सोमवार, 20 दिसंबर, 2021
आगमन का चौथा सप्ताह
पहला पाठ: इसायाह का ग्रन्थ 7:10-14
10) प्रभु ने फिर आहाज़ से यह कहा,
11) “चाहे अधोलोक की गहराई से हो, चाहे आकाश की ऊँचाई से, अपने प्रभु-ईश्वर से अपने लिए एक चिन्ह माँगो“।
12) आहाज़ ने उत्तर दिया, “जी नहीं! मैं प्रभु की परीक्षा नहीं लूँगा।“
13) इस पर उसने कहा, “दाऊद के वंश! मेरी बात सुनो। क्या मनुष्यों को तंग करना तुम्हारे लिए पर्याप्त नहीं है, जो तुम ईश्वर के धैर्य की भी परीक्षा लेना चाहते हो?
14) प्रभु स्वयं तुम्हें एक चिन्ह देगा और वह यह है - एक कुँवारी गर्भवती है। वह एक पुत्र को प्रसव करेगी और वह उसका नाम इम्मानूएल रखेगी।
सुसमाचार : सन्त लूकस 1:26-38
26) छठे महीने स्वर्गदूत गब्रिएल, ईश्वर की ओर से, गलीलिया के नाजरेत नामक नगर में एक कुँवारी के पास भेजा गया,
27) जिसकी मँगनी दाऊद के घराने के यूसुफ नामक पुरुष से हुई थी, और उस कुँवारी का नाम था मरियम।
29) वह इन शब्दों से घबरा गयी और मन में सोचती रही कि इस प्रणाम का अभिप्राय क्या है।
30) तब स्वर्गदूत ने उस से कहा, ’’मरियम! डरिए नहीं। आप को ईश्वर की कृपा प्राप्त है।
31) देखिए, आप गर्भवती होंगी, पुत्र प्रसव करेंगी और उनका नाम ईसा रखेंगी।
32) वे महान् होंगे और सर्वोच्च प्रभु के पुत्र कहलायेंगे। प्रभु-ईश्वर उन्हें उनके पिता दाऊद का सिंहासन प्रदान करेगा,
33) वे याकूब के घराने पर सदा-सर्वदा राज्य करेंगे और उनके राज्य का अन्त नहीं होगा।’’
34) पर मरियम ने स्वर्गदूत से कहा, ’’यह कैसे हो सकता है? मेरा तो पुरुष से संसर्ग नहीं है।’’
35) स्वर्गदूत ने उत्तर दिया, ’’पवित्र आत्मा आप पर उतरेगा और सर्वोच्च प्रभु की शक्ति की छाया आप पर पड़ेगी। इसलिए जो आप से उत्पन्न होंगे, वे पवित्र होंगे और ईश्वर के पुत्र कहलायेंगे।
36) देखिए, बुढ़ापे में आपकी कुटुम्बिनी एलीज़बेथ के भी पुत्र होने वाला है। अब उसका, जो बाँझ कहलाती थी, छठा महीना हो रहा है;
37) क्योंकि ईश्वर के लिए कुछ भी असम्भव नहीं है।’’
38) मरियम ने कहा, ’’देखिए, मैं प्रभु की दासी हूँ। आपका कथन मुझ में पूरा हो जाये।’’ और स्वर्गदूत उसके पास से चला गया।
📚 मनन-चिंतन
आज के सुसमाचार में स्वर्गदूत गब्रिएल ईश्वर का संदेश ले कर माता मरियम के पास आते हैं। स्वर्गदूत माता मरियम को आदर और सम्मान के साथ प्रणाम करते हैं। स्वर्गदूत उनसे कहते हैं, आप प्रभु की कृपापात्री है। प्रभु आपके साथ है। आपको ईश्वर कि कृपा प्राप्त हैं। माता मरियम ईश्वरीय कृपाओं से परिपूर्ण थी। इसीलिए स्वर्गदूत भी उनका आदर करते थे। सुसमाचार में स्वर्गदूत गब्रिएल उनसे निवेदन करते है कि क्या वे प्रभु की माता बनेंगी | माता मरियम ने ईश्वर की आज्ञायों को स्वीकार किया। "मैं प्रभु की दासी हूँ, आपका कथन में पूरा हो जाये। येसु को सबसे करीब से कोई जानता है? तो माता मरियम ही हमें प्रभु येसु के नजदिक ला सकती है। हम ईश्वर से प्रार्थना करे कि माता मरियम का सानिध्य हमारे साथ रहे और माता मरियम कि तरह ईश्वर हमें भी अपनी कृपाओ से भर दें।
📚 REFLECTION
In today's gospel, the angel Gabriel came to Mary with the message of God. The angel bow downs to Mother Mary with reverence and respect. The angel tells her; you are the grace of the Lord. Lord is with you. You have got the grace of God. Mary was full of divine grace. That is why the angel also respected her. In the Gospel the angel Gabriel appeals to her that ‘Will you be the mother of the Lord?’ Mary accepted the command of God saying; "I am the servant of the Lord; may your words be fulfilled.” If anyone knows Jesus very closely that is Mother Mary. Therefore, Mother Mary can bring us near to the Lord Jesus. We pray to God that the company of Mother Mary be with us. And like Mother Mary, may God fill us with his grace.
मनन-चिंतन - 2
जब स्वर्गदूत गब्रिएल ने ज़करियस के सामने योहन बपतिस्ता के जन्म की घोषणा की, तब उन्होंने एक सवाल पूछा, “इस पर मैं कैसे विश्वास करूँ? क्योंकि मैं तो बूढ़ा हूँ और मेरी पत्नी बूढ़ी हो चली है।” (लूकस 1:18)। योहन के जन्म तक स्वर्गदूत ने उसे चुप करा दिया। स्वर्गदूत का व्यवहार हमें कठोर लग सकता है। दूसरी ओर, छठे महीने में, वही स्वर्गदूत गेब्रिएल कुँवारी मरियम के पास गये और उन्होंने उनके सामने येसु के जन्म की घोषणा की। मरियम का भी एक सवाल था, "यह कैसे हो सकता है? मेरा तो पुरुष से संसर्ग नहीं है।" स्वर्गदूत ने धैर्यपूर्वक स्पष्ट किया कि पवित्र आत्मा की शक्ति से ही यह संभव होगा। कोई यह सवाल कर सकता है कि स्वर्गदूत की प्रतिक्रिया में यह अंतर क्यों है। यदि हम यह देखते हैं कि स्वर्गदूत की घोषणा के समय मरियम के साथ क्या होता है, तो हम यह पायेंगे कि मरियम हैरान और भयभीत हो गयी थीं और अपनी विनम्रता के साथ उन्होंने उस रहस्य को समझने के लिए मदद मांगी जो उनके सामने प्रकट किया जा रहा था। दूसरी ओर, ज़करियस नम्रता के साथ स्पष्टीकरण नहीं मांग रहे थे, लेकिन अविश्वास में सबूत माँग रहे थे। उनका सवाल था - "इस पर मैं कैसे विश्वास करूँ?" वे सुसमाचार के कुछ फरीसियों और सदूकियों की तरह जवाब देते हैं जो येसु से एक चिह्न की मांग करते हैं। इसलिए उन्हें शुद्धीकरण के समय से गुजरना पड़ा क्योंकि योहन ईश्वर की पवित्र योजना के अनुसार जन्म लेने वाले थे।
REFLECTION
When Angel Gabriel announced the birth of John to his Father Zachariah, he asked a question, “How will I know that this is so? For I am an old man, and my wife is getting on in years” (Lk 1:18). The Angel silenced him until John was born. The angel seems to be harsh with him. On the other hand, in the sixth month, the same Angel Gabriel appeared to Mary and announced about the birth of Jesus. Mary too had a question, “How can this be, since I am a virgin?” The angel patiently clarified that this would be possible with the intervention of the Holy Spirit. Someone may question as to why this difference in the response of the angel. If we look at what happens to Mary at the time of the annunciation, we can see that Mary was perplexed and confused and in her humility she asked for help to understand what was being unfolded before her. On the other hand, Zachariah was not seeking a clarification in humility, but was asking for a proof in disbelief. His question was – “How will I know that this is so?” He seems to respond like some Pharisees and Scribes who demanded a sign from Jesus. He therefore had to go through a time of purification before John would be born according to the sacred plan of God.
✍ -Br. Biniush topno
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