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रविवार, 27अगस्त, 2023 वर्ष का इक्कीसवाँ सामान्य सप्ताह

 *✞ CATHOLIC BIBLE MINISTRY ✞*

*रविवार, 27अगस्त, 2023*



*वर्ष का इक्कीसवाँ सामान्य सप्ताह*

*पहला पाठ*
इसायाह 22:19-23

19) मैं तुम को तुम्हारे पद से हटाऊँगा, मैं तुम को तुम्हारे स्थान से निकालूँगा।

20) “मैं उस दिन हिज़कीया के पुत्र एलियाकीम को बुलाऊँगा।

21) मैं उसे तुम्हारा परिधान और तुम्हारा कमरबन्द पहनाऊँगा। मैं उसे तुम्हारा अधिकार प्रदान करूँगा। वह येरुसालेम के निवासियों का तथा यूदा के घराने का पिता हो जायेगा।

22) मैं दाऊद के घराने की कुंजी उसके कन्धे पर रख दूँगा। यदि वह खोलेगा, तो कोई बन्द नहीं कर सकेगा। यदि वह बन्द करेगा, तो कोई नहीं खोल सकेगा।

23) मैं उसे खूँटे की तरह एक ठोस जगह पर गाड़ दूँगा। वह अपने पिता के घर के लिए एक महिमामय सिंहासन बन जायेगा।
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*दूसरा पाठ*
रोमियों 11:33-36

33) कितना अगाध है ईश्वर का वैभव, प्रज्ञा और ज्ञान! कितने दुर्बोध हैं उसके निर्णय! कितने रहस्यमय हैं उसके मार्ग!

34) प्रभु का मन कौन जान सका? उसका परामर्शदाता कौन हुआ?

35) किसने ईश्वर को कभी कुछ दिया है जो वह बदले में कुछ पाने का दावा कर सके?

36) ईश्वर सब कुछ का मूल कारण, प्रेरणा-स्रोत तथा लक्ष्य है - उसी को अनन्त काल तक महिमा! आमेन!
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*सुसमाचार*
सन्त मत्ती 16:13-20

13) ईसा ने कैसरिया फि़लिपी प्रदेश पहुँच कर अपने शिष्यों से पूछा, ’’मानव पुत्र कौन है, इस विषय में लोग क्या कहते हैं?’’

14) उन्होंने उत्तर दिया, ’’कुछ लोग कहते हैं- योहन बपतिस्ता; कुछ कहते हैं- एलियस; और कुछ लोग कहते हैं- येरेमियस अथवा नबियों में से कोई’’।

15) ईस पर ईसा ने कहा, ’’और तुम क्सा कहते हो कि मैं कौन हूँ?

16) सिमोन पुत्रुस ने उत्तर दिया, ’’आप मसीह हैं, आप जीवन्त ईश्वर के पुत्र हैं’’।

17) इस पर ईसा ने उस से कहा, ’’सिमोन, योनस के पुत्र, तुम धन्य हो, क्योंकि किसी निरे मनुष्य ने नहीं, बल्कि मेरे स्वर्गिक पिता ने तुम पर यह प्रकट किया है।

18) मैं तुम से कहता हूँ कि तुम पेत्रुस अर्थात् चट्टान हो और इस चट्टान पर मैं अपनी कलीसिया बनाऊँगा और अधोलोक के फाटक इसके सामने टिक नहीं पायेंगे।

19) मैं तुम्हें स्वर्गराज्य की कुंजिया प्रदान करूँगा। तुम पृथ्वी पर जिसका निषेध करोगे, स्वर्ग में भी उसका निषेध रहेगा और पृथ्वी पर जिसकी अनुमति दोगे, स्वर्ग में भी उसकी अनुमति रहेगी।’’

20) इसके बाद ईसा ने अपने शिष्यों को कड़ी चेतावनी दी कि तुम लोग किसी को भी यह नहीं बताओ कि मैं मसीह हूँ।
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*मनन-चिंतन*
येसु हमारे लिए कौन है? यह प्रश्न हम सभी के लिए एक व्यक्तिगत प्रश्न है। येसु के बारे में हमने कई लोगों से सुना होगा- हमारे माता पिता से, पुरोहित-धर्मबहनों से, केटिकिसम शिक्षक से या किसी और से परंतु हमारे लिए वास्तव में येसु कौन है? इसका उत्तर केवल हमारा प्रभु के साथ व्यक्तिगत अनुभव ही दे पायेगा। और यह उत्तर और उस उत्तर की वास्तविकता ही हमें येसु के करीब आने और उसकी आराधना करने के लिए प्रेरित करेगी। आज हम सब के लिए विशेष रूप से सभी ख्रीस्तीयों के लिए यह अनुभव करना जरूरी है कि वास्तव में येसु मेरे लिए कौन है?
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*रविवार, 27अगस्त, 2023*

*वर्ष का इक्कीसवाँ सामान्य सप्ताह*

*पहला पाठ*
इसायाह 22:19-23

19) मैं तुम को तुम्हारे पद से हटाऊँगा, मैं तुम को तुम्हारे स्थान से निकालूँगा।

20) “मैं उस दिन हिज़कीया के पुत्र एलियाकीम को बुलाऊँगा।

21) मैं उसे तुम्हारा परिधान और तुम्हारा कमरबन्द पहनाऊँगा। मैं उसे तुम्हारा अधिकार प्रदान करूँगा। वह येरुसालेम के निवासियों का तथा यूदा के घराने का पिता हो जायेगा।

22) मैं दाऊद के घराने की कुंजी उसके कन्धे पर रख दूँगा। यदि वह खोलेगा, तो कोई बन्द नहीं कर सकेगा। यदि वह बन्द करेगा, तो कोई नहीं खोल सकेगा।

23) मैं उसे खूँटे की तरह एक ठोस जगह पर गाड़ दूँगा। वह अपने पिता के घर के लिए एक महिमामय सिंहासन बन जायेगा।
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*दूसरा पाठ*
रोमियों 11:33-36

33) कितना अगाध है ईश्वर का वैभव, प्रज्ञा और ज्ञान! कितने दुर्बोध हैं उसके निर्णय! कितने रहस्यमय हैं उसके मार्ग!

34) प्रभु का मन कौन जान सका? उसका परामर्शदाता कौन हुआ?

35) किसने ईश्वर को कभी कुछ दिया है जो वह बदले में कुछ पाने का दावा कर सके?

36) ईश्वर सब कुछ का मूल कारण, प्रेरणा-स्रोत तथा लक्ष्य है - उसी को अनन्त काल तक महिमा! आमेन!
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*सुसमाचार*
सन्त मत्ती 16:13-20

13) ईसा ने कैसरिया फि़लिपी प्रदेश पहुँच कर अपने शिष्यों से पूछा, ’’मानव पुत्र कौन है, इस विषय में लोग क्या कहते हैं?’’

14) उन्होंने उत्तर दिया, ’’कुछ लोग कहते हैं- योहन बपतिस्ता; कुछ कहते हैं- एलियस; और कुछ लोग कहते हैं- येरेमियस अथवा नबियों में से कोई’’।

15) ईस पर ईसा ने कहा, ’’और तुम क्सा कहते हो कि मैं कौन हूँ?

16) सिमोन पुत्रुस ने उत्तर दिया, ’’आप मसीह हैं, आप जीवन्त ईश्वर के पुत्र हैं’’।

17) इस पर ईसा ने उस से कहा, ’’सिमोन, योनस के पुत्र, तुम धन्य हो, क्योंकि किसी निरे मनुष्य ने नहीं, बल्कि मेरे स्वर्गिक पिता ने तुम पर यह प्रकट किया है।

18) मैं तुम से कहता हूँ कि तुम पेत्रुस अर्थात् चट्टान हो और इस चट्टान पर मैं अपनी कलीसिया बनाऊँगा और अधोलोक के फाटक इसके सामने टिक नहीं पायेंगे।

19) मैं तुम्हें स्वर्गराज्य की कुंजिया प्रदान करूँगा। तुम पृथ्वी पर जिसका निषेध करोगे, स्वर्ग में भी उसका निषेध रहेगा और पृथ्वी पर जिसकी अनुमति दोगे, स्वर्ग में भी उसकी अनुमति रहेगी।’’

20) इसके बाद ईसा ने अपने शिष्यों को कड़ी चेतावनी दी कि तुम लोग किसी को भी यह नहीं बताओ कि मैं मसीह हूँ।
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*मनन-चिंतन*
येसु हमारे लिए कौन है? यह प्रश्न हम सभी के लिए एक व्यक्तिगत प्रश्न है। येसु के बारे में हमने कई लोगों से सुना होगा- हमारे माता पिता से, पुरोहित-धर्मबहनों से, केटिकिसम शिक्षक से या किसी और से परंतु हमारे लिए वास्तव में येसु कौन है? इसका उत्तर केवल हमारा प्रभु के साथ व्यक्तिगत अनुभव ही दे पायेगा। और यह उत्तर और उस उत्तर की वास्तविकता ही हमें येसु के करीब आने और उसकी आराधना करने के लिए प्रेरित करेगी। आज हम सब के लिए विशेष रूप से सभी ख्रीस्तीयों के लिए यह अनुभव करना जरूरी है कि वास्तव में येसु मेरे लिए कौन है?
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रविवार, 20 अगस्त, 2023 वर्ष का बीसवाँ सामान्य सप्ताह

 *✞ CATHOLIC BIBLE MINISTRY ✞*

*रविवार, 20 अगस्त, 2023*

*वर्ष का बीसवाँ सामान्य सप्ताह*

*पहला पाठ*
इसायाह 56:1. 6-7

1) प्रभु यह कहता है- “न्याय बनाये रखो- और धर्म का पालन करो; क्योंकि मेरी मुक्ति निकट है और मेरी न्यायप्रियता शीघ्र ही प्रकट हो जायेगी।

6) “जो विदेशी प्रभु के अनुयायी बन गये हैं, जिससे वे उसकी सेवा करें, वे उसका नाम लेते रहें और उसके भक्त बन जायें और वे सब, जो विश्राम-दिवस मनाते हैं और उसे अपवत्रि नहीं करते-

7) मैं उन लोगों को अपने पवत्रि पर्वत तक ले जाऊँगा। मैं उन्हें अपने प्रार्थनागृह में आनन्द प्रदान करूँगा। मैं अपनी बेदी पर उनके होम और बलिदान स्वीकार करूँगा; क्योंकि मेरा घर सब राष्ट्रों का प्रार्थनागृह कहलायेगा।“
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*दूसरा पाठ*
रोमियों 11:13-15.29-32

13) मैं आप गैर-यहूदियों से यह कहता हूँ- ’मैं तो गैर-यहूदियों में प्रचार करने भेजा गया और इस धर्मसेवा पर गर्व भी करता हूँ।

14) किन्तु मैं अपने रक्त-भाइयों में प्रतिस्पर्धा उत्पन्न करने की और इस प्रकार उन में कुछ लोगों का उद्धार करने की आशा भी रखता हूँ;

15) क्योंकि यदि उनके परित्याग के फलस्वरूप ईश्वर के साथ संसार का मेल हो गया है, तो उनके अंगीकार का परिणाम मृतकों में से पुनरूत्थान होगा।

29) क्योंकि ईश्वर न तो अपने वरदान वापस लेता और न अपना बुलावा रद्द करता है।

30) जिस तरह आप लोग पहले ईश्वर की अवज्ञा करते थे और अब, जब कि वे अवज्ञा करते हैं, आप ईश्वर के कृपापात्र बन गये हैं,

31) उसी तरह अब, जब कि आप ईश्वर के कृपापात्र बन गये हैं, वे ईश्वर की अवज्ञा करते हैं, किन्तु बाद में वे भी दया प्राप्त करेंगे।

32) ईश्वर ने सबों को अवज्ञा के पाप में फंसने दिया, क्योंकि वह सबों पर दया दिखाना चाहता था।
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*सुसमाचार*
सन्त मत्ती 15:21-28

21) ईसा ने वहाँ से बिदा होकर तीरूस और सिदोन प्रान्तों के लिए प्रस्थान किया।

22) उस प्रदेश की एक कनानी स्त्री आयी और पुकार-पुकार कर कहती रही, ’’प्रभु दाऊद के पुत्र! मुझ पर दया कीजिए। मेरी बेटी एक अपदूत द्वारा बुरी तरह सतायी जा रही है।’’

23) ईसा ने उसे उत्तर नहीं दिया। उनके शिष्यों ने पास आ कर उनसे यह निवेदन किया, ’’उसकी बात मानकर उसे विदा कर दीजिए, क्योंकि वह हमारे पीछे-पीछे चिल्लाती आ रही है’’।

24) ईसा ने उत्तर दिया, ’’मैं केवल इस्राएल के घराने की खोई हुई भेड़ों के पास भेजा गया हूँ।

25) इतने में उस स्त्री ने आ कर ईसा को दण्डवत् किया और कहा, ’’प्रभु! मेरी सहायता कीजिए’’।

26) ईसा ने उत्तर दिया, ’’बच्चों की रोटी ले कर पिल्लों के सामने डालना ठीक नहीं है’’।

27) उसने कहा, ’’जी हाँ, प्रभु! फिर भी स्वामी की मेज़ से गिरा हुआ चूर पिल्ले खाते ही हैं’’।

28) इस पर ईसा ने उत्तर दिया ’’नारी! तुम्हारा विश्वास महान् है। तुम्हारी इच्छा पूरी हो।’’ और उसी क्षण उसकी बेटी अच्छी हो गयी।
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*मनन-चिंतन*
विश्वास हमारे सारी बाधाओं और बंधनों को तोड़ देता है। विश्वास के सामने न तो कोई सीमा है, न जाति है न रंग-रूप न धर्म। चाहे हम ख्रीस्तीय हो या अख्रीस्तीय, चाहे हम इस्राएली हो या गैर इस्राएली, चाहे हम गरीब हो या अमीर, चाहे हम किसी भी देश या जाति के हो, यदि हममें ईश्वर के प्रति विश्वास है तो वह विश्वास हमारे जीवन में परिवर्तन और चमत्कार लायेगा। जिंदगी भले ही हमारे विश्वास का इम्तेहान ले परंतु येसु कभी भी हमारा पक्षपात नहीं करेंगे क्योंकि ईश्वर रंग रूप नहीं परंतु सच्चे विश्वासियों का ह्दय देखता है।



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रविवार, 13 अगस्त, 2023 वर्ष का उन्नीसवाँ सामान्य सप्ताह

 *✞ CATHOLIC BIBLE MINISTRY ✞*

*रविवार, 13 अगस्त, 2023*

*वर्ष का उन्नीसवाँ सामान्य सप्ताह*



*पहला पाठ*
राजाओं का पहला ग्रन्थ 19:9a.11-13a

9) एलियाह होरेब पर्वत के पास पहुँचा और एक गुफा के अन्दर चल कर उसने वहाँ रात बितायी।

11) प्रभु ने उस से कहा, ‘‘निकल आओ, और पर्वत पर प्रभु के सामने उपस्थित हो जाओ“। तब प्रभु उसके सामने से हो कर आगे बढ़ा। प्रभु के आगे-आगे एक प्रचण्ड आँधी चली- पहाड़ फट गये और चट्टानें टूट गयीं, किन्तु प्रभु आँधी में नहीं था। आँधी के बाद भूकम्प हुआ, किन्तु प्रभु भूकम्प में नहीं था।

12) भूकम्प के बाद अग्नि दिखई पड़ी, किन्तु प्रभु अग्नि में नहीं था। अग्नि के बाद मन्द समीर की सरसराहट सुनाई पड़ी।

13) एलियाह ने यह सुनकर अपना मुँह चादर से ढक लिया और वह बाहर निकल कर गुफा के द्वार पर खड़ा हो गया।

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*दूसरा पाठ*
रोमियों 9: 1-5

1) मैं मसीह के नाम पर सच कहता हूँ और मेरा अन्तःकरण पवित्र आत्मा से प्रेरित हो कर मुझे विश्वास दिलाता है कि मैं झूठ नहीं बोलता-

2) मेरे हृदय में बड़ी उदासी तथा निरन्तर दुःख होता है।

3) मैं अपने रक्त-सम्बन्धी भाइयों के कल्याण के लिए मसीह से वंचित हो जाने के लिए तैयार हूँ।

4) वे इस्राएली हैं। ईश्वर ने उन्हें गोद लिया था। उन्हें ईश्वर के सान्निध्य की महिमा, विधान, संहिता, उपासना तथा प्रतिज्ञाएं मिली है।

5) कुलपति उन्हीं के हैं और मसीह उन्हीं में उत्पन्न हुए हैं। मसीह सर्वश्रेष्ठ हैं तथा युगयुगों तक परमधन्य ईश्वर हैं। आमेन।

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*सुसमाचार*
मत्ती 14:22-33

22) इसके तुरन्त बाद ईसा ने अपने शिष्यों को इसके लिए बाध्य किया कि वे नाव पर चढ़ कर उन से पहले उस पार चले जायें; इतने में वे स्वयं लोगों को विदा करदेंगे।

23) ईसा लोगों को विदा कर एकान्त में प्रार्थना करने पहाड़ी पर चढे़। सन्ध्या होने पर वे वहाँ अकेले थे।

24) नाव उस समय तट से दूर जा चुकी थी। वह लहरों से डगमगा रही थी, क्योंकि वायु प्रतिकूल थी।

25) रात के चैथे पहर ईसा समुद्र पर चलते हुए शिष्यों की ओर आये।

26) जब उन्होंने ईसा को समुद्र पर चलते हुए देखा, तो वे बहुत घबरा गये और यह कहते हुए, ’’यह कोई प्रेत है‘‘, डर के मारे चिल्ला उठे।

27) ईसा ने तुरन्त उन से कहा, ’’ढारस रखो; मैं ही हूँ। डरो मत।‘‘

28) पेत्रुस ने उत्तर दिया, ’’प्रभु! यदि आप ही हैं, तो मुझे पानी पर अपने पास आने की अज्ञा दीजिए‘‘।

29) ईसा ने कहा, ’’आ जाओ‘‘। पेत्रुस नाव से उतरा और पानी पर चलते हुए ईसा की ओर बढ़ा;

30) किन्तु वह प्रचण्ड वायु देख कर डर गया और जब डूबने लगा तो चिल्ला उठा, ’’प्रभु! मुझे बचाइए’’।

31) ईसा ने तुरन्त हाथ बढ़ा कर उसे थाम लिया और कहा, ’’अल़्पविश्वासी! तुम्हें संदेह क्यों हुआ?’’

32) वे नाव पर चढे और वायु थम गयी।

33) जो नाव में थे, उन्होंने यह कहते हुए ईसा को दण्डवत् किया ’’आप सचमुच ईश्वर के पुत्र हैं’’।


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*मनन-चिंतन*
प्रभु येसु का जीवन एक प्रार्थनामय जीवन था। भले ही वे दिन भर में कितने ही व्यस्त क्यो न थे वे प्रार्थना करने के लिए समय निकाल ही लेते थे। अक्सर प्रभु येसु देर रात तक या बहुत सवेरे पिता ईश्वर से एकांत में प्रार्थना करते थे। प्रार्थना करना अर्थात् पिता ईश्वर से वार्तालाप के जरिये सम्बन्ध स्थापित करना है। प्रभु येसु को ईश्वर की ईच्छाओं को जानने और उसको पूर्ण करने का सामर्थ्य प्रार्थना के समय प्राप्त होता था। प्रभु येसु का यह पहलू हम सभी को एक प्रार्थनामय इंसान बनने और ईश्वर से सम्बन्ध स्थापित करने में मदद करें।


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✍ -Br. BiniushTopno



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