*✞ CATHOLIC BIBLE MINISTRY ✞*
*रविवार, 20 अगस्त, 2023*
*वर्ष का बीसवाँ सामान्य सप्ताह*
*पहला पाठ*
इसायाह 56:1. 6-7
1) प्रभु यह कहता है- “न्याय बनाये रखो- और धर्म का पालन करो; क्योंकि मेरी मुक्ति निकट है और मेरी न्यायप्रियता शीघ्र ही प्रकट हो जायेगी।
6) “जो विदेशी प्रभु के अनुयायी बन गये हैं, जिससे वे उसकी सेवा करें, वे उसका नाम लेते रहें और उसके भक्त बन जायें और वे सब, जो विश्राम-दिवस मनाते हैं और उसे अपवत्रि नहीं करते-
7) मैं उन लोगों को अपने पवत्रि पर्वत तक ले जाऊँगा। मैं उन्हें अपने प्रार्थनागृह में आनन्द प्रदान करूँगा। मैं अपनी बेदी पर उनके होम और बलिदान स्वीकार करूँगा; क्योंकि मेरा घर सब राष्ट्रों का प्रार्थनागृह कहलायेगा।“
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*दूसरा पाठ*
रोमियों 11:13-15.29-32
13) मैं आप गैर-यहूदियों से यह कहता हूँ- ’मैं तो गैर-यहूदियों में प्रचार करने भेजा गया और इस धर्मसेवा पर गर्व भी करता हूँ।
14) किन्तु मैं अपने रक्त-भाइयों में प्रतिस्पर्धा उत्पन्न करने की और इस प्रकार उन में कुछ लोगों का उद्धार करने की आशा भी रखता हूँ;
15) क्योंकि यदि उनके परित्याग के फलस्वरूप ईश्वर के साथ संसार का मेल हो गया है, तो उनके अंगीकार का परिणाम मृतकों में से पुनरूत्थान होगा।
29) क्योंकि ईश्वर न तो अपने वरदान वापस लेता और न अपना बुलावा रद्द करता है।
30) जिस तरह आप लोग पहले ईश्वर की अवज्ञा करते थे और अब, जब कि वे अवज्ञा करते हैं, आप ईश्वर के कृपापात्र बन गये हैं,
31) उसी तरह अब, जब कि आप ईश्वर के कृपापात्र बन गये हैं, वे ईश्वर की अवज्ञा करते हैं, किन्तु बाद में वे भी दया प्राप्त करेंगे।
32) ईश्वर ने सबों को अवज्ञा के पाप में फंसने दिया, क्योंकि वह सबों पर दया दिखाना चाहता था।
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*सुसमाचार*
सन्त मत्ती 15:21-28
21) ईसा ने वहाँ से बिदा होकर तीरूस और सिदोन प्रान्तों के लिए प्रस्थान किया।
22) उस प्रदेश की एक कनानी स्त्री आयी और पुकार-पुकार कर कहती रही, ’’प्रभु दाऊद के पुत्र! मुझ पर दया कीजिए। मेरी बेटी एक अपदूत द्वारा बुरी तरह सतायी जा रही है।’’
23) ईसा ने उसे उत्तर नहीं दिया। उनके शिष्यों ने पास आ कर उनसे यह निवेदन किया, ’’उसकी बात मानकर उसे विदा कर दीजिए, क्योंकि वह हमारे पीछे-पीछे चिल्लाती आ रही है’’।
24) ईसा ने उत्तर दिया, ’’मैं केवल इस्राएल के घराने की खोई हुई भेड़ों के पास भेजा गया हूँ।
25) इतने में उस स्त्री ने आ कर ईसा को दण्डवत् किया और कहा, ’’प्रभु! मेरी सहायता कीजिए’’।
26) ईसा ने उत्तर दिया, ’’बच्चों की रोटी ले कर पिल्लों के सामने डालना ठीक नहीं है’’।
27) उसने कहा, ’’जी हाँ, प्रभु! फिर भी स्वामी की मेज़ से गिरा हुआ चूर पिल्ले खाते ही हैं’’।
28) इस पर ईसा ने उत्तर दिया ’’नारी! तुम्हारा विश्वास महान् है। तुम्हारी इच्छा पूरी हो।’’ और उसी क्षण उसकी बेटी अच्छी हो गयी।
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*मनन-चिंतन*
विश्वास हमारे सारी बाधाओं और बंधनों को तोड़ देता है। विश्वास के सामने न तो कोई सीमा है, न जाति है न रंग-रूप न धर्म। चाहे हम ख्रीस्तीय हो या अख्रीस्तीय, चाहे हम इस्राएली हो या गैर इस्राएली, चाहे हम गरीब हो या अमीर, चाहे हम किसी भी देश या जाति के हो, यदि हममें ईश्वर के प्रति विश्वास है तो वह विश्वास हमारे जीवन में परिवर्तन और चमत्कार लायेगा। जिंदगी भले ही हमारे विश्वास का इम्तेहान ले परंतु येसु कभी भी हमारा पक्षपात नहीं करेंगे क्योंकि ईश्वर रंग रूप नहीं परंतु सच्चे विश्वासियों का ह्दय देखता है।
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