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शुक्रवार, 24 दिसंबर, 2021

 

शुक्रवार, 24 दिसंबर, 2021

आगमन का चौथा सप्ताह

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पहला पाठ : समुएल का दुसरा ग्रन्थ 7:1-5 8b-12.14a16



1) जब दाऊद अपने महल में रहने लगा और प्रभु ने उसे उसके चारों ओर के सब शत्रुओं से छुड़ा दिया,

2) तो राजा ने नबीनातान से कहा, ‘‘देखिए, मैं तो देवदार के महल में रहता हूँ, किन्तु ईश्वर की मंजूषा तम्बू में रखी रहती है।’’

3) नातान ने राजा को यह उत्तर दिया, ‘‘आप जो करना चाहते हैं, कीजिए। प्रभु आपका साथ देगा।’’

4) उसी रात प्रभु की वाणी नातान को यह कहते हुए सुनाई पड़ी,

5) ‘‘मेरे सेवक दाऊद के पास जाकर कहो - प्रभु यह कहता है: क्या तुम मेरे लिए मन्दिर बनवाना चाहते हो?

8) तुम भेड़ें चराया करते थे और मैंने तुम्हें चरागाह से बुला कर अपनी प्रजा इस्राएल का शासक बनाया।

9) मैंने तुम्हारे सब कार्यों में तुम्हारा साथ दिया और तुम्हारे सामने तुम्हारे सब शत्रुओं का सर्वनाश कर दिया है। मैं तुम्हें संसार के सब से महान् पुरुषों-जैसी ख्याति प्रदान करूँगा।

10) मैं अपनी प्रजा इस्राएल के लिए भूमि का प्रबन्ध करूँगा और उसे बसाऊँगा। वह वहाँ सुरक्षित रहेगी। कुकर्मी उस पर अत्याचार नहीं कर पायेंगे। ऐसा पहले हुआ करता था,

11) जब मैंने अपनी प्रजा इस्राएल का शासन करने के लिए न्यायकर्ताओं को नियुक्त किया था। मैं उसे उसके सब शत्रुओं से छुड़ाऊँगा। प्रभु तुम्हारा वंश सुरक्षित रखेगा।

12) जब तुम्हारे दिन पूरे हो जायेंगे और तुम अपने पूर्वजों के साथ विश्राम करोगे, तो मैं तुम्हारे पुत्र को तुम्हारा उत्तराधिकारी बनाऊँगा और उसका राज्य बनाये रखूँगा।

14) मैं उसका पिता होऊँगा, और वह मेरा पुत्र होगा।

15) किन्तु मैं उस पर से अपनी कृपा नहीं हटाऊँगा, जैसा कि मैंने साऊल के साथ किया, जिसे मैंने तुम्हारे लिए ठुकराया।

16) इस तरह तुम्हारा वंश और तुम्हारा राज्य मेरे सामने बना रहेगा और उसका सिंहासन अनन्त काल तक सुदृढ़ रहेगा।’’



सुसमाचार : सन्त लूकस का सुसमाचार 1:67-79



67) उसका पिता पवित्र आत्मा से परिपूर्ण हो गया और उसने यह कहते हुए भविष्यवाणी कीः

68) धन्य है प्रभु, इस्राएल का ईश्वर! उसने अपनी प्रजा की सुध ली है और उसका उद्धार किया है।

69) उसने अपने दास दाऊद के वंश में हमारे लिए एक शक्तिशाली मुक्तिदाता उत्पन्न किया है।

70) वह अपने पवित्र नबियों के मुख से प्राचीन काल से यह कहता आया है

71) कि वह शत्रुओं और सब बैरियों के हाथ से हमें छुड़ायेगा

72) और अपने पवित्र विधान को स्मरण कर हमारे पूर्वजों पर दया करेगा।

73) उसने शपथ खा कर हमारे पिता इब्राहीम से कहा था

74) कि वह हम को शत्रुओं के हाथ से मुक्त करेगा,

75) जिससे हम निर्भयता, पवित्रता और धार्मिकता से जीवन भर उसके सम्मुख उसकी सेवा कर सकें।

76) बालक! तू सर्वोच्च ईश्वर का नबी कहलायेगा, क्योंकि प्रभु का मार्ग तैयार करने

77) और उसकी प्रजा को उस मुक्ति का ज्ञान कराने के लिए, जो पापों की क्षमा द्वारा उसे मिलने वाली है, तू प्रभु का अग्रदूत बनेगा।

78) हमारे ईश्वर की प्रेमपूर्ण दया से हमें स्वर्ग से प्रकाश प्राप्त हुआ है,

79) जिससे वह अन्धकार और मृत्यु की छाया में बैठने वालों को ज्योति प्रदान करे और हमारे चरणों को शान्ति-पथ पर अग्रसर करे।’’



📚 मनन-चिंतन



प्रभु का आगमन नजदीक आ गया है। हमारे पास अभी भी समय है कि हम प्रभु के जन्म के लिये अपने मन और हृदय को तैयार करे। प्रभु के जन्म की तैयारी हृदय की तैयारी होनी चाहिए। इस जन्म पर्व का आधार संदेश, प्रेम तथा क्षमा होनी चाहिए तब ही हम योग्य रीति से उनका स्वागत अपने हृदय में कर सकते हैं, जो शीघ्र आने वाले है।

सुसमाचार में जकरियस के भजन का वर्णन किया गया है। जकरियस एक याजक था। वह योहन के जन्म तक लगभग नौ महीने तक गूंगा रहा। योहन के जन्म के बाद उसके मुख के बंधन खुल गये। उनका पहला शब्द ईश्वर की स्तुति गाने के लिए निकला। धन्य है प्रभु इस्राएल का ईश्वर! उसने अपनी प्रजा की सुध ली"

आज के भागदौड़ भरी जिंदगी में हम भी कुछ क्षण शांत रहे। ईश्वर पर अपना ध्यान केंद्रित करे और दूसरों के लिए प्रभु की वाणी बने ।




📚 REFLECTION




The coming of the Lord is near. We still have time to prepare our mind and heart for the birth of the Lord. The preparation for the birth of the Lord should be the preparation of the heart. The base message of this birth festival should be love and forgiveness, then we can welcome him in our hearts in a worthy manner. Which are to come soon.

The Gospel describes the psalm of Zacharias. He was a priest. He remained dumb for nine months until John was born. After the birth of John, the shackles of his mouth were opened. His first words came out to praise God. "Blessed be the Lord God of Israel, for he has looked favorable on his people."

In today's run-of-the-mill life, let us also remain calm for a few moments. Focus your attention on God. And be the voice of the Lord to others.



मनन-चिंतन - 2



संत लूकस के सुसमाचार के पहले दो अध्यायों में तीन स्तुतिगीत हैं। पहले अध्याय में मरियम का भजन (Magnificat) और ज़करियस का भजन (Benedictus) हैं और दूसरे अध्याय में सिमयोन का भजन (Nunc dimittis) हैं। ये तीनों गीत क्रिसमस की खुशी को व्यक्त करते हैं। मरिया-गान उस सर्वशक्तिमान ईश्वर की स्तुति है जो अपने पुत्र के देहधारण के माध्यम से इस दुनिया में अपना सबसे बड़ा आश्चर्य का कार्य करते हैं। ज़करियस का भजन मुख्य रूप से मसीह के आगमन और संत योहन बपतिस्ता, अग्रदूत की भूमिका के बारे में भविष्यवाणी का गीत है। लंबे समय की प्रतीक्षा के बाद मसीह के आगमन के व्यक्तिगत अनुभव का आनंद सिमयोन का भजन व्यक्त करता है। क्रिसमस की अवधि में प्रत्येक ख्रीस्तीय विश्वासी को इन गीतों को सार्थक रीति से गाने के लिए सक्षम बनना चाहिए। इसके लिए क्रिसमस के अनुभव को निजीकरण की आवश्यकता होगी। ज़करियस नौ महीनों से अधिक समय से मौन साध रहे थे। वे नौ महीनों से बात ही नहीं कर पा रहे थे। लूकस 1:64 में, सुसमाचार-लेखक ने नोट किया, "उसी क्षण ज़करियस के मुख और जीभ के बन्धन खुल गये और वह ईश्वर की स्तुति करते हुए बोलने लगा।"। जब ज़करियस को बोलने की क्षमता प्राप्त हुयी तब उनकी सब से पहली प्रतिक्रिया सर्वशक्तिमान की प्रशंसा की थी। अपनी चुप्पी में वे ईश्वर के देहधारण के रहस्य और उस कहानी में खुद की भूमिका पर मनन-ध्यान कर रहे थे, जो उनके सामने धीरे-धीरे प्रकट हो रहे थे। वे उस आंतरिक आनंद को अपने दिल के अन्दर समाहित करने में सक्षम नहीं थे जो सर्वशक्तिमान की प्रशंसा में फूट निकला था। अब मेरे अपने व्यक्तिगत मनन-चिंतन के लिए कई सवाल उठते हैं। क्या मैं प्रभु की प्रतीक्षा कर रहा हूँ? क्या मेरा इंतज़ार सिमयोन के इंतजार की तरह तीव्र है? क्या मैंने अपने उद्धारक के आने के अनुभव को निजीकृत करने की कोशिश की है? क्रिसमस की पूर्व संध्या पर इन सवालों को संबोधित करना मेरे लिए अच्छा है, ताकि क्रिसमस का जश्न मेरे लिए एक व्यक्तिगत अनुभव हो। वास्तव में, कलीसिया प्रतिदिन की प्रभात-प्रार्थना में ज़करियस के भजन को शामिल कर उसे हर रोज सार्थक रूप से गाने के लिए हमें आमंत्रित करती है।



REFLECTION


There are three canticles in the first two chapters of the Gospel of St. Luke. They are the Canticle of Mary (Magnificat) and, Canticle of Zachariah (Benedictus) in chapter one, and the Canticle of Simeon (Nunc dimittis) in chapter two. All these three songs express the joy of Christmas. The canticle of Mary is praise of God who carries out his greatest wonder through the Incarnation of the Son of God. The Canticle of Zachariah is primarily a song of prophecy about immediate arrival of the Messiah and the role of St. John the Baptist, the precursor. The Canticle of Simeon expresses the joy of the personal experience of the arrival of the Messiah after a long period of waiting. In the season of Christmas every Christian should be able to sing these songs with great meaning. This would require personalisation of the experience of Christmas. Zachariah was silent for over nine months. He was not able to talk for nine months. In Lk 1:64, the evangelist notes, “his mouth was opened and his tongue freed, and he began to speak, praising God”. When Zachariah regained the power of speech, the first movements of his tongue were praises of the Almighty. In his silence he was contemplating the mystery of the Incarnation and his own role in that story that unravelled petal by petal before him. He was not able to contain the inner joy that broke out in praises of the Almighty. Many questions arise for my own personal reflections. Have I been waiting for the Lord? Has my waiting been intense like that of Zachariah? Have I tried to personalise the experience of the coming of my redeemer? It is good for me to address these questions on the eve of Christmas, so that the celebration of Christmas will be a personal experience for me. In fact, the Church invites us to meaningfully sing the Benedictus every day by making it part of the morning prayer of every day in the Divine Office.


 -Br. Biniush Topno


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Praise the Lord!

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