शुक्रवार, 31 दिसंबर, 2021
पहला पाठ : योहन का पहला पत्र 2:18-21
18) बच्चो! यह अन्तिम समय है। तुम लोगों ने सुना होगा कि एक मसीह-विरोधी का आना अनिवार्य है। अब तक अनेक मसीह-विरोधी प्रकट हुए हैं। इस से हम जानते हैं कि अन्तिम समय आ गया है।
19) वे मसीह-विरोधी हमारा साथ छोड़कर चले गये, किन्तु वे हमारे अपने नहीं थे। यदि वे हमारे अपने होते, तो वे हमारे ही साथ रहते। वे चले गये, जिससे यह स्पष्ट हो जाये कि उन में कोई भी हमारा अपना नहीं था।
20) तुम लोगों को तो मसीह की ओर से पवित्र आत्मा मिला है और तुम सभी लोग सत्य जानते हो।
21) मैं तुम लोगों को इसलिए नहीं लिख रहा हूँ कि तुम सत्य नहीं जानते, बल्कि इसलिए कि तुम सत्य जानते हो और यह भी जानते हो कि हर झूठ सत्य का विरोधी है।
सुसमाचार : सन्त योहन का सुसमाचार 1:1-18
1) आदि में शब्द था, शब्द ईश्वर के साथ था और शब्द ईश्वर था।
2) वह आदि में ईश्वर के साथ था।
3) उसके द्वारा सब कुछ उत्पन्न हुआ। और उसके बिना कुछ भी उत्पन्न नहीं हुआ।
4) उस में जीवन था, और वह जीवन मनुष्यों की ज्योति था।
5) वह ज्योति अन्धकार में चमकती रहती है- अन्धकार ने उसे नहीं बुझाया।
6) ईश्वर को भेजा हुआ योहन नामक मनुष्य प्रकट हुआ।
7) वह साक्षी के रूप में आया, जिससे वह ज्योति के विषय में साक्ष्य दे और सब लोग उसके द्वारा विश्वास करें।
8) वह स्वयं ज्यांति नहीं था; उसे ज्योति के विषय में साक्ष्य देना था।
9) शब्द वह सच्च ज्योति था, जो प्रत्येक मनुष्य का अन्धकार दूर करती है। वह संसार में आ रहा था।
10) वह संसार में था, संसार उसके द्वारा उत्पन्न हुआ; किन्तु संसार ने उसे नहीं पहचाना।
11) वह अपने यहाँ आया और उसके अपने लोगों ने उसे नहीं अपनाया।
12) जितनों ने उसे अपनाया, और जो उसके नाम में विश्वास करते हैं, उन सब को उसने ईश्वर की सन्तति बनने का अधिकार दिया।
13) वे न तो रक्त से, न शरीर की वासना से, और न मनुष्य की इच्छा से, बल्कि ईश्वर से उत्पन्न हुए हैं।
14) शब्द ने शरीर धारण कर हमारे बीच निवास किया। हमने उसकी महिमा देखी। वह पिता के एकलौते की महिमा-जैसी है- अनुग्रह और सत्य से परिपूर्ण।
15) योहन ने पुकार-पुकार कर उनके विषय में यह साक्ष्य दिया, ‘‘यह वहीं हैं, जिनके विषय में मैंने कहा- जो मेरे बाद आने वाले हैं, वह मुझ से बढ़ कर हैं; क्योंकि वह मुझ से पहले विद्यमान थे।’’
16) उनकी परिपूर्णता से हम सब को अनुग्रह पर अनुग्रह मिला है।
17) संहिता तो मूसा द्वारा दी गयी है, किन्तु अनुग्रह और सत्य ईसा मसीह द्वारा मिला है।
18) किसी ने कभी ईश्वर को नहीं देखा; पिता की गोद में रहने वाले एकलौते, ईश्वर, ने उसे प्रकट किया है।
📚 मनन-चिंतन
आज वर्ष 2021 का अंतिम दिन है। माता कलीसिया आज शब्द पर मनन-चिंतन करने के लिए आमंत्रित करती है। प्रारंभ में ईश्वर ने संसार कि सृष्टी अपने शब्द मात्र से की थी। आज वही शब्द मानव बनकर संसार मे प्रवेश करता है। वह देहधारण कर लेता है। यह शब्द पृथ्वी पर मनुष्य बनकर जीवन में प्रकाश और सत्य के रूप में लोगों के बीच रहने लगा। वह स्वयं जीवन है और दूसरों को अनंत जीवन प्रदान करने आया। "मार्ग सत्य और जीवन मैं हूँ ? (योहन 14:6)
ईश्वर ने शब्द को हमारे बीच इसलीए भेजा क्योंकि वह हमसे प्यार करता है। "ईश्वर ने संसार को इतना प्यार किया कि उसने उसके लिए अपने एकलौते पुत्र को अर्पित कर दिया, जिससे जो उसमे विश्वास करता है, उसका सर्वनाश न हो, बल्कि अनन्त जीवन प्राप्त करे " (योहन 3:16)
आज वर्ष का अंतिम दिन है। अपने अन्तकरण की जाँच करें और स्वंय से पुछे, ईश्वर ने अपने पुत्र को हमारे लिए भेजा। उसे हम अपने जीवन में कितना महत्व देते है।
📚 REFLECTION
Today is the last day of the year 2021. Today the mother church invites us to meditate on word. In the beginning of the world, God created the whole universe with a word. Today the same Word has become flesh and entered the world. Word takes the form of flesh. After coming to the world and becoming a human this word has lived in form of life. It is life in itself and it provides the eternal life to others.
“I am the way, truth and life” (John 14:6)
God has sent the word among us so that He could love us continuously.
“For God so loved the world that he gave his one and only Son, that whoever believes in him shall not perish but have eternal life.” (John 3:16)
Today is the last day of the year. Let us examine our conscience and ask ourselves that, God sent his only begotten son and how much importance we give to this gift.
मनन-चिंतन - 2
आज सुसमाचार लेखक संत योहन हमें ईश्वर के पुत्र के अवतार के रहस्य में गहराई से उतरने के लिए आमंत्रित करते हैं। येसु के जन्म को बेतलेहेम के गोशाले में पेश करने के बजाय, वे उनके पूर्व-अस्तित्व और शाश्वत जन्म के बारे में हमें बताते है। वे उन्हें 'लोगोस' - शब्द के रूप में प्रस्तुत करते हैं। यह शाश्वत शब्द येसु मसीह में मांस बन जाता है। उन्हें एक प्राणी के रूप में प्रस्तुत करने से हट कर, वे उन्हें उस सृष्टिकर्ता के रूप में प्रस्तुत करते हैं जिनमें सब कुछ बनाया गया था। येसु को प्रकाश के रूप में भी प्रस्तुत किया गया है जो अंधेरे को दूर करता है। सुसमाचार के लेखक प्रकाश और अंधेरे के बीच निरंतर लड़ाई को भी हमारे सामने रखते हैं और दावा करते हैं कि अंतिम जीत प्रकाश की ही होती है। आज हमें बालक येसु की चरनी के आगे घुटने टेकने और ईश्वर के रहस्य पर ध्यान देने के लिए आमंत्रित किया जाता है जो स्वर्ग से पृथ्वी पर आकर हम में से हर एक के साथ रहे। येसु को स्वीकार करने वाले सभी लोगों को परमेश्वर की संतान बनने की शक्ति प्रदान की जाती है।
REFLECTION
Today St. John the evangelist invites us to delve deep into the mystery of the Incarnation of the Son of God. Instead of presenting the birth of Jesus in the manger of Bethlehem, he speaks about his pre-existence and eternal birth. He presents him as ‘logos’ – the Word. This eternal Word becomes flesh in Jesus Christ. Far from presenting him as a creature, he presents him as the creator in whom everything was created. Jesus is also presented as the light that dispels the darkness. The evangelist also acknowledges the constant battle between the light and the darkness but asserts that the ultimate victory is of the light. Today we are invited to kneel before the crib and meditate upon the mystery of God who has come down from heaven to the earth to be with each one of us. All those who accept Jesus are given the power to become the children of God.
✍ -Br. Biniush Topno
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