Elizabeth said Mary as blessed Mother, because of Mary’s unwavering faith in God. She was chosen to become the Mother of God because of her faith and through her the world has found the saviour. "Blessed are you who have believed that what the Lord said will come true”. (Lk1:45) We too can be blessed, if we believe in God and obey his words. “Blessed are those who are hungry and thirsty for righteousness. They will be satisfied (Matthew: 5:6). “But far more blessed are those who hear and obey the word of God (Lk 11:28).

Let us try to be blessed in the eyes of God.


मनन-चिंतन - 2



जब बच्चों के लिए मिस्सा बलिदान हो रहा था, तब एक फटे पुराने कपडे पहने व्यक्ति ने गिरजा घर में प्रवेश किया। वह बैठ गया और जल्दी उसे नींद लगी। मिस्सा के बाद बच्चों ने माता मरियम का गीत गाये -

Mother of Christ, star of the sea,

Pray for the wanderer, pray for me.

गीत सुन कर वह आदमी जाग उठा और फूट फूट कर रोने लगा। बच्चो ने उसके पास आ कर संवेदना प्रकट की। उस आदमी ने बच्चों से कहा – “आप के उम्र में मैं भी एक अच्छा काथलिक बच्चा था, बराबर चर्च जाता था, प्रार्थना करता था। जल्दी मैं कुछ दोस्तों के प्रभाव में आकर हर प्रकार की बुराई के वश में आ गया। चर्च जाना और प्रार्थना करना तब से मैं ने छोड दिया। वह पदच्युत व्यक्ति (wanderer) मैं हूँ जिस के लिए आप बच्चों ने इस गीत में अभी प्रार्थना की। मैं वापस आ गया प्रभु येसु! माता मरियम मेरे लिए प्रार्थना करना; बच्चों, आप भी मेरे लिये प्रार्थना करना।”

बच्चों द्वारा गाये उस मरियम भक्ति-प्रार्थना गीत ने उस डावाडोल आदमी को विश्वास मंन पुनः आने की कृपा दी। इस प्रकार का अनुभव कुछ लोगों का नहीं बल्कि करोडों लोगों का है। अतः कलीसिया यह सिखाती आयी है– “मरियम के द्वारा येसु की ओर” (To Jesus through Mary)। प्रभु येसु को पहचानने एवं मुक्तिदाता के रूप में ग्रहण करने के लिए मरियम मध्यस्थता एक विशेष भूमिका निभाती है।

ईशपुत्र येसु को अपने गर्भ में धारण करती हुई मॉ मरियम अपनी परिजन एलीजबेथ से मिलने जाती है। इस मिलन में एलीज़बेथ और उसकी कोख में पले रहे योहन को अनोखा दैविक अनुभव प्राप्त होता जिसका वर्णन एलीज़बेथ के शब्दों में है – “ज्यों ही आपका प्रणाम मेरे कानों में पडा, बच्चा मेरे गर्भ में आनन्द के मारे उछल पडा।”

ख्रीस्तीय होने का मतलब येसु को धारण करना होता है (रोमियों 13:14)। जो येसु को अपने जीवन में धारण करते हैं, वे आनन्द और शॉति का स्रोत येसु के माध्यम बनकर अन्य लोगों के लिए मुक्ति और खुशी प्रदान कर सकेंगे।

मरियम येसु को अपने गर्भ में धारण करने के बाद अपनी परिजन एलीज़बेथ से मिलने जाती है और उनकी सेवा शुश्रूषा करती है। मरियम को येसु की माता होने के अलावा येसु की प्रथम ’प्रेरित’ भी कहा जा सकता है जो येसु को धारण करती हुई एलीजबेथ से मिलती है और मसीह के आगमन के शुभ संदेश दोनों बहने आपस मे बॉटती हैं। मरियम में जो मूलभूत गुण है वह सभी ख्रीस्तीयों में होना चाहिये ताकि हरेक ख्रीस्तीय प्रेरित बनकर येसु के मुक्ति कार्य को लोगों तक पहुँचा सकें। ये मूलभूत गुण हैं -

मरियम को ईश्वर में दृढ विश्वास था। स्वर्गदूत गब्रिएल से प्राप्त संदेश में मरियम ने विश्वास किया एवं ईशमाता बनने के लिए अपनी बिना शर्त सहमति दी जिसके दूरगामी परिणामों को वह नहीं समझ पाती थी।

मरियम ईश्वर की योजनाओं के प्रति समर्पित थी – “देखिए, मैं प्रभु की दासी हूँ, आपका वचन मुझमें पूरा हो जायें। (लूकस 1:38)

मरियम सेवाभाव और संवेदना से भरी थी। वह अपने परिजन एलीज़बेथ से मिलने जाती और सेवा करती है। काना के विवाह भोज में अंगूरी समाप्त होने पर मरियम उस परिवार की व्याकुलता के प्रति संवेदनशील होती है और जानती है कि इस समस्या का समाधान केवल अपने पु़त्र येसु से ही हो सकता है। अतः मरियम इस समस्या को येसु के समक्ष रखती है। यहॉ येसु अपना पहला चमत्कार करते है। (योहन 2:3-10)

मरियम का जीवन आनन्द एवं कृतज्ञता का है। मरियम का स्तुतिगान ईश्वर के प्रति अपना आनन्द एवं कृतज्ञता का मधुर गीत है। जिसमें आनन्द नहीं, वह दुसरों को आनन्द नहीं दे सकता; जो कृतज्ञ नहीं, वे आनन्दित रह नहीं सकता क्योंकि उनके सोच नकारात्मक होता है। जिसमें आनन्द नहीं, वे येसु के शुभ संदेश नहीं दे सकता।

माता मरियम के इन गुणों को हम अपने जीवन में अपनायें ताकि हम प्रभु येसु मसीह के साक्षी बन सकें। इस आगमन काल के अंतिम इतवार को हम माता मरियम जैसे अपने हृदय को आनन्द और कृतज्ञता से भरें ताकि ईशपुत्र येसु मसीह को हम अपने हृदय में स्वागत करें, धारण करें। हमारे विचार सकारात्मक बने और हम पाप मुक्ति पाकर येसु के बन जायें।


✍-Br. Biniush topno


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