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इतवार, 24 दिसंबर, 2023 आगमन का चौथा इतवार

 

इतवार, 24 दिसंबर, 2023

आगमन का चौथा इतवार





📒 पहला पाठ: समुएल का दुसरा ग्रन्थ 7:1-5.8b-12.14a.16


1) जब दाऊद अपने महल में रहने लगा और प्रभु ने उसे उसके चारों ओर के सब शत्रुओं से छुड़ा दिया,

2) तो राजा ने नबीनातान से कहा, ‘‘देखिए, मैं तो देवदार के महल में रहता हूँ, किन्तु ईश्वर की मंजूषा तम्बू में रखी रहती है।’’

3) नातान ने राजा को यह उत्तर दिया, ‘‘आप जो करना चाहते हैं, कीजिए। प्रभु आपका साथ देगा।’’

4) उसी रात प्रभु की वाणी नातान को यह कहते हुए सुनाई पड़ी,

5) ‘‘मेरे सेवक दाऊद के पास जाकर कहो - प्रभु यह कहता है: क्या तुम मेरे लिए मन्दिर बनवाना चाहते हो?

तुम भेड़ें चराया करते थे और मैंने तुम्हें चरागाह से बुला कर अपनी प्रजा इस्राएल का शासक बनाया।

9) मैंने तुम्हारे सब कार्यों में तुम्हारा साथ दिया और तुम्हारे सामने तुम्हारे सब शत्रुओं का सर्वनाश कर दिया है। मैं तुम्हें संसार के सब से महान् पुरुषों-जैसी ख्याति प्रदान करूँगा।

10) मैं अपनी प्रजा इस्राएल के लिए भूमि का प्रबन्ध करूँगा और उसे बसाऊँगा। वह वहाँ सुरक्षित रहेगी। कुकर्मी उस पर अत्याचार नहीं कर पायेंगे। ऐसा पहले हुआ करता था,

11) जब मैंने अपनी प्रजा इस्राएल का शासन करने के लिए न्यायकर्ताओं को नियुक्त किया था। मैं उसे उसके सब शत्रुओं से छुड़ाऊँगा। प्रभु तुम्हारा वंश सुरक्षित रखेगा।

12) जब तुम्हारे दिन पूरे हो जायेंगे और तुम अपने पूर्वजों के साथ विश्राम करोगे, तो मैं तुम्हारे पुत्र को तुम्हारा उत्तराधिकारी बनाऊँगा और उसका राज्य बनाये रखूँगा।

14) मैं उसका पिता होऊँगा, और वह मेरा पुत्र होगा।

16) इस तरह तुम्हारा वंश और तुम्हारा राज्य मेरे सामने बना रहेगा और उसका सिंहासन अनन्त काल तक सुदृढ़ रहेगा।’’



📕 दूसरा पाठ : रोमियों के नाम सन्त पौलुस का पत्र 16:25-27



25 (25-26) सभी राष्ट्र विश्वास की अधीनता स्वीकार करें - उसी उद्देश्य से शाश्वत ईश्वर ने चाहा कि शताब्दियों से गुप्त रखा हुआ रहस्य प्रकट किया जाये और उसने आदेश दिया कि वह रहस्य नबियों के लेखों द्वारा सबों को बता दिया जाये। उसके अनुसार मैं ईसा मसीह का सुसमाचार में सुदृढ़ बना सकता है।

27) उसी एकमात्र सर्वज्ञ ईश्वर की, अनन्त काल तक, ईसा मसीह द्वारा महिमा हो! आमेन!



📙 सुसमाचार : सन्त लूकस 1:26-38



26) छठे महीने स्वर्गदूत गब्रिएल, ईश्वर की ओर से, गलीलिया के नाजरेत नामक नगर में एक कुँवारी के पास भेजा गया,

27) जिसकी मँगनी दाऊद के घराने के यूसुफ नामक पुरुष से हुई थी, और उस कुँवारी का नाम था मरियम।

29) वह इन शब्दों से घबरा गयी और मन में सोचती रही कि इस प्रणाम का अभिप्राय क्या है।

30) तब स्वर्गदूत ने उस से कहा, ’’मरियम! डरिए नहीं। आप को ईश्वर की कृपा प्राप्त है।

31) देखिए, आप गर्भवती होंगी, पुत्र प्रसव करेंगी और उनका नाम ईसा रखेंगी।

32) वे महान् होंगे और सर्वोच्च प्रभु के पुत्र कहलायेंगे। प्रभु-ईश्वर उन्हें उनके पिता दाऊद का सिंहासन प्रदान करेगा,

33) वे याकूब के घराने पर सदा-सर्वदा राज्य करेंगे और उनके राज्य का अन्त नहीं होगा।’’

34) पर मरियम ने स्वर्गदूत से कहा, ’’यह कैसे हो सकता है? मेरा तो पुरुष से संसर्ग नहीं है।’’

35) स्वर्गदूत ने उत्तर दिया, ’’पवित्र आत्मा आप पर उतरेगा और सर्वोच्च प्रभु की शक्ति की छाया आप पर पड़ेगी। इसलिए जो आप से उत्पन्न होंगे, वे पवित्र होंगे और ईश्वर के पुत्र कहलायेंगे।

36) देखिए, बुढ़ापे में आपकी कुटुम्बिनी एलीज़बेथ के भी पुत्र होने वाला है। अब उसका, जो बाँझ कहलाती थी, छठा महीना हो रहा है;

37) क्योंकि ईश्वर के लिए कुछ भी असम्भव नहीं है।’’

38) मरियम ने कहा, ’’देखिए, मैं प्रभु की दासी हूँ। आपका कथन मुझ में पूरा हो जाये।’’ और स्वर्गदूत उसके पास से चला गया।


📚 मनन-चिंतन


आज का सुसमाचार मरियम के सामने स्वर्गदूत के प्रकट होने की घोषणा है कि प्रभु आपके साथ है। मरियम स्वर्गदूत के संदेश से बहुत परेशान थी। मरियम द्वारा अनुभव किए गए भ्रम या भय के बावजूद, उसने तुरंत अपना दिल देवदूत के सामने खोल दिया। अत्यधिक असामान्य और अप्रत्याशित परिस्थितियों के बावजूद, मरियम ने देवदूत पर भरोसा किया और उस पर विश्वास किया। मरियम एक बहुत ही सरल महिला और एक साधारण महिला थी। हालाँकि, वह एक खुले और इच्छुक दिल और दिमाग वाली महिला थीं। स्पष्टतः, मरियम ईश्वर के बहुत करीब थी। आज हम मरियम की ओर रुख कर सकते हैं और उनसे हमारे लिए मध्यस्थता करने, हमारे लिए प्रार्थना करने और इस यात्रा में हमारे साथ चलने के लिए कह सकते हैं। मरियम, ईश्वर की माँ, हमारे लिए प्रार्थना करें!





📚 REFLECTION

The Gospel today is the appearance of the angel to Mary announcing that the Lord was with her. Luke writes that Mary was deeply troubled by the angel’s message. Despite the confusion or fear Mary experienced, she immediately opened her heart to the angel. Mary trusted and believed the angel, despite the highly unusual and unexpected circumstances. Mary was a very young woman and a simple woman. However, she was a woman with an open and willing heart and mind. Clearly, Mary was a woman very close to God. Mary has been down this path. Today may we turn to Mary and ask her to intercede for us, to pray for us and to walk with us on this journey. Mary, Mother of God, pray for us!




📚 मनन-चिंतन -2


आज का सुसमाचार मसीह के आगमन का उद्घोष प्रस्तुत करता है। मरियम की सहमति पर, वचन का देहधारण संभव हुआ। मसीह के दुनिया में आगमन के द्वारा मानवजाति को बचाने के लिए ईश्वर की शानदार योजना मरियम के ’फियाट’ के साथ संभव हुआ। मरियम के “हाँ” कहने पर ही सबसे बड़ा चमत्कार संभव हो पाया – ईश्वर स्वर्ग से हमारी दुनिया में उतर कर आये। मरियम के ’हाँ’ को उनके जीवन में साकार किया गया जब उन्होंने ईश्वर के अनुग्रह के साथ काम किया। इसमें कोई संदेह नहीं है कि प्रभु हमारे हित की बहुत सी योजनाएं बनाते हैं जो हमारे सहयोग के साथ ही वे पूरा करना चाहते हैं। उन योजनाओं को साकार करने के लिए वे हमारी सहमति और सहयोग की प्रतीक्षा करते हैं। प्रकाशना 3:20 में हम पढ़ते हैं, “मैं द्वार के सामने खड़ा हो कर खटखटाता हूँ। यदि कोई मेरी वाणी सुन कर द्वार खोलेगा, तो मैं उसके यहाँ आ कर उसके साथ भोजन करूँगा और वह मेरे साथ।" बहुत बार हमारी इच्छाएँ ईश्वर की इच्छा से मेल नहीं खातीं। वे हमें विपरीत दिशाओं में खींच सकती हैं। ऐसी स्थितियों में हमें ईश्वर से प्रार्थना करनी पड़ सकती है कि वे हमें एक ऐसा दिल दें जो उनकी इच्छा को समझ सके और स्वीकार कर सके। प्रभु कहते हैं, “मैं तुम लोगों को एक नया हृदय दूँगा और तुम में एक नया आत्मा रख दूँगा। मैं तुम्हारे शरीर से पत्थर का हृदय निाकल कर तुम लोगों को रक्त-मांस का हृदय प्रदान करूँगा।" (एज़ेकिएल 36:26)।



📚 REFLECTION


Today’s Gospel presents the annunciation of the coming of Christ. At the consent of Mary, Jesus was conceived in her womb. God’s glorious plan to save humanity by the coming of Christ into the world was realised at the ‘fiat’ of Mary. Mary said YES to God and the greatest miracle was possible – God descending into our world. Mary’s yes was actualised in her life when she co-operated with the Grace of God working in her. No doubt, God has great plans to be carried out through us, but he awaits our consent and co-operation for the realisation of those plans. In Rev 3:20, we read, “Listen! I am standing at the door, knocking; if you hear my voice and open the door, I will come in to you and eat with you, and you with me.” Very often our desires do not match with the will of God. They may pull us in opposite directions. In such situations we may have to pray to God to give us a heart that can understand and accept his will. The Lord says, “A new heart I will give you, and a new spirit I will put within you; and I will remove from your body the heart of stone and give you a heart of flesh.” (Ezek 36:26).



मनन-चिंतन - 3


इस दुनिया में रहते समय हम सभी जाने-अनजाने में किसी न किसी व्यक्ति, वस्तु या घटना की प्रतीक्षा में सदा रहते हैं। यह प्रतीक्षा हम लोगों को जीवन में उत्साह के साथ-साथ आगे बढने के लिए प्रेरणादायक होती है। उदाहरण के लिए - हमारे अधिकांश बच्चे स्कूल में छुट्टी की प्रतीक्षा में रहते हैं। घर में जो महिलाएँ नियमित तौर पर टीवी में सीरियल देखती रहती हैं वे हर हफ्ते इस इंतज़ार में रहती हैं कि अगले हफ्ते सीरियल में क्या होगा। पुरुष-वर्ग इस ताक में हैं कि आगामी पार्टी कब होगी। ठीक इस प्रकार लोग किसी न किसी कार्य की प्रतीक्षा में रहते हैं।

हम आगमन काल में हैं और प्रभु येसु के जन्म-दिन के करीब आ चुके हैं। इसलिए हमें और गंभीरता से मनन-चिंतन करना चाहिए कि हमें बालक येसु के जन्म-दिन मनाने के लिए और क्या-क्या तैयारी करनी चाहिए और उनको उपहार के रुप में क्या देना चाहिए? जन्म-दिन मनाना हमारे लिए कुछ नयी बात नहीं है। हम सभी हमारा और हमारे साथ जुडे हुए सब लोगों का जन्म-दिन हर साल बराबर मनाते ही हैं। जब भी हम किसी का जन्मदिन मनाते हैं तो हम उनको उपहार खरीद के देते हैं। हम यह सुनिश्चित करते है कि जो उपहार उसे पसंद वहीं दिया जाये। ठीक वैसे ही येसु के जन्म-दिन मनाने की तैयारी में लगे रहकर हमारे लिए यह पता करना उचित होगा कि आखिर येसु के लिए मैं क्या दूँ? येसु का मनपंसद उपहार क्या है?

धर्मग्रन्थ के आधार पर देखा जाये तो यह स्पष्ट है कि येसु का मनपसंद उपहार हमारी आत्मा है। हॉ वे हमारी आत्मा के चरवाहा तथा रक्षक हैं। (1पेत्रुस 2:25) येसु ने लोगों से कहा कि आत्मा को जोखिम में डाल कर कभी भी जीना नहीं चाहिए -’’मनुष्य को इस से क्या लाभ यदि वह सारा संसार तो प्राप्त करले, लेकिन अपना जीवन ही गॅवा दे? अपने जीवन के बदले मनुष्य दे ही क्या सकता है?’’ (मारकुस 8:36-37)

येसु ने सारी मानवजाति की आत्माओं को बचाने का जो कार्य आरंभ किया, उस कार्य को उन्होंने प्रेरितों को सौंप दिया और प्रेरितों ने इस कार्य को गंभीरता से लेते हुए दुनिया के कोने-कोने में जा कर प्रचार किया और येसु के आध्यात्मिक सान्निध्य में वह कार्य आज भी जारी है।

प्रभु येसु हर हाल में हमारे जीवन में आकर अपने पवित्र सान्निध्य के द्वारा हमें पवित्र करते हुए हमारी आत्माओं को बचाना चाहते हैं। प्रकाशना ग्रन्थ में हम पढते हैं- मैं द्वार के सामने खड़ा हो कर खटखटाता हॅू। तो क्रिस्मस एक ऐसा अवसर है जब बालक येसु हम सभी के दिलों में आकर जन्म लेना चाहते हैं; चाहे हम पापी क्यों न हो, चाहे हम गरीब, अनपढ, नगण्य, तुच्छ क्यों न हो। याद रखें कि येसु के जन्म के अवसर पर चरवाहों को ही इस शुभ संदेश दिया गया था; चरणी में जानवरों के बीच में ही येसु का जन्म हुआ। इसलिए हम यह कह कर पीछे नहीं हट सकते हैं कि हम इस के काबिल नहीं। प्रभु का ये वचन इस चिंतन को और भी स्पष्ट करता है कि ”मैं धर्मियों को नहीं, पापियों को बुलाने आया हॅू।” (मत्ती 9:13)

एक समय संत पेत्रुस और संत पौलुस भी हमारे समान पापी थे। पेत्रुस ने येसु के चरणों में गिर कर कहा - प्रभु मेरे पास से चले जाइए। मैं पापी मनुष्य हॅू। (लूकस 5:8) और अपने बारे में पौलुस कहते हैं - येसु मसीह पापियों को बचाने के लिए संसार में आये, और उन में सर्व प्रथम मैं हॅू। (1तिमथी 1:15) इन दोनों ने बाद में येसु मसीह को उन के जीवन में जन्म लेने दिया। पेत्रुस कहते हैं कि - मेरे पास न तो चॉदी है और न सोना; लेकिन मेरे पास येसु है। (प्रेरित-चरित 3:6) इस प्रकार संत पौलुस कहते हैं कि अब मैं जीवित नहीं रहा, बल्कि मसीह मुझमें जीवित हैं। (गलाति 2:20) इसलिए हमारे पास अभी कोई भी बहाना नहीं रहा। हमारे जीवन की अवस्था जो कुछ भी हो, चरणी में जन्म लेने वाले येसु हमारे पाप भरे दिल में जन्म लेने के लिए सदा तैयार है।

हमें कभी भी यह न सोचना चाहिए कि हमारे जीवन को बदलना असंभव है। ईश्वर के लिए कुछ भी असंभव नहीं है। (लूकस 1:37) ”....क्या मेरा हाथ इतना छोटा हो गया है कि वह तुम्हारा उद्वार करने में असमर्थ है? क्या मेरे पास इतना सामर्थ्य नहीं कि मैं तुम को छुड़ा सकता? देखो! मैं धमकी दे कर समुद्र सुखाता हॅू। मैं नदियों को मरुभूमि बना देता हॅू...।’’ (इसायाह 50:2) हॉ, अगर ईश्वर चाहे तो कुवॉरी भी गर्भवती हो सकती है।

आइए हम भी चरवाहों एवं ज्योतिषियों के समान अपने पास जो कुछ भी है येसु के चरणों में अर्पित करें; माता मरियम के समान हम भी कहें ”देखिए, मैं प्रभु की दासी हॅू। तेरा कथन मुझमें पूरा हो जाये।” (लूकस 1:38); हमारी ”पॉच रोटियों और दो मछलियों को” उनके हाथों में दें; विशेष रूप से हमारी पापमय अवस्था को येसु को दें और कहें कि येसु हम अपने आपको पूर्ण रूप में तुझे समर्पित करते हैं।

याद रखें कि प्रभु के कहने पर अगर हम उन को हमारे दिल में जगह देगें तो बदले में वह हमें सबसे बडा उपहार जो अक्षय, अदूषित तथा अविनाशी है (1पेत्रुस 1:4) प्रदान करेंगे। वह उपहार है अनंत जीवन।


  ✍Biniush Topno

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इतवार, 26 नवंबर, 2023 राजेश्वार येसु ख्रीस्त का महोत्सव

 

इतवार, 26 नवंबर, 2023

राजेश्वार येसु ख्रीस्त का महोत्सव




📒 पहला पाठ : एज़ेकिएल का ग्रन्थ 34:11-12,15-17

11) “क्योंकि प्रभु-ईश्वर यह कहता है- मैं स्वयं अपनी भेड़ों को सुध लूँगा और उनकी देखभाल करूँगा।

12) भेड़ों के भटक जाने पर जिस तरह गडे़रिया उनका पता लगाने जाता है, उसी तरह में अपनी भेडें खोजने जाऊँगा। कुहरे और अँधेरे में जहाँ कहीं वे तितर-बितर हो गयी हैं, मैं उन्हें वहाँ से छुडा लाऊँगा।

15) प्रभु कहता है - मैं स्वयं अपने भेड़ें चराऊँगा और उन्हें विश्राम करने की जगह दिखाऊँगा।

16) जो भेड़ें खो गयी हैं, मैं उन्हें खोज निकालूँगा; जो भटक गयी हैं, मैं उन्हें लौटा लाऊँगा; घायल हो गयी हैं, उनके घावों पर पट्टी बाँधूगा; जो बीमार हैं, उन्हें चंगा करूँगा; जो मोटी और भली-चंगी हैं, उनकी देखरेख करूँगा। मैं उनका सच्चा चरवाहा होऊँगा।

17) “मेरी भेड़ो! तुम्हारे विषय में प्रभु-ईश्वर यह कहता है- मैं एक-एक कर के भेड़ों, मेढो़ और बकरों का- सब का न्याय करूँगा।

📕 दूसरा पाठ: कुरिन्थियों के नाम सन्त पौलुस का पहला पत्र 15:20-26,28

20) किन्तु मसीह सचमुच मृतकों में से जी उठे। जो लोग मृत्यु में सो गये हैं, उन में वह सब से पहले जी उठे।

21) चूँकि मृत्यु मनुष्य द्वारा आयी थी, इसलिए मनुष्य द्वारा ही मृतकों का पुनरूत्थान हुआ है।

22) जिस तरह सब मनुष्य आदम (से सम्बन्ध) के कारण मरते हैं, उसी तरह सब मसीह (से सम्बन्ध) के कारण पुनर्जीवित किये जायेंगे-

23) सब अपने क्रम के अनुसार, सब से पहले मसीह और बाद में उनके पुनरागमन के समय वे जो मसीह के बन गये हैं।

24) जब मसीह बुराई की सब शक्तियों को नष्ट करने के बाद अपना राज्य पिता-परमेश्वर को सौंप देंगे, तब अन्त आ जायेगा;

25) क्योंकि वह तब तक राज्य करेंगे, जब तक वह अपने सब शत्रुओं को अपने पैरों तले न डाल दें।

26) सबों के अन्त में नष्ट किया जाने वाला शत्रु है- मृत्यु।

📙 सुसमाचार : सन्त मत्ती 25:31-46

31) ’’जब मानव पुत्र सब स्वर्गदुतों के साथ अपनी महिमा-सहित आयेगा, तो वह अपने महिमामय सिंहासन पर विराजमान होगा

32) और सभी राष्ट्र उसके सम्मुख एकत्र किये जायेंगे। जिस तरह चरवाहा भेड़ों को बकरियों से अलग करता है, उसी तरह वह लोगों को एक दूसरे से अलग कर देगा।

33) वह भेड़ों को अपने दायें और बकरियों को अपने बायें खड़ा कर देखा।

34) ’’तब राजा अपने दायें के लोगों से कहेंगे, ’मेरे पिता के कृपापात्रों! आओ और उस राज्य के अधिकारी बनो, जो संसार के प्रारम्भ से तुम लोगों के लिए तैयार किया गया है;

35) क्योंकि मैं भूखा था और तुमने मुझे खिलाया; मैं प्यासा था तुमने मुझे पिलाया; मैं परदेशी था और तुमने मुझको अपने यहाँ ठहराया;

36) मैं नंगा था तुमने मुझे पहनाया; मैं बीमार था और तुम मुझ से भेंट करने आये; मैं बन्दी था और तुम मुझ से मिलने आये।’

37) इस पर धर्मी उन कहेंगे, ’प्रभु! हमने कब आप को भूखा देखा और खिलाया? कब प्यासा देखा और पिलाया?

38) हमने कब आपको परदेशी देखा और अपने यहाँ ठहराया? कब नंगा देखा और पहनाया ?

39) कब आप को बीमार या बन्दी देखा और आप से मिलने आये?’’

40) राजा उन्हें यह उत्तरदेंगे, ’मैं तुम लोगों से यह कहता हूँ- तुमने मेरे भाइयों में से किसी एक के लिए, चाहे वह कितना ही छोटा क्यों न हो, जो कुछ किया, वह तुमने मेरे लिए ही किया’।

41) ’’तब वे अपने बायें के लोगों से कहेंगे, ’शापितों! मुझ से दूर हट जाओ। उस अनन्त आग में जाओ, जो शैतान और उसके दूतों के लिए तैयार की गई है;

42) क्योंकि मैं भूखा था और तुम लोगों ने मुझे नहीं खिलाया; मैं प्यासा था और तुमने मुझे नहीं पिलाया;

43) मैं परदेशी था और तुमने मुझे अपने यहाँ नहीं ठहराया; मैं नंगा था और तुमने मुझे नहीं पहनाया; मैं बीमार और बन्दी था और तुम मुझ से नहीं मिलने आये’।

44) इस पर वे भी उन से पूछेंगे, ’प्रभु! हमने कब आप को भूखा, प्यासा, परदेशी, नंगा, बीमार या बन्दी देखा और आपकी सेवा नहीं की?’’

45) तब राजा उन्हें उत्तर देंगे, ’मैं तुम लोगों से यह कहता हूँ - जो कुछ तुमने मेरे छोटे-से-छोटे भाइयों में से किसी एक के लिए नहीं किया, वह तुमने मेरे लिए भी नहीं किया’।

46) और ये अनन्त दण्ड भोगने जायेंगे, परन्तु धर्मी अनन्त जीवन में प्रवेश करेंगे।’’


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इतवार, 19 नवंबर, 2023⁷ वर्ष का तैंतीसवाँ सामान्य सप्ताह

 

इतवार, 19 नवंबर, 2023⁷

वर्ष का तैंतीसवाँ सामान्य सप्ताह

📒 पहला पाठ :सूक्ति ग्रन्थ 31:10-13,19-20,30-31

10) सच्चरत्रि पत्नी किसे मिल पाती है! उसका मूल्य मोतियों से भी बढ़कर है।

11) उसका पति उस पर पूरा-पूरा भरोसा रखता और उस से बहुत लाभ उठाता है।

12) वह कभी अपने पति के साथ बुराई नहीं, बल्कि जीवन भर उसक भलाई करती रहती है।

13) वह ऊन और सन खरीदती और कुशल हाथों में कपड़े तैयार करती है।

19) उसके हाथों में चरखा रहा करता है; उसकी उँगलियाँ तकली चलाती हैं।

20) वह दीन-दुःखियों के लिए उदार है और गरीबों का सँभालती है।

30) रूप-रंग माया है और सुन्दरता निस्सार है। प्रभु पर श्रद्धा रखने वाली नारी ही प्रशंसनीय है।

31) उसके परिश्रम का फल उसे दिया जाये और उसके कार्य सर्वत्र उसकी प्रशंसा करें।

📕 दूसरा पाठ: थेसलनीकियों के नाम सन्त पौलुस का पहला पत्र 5:1-6

1 (1-2) भाइयो! आप लोग अच्छी तरह जानते हैं कि प्रभु का दिन, रात के चोर की तरह, आयेगा। इसलिए इसके निश्चित समय के विषय में आप को कुछ लिखने की कोई ज़रूरत नहीं है।

3) जब लोग यह कहेंगे: ’अब तो शान्ति और सुरक्षा है’, तभी विनाश उन पर गर्भवती पर प्रसव-पीड़ा की तरह, अचानक आ पड़ेगा और वे उस से बच नहीं सकेंगे।

4) भाइयो! आप तो अन्धकार में नहीं हैं, जो वह दिन आप पर चोर की तरह अचानक आ पड़े।

5) आप सब ज्योति की सन्तान हैं, दिन की सन्तान हैं। हम रात या अन्धकार के नहीं है।

6) इसलिए हम दूसरों की तरह नहीं सोयें, बल्कि जगाते हुए सतर्क रहें।

📙 सुसमाचार : सन्त मत्ती 25:14-30

14) ’’स्वर्ग का राज्य उस मनुष्य के सदृश है, जिसने विदेश जाते समय अपने सेवकों को बुलाया और उन्हें अपनी सम्पत्ति सौंप दी।

15) उसने प्रत्येक की योग्यता का ध्यान रख कर एक सेवक को पाँच हज़ार, दूसरे को दो हज़ार और तीसरे को एक हज़ार अशर्फियाँ दीं। इसके बाद वह विदेश चला गया।

16) जिसे पाँच हज़ार अशर्फि़यां मिली थीं, उसने तुरन्त जा कर उनके साथ लेन-देन किया तथा और पाँच हज़ार अशर्फियाँ कमा लीं।

17) इसी तरह जिसे दो हजार अशर्फि़याँ मिली थी, उसने और दो हज़ार कमा ली।

18) लेकिन जिसे एक हज़ार अशर्फि़याँ मिली थी, वह गया और उसने भूमि खोद कर अपने स्वामी का धन छिपा दिया।

19) ’’बहुत समय बाद उन सेवकों के स्वामी ने लौट कर उन से लेखा लिया।

20) जिसे पाँच हजार असर्फियाँ मिली थीं, उसने और पाँच हजार ला कर कहा, ’स्वामी! आपने मुझे पाँच हजार असर्फियाँ सौंपी थीं। देखिए, मैंने और पाँच हजार कमायीं।’

21) उसके स्वामी ने उस से कहा, ’शाबाश, भले और ईमानदार सेवक! तुम थोड़े में ईमानदार रहे, मैं तुम्हें बहुत पर नियुक्त करूँगा। अपने स्वामी के आनन्द के सहभागी बनो।’

22) इसके बाद वह आया, जिसे दो हजार अशर्फि़याँ मिली थीं। उसने कहा, ’स्वामी! आपने मुझे दो हज़ार अशर्फि़याँ सौंपी थीं। देखिए, मैंने और दो हज़ार कमायीं।’

23) उसके स्वामी ने उस से कहा, ’शाबाश, भले और ईमानदार सेवक! तुम थोड़े में ईमानदार रहे, मैं तुम्हें बहुत पर नियुक्त करूँगा। अपने स्वामी के आन्नद के सहभागी बनो।’

24) अन्त में वह आया, जिसे एक हज़ार अशर्फियाँ मिली थीं, उसने कहा, ’स्वामी! मुझे मालूम था कि आप कठोर हैं। आपने जहाँ नहीं बोया, वहाँ लुनते हैं और जहाँ नहीं बिखेरा, वहाँ बटोरते हैं।

25) इसलिए मैं डर गया और मैंने जा कर अपना धन भूमि में छिपा दिया। देखिए, यह आपका है, इस लौटाता हूँ।’

26) स्वामी ने उसे उत्तर दिया, ’दुष्ट! तुझे मालूम था कि मैंने जहाँ नहीं बोया, वहाँ लुनता हूँ और जहाँ नहीं बिखेरा, वहाँ बटोरता हूँ,

27) तो तुझे मेरा धन महाजनों के यहाँ जमा करना चाहिए था। तब मैं लौटने पर उसे सूद के साथ वसूल कर लेता।

28) इसलिए ये हज़ार अशर्फियाँ इस से ले लो और जिसके पास दस हज़ार हैं, उसी को दे दो;

29) क्योंकि जिसके पास कुछ है, उसी को और दिया जायेगा और उसके पास बहुत हो जायेगा; लेकिन जिसके पास कुछ नहीं है, उस से वह भी ले लिया जायेगा, जो उसके पास है।

30) और इस निकम्मे सेवक को बाहर, अन्धकार में फेंक दो। वहाँ वे लोग रोयेंगे और दाँत पीसते रहेंगे।

इतवार, 12 नवंबर, 2023 वर्ष का बत्तीसवाँ सामान्य सप्ताह

 

इतवार, 12 नवंबर, 2023

वर्ष का बत्तीसवाँ सामान्य सप्ताह



📒 पहला पाठ :प्रज्ञा-ग्रन्थ 6:12-16



12) प्रज्ञा देदीप्यमान है। वह कभी मलिन नहीं होती। जो लोग उसे प्यार करते हैं, वे उसे सहज ही पहचानते हैं। जो उसे खोजते है, वे उसे प्राप्त कर लेते हैं।

13) जो उसे चाहते हैं, वह स्वयं आ कर उन्हें अपना परिचय देती है।

14) जो उसे खोजने के लिए बड़े सबेरे उठते हैं, उन्हें परिश्रम नहीं करना पड़ेगा। वे उसे अपने द्वार के सामने बैठा हुआ पायेंगे।

15) उस पर मनन करना बुद्धिमानी की परिपूर्णता है। जो उसके लिए जागरण करेगा, वह शीघ्र ही पूर्ण शान्ति प्राप्त करेगा।

16) वह स्वयं उन लोगो की खोज में निकलती है, जो उसके योग्य है। वह कृपापूर्वक उन्हें मार्ग में दिखाई देती है और उनके प्रत्येक विचार में उन से मिलने आती है।



📕 दूसरा पाठ: थेसलनीकियों के नाम सन्त पौलुस का पहला पत्र 4:13-18



13) भाइयो! हम चाहते हैं कि मृतकों के विषय में आप लोगों को निश्चित जानकारी हो। कहीं ऐसा न हो कि आप उन लोगों की तरह शोक मनायें, जिन्हें कोई आशा नहीं है।

14) हम तो विश्वास करते हैं कि ईसा मर गये और फिर जी उठे। जो ईसा में विश्वास करते हुए मरे, ईश्वर उन्हें उसी तरह ईसा के साथ पुनर्जीवित कर देगा।

15) हमें मसीह से जो शिक्षा मिली है, उसके आधार पर हम आप से यह कहते हैं- हम, जो प्रभु के आने तक जीवित रहेंगे, मृतकों से पहले महिमा में प्रवेश नहीं करेंगे,

16) क्योंकि जब आदेश दिया जायेगा और महादूत की वाणी तथा ईश्वर की तुरही सुनाई पड़ेगी, तो प्रभु स्वयं स्वर्ग से उतरेंगे। जो मसीह में विश्वास करते हुए मरे, वे पहले जी उठेंगे।

17) इसके बाद हम, जो उस समय तक जीवित रहेंगे, उनके साथ बादलों में आरोहित कर लिये जायेंगे और आकाश में प्रभु से मिलेंगे। इस प्रकार हम सदा प्रभु के साथ रहेंगे।

18) आप इन बातों की चर्चा करते हुए एक दूसरे को सान्त्वना दिया करें।




📙 सुसमाचार : सन्त मत्ती 25:1-13



1) उस समय स्वर्ग का राज्य उन दस कुँआरियों के सदृश होगा, जो अपनी-अपनी मशाल ले कर दुलहे की अगवानी करने निकलीं।

2) उन में से पाँच नासमझ थीं और पाँच समझदार।

3) नासमझ अपनी मशाल के साथ तेल नहीं लायीं।

4) समझदार अपनी मशाल के साथ-साथ कुप्पियों में तेल भी लायीं।

5) दूल्हे के आने में देर हो जाने पर ऊँघने लगीं और सो गयीं।

6) आधी रात को आवाज़ आयी, ’देखो, दूल्हा आ रहा है। उसकी अगवानी करने जाओ।’

7) तब सब कुँवारियाँ उठीं और अपनी-अपनी मशाल सँवारने लगीं।

8) नासमझ कुँवारियों ने समझदारों से कहा, ’अपने तेल में से थोड़ा हमें दे दो, क्योंकि हमारी मशालें बुझ रही हैं’।

9) समझदारों ने उत्तर दिया, ’क्या जाने, कहीं हमारे और तुम्हारे लिए तेल पूरा न हो। अच्छा हो, तुम लोग दुकान जा कर अपने लिए ख़रीद लो।’

10) वे तेल ख़रीदने गयी ही थीं कि दूलहा आ पहुँचा। जो तैयार थीं, उन्होंने उसके साथ विवाह-भवन में प्रवेश किया और द्वार बन्द हो गया।

11) बाद में शेष कुँवारियाँ भी आ कर बोली, प्रभु! प्रभु! हमारे लिए द्वार खोल दीजिए’।

12) इस पर उसने उत्तर दिया, ’मैं तुम से यह कहता हूँ- मैं तुम्हें नहीं जानता’।

13) इसलिए जागते रहो, क्योंकि तुम न तो वह दिन जानते हो और न वह घड़ी।



📚 मनन-चिंतन



हमेशा तैयार रहने का क्या फायदा हैं? हम दिन के दौरान किसी भी कार्य या घटना के लिए तत्पर रहते हैं। यह कहना बहुत सहज की हम ईश्वर के आगमन के लिए सदैव तत्पर हैं लेकिन कभी-कभी ऐसा करने के लिए वास्तविक विश्वास के बिना ये असंभव है। हम आसानी से फिर से पाप करने के लिए प्रोत्साहित हो जाते हैं। हममें से अधिकांश लोग कुछ ही समय के लिए तैयार रहते हैं और फिर पापमय जीवन की ओर हो लेते हैं। ऐसा क्यों? हमें ऐसे व्यवहार से बचने के लिए क्या करना चाहिए? पवित्र मिस्सा बलिदान में हमारी उपस्थिति के माध्यम से, हमारी प्रार्थनाओं के माध्यम से, ईश्वर के वचन को पढ़ने के माध्यम से हम निरंतर येसु की संगति में रह सकते हैं। तदअनुसार हम सदैव तैयार रहेंगे। आइए हम भी उन समझदार कुँवारियों के समान जागते रहे और धैर्यपूर्वक प्रभु की प्रतीक्षा करे।





📚 REFLECTION


What is the advantage of being prepared? We are always ready for what may happen during any time of the day. It is very easy to say that we are always prepared for His coming but sometimes it is only lip service without real conviction to do so. We are easily tempted to sin again, to hurt people again, to ignore those who are in need again most especially the poor. Many of us are like that, we are only prepared for a short period of time and then we sin again. Why this is so and what must we do to avoid our sinful behaviors again? We must have a continuous encounter with Jesus through our attendance at Holy Mass, through our prayers, through reading the Bible. Hence, we would always be prepared. In the gospel, we read about the ten virgins, five of them were foolish and five were wise. Those who were wise came prepared by bringing along extra flask of oil. So that their lamps would be lighted if ever the bridegroom would arrive late. Let us also be vigilant to keep awake and patiently wait for the Lord.




📚 मनन-चिंतन -2



इस संसार की सृष्टि से अब तक कई सदियॉं बीत गई और इन बीते सदियों में न जाने कितने लोग आये और चले गयंे कितनी पीढ़िया आई और चली गयी और आने वाले समय में भी न जाने कितने लोग आयेंगे और चलें जायेंगे। इसको देखकर हमारे मन में यह प्रश्न अवश्य उठता है कि क्या हमारा इस संसार में जन्म लेना कुछ समय बिताकर मर जाना बस इतना ही है या इससे बढ़कर भी कुछ है? यदि हमारा जीवन केवल आना और जाना होता तो हममें और दूसरे जीव जन्तु में कोई फर्क नहीं रहता जो इस संसार में आते है अपने जीवन के लिए संघर्ष करते हैं और इस संसार से चले जाते है। परंतु हमारा जीवन इससे भी अधिक महत्व रखता है, हमारे जीवन का कुछ मकसद है जिसे प्रभु येसु ख्र्रीस्त ने 2000 वर्ष पूर्व जन्म लेकर हम सभी को अपनी शिक्षाओं के माध्यम से बताया और वह है-स्वर्गराज्य। इतना ही नहीं प्रभु येसु ने अपनी मृत्यु एवं पुनरुत्थान द्वारा हमारे लिए मुक्ति का द्वार खोल दिया जिससे हम स्वर्ग राज्य में जी सकें एवं स्वर्ग में प्रवेश कर सकें।

सुसमाचार में हम कई बार हम प्रभु येसु के दूसरे आगमन के विषय में पढ़ते हैं जैसे कि मत्ती 16ः27, योहन 14ः23, मारकुस 8ः38; इसके साथ साथ नये विधान के कई पत्रों में भी हम इस विषय को पाते हैं। अभी जो युग में जी रहें वह प्रभु येसु के पुनरुत्थान से प्रभु येसु के द्वितीय आगमन के बीच का समय है। यह समय हमें व्यर्थ में बिताने के लिए नहीं परंतु तैयार रहते हुए बिताने का समय है। इस बात को प्रभु येसु बहुत ही अच्छी तरह से दस कुंवारियों के दृष्टांत द्वारा आज हमें समझाते हैं जहॉं पर पॉंच कुंवारियॉं समझदार रहती है अथवा पॉंच कुंवारियॉं नासमझ। समझदार कुंवारियॉ तैयारी के साथ अर्थात् मशाल के साथ साथ कुप्पियों में तेल लाकर दूल्हे का इंतजार करती है वहीं दूसरी ओर नासमझ कुंवारियॉं बिना तैयारी केे इंतजार करती हैं। और जब समय आता है तो नासमझ कुंवारियॉं विवाह भवन में प्रवेश करने से वंचित रह जाती है।

यह पॉंच पॉंच कुंवारियॉं हम सब का प्रतीक हैं। इस संसार में कई लोग उन पॉंच नासमझ कुंवारियों के समान है जो व्यर्थ ही बिना तैयारी का समय बीता देते है। ये वो लोग है जो अपने जीवन को बहुत ही सरलता से लेते है तथा जीवन को गंभीरता से नहीं लेकर अपने मन मर्जी जीवन व्यतीत करते है। परंतु संसार में ऐसे भी कई लोग है जो अपने जीवन को गंभीरता से लेकर स्वर्गराज्य के अनुकूल- वचन अनुसार, पवित्रता में जीवन बिताने की कोशिश करते हैं तथा इस कारण कई बार इनको नासमझदारों का घृणा, अलगाव तथा हॅंसी का पात्र बनना पड़ता है। यही नूह एवं उसके परिवार के साथ भी हुआ जिसे हम उत्पत्ति ग्रंथ में पाते हैं - जहॉं नूह और उसका परिवार ईश्वर की आज्ञा मानकर आने वाले समय की तैयारी कर रहा था वहीं दूसरी ओर अन्य लोग नूह का मज़ाक उड़ाते हुए अपने जीवन में मग्न होकर समय बिता रहे थे। जब प्रलय का समय आया तो नूह एवं उसका परिवार ही उन जीव जन्तुओं के एक-एक जोडे़ के साथ बच पाया और बाकि सभी का सर्वनाश हो गया।

दस कुंवारियॉं एवं नूह का जीवन हमें बताता है कि यह जीवन एक तैयारी का जीवन है जहॉं हमे हर समय, हर क्षण प्रभु येसु के दूसरे आगमन की तैयारी हेतु बितानी है। इस बात को संत लूकस बहुत ही अच्छी तरह से अपने सुमाचार के अध्याय 21ः34-36 में बताते हैं, वे कहते हैं, ‘‘सावधान रहो। कहीं ऐसा न हो कि भोग-विलास, नशे और इस संसार की चिन्ताओं से तुम्हारा मन कुण्ठित हो जाये और वह दिन फन्दे की तरह अचानक तुम पर आ गिरे, क्योंकि वह दिन समस्त पृथ्वी के सभी निवासियों पर आ पड़ेगा इसलिए जागते रहो और सब समय प्रार्थना करते रहो, जिससे तुम इन सब आने वाले संकटों से बचने और भरोसे के साथ मानव पुत्र के सामने खड़े होने योग्य बन जाओ।’’

यह वचन हम सभी से यह प्रश्न करता है कि जब मानव पुत्र आयेगा तो क्या हम अपने आपको उसके सामने खड़े होने योग्य पायेंगे। यदि हमें मानव पुत्र के सामने खड़े होने योग्य बनना है तो हमें भोग-विलास, नशे और इस संसार की चिन्ताओं से दूर रहते हुए जागते रहने एवं प्रार्थनामय जीवन बिताने की जरूरत हैं।

संसार की वस्तुएॅं हमें हमारे उपयोग तथा हमारी सहायता हेतु प्रदान की गई है परंतु जब हम उनका अत्यधिक या जरूरत से ज्यादा उपयोग करने लग जाते है तो वह भोग-विलास मंे परिवर्तित हो जाता है। नशा- नशा एक ऐसी प्रवृत्ति है जो हमारे सोचने समझने की शक्ति को कम कर देता है और कोई कोई उस नशे में इतने लिप्त हो जाते है कि कहॉं जा रहे है, क्या बोल रहें है, क्या कर रहें हैं और उनका लक्ष्य क्या है सब भूल जाते है। नशा केवल मादक पादार्थ पीने से ही नहीं परंतु नशा कई प्रकार के सकते हैं- जैसे अमीरी का नशा, शौहरत का नशा, वासना का नशा, झूठी तारीफ पाने का नशा, काम का नशा, चोरी का नशा, झूठ बोलने का नशा, क्रोध का नशा इत्यादि-इत्यादि। संसार की चिंता-संसार की चिंता हमारा वर्तमान का समय हम से छीन लेती है जिस कारण हमें अभी क्या करना है हम वह न करके उस चिंता में डूब जाते हैं।

इन तीनों चीज़ो को छोड़कर हमें जागने और प्रार्थना करने की जरूरत हैं- जागना अर्थात् पूरे होश और हवास में रहकर अपने कार्य करना, पूरे होश और सोच समझकर जींदगी के निर्णय लेना। शत्रु के हर बाण को जागते हुए सामना करना। जिस प्रकार संत पेत्रुस अपने पहले पत्र 5ः8-9 में कहते हैं, ’’आप संयम रखें और जागते रहें! आपका शत्रु, शैतान, दहाड़ते हुए सिंह की तरह विचरता है और ढूॅंढ़ता रहता है कि किसे फाड़ खाये। आप विश्वास में दृढ़ हो कर उसका सामना करें।’’ हमें प्रभु में विश्वास करने के साथ जागते रहने की जरूरत हैं। सब समय प्रार्थना करते रहना- सब समय प्रार्थना करते रहने का मतलब है निरंतर प्रभु से जुड़ा रहना निरंतर प्रभु से रिश्ता बनाये रखना क्योंकि प्रार्थना का मतलब ही प्रभु से वार्तालाप कर एक रिश्ता बनाना है। हम प्रभु से तभी जुड़ सकते है जब हमारा मन, ह्दय, आत्मा, शरीर शुद्ध हों। हमें अपने आप को शुद्ध करने के लिए निरंतर प्रयास करते रहना चाहिए।

हमें यह नहीं सोचना चाहिए कि एक दिन या कुछ समय के लिए अच्छा कार्य हमारे स्वर्ग पहुचने के लिए पर्याप्त है क्या पता समय पहुॅंचने पर हमारी अच्छाईयॉं हमारी बुराईयों के सामने कम पड़ जाये और हम स्वर्ग में प्रवेश पाने से वंचित रह जायें। इसलिए आईये हम संसार की असारता को दूर रख कर विश्वास में दृढ़ बने तथा निरंतर अपने आप को मन वचन कर्मों से शुद्ध करते जाये जिससे हम भरोसे के साथ मानव पुत्र के सामने खड़े होने योग्य बन जायें। आमेन



📚 REFLECTION



From the beginning of the creation till now many centuries are over and in all this past centuries many people have come and gone, many generations came and went and in future many may come and go. Seeing this passing over one question may arise in our mind that our life is just to be born spend sometimes and to pass away, is this everything or something more is there? If this is the only thing then our life is similar to other beings and creatures that take birth, fight for their living and they go away. But it is not the end but there is something more than that, we have the purpose of living and this purpose is explained by Lord Jesus 2000 years back when he came into this world taking the form of human and the purpose which he told all through his teaching is the Kingdom of God or Kingdom of heaven. All the more he died for us and resurrected in order to open the door of our salvation so that we may live in his Kingdom by entering into heaven.

In the gospel many times we find about the second coming of Lord Jesus. Like in Mt 16:27, Jn 14:23, Mk 8:38; along with this in many of the letters of the New Testament too there is mention about the second coming of Jesus. The time or the period in which we are living today is the time between Jesus’ Resurrection and the Second coming of Jesus. This is the time not for wasting but the time to spend in readiness. This is very well explained by Lord Jesus in today’s gospel through the parable of Ten virgins or ten bridesmaids where five were wise and five were foolish. Wise virgins were waiting for the bridegroom by bringing oil in the flasks along with the lamps where as the foolish didn’t prepared themselves by not bringing the oil with them and when the time came the foolish were deprived of entering into the wedding banquet.

This five wise and five foolish represents each one of us. In this world many of us spent their time in vain without any preparation. These are the people who take their life very lightly and spent their life in fulfilling their own desires. But apart from them there are others also who take their life seriously and spent their life according to the heavenly accord by trying to live holy life according to the word of God. Due to this sometimes they have to face the challenges, separation and indifference behavior from the foolish. Same thing happened with the Noah and his family which we read in the book of Genesis – where Noah and his family were preparing for future by listening God’s word; on the other hand others were mocking Noah and his family and living according to their own accord. When the time of great flood came then only Noah and his family along with one pair of animals and creatures were saved and rest all were destroyed.

Parable of Ten Virgins and the life of Noah tells us that this life is the life of preparing where we have to spent each time and each moment in preparing for the second coming of Lord Jesus. St. Luke explains this very well in his gospel 21:34-36, “ Be on guard so that your hearts are not weighed down with dissipation and drunkenness and the worries of this life, and that day does not catch you unexpectedly, like a trap. For it will come upon all who live on the face of the whole earth. Be alert at all times, praying that you may have the strength to escape all these things that will take place, and to stand before the Son of Man.”

This verses question each one of us whether we will be able to stand before the Son of Man when He comes. If we want to make ourselves worthy to stand in front of the Son of Man then we have to be alert and live prayerful life by keeping away all the dissipation, drunkenness and worries of this life.

The things of this world are given to us as a help or to use them properly but when we try to overuse them or too much long for them then it becomes an obsession or dissipation. Drunkenness is that which lessens the ability to think and understand and when someone is fully drunk or fully intoxicated then they do not know where they are going, what they are saying, what they are doing and takes themselves away from the goal and purpose of life. Intoxication or drunkenness is not only caused by drinking alcohol but one can be intoxicated by many things: like some can be intoxication of richness, intoxication of popularity, intoxication of lust, intoxication of false praise, intoxication of work, intoxication of stealing, intoxication of lies, intoxication of anger and so on and so forth. Worries of the life- worries of the life steals away our present time that instead of doing what we have to do at present we are lost in worries and how to solve the worries.

Leaving all these three things of the world we need to be alert and praying all the time. Alert means to do our work in full consciousness or to take the decisions of life in full consciousness and with full understanding. As St. Peter in his first letter 5:8-9 says, “Discipline yourselves, keep alert, like a roaring lion your adversary the devil prowls around, looking for someone to devour. Resist him, steadfast in your faith.” This tells us that we have to remain alert with our strong faith in Jesus. Praying- Praying means to remain united with God to live in the relationship with God because Prayer in itself means to establish a relationship with God through our daily conversation. We can be united to God only when our mind, heart, body and soul are holy or purified. We have to always try all possible means in order to purify ourselves.

We should not think that one day doing good or doing good for some times will be enough to reach heaven; who knows when the time comes our goodness will fall short in front of our wrong deeds and we will be deprived of entering into heaven. So let’s become strong in faith and continuously purify our mind, words and deeds by keeping away all the impermanence of this world so that we may be able to stand in faith when the Son of Man comes. Amen!


मनन-चिंतन -2


दस कुँवारियों के दृष्टांत द्वारा प्रभु हमारे ख्रीस्तीय विश्वास के जीवन के बहुत ही महत्वपूर्ण पहलूओं पर प्रकाश डालते हैं। वे हमें सदैव धार्मिक जीवन द्वारा प्रभु के लिए तैयार रहने को कहते हैं। वे हमें दूसरों के आलस एवं नास्तिकता के जीवन देखकर उनके समान नहीं बनने, बल्कि ईश्वर द्वारा सौंपे गये कार्य को पूरी तत्परता, निरंतरता तथा सजकता के साथ करने को कहते हैं। प्रभु हमें टाल-मटौल की आदत से दूर रहकर, समझदारी के साथ हमेशा तैयार रहने को कहते हैं। वे हमें चेतावनी देते हैं कि यदि हम यथासमय, उचित तैयारी नहीं करेंगे तो अंतिम समय आने पर हमारी मुक्ति की कोई संभावना नहीं होगी।

इस दृष्टांत में सभी दस कुँवारियॉ एक समान बतायी गयी है। सभी की परिस्थितियाँ एक समान थी तथा सभी को एक समान अवसर प्रदान किये गये थे। उनके वर की आगवानी करने के कार्य को कुछ ने गंभीरता के साथ लिया तो कुछ ने हल्के-फुल्के तौर पर। किन्तु इनमें मूर्ख और समझदार कौन हैं - इसकी पहचान तब होती है जब संकट आता है क्योंकि संकट आने पर ही मालूम पडता है कि कौन तैयारी के साथ आया था और कौन नहीं। अथार्त कौन अपनी मशालों के लिए कुप्पी में तेल लाया था और कौन नहीं। समाज में भी हम भले और बुरे मनुष्यों में ज्यादा फर्क नहीं नहीं पाते हैं। सामान्य समय में सबकुछ एक जैसा लगता है। लेकिन गधे और घोडे का फर्क केवल दौड शुरू होने पर ही मालूम पडता है। संकट आने पर ही हमें लोगों की या फिर स्वयं अपनी कमी और अपूर्णता का अहसास होता है।

चट्टान और बालू पर बनाये गये घरों का दृष्टांत इसी सच्चाई को इंगित करता हैं। सामान्य मौसम में दोनों घर उपयोगी प्रतीत होते हैं किन्तु बाढ की स्थिति में जो घर या जीवन ईश्वर की शिक्षा रूपी चट्टान पर बनाया गया था वह खडा रहता है। इसके विपरीत सांसारिक चालाकियों पर निर्मित जीवन बालू की नींव पर बने घर के सदृश होता है जो ढह जाता है तथा उसका सर्वनाश हो जाता है। (मत्ती 7:24-28)

इसी बात को प्रभु अनेक उदाहरणों द्वारा समझाते हैं, ’’जो नूह के दिनों में हुआ था, वही मानव पुत्र के आगमन के समय होगा। जलप्रलय के पहले, नूह के जहाज पर चढ़ने के दिन तक, लोग खाते-पीते और शादी-ब्याह करते रहे। जब तक जलप्रलय नहीं आया और उसने सबको बहा नहीं दिया, तब तक किसी को इसका कुछ भी पता नहीं था। मानव पुत्र के आगमन के समय वैसा ही होगा।’’ (मत्ती 24:37-39) ईमानदार और बेईमान कारिंदे का व्यवहार भी ऐसा ही था। ईमानदार कारिंदा सदैव तैयार, सजग तथा अपना कार्य ईमानदारी एवं निष्ठा के साथ किया करता था किन्तु बेईमान अपने पद तथा समय का दुरूपयोग करता हुआ पाया जाता है। (देखिए मत्ती 24:45-51) मूर्ख और समझदार कुॅवारियॉ (मत्ती 25:1-12) तथा न्याय के दिन भेड और बकरियों का न्याय आदि उदाहरणों द्वारा प्रभु सदाचारी एवं भ्रष्ट व्यक्तियों का अंतर उचित समय पर प्रकट करने की बात कहते हैं।

उत्पत्ति ग्रन्थ में हम पाते हैं कि जब ईश्वर ने पृथ्वी के सब शरीरधारियों का विनाश करने का संकल्प किया तो ईश्वर को नूह का ध्यान आया जो प्रभु की दृष्टि में धार्मिक था। ’’नूह सदाचारी और अपने समय के लोगों में निर्दोष व्यक्ति था। वह ईश्वर के मार्ग पर चलता था।’’ (उत्पत्ति 6:9) नूह सदैव ईश्वर का भय मन में बनाये रख अपने जीवन को संचालित करता था किन्तु इसके विपरीत अन्य लोग खाते-पीते और मौजमस्ती में समय बिताते थे। बाहरी तौर पर तो वे ही लोग अधिक खुश और सही प्रतीत होते हैं किन्तु जलप्रलय के दिन जब वर्षा शुरू होती है तब ही सदाचारी नूह तथा अन्य कुकर्मियों के बीच का अंतर निर्णायक तौर पर पता चलता है। इस घोर संकट में ही नूह के सदाचारी जीवन को ईश्वर पुरस्कृत करते हैं। स्तोत्रकार कहते हैं, ’’ईश्वर यह जानने के लिए स्वर्ग से मनुष्यों पर दृष्टि दौडाता है कि उन में कोई बुद्धिमान हो, जो ईश्वर की खोज में लगा रहता हो।’’ (स्तोत्र 14:2) नबी हबक्कूक भी धार्मिक को सांत्वना देते हुए कहते हैं, ’’जो धर्मी है, वह अपनी धार्मिकता के कारण सुरक्षित रहेगा।’’ (हबक्कूक 2:4)

कई बार दूसरों के भ्रष्ट, अनैतिक तथा सांसारिक तौर पर सफल प्रतीत लगते जीवन को देखकर अनेक लोग भटक कर सुमार्ग को त्याग देते हैं। वे इस सरलता तथा भ्रष्टचार के जीवन को वास्तविकता मान बैठते हैं। ईश्वर का इंतजार तथा उनके पुरस्कार की बातें उन्हें अकल्पनीय प्रतीत होती है। किन्तु इतिहास इस बात का गवाह है कि ऐसे अनेक स्वयं-घोषित ज्ञानी लोगों का अंत बहुत दयनीय था। स्तोत्रकार दुष्ट के विचारों को बताते हुये कहते हैं, ’’वह अपने घमण्ड में किसी की परवाह नहीं करता और सोचता है, ईश्वर है ही नहीं। उसके सब कार्य फलते-फूलते हैं, वह तेरे निर्णयों की चिंता नहीं करता...और अपने मन में कहता है, ’जैसा हूँ वैसा ही रहूँगा, मेरा कभी अनर्थ नहीं होगा।....वह अपने मन में कहता हैः ’ईश्वर लेखा नही रखता; उसका मुख छिपा हुआ है और वह कभी कुछ नहीं देखता’’। (स्तोत्र 10:4-6,11)

किन्तु दृष्टांत के द्वारा प्रभु स्पष्ट कर देते हैं कि वर तो अवश्य आयेगा किन्तु जो ईमानदारी एवं धार्मिकता के साथ योग्य पाये जायेंगे वे पुरस्कृत तथा पापियों को हमेशा हमेशा के लिए अयोग्य माना जायेगा।

दस कुँवारियों के दृष्टांत द्वारा येसु हमारे आध्यात्मिक जीवन की एक और महत्वपूर्ण बात को बताते हैं। जो लोग उनके जीवन को पूरी उन्मुक्त्ता तथा मौज-मस्ती के साथ जीते हैं उन्हें उनके कार्यों के नैतिक तथा आध्यात्मिक परिणामों की चिंता नहीं होती। वे ईश्वर में विश्वास तो करते हैं किन्तु वे ईश्वर की शिक्षा से निश्चित दूरी बनाये रखते हैं। वे ईश्वर के पास जाने की बात को खारिज भी नहीं करते हैं। वे तो बस ’बाद में’ ’अगली बार’ ’फिर कभी’ या ’इसके बाद’ जैसे खोखले शब्दों के द्वारा अपनी मुक्ति की संभावना को टालते रहते हैं। लेकिन किसी का समय बोल कर नहीं आता। जब संकट आता है तो वे चाह कर भी ईश्वर के पास लौट नहीं पाते हैं।

एक कहानी है - एक बार शैतानों की महासभा हुयी। सभी इस बात पर विचार कर रहे थे कि किस प्रकार मनुष्य को ईश्वर से दूर रखा जाये। सभी ने अपने-अपने विचार रखे। एक ने कहा कि यदि हम मनुष्य को इस बात का विश्वास दिलाये कि ईश्वर का कोई अस्तित्व नहीं है तो वह ईश्वर की खोज बंद कर देगा। इस विचार को यह कहकर खारिज कर दिया गया कि मनुष्य तो यह इस सच्चाई से परिचित है कि ईश्वर सचमुच में है। फिर किसी ने कहा कि हम ईश्वर के ज्ञान को ऐसे अज्ञात स्थान में छिपा देगे जिससे वे ईश्वर की शिक्षा को जान ही नहीं पायेंगे। लेकिन इस सुझाव मं् भी समस्या थी। मनुष्य का ज्ञान तथा उसकी जिज्ञासा इतनी गहरी तथा प्रबल है कि वह इस ज्ञान को एक न एक दिन कहीं से भी ढूंढ लायेगा। फिर किसी शैतान ने कहा, हम मनुष्य को न तो यह बतायेंगे कि ईश्वर नहीं है और न ही ईश्वर के ज्ञान को किसी जगह छिपायेंगे बल्कि हम मनुष्य को केवल यह समझाकर भरोसा दिलायेंगे कि ईश्वर को कभी भी पाया जा सकता है। इस कार्य को करने की कोई जल्दी नहीं। तुम जब चाहोगे ईश्वर से मिल सकते हो।’’ शायद इस कारण मनुष्य ईश्वर से मिलने की बात ’आने वाले कल’ पर टालने लगा। यह ’कल’ शायद उसके जीवन में कभी नहीं आता तथा परिणामस्वरूप यह टालमटौल वाला रवैया उसके नर्क जाने को सुनिश्चित कर देता है।

संकट के समय पाँच समझदार कुँवारियाँ अन्य पॉच मूर्ख कुँवारियों के साथ अपना तेल बांटने से इंकार कर देती है। ऐसा वे स्वार्थ के कारण नहीं करती बल्कि यह तो उस समय की पहचान को प्रदर्शित करता है। उस समय केवल उतना ही तेल था जो उनकी ही मशाल जलाये रख सकता था यदि वे अपना तेल बांटती तो वे स्वयं की अयोग्य हो जाती। इसलिए अंतिम समय में कोई चाहकर भी हमारी मुक्ति में कोई भी मदद नहीं कर पायेगा। केवल ईश्वर की असीम दया पर ही यह निर्भर करेगी। जो ईश्वर की दृष्टि में योग्य पाये जायेंगे केवल वे बच पायेंगे। उस समय बचने का कोई दूसरा उपाय नहीं रहेगा। अंतिम समय की भीषणता ऐसी निर्णायक होगी कि अयोग्यों की मुक्ति की कोई संभावना नहीं बचेगी। ’’तब मैं उन्हें साफ-साफ बता दूँगा, ’’मैंने तुम लोगों को कभी नहीं जाना। कुकर्मियों! मुझ से दूर हटो।’’ (मत्ती 7:23)

आइये हम भी इस जीवन में ईश्वरीय बातों की ओर ध्यान देकर सदाचार का जीवन बितायें तथा धर्मग्रंथ की चेतावनी पर ध्यान दे। ’’नींद से जागो,....अपने आचरण का पूरा-पूरा ध्यान रखें। मूर्खों की तरह नहीं, बल्कि बुद्धिमानों की तरह चल कर वर्तमान समय से पूरा लाभ उठायें, क्योंकि ये दिन बुरे हैं। आप लोग नासमझ न बनें, बल्कि प्रभु की इच्छा क्या है, यह पहचानें। (एफेयिसों 5:14-17)

- Biniush Topno 



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इतवार, 22 अक्टूबर, 2023 वर्ष का उन्तीसवाँ सामान्य सप्ताह

 इतवार, 22 अक्टूबर, 2023

वर्ष का उन्तीसवाँ सामान्य सप्ताह



📒 पहला पाठ :इसायाह का ग्रन्थ 45:1, 4-6

1) प्रभु ने अपने अभिषिक्त सीरुस का दाहिना हाथ सँभाला है। उसने राष्ट्रों को सीरुस के अधीन कर दिया और राजाओं के शस्त्र ले लिये। प्रभु ने उसके लिए फाटकों को तोड़ दिया। अब उसके सामने कोई भी द्वार बन्द नहीं रहा। प्रभु उसी सीरुस से यह कहता है-

4) मैंने अपने सेवक याकूब तथा अपने कृपापात्र इस्राएल के कारण तुम को नाम ले कर बुलाया और महान् बना दिया है, यद्यपि तुम मुझे नहीं जानते।

5) मैं ही प्रभु हूँ, कोई दूसरा नहीं है; मेरे सिवा कोई अन्य ईश्वर नहीं। यद्यपि तुम मुझे नहीं जानते, तो भी मैंने तुम्हें शस्त्र प्रदान किये,

6) जिससे पूर्व से पश्चिम तक सभी लोग यह जान जायें कि मेरे सिवा कोई दूसरा नहीं। मैं ही प्रभु हूँ, कोई दूसरा नहीं।


📕 दूसरा पाठ: थेसलनीकियों के नाम सन्त पौलुस का पहला पत्र 1:1-5b

1) पिता-परमेश्वर और प्रभु ईसा मसीह पर आधारित थेसलनीकियों की कलीसिया के नाम पौलुस, सिल्वानुस और तिमथी का पत्र। आप लोगों को अनुग्रह तथा शान्ति!

2 (2-3) जब-जब हम आप लोगों को अपनी प्रार्थनाओं में याद करते हैं, तो हम हमेशा आप सब के कारण ईश्वर को धन्यवाद देते है। आपका सक्रिय विश्वास, प्रेम से प्रेरित आपका परिश्रम तथा हमारे प्रभु ईसा मसीह पर आपका अटल भरोसा- यह सब हम अपने ईश्वर और पिता के सामने निरन्तर स्मरण करते हैं।

4) भाइयो! ईश्वर आप को प्यार करता है। हम जानते हैं कि ईश्वर ने आप को चुना है,

5) क्योंकि हमने निरे शब्दों द्वारा नहीं, बल्कि सामर्थ्य, पवित्र आत्मा तथा दृढ़ विश्वास के साथ आप लोगों के बीच सुसमाचार का प्रचार किया। आप लोग जानते हैं कि आपके कल्याण के लिए हमारा आचरण आपके यहाँ कैसा था।

📙 सुसमाचार : सन्त मत्ती 22:15-21

15) उस समय फरीसियों ने जा कर आपस में परामर्श किया कि हम किस प्रकार ईसा को उनकी अपनी बात के फन्दे में फँसायें।

16) इन्होंने ईसा के पास हेरोदियों के साथ अपने शिष्यों को यह प्रश्न पूछने भेजा, ’’गुरुवर! हम यह जानते हैं कि आप सत्य बोलते हैं और सच्चाई से ईश्वर के मार्ग कि शिक्षा देते हैं। आप को किसी की परवाह नहीं। आप मुँह-देखी बात नहीं करते।

17) इसलिए हमें बताइए, आपका क्या विचार है- कैसर को कर देना उचित है या नहीं’’

18) उनकी धूर्त्तता भाँप कर ईसा ने कहा, ’’ढ़ोगियों! मेरी परीक्षा क्यों लेते हो?

19) कर का सिक्का मुझे दिखलाओ।’’ जब उन्होंने एक दीनार प्रस्तुत किया,

20) तो ईसा ने उन से कहा, ’’यह किसका चेहरा और किसका लेख है?’’

21) उन्होंने उत्तर दिया, ’’कैसर का’’। इस पर ईसा ने उन से कहा, ’’तो, जो कैसर का है, उसे कैसर को दो और जो ईश्वर का है, उसे ईश्वर को’’।


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इतवार, 24 सितंबर, 2023 वर्ष का पच्चीसवाँ सामान्य सप्ताह


इतवार, 24 सितंबर, 2023

वर्ष का पच्चीसवाँ सामान्य सप्ताह


📒 पहला पाठ : इसायाह का ग्रन्थ 55:6-9

6) “जब तक प्रभु मिल सकता है, तब तक उसके पास चली जा। जब तक वह निकट है, तब तक उसकी दुहाई देती रह।

7) पापी अपना मार्ग छोड़ दे और दुष्ट अपने बुरे विचार त्याग दे। वह प्रभु के पास लौट आये और वह उस पर दया करेगा; क्योंकि हमारा ईश्वर दयासागर है।

8) प्रभु यह कहता है- तुम लोगों के विचार मेरे विचार नहीं हैं और मेरे मार्ग तुम लोगों के मार्ग नहीं हैं।

9) जिस तरह आकश पृथ्वी के ऊपर बहुत ऊँचा है, उसी तरह मेरे मार्ग तुम्हारे मार्गों से और मेरे विचार तुम्हारे विचारों से ऊँचे हैं।

दूसरा पाठ : फ़िलिप्पियों के नाम पत्र 1:20c,24,27a

20) मसीह मुझ में महिमान्वित होंगे।

24) किन्तु शरीर में मेरा विद्यमान रहना आप लोगों के लिए अधिक हितकर है।

27) आप लोग एक बात का ध्यान रखें- आपका आचरण मसीह के सुसमाचार के योग्य हो।

📙 सुसमाचार : सन्त मत्ती 20: 1-16a

1) ’’स्वर्ग का राज्य उस भूमिधर के सदृश है, जो अपनी दाखबारी में मज़दूरों को लगाने के लिए बहुत सबेरे घर से निकला।

2) उसने मज़दूरों के साथ एक दीनार का रोज़ाना तय किया और उन्हें अपनी दाखबारी भेजा।

3) लगभग पहले पहर वह बाहर निकला और उसने दूसरों को चैक में बेकार खड़ा देख कर

4) कहा, ’तुम लोग भी मेरी दाखबारी जाओ, मैं तुम्हें उचित मज़दूरी दे दूँगा’ और वे वहाँ गये।

5) लगभग दूसरे और तीसरे पहर भी उसने बाहर निकल कर ऐसा ही किया।

6) वह एक घण्टा दिन रहे फिर बाहर निकला और वहाँ दूसरों को खड़ा देख कर उन से बोला, ’तुम लोग यहाँ दिन भर क्यों बेकार खड़े हो’

7) उन्होंने उत्तर दिया, ’इसलिए कि किसी ने हमें मज़दूरी में नहीं लगाया’ उसने उन से कहा, ’तुम लोग भी मेरी दाखबारी जाओ।

8) ’’सन्ध्या होने पर दाखबारी के मालिक ने अपने कारिन्दों से कहा, ’मज़दूरों को बुलाओ। बाद में आने वालों से ले कर पहले आने वालों तक, सब को मज़दूरी दे दो’।

9) जब वे मज़दूर आये, जो एक घण्टा दिन रहे काम पर लगाये गये थे, तो उन्हें एक एक दीनार मिला।

10) जब पहले मज़दूर आये, तो वे समझ रहे थे कि हमें अधिक मिलेगा; लेकिन उन्हें भी एक-एक दीनार ही मिला।

11) उसे पाकर वे यह कहते हुए भूमिधर के विरुद्ध भुनभुनाते थे,

12) इन पिछले मज़दूरों ने केवल घण्टे भर काम किया। तब भी आपने इन्हें हमारे बराबर बना दिया, जो दिन भर कठोर परिश्रम करते और धूप सहते रहे।’

13) उसने उन में से एक को यह कहते हुए उत्तर दिया, ’भई! मैं तुम्हारे साथ अन्याय नहीं कर रहा हूँ। क्या तुमने मेरे साथ एक दीनार नहीं तय किया था?

14) अपनी मजदूरी लो और जाओ। मैं इस पिछले मजदूर को भी तुम्हारे जितना देना चाहता हूँ।

15) क्या मैं अपनी इच्छा के अनुसार अपनी सम्पत्ति का उपयोग नहीं कर सकता? तुम मेरी उदारता पर क्यों जलते हो?

16) इस प्रकार जो पिछले हैं, अगले हो जायेंगे।’’

📚 मनन-चिंतन

दाखबारी में मजदूरों का दृष्टान्त मुख्यतः ईश्वर की उदारता पर प्रकाश डालता है। ईश्वर न्यायी और दयालु है। ईश्वर का न्याय दयालु न्याय है। प्रभु ईश्वर किसी को उसके न्यायसंगत हक से वंचित नहीं करते हैं। यही उनके न्याय का प्रमाण है। परन्तु अपनी दया से, वे बहुतों को उनके वास्तविक योग्यता से कहीं अधिक देते हैं। दृष्टान्त में, हम देखते हैं कि स्वामी किसी के साथ अन्याय नहीं करता। पहले से काम करने वाले सामान्य दैनिक वेतन के लिए सहमत हो गए थे। यहाँ दो बातें स्पष्ट हैं। ज़मींदार ने किसी भी मज़दूर के साथ बहस कर उसे सामान्य दैनिक मज़दूरी से कम मज़दूरी पर काम करने के लिए मजबूर नहीं किया। दूसरी बात यह है कि जो सब से पहले आये थे, वे मजदूर सामान्य दिहाड़ी पर काम करने को राजी हो गए थे। उस समय उन्होंने अधिक वेतन की मांग नहीं की थी। जिस पर सहमति बनी थी और जो सामान्य था, उन्हें दे दिया गया है। इसलिए उनके साथ कोई अन्याय नहीं हुआ है। यह सच है कि अन्य मजदूरों पर स्वामी ने दया दिखाई। उस स्वामी की तरह प्रभु ईश्वर हमारे साथ ऐसे ही करते हैं। वे किसी के साथ अन्याय नहीं करते हैं; लेकिन किसी-किसी पर दया तो अवश्य दिखाते हैं। इब्रानियों के नाम पत्र में हम पढ़ते हैं, “ईश्वर अन्याय नहीं करता। आप लोगों ने उसके प्रेम से प्रेरित हो कर जो कष्ट उठाया, सन्तों की सेवा की और अब भी कर रहे हैं, ईश्वर वह सब नहीं भुला सकता।" (इब्रानियों 6:10)। विधि-विवरण 32:4 कहता है, "ईश्वर सत्यप्रतिज्ञ है, उसमें अन्याय नहीं, वह न्यायी और निष्कपट है।" शोकगीत 3:22-23 में हम पढ़ते हैं, “प्रभु की कृपा बनी हुई है, उसकी अनुकम्पा समाप्त नहीं हुई है - वह हर सबेरे नयी हो जाती है। उसकी सत्यप्रतिज्ञता अपूर्व है”। संत पेत्रुस कहते हैं, “धन्य है ईश्वर, हमारे प्रभु ईसा मसीह का पिता! मृतकों में से ईसा मसीह के पुनरुत्थान द्वारा उसने अपनी महती दया से हमें जीवन्त आशा से परिपूर्ण नवजीवन प्रदान किया।” (1 पेत्रुस 1:3) हम अपनी ईर्ष्या में, कभी-कभी उन लोगों से ईर्ष्या करते हैं जो हम से अधिक ईश्वर की दया का अनुभव करते हैं। आइए हम उन अवसरों के लिए प्रभु की क्षमा की याचना करें।

 - Br. Biniush Topno


📚 REFLECTION

The parable of the labourers in the vineyard is primarily about the generosity of God. God is just and merciful. God’s justice is merciful justice. God does not deny anyone what he deserves. That is the proof of his justice. But in his mercy, he gives to many much more than what they actually deserve. In the parable, we see that the master is not unjust to anyone. Those who worked from the first had agreed for the usual daily wage. Two things are clear. The landowner did not argue with the labourers to force them to work for a wage less than the usual daily wage. Secondly, when they were hired, the labourers who came first had agreed to work for the usual daily wage. They did not demand a higher wage. What was agree upon and what was usual is given to them. Hence, there is no injustice done to them. To all other labourers the landowner showed different degrees of mercy. In the Letter to the Hebrews we read, “For God is not unjust; he will not overlook your work and the love that you showed for his sake in serving the saints, as you still do” (Heb 6:10). Deut 32:4 says, “A faithful God, without deceit, just and upright is he”. In Lam 3:22-23 we read, “The steadfast love of the Lord never ceases, his mercies never come to an end; they are new every morning; great is your faithfulness”. St. Peter says, “Blessed be the God and Father of our Lord Jesus Christ! By his great mercy he has given us a new birth into a living hope through the resurrection of Jesus Christ from the dead” (1 Pet 1:3). We in our jealousy, are sometimes envious of those who experience greater mercy of God.

 -Br. Biniush Topno



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Praise the Lord!



रविवार, 27अगस्त, 2023 वर्ष का इक्कीसवाँ सामान्य सप्ताह

 *✞ CATHOLIC BIBLE MINISTRY ✞*

*रविवार, 27अगस्त, 2023*



*वर्ष का इक्कीसवाँ सामान्य सप्ताह*

*पहला पाठ*
इसायाह 22:19-23

19) मैं तुम को तुम्हारे पद से हटाऊँगा, मैं तुम को तुम्हारे स्थान से निकालूँगा।

20) “मैं उस दिन हिज़कीया के पुत्र एलियाकीम को बुलाऊँगा।

21) मैं उसे तुम्हारा परिधान और तुम्हारा कमरबन्द पहनाऊँगा। मैं उसे तुम्हारा अधिकार प्रदान करूँगा। वह येरुसालेम के निवासियों का तथा यूदा के घराने का पिता हो जायेगा।

22) मैं दाऊद के घराने की कुंजी उसके कन्धे पर रख दूँगा। यदि वह खोलेगा, तो कोई बन्द नहीं कर सकेगा। यदि वह बन्द करेगा, तो कोई नहीं खोल सकेगा।

23) मैं उसे खूँटे की तरह एक ठोस जगह पर गाड़ दूँगा। वह अपने पिता के घर के लिए एक महिमामय सिंहासन बन जायेगा।
_______________________________
*दूसरा पाठ*
रोमियों 11:33-36

33) कितना अगाध है ईश्वर का वैभव, प्रज्ञा और ज्ञान! कितने दुर्बोध हैं उसके निर्णय! कितने रहस्यमय हैं उसके मार्ग!

34) प्रभु का मन कौन जान सका? उसका परामर्शदाता कौन हुआ?

35) किसने ईश्वर को कभी कुछ दिया है जो वह बदले में कुछ पाने का दावा कर सके?

36) ईश्वर सब कुछ का मूल कारण, प्रेरणा-स्रोत तथा लक्ष्य है - उसी को अनन्त काल तक महिमा! आमेन!
_______________________________
*सुसमाचार*
सन्त मत्ती 16:13-20

13) ईसा ने कैसरिया फि़लिपी प्रदेश पहुँच कर अपने शिष्यों से पूछा, ’’मानव पुत्र कौन है, इस विषय में लोग क्या कहते हैं?’’

14) उन्होंने उत्तर दिया, ’’कुछ लोग कहते हैं- योहन बपतिस्ता; कुछ कहते हैं- एलियस; और कुछ लोग कहते हैं- येरेमियस अथवा नबियों में से कोई’’।

15) ईस पर ईसा ने कहा, ’’और तुम क्सा कहते हो कि मैं कौन हूँ?

16) सिमोन पुत्रुस ने उत्तर दिया, ’’आप मसीह हैं, आप जीवन्त ईश्वर के पुत्र हैं’’।

17) इस पर ईसा ने उस से कहा, ’’सिमोन, योनस के पुत्र, तुम धन्य हो, क्योंकि किसी निरे मनुष्य ने नहीं, बल्कि मेरे स्वर्गिक पिता ने तुम पर यह प्रकट किया है।

18) मैं तुम से कहता हूँ कि तुम पेत्रुस अर्थात् चट्टान हो और इस चट्टान पर मैं अपनी कलीसिया बनाऊँगा और अधोलोक के फाटक इसके सामने टिक नहीं पायेंगे।

19) मैं तुम्हें स्वर्गराज्य की कुंजिया प्रदान करूँगा। तुम पृथ्वी पर जिसका निषेध करोगे, स्वर्ग में भी उसका निषेध रहेगा और पृथ्वी पर जिसकी अनुमति दोगे, स्वर्ग में भी उसकी अनुमति रहेगी।’’

20) इसके बाद ईसा ने अपने शिष्यों को कड़ी चेतावनी दी कि तुम लोग किसी को भी यह नहीं बताओ कि मैं मसीह हूँ।
_______________________________
*मनन-चिंतन*
येसु हमारे लिए कौन है? यह प्रश्न हम सभी के लिए एक व्यक्तिगत प्रश्न है। येसु के बारे में हमने कई लोगों से सुना होगा- हमारे माता पिता से, पुरोहित-धर्मबहनों से, केटिकिसम शिक्षक से या किसी और से परंतु हमारे लिए वास्तव में येसु कौन है? इसका उत्तर केवल हमारा प्रभु के साथ व्यक्तिगत अनुभव ही दे पायेगा। और यह उत्तर और उस उत्तर की वास्तविकता ही हमें येसु के करीब आने और उसकी आराधना करने के लिए प्रेरित करेगी। आज हम सब के लिए विशेष रूप से सभी ख्रीस्तीयों के लिए यह अनुभव करना जरूरी है कि वास्तव में येसु मेरे लिए कौन है?
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इसायाह 22:19-23

19) मैं तुम को तुम्हारे पद से हटाऊँगा, मैं तुम को तुम्हारे स्थान से निकालूँगा।

20) “मैं उस दिन हिज़कीया के पुत्र एलियाकीम को बुलाऊँगा।

21) मैं उसे तुम्हारा परिधान और तुम्हारा कमरबन्द पहनाऊँगा। मैं उसे तुम्हारा अधिकार प्रदान करूँगा। वह येरुसालेम के निवासियों का तथा यूदा के घराने का पिता हो जायेगा।

22) मैं दाऊद के घराने की कुंजी उसके कन्धे पर रख दूँगा। यदि वह खोलेगा, तो कोई बन्द नहीं कर सकेगा। यदि वह बन्द करेगा, तो कोई नहीं खोल सकेगा।

23) मैं उसे खूँटे की तरह एक ठोस जगह पर गाड़ दूँगा। वह अपने पिता के घर के लिए एक महिमामय सिंहासन बन जायेगा।
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*दूसरा पाठ*
रोमियों 11:33-36

33) कितना अगाध है ईश्वर का वैभव, प्रज्ञा और ज्ञान! कितने दुर्बोध हैं उसके निर्णय! कितने रहस्यमय हैं उसके मार्ग!

34) प्रभु का मन कौन जान सका? उसका परामर्शदाता कौन हुआ?

35) किसने ईश्वर को कभी कुछ दिया है जो वह बदले में कुछ पाने का दावा कर सके?

36) ईश्वर सब कुछ का मूल कारण, प्रेरणा-स्रोत तथा लक्ष्य है - उसी को अनन्त काल तक महिमा! आमेन!
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सन्त मत्ती 16:13-20

13) ईसा ने कैसरिया फि़लिपी प्रदेश पहुँच कर अपने शिष्यों से पूछा, ’’मानव पुत्र कौन है, इस विषय में लोग क्या कहते हैं?’’

14) उन्होंने उत्तर दिया, ’’कुछ लोग कहते हैं- योहन बपतिस्ता; कुछ कहते हैं- एलियस; और कुछ लोग कहते हैं- येरेमियस अथवा नबियों में से कोई’’।

15) ईस पर ईसा ने कहा, ’’और तुम क्सा कहते हो कि मैं कौन हूँ?

16) सिमोन पुत्रुस ने उत्तर दिया, ’’आप मसीह हैं, आप जीवन्त ईश्वर के पुत्र हैं’’।

17) इस पर ईसा ने उस से कहा, ’’सिमोन, योनस के पुत्र, तुम धन्य हो, क्योंकि किसी निरे मनुष्य ने नहीं, बल्कि मेरे स्वर्गिक पिता ने तुम पर यह प्रकट किया है।

18) मैं तुम से कहता हूँ कि तुम पेत्रुस अर्थात् चट्टान हो और इस चट्टान पर मैं अपनी कलीसिया बनाऊँगा और अधोलोक के फाटक इसके सामने टिक नहीं पायेंगे।

19) मैं तुम्हें स्वर्गराज्य की कुंजिया प्रदान करूँगा। तुम पृथ्वी पर जिसका निषेध करोगे, स्वर्ग में भी उसका निषेध रहेगा और पृथ्वी पर जिसकी अनुमति दोगे, स्वर्ग में भी उसकी अनुमति रहेगी।’’

20) इसके बाद ईसा ने अपने शिष्यों को कड़ी चेतावनी दी कि तुम लोग किसी को भी यह नहीं बताओ कि मैं मसीह हूँ।
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येसु हमारे लिए कौन है? यह प्रश्न हम सभी के लिए एक व्यक्तिगत प्रश्न है। येसु के बारे में हमने कई लोगों से सुना होगा- हमारे माता पिता से, पुरोहित-धर्मबहनों से, केटिकिसम शिक्षक से या किसी और से परंतु हमारे लिए वास्तव में येसु कौन है? इसका उत्तर केवल हमारा प्रभु के साथ व्यक्तिगत अनुभव ही दे पायेगा। और यह उत्तर और उस उत्तर की वास्तविकता ही हमें येसु के करीब आने और उसकी आराधना करने के लिए प्रेरित करेगी। आज हम सब के लिए विशेष रूप से सभी ख्रीस्तीयों के लिए यह अनुभव करना जरूरी है कि वास्तव में येसु मेरे लिए कौन है?
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