*✞ CATHOLIC BIBLE MINISTRY ✞*
*रविवार, 13 अगस्त, 2023*
*वर्ष का उन्नीसवाँ सामान्य सप्ताह*
*पहला पाठ*
राजाओं का पहला ग्रन्थ 19:9a.11-13a
9) एलियाह होरेब पर्वत के पास पहुँचा और एक गुफा के अन्दर चल कर उसने वहाँ रात बितायी।
11) प्रभु ने उस से कहा, ‘‘निकल आओ, और पर्वत पर प्रभु के सामने उपस्थित हो जाओ“। तब प्रभु उसके सामने से हो कर आगे बढ़ा। प्रभु के आगे-आगे एक प्रचण्ड आँधी चली- पहाड़ फट गये और चट्टानें टूट गयीं, किन्तु प्रभु आँधी में नहीं था। आँधी के बाद भूकम्प हुआ, किन्तु प्रभु भूकम्प में नहीं था।
12) भूकम्प के बाद अग्नि दिखई पड़ी, किन्तु प्रभु अग्नि में नहीं था। अग्नि के बाद मन्द समीर की सरसराहट सुनाई पड़ी।
13) एलियाह ने यह सुनकर अपना मुँह चादर से ढक लिया और वह बाहर निकल कर गुफा के द्वार पर खड़ा हो गया।
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*दूसरा पाठ*
रोमियों 9: 1-5
1) मैं मसीह के नाम पर सच कहता हूँ और मेरा अन्तःकरण पवित्र आत्मा से प्रेरित हो कर मुझे विश्वास दिलाता है कि मैं झूठ नहीं बोलता-
2) मेरे हृदय में बड़ी उदासी तथा निरन्तर दुःख होता है।
3) मैं अपने रक्त-सम्बन्धी भाइयों के कल्याण के लिए मसीह से वंचित हो जाने के लिए तैयार हूँ।
4) वे इस्राएली हैं। ईश्वर ने उन्हें गोद लिया था। उन्हें ईश्वर के सान्निध्य की महिमा, विधान, संहिता, उपासना तथा प्रतिज्ञाएं मिली है।
5) कुलपति उन्हीं के हैं और मसीह उन्हीं में उत्पन्न हुए हैं। मसीह सर्वश्रेष्ठ हैं तथा युगयुगों तक परमधन्य ईश्वर हैं। आमेन।
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*सुसमाचार*
मत्ती 14:22-33
22) इसके तुरन्त बाद ईसा ने अपने शिष्यों को इसके लिए बाध्य किया कि वे नाव पर चढ़ कर उन से पहले उस पार चले जायें; इतने में वे स्वयं लोगों को विदा करदेंगे।
23) ईसा लोगों को विदा कर एकान्त में प्रार्थना करने पहाड़ी पर चढे़। सन्ध्या होने पर वे वहाँ अकेले थे।
24) नाव उस समय तट से दूर जा चुकी थी। वह लहरों से डगमगा रही थी, क्योंकि वायु प्रतिकूल थी।
25) रात के चैथे पहर ईसा समुद्र पर चलते हुए शिष्यों की ओर आये।
26) जब उन्होंने ईसा को समुद्र पर चलते हुए देखा, तो वे बहुत घबरा गये और यह कहते हुए, ’’यह कोई प्रेत है‘‘, डर के मारे चिल्ला उठे।
27) ईसा ने तुरन्त उन से कहा, ’’ढारस रखो; मैं ही हूँ। डरो मत।‘‘
28) पेत्रुस ने उत्तर दिया, ’’प्रभु! यदि आप ही हैं, तो मुझे पानी पर अपने पास आने की अज्ञा दीजिए‘‘।
29) ईसा ने कहा, ’’आ जाओ‘‘। पेत्रुस नाव से उतरा और पानी पर चलते हुए ईसा की ओर बढ़ा;
30) किन्तु वह प्रचण्ड वायु देख कर डर गया और जब डूबने लगा तो चिल्ला उठा, ’’प्रभु! मुझे बचाइए’’।
31) ईसा ने तुरन्त हाथ बढ़ा कर उसे थाम लिया और कहा, ’’अल़्पविश्वासी! तुम्हें संदेह क्यों हुआ?’’
32) वे नाव पर चढे और वायु थम गयी।
33) जो नाव में थे, उन्होंने यह कहते हुए ईसा को दण्डवत् किया ’’आप सचमुच ईश्वर के पुत्र हैं’’।
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*मनन-चिंतन*
प्रभु येसु का जीवन एक प्रार्थनामय जीवन था। भले ही वे दिन भर में कितने ही व्यस्त क्यो न थे वे प्रार्थना करने के लिए समय निकाल ही लेते थे। अक्सर प्रभु येसु देर रात तक या बहुत सवेरे पिता ईश्वर से एकांत में प्रार्थना करते थे। प्रार्थना करना अर्थात् पिता ईश्वर से वार्तालाप के जरिये सम्बन्ध स्थापित करना है। प्रभु येसु को ईश्वर की ईच्छाओं को जानने और उसको पूर्ण करने का सामर्थ्य प्रार्थना के समय प्राप्त होता था। प्रभु येसु का यह पहलू हम सभी को एक प्रार्थनामय इंसान बनने और ईश्वर से सम्बन्ध स्थापित करने में मदद करें।
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✍ -Br. BiniushTopno
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