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इतवार, 24 दिसंबर, 2023 आगमन का चौथा इतवार

 

इतवार, 24 दिसंबर, 2023

आगमन का चौथा इतवार





📒 पहला पाठ: समुएल का दुसरा ग्रन्थ 7:1-5.8b-12.14a.16


1) जब दाऊद अपने महल में रहने लगा और प्रभु ने उसे उसके चारों ओर के सब शत्रुओं से छुड़ा दिया,

2) तो राजा ने नबीनातान से कहा, ‘‘देखिए, मैं तो देवदार के महल में रहता हूँ, किन्तु ईश्वर की मंजूषा तम्बू में रखी रहती है।’’

3) नातान ने राजा को यह उत्तर दिया, ‘‘आप जो करना चाहते हैं, कीजिए। प्रभु आपका साथ देगा।’’

4) उसी रात प्रभु की वाणी नातान को यह कहते हुए सुनाई पड़ी,

5) ‘‘मेरे सेवक दाऊद के पास जाकर कहो - प्रभु यह कहता है: क्या तुम मेरे लिए मन्दिर बनवाना चाहते हो?

तुम भेड़ें चराया करते थे और मैंने तुम्हें चरागाह से बुला कर अपनी प्रजा इस्राएल का शासक बनाया।

9) मैंने तुम्हारे सब कार्यों में तुम्हारा साथ दिया और तुम्हारे सामने तुम्हारे सब शत्रुओं का सर्वनाश कर दिया है। मैं तुम्हें संसार के सब से महान् पुरुषों-जैसी ख्याति प्रदान करूँगा।

10) मैं अपनी प्रजा इस्राएल के लिए भूमि का प्रबन्ध करूँगा और उसे बसाऊँगा। वह वहाँ सुरक्षित रहेगी। कुकर्मी उस पर अत्याचार नहीं कर पायेंगे। ऐसा पहले हुआ करता था,

11) जब मैंने अपनी प्रजा इस्राएल का शासन करने के लिए न्यायकर्ताओं को नियुक्त किया था। मैं उसे उसके सब शत्रुओं से छुड़ाऊँगा। प्रभु तुम्हारा वंश सुरक्षित रखेगा।

12) जब तुम्हारे दिन पूरे हो जायेंगे और तुम अपने पूर्वजों के साथ विश्राम करोगे, तो मैं तुम्हारे पुत्र को तुम्हारा उत्तराधिकारी बनाऊँगा और उसका राज्य बनाये रखूँगा।

14) मैं उसका पिता होऊँगा, और वह मेरा पुत्र होगा।

16) इस तरह तुम्हारा वंश और तुम्हारा राज्य मेरे सामने बना रहेगा और उसका सिंहासन अनन्त काल तक सुदृढ़ रहेगा।’’



📕 दूसरा पाठ : रोमियों के नाम सन्त पौलुस का पत्र 16:25-27



25 (25-26) सभी राष्ट्र विश्वास की अधीनता स्वीकार करें - उसी उद्देश्य से शाश्वत ईश्वर ने चाहा कि शताब्दियों से गुप्त रखा हुआ रहस्य प्रकट किया जाये और उसने आदेश दिया कि वह रहस्य नबियों के लेखों द्वारा सबों को बता दिया जाये। उसके अनुसार मैं ईसा मसीह का सुसमाचार में सुदृढ़ बना सकता है।

27) उसी एकमात्र सर्वज्ञ ईश्वर की, अनन्त काल तक, ईसा मसीह द्वारा महिमा हो! आमेन!



📙 सुसमाचार : सन्त लूकस 1:26-38



26) छठे महीने स्वर्गदूत गब्रिएल, ईश्वर की ओर से, गलीलिया के नाजरेत नामक नगर में एक कुँवारी के पास भेजा गया,

27) जिसकी मँगनी दाऊद के घराने के यूसुफ नामक पुरुष से हुई थी, और उस कुँवारी का नाम था मरियम।

29) वह इन शब्दों से घबरा गयी और मन में सोचती रही कि इस प्रणाम का अभिप्राय क्या है।

30) तब स्वर्गदूत ने उस से कहा, ’’मरियम! डरिए नहीं। आप को ईश्वर की कृपा प्राप्त है।

31) देखिए, आप गर्भवती होंगी, पुत्र प्रसव करेंगी और उनका नाम ईसा रखेंगी।

32) वे महान् होंगे और सर्वोच्च प्रभु के पुत्र कहलायेंगे। प्रभु-ईश्वर उन्हें उनके पिता दाऊद का सिंहासन प्रदान करेगा,

33) वे याकूब के घराने पर सदा-सर्वदा राज्य करेंगे और उनके राज्य का अन्त नहीं होगा।’’

34) पर मरियम ने स्वर्गदूत से कहा, ’’यह कैसे हो सकता है? मेरा तो पुरुष से संसर्ग नहीं है।’’

35) स्वर्गदूत ने उत्तर दिया, ’’पवित्र आत्मा आप पर उतरेगा और सर्वोच्च प्रभु की शक्ति की छाया आप पर पड़ेगी। इसलिए जो आप से उत्पन्न होंगे, वे पवित्र होंगे और ईश्वर के पुत्र कहलायेंगे।

36) देखिए, बुढ़ापे में आपकी कुटुम्बिनी एलीज़बेथ के भी पुत्र होने वाला है। अब उसका, जो बाँझ कहलाती थी, छठा महीना हो रहा है;

37) क्योंकि ईश्वर के लिए कुछ भी असम्भव नहीं है।’’

38) मरियम ने कहा, ’’देखिए, मैं प्रभु की दासी हूँ। आपका कथन मुझ में पूरा हो जाये।’’ और स्वर्गदूत उसके पास से चला गया।


📚 मनन-चिंतन


आज का सुसमाचार मरियम के सामने स्वर्गदूत के प्रकट होने की घोषणा है कि प्रभु आपके साथ है। मरियम स्वर्गदूत के संदेश से बहुत परेशान थी। मरियम द्वारा अनुभव किए गए भ्रम या भय के बावजूद, उसने तुरंत अपना दिल देवदूत के सामने खोल दिया। अत्यधिक असामान्य और अप्रत्याशित परिस्थितियों के बावजूद, मरियम ने देवदूत पर भरोसा किया और उस पर विश्वास किया। मरियम एक बहुत ही सरल महिला और एक साधारण महिला थी। हालाँकि, वह एक खुले और इच्छुक दिल और दिमाग वाली महिला थीं। स्पष्टतः, मरियम ईश्वर के बहुत करीब थी। आज हम मरियम की ओर रुख कर सकते हैं और उनसे हमारे लिए मध्यस्थता करने, हमारे लिए प्रार्थना करने और इस यात्रा में हमारे साथ चलने के लिए कह सकते हैं। मरियम, ईश्वर की माँ, हमारे लिए प्रार्थना करें!





📚 REFLECTION

The Gospel today is the appearance of the angel to Mary announcing that the Lord was with her. Luke writes that Mary was deeply troubled by the angel’s message. Despite the confusion or fear Mary experienced, she immediately opened her heart to the angel. Mary trusted and believed the angel, despite the highly unusual and unexpected circumstances. Mary was a very young woman and a simple woman. However, she was a woman with an open and willing heart and mind. Clearly, Mary was a woman very close to God. Mary has been down this path. Today may we turn to Mary and ask her to intercede for us, to pray for us and to walk with us on this journey. Mary, Mother of God, pray for us!




📚 मनन-चिंतन -2


आज का सुसमाचार मसीह के आगमन का उद्घोष प्रस्तुत करता है। मरियम की सहमति पर, वचन का देहधारण संभव हुआ। मसीह के दुनिया में आगमन के द्वारा मानवजाति को बचाने के लिए ईश्वर की शानदार योजना मरियम के ’फियाट’ के साथ संभव हुआ। मरियम के “हाँ” कहने पर ही सबसे बड़ा चमत्कार संभव हो पाया – ईश्वर स्वर्ग से हमारी दुनिया में उतर कर आये। मरियम के ’हाँ’ को उनके जीवन में साकार किया गया जब उन्होंने ईश्वर के अनुग्रह के साथ काम किया। इसमें कोई संदेह नहीं है कि प्रभु हमारे हित की बहुत सी योजनाएं बनाते हैं जो हमारे सहयोग के साथ ही वे पूरा करना चाहते हैं। उन योजनाओं को साकार करने के लिए वे हमारी सहमति और सहयोग की प्रतीक्षा करते हैं। प्रकाशना 3:20 में हम पढ़ते हैं, “मैं द्वार के सामने खड़ा हो कर खटखटाता हूँ। यदि कोई मेरी वाणी सुन कर द्वार खोलेगा, तो मैं उसके यहाँ आ कर उसके साथ भोजन करूँगा और वह मेरे साथ।" बहुत बार हमारी इच्छाएँ ईश्वर की इच्छा से मेल नहीं खातीं। वे हमें विपरीत दिशाओं में खींच सकती हैं। ऐसी स्थितियों में हमें ईश्वर से प्रार्थना करनी पड़ सकती है कि वे हमें एक ऐसा दिल दें जो उनकी इच्छा को समझ सके और स्वीकार कर सके। प्रभु कहते हैं, “मैं तुम लोगों को एक नया हृदय दूँगा और तुम में एक नया आत्मा रख दूँगा। मैं तुम्हारे शरीर से पत्थर का हृदय निाकल कर तुम लोगों को रक्त-मांस का हृदय प्रदान करूँगा।" (एज़ेकिएल 36:26)।



📚 REFLECTION


Today’s Gospel presents the annunciation of the coming of Christ. At the consent of Mary, Jesus was conceived in her womb. God’s glorious plan to save humanity by the coming of Christ into the world was realised at the ‘fiat’ of Mary. Mary said YES to God and the greatest miracle was possible – God descending into our world. Mary’s yes was actualised in her life when she co-operated with the Grace of God working in her. No doubt, God has great plans to be carried out through us, but he awaits our consent and co-operation for the realisation of those plans. In Rev 3:20, we read, “Listen! I am standing at the door, knocking; if you hear my voice and open the door, I will come in to you and eat with you, and you with me.” Very often our desires do not match with the will of God. They may pull us in opposite directions. In such situations we may have to pray to God to give us a heart that can understand and accept his will. The Lord says, “A new heart I will give you, and a new spirit I will put within you; and I will remove from your body the heart of stone and give you a heart of flesh.” (Ezek 36:26).



मनन-चिंतन - 3


इस दुनिया में रहते समय हम सभी जाने-अनजाने में किसी न किसी व्यक्ति, वस्तु या घटना की प्रतीक्षा में सदा रहते हैं। यह प्रतीक्षा हम लोगों को जीवन में उत्साह के साथ-साथ आगे बढने के लिए प्रेरणादायक होती है। उदाहरण के लिए - हमारे अधिकांश बच्चे स्कूल में छुट्टी की प्रतीक्षा में रहते हैं। घर में जो महिलाएँ नियमित तौर पर टीवी में सीरियल देखती रहती हैं वे हर हफ्ते इस इंतज़ार में रहती हैं कि अगले हफ्ते सीरियल में क्या होगा। पुरुष-वर्ग इस ताक में हैं कि आगामी पार्टी कब होगी। ठीक इस प्रकार लोग किसी न किसी कार्य की प्रतीक्षा में रहते हैं।

हम आगमन काल में हैं और प्रभु येसु के जन्म-दिन के करीब आ चुके हैं। इसलिए हमें और गंभीरता से मनन-चिंतन करना चाहिए कि हमें बालक येसु के जन्म-दिन मनाने के लिए और क्या-क्या तैयारी करनी चाहिए और उनको उपहार के रुप में क्या देना चाहिए? जन्म-दिन मनाना हमारे लिए कुछ नयी बात नहीं है। हम सभी हमारा और हमारे साथ जुडे हुए सब लोगों का जन्म-दिन हर साल बराबर मनाते ही हैं। जब भी हम किसी का जन्मदिन मनाते हैं तो हम उनको उपहार खरीद के देते हैं। हम यह सुनिश्चित करते है कि जो उपहार उसे पसंद वहीं दिया जाये। ठीक वैसे ही येसु के जन्म-दिन मनाने की तैयारी में लगे रहकर हमारे लिए यह पता करना उचित होगा कि आखिर येसु के लिए मैं क्या दूँ? येसु का मनपंसद उपहार क्या है?

धर्मग्रन्थ के आधार पर देखा जाये तो यह स्पष्ट है कि येसु का मनपसंद उपहार हमारी आत्मा है। हॉ वे हमारी आत्मा के चरवाहा तथा रक्षक हैं। (1पेत्रुस 2:25) येसु ने लोगों से कहा कि आत्मा को जोखिम में डाल कर कभी भी जीना नहीं चाहिए -’’मनुष्य को इस से क्या लाभ यदि वह सारा संसार तो प्राप्त करले, लेकिन अपना जीवन ही गॅवा दे? अपने जीवन के बदले मनुष्य दे ही क्या सकता है?’’ (मारकुस 8:36-37)

येसु ने सारी मानवजाति की आत्माओं को बचाने का जो कार्य आरंभ किया, उस कार्य को उन्होंने प्रेरितों को सौंप दिया और प्रेरितों ने इस कार्य को गंभीरता से लेते हुए दुनिया के कोने-कोने में जा कर प्रचार किया और येसु के आध्यात्मिक सान्निध्य में वह कार्य आज भी जारी है।

प्रभु येसु हर हाल में हमारे जीवन में आकर अपने पवित्र सान्निध्य के द्वारा हमें पवित्र करते हुए हमारी आत्माओं को बचाना चाहते हैं। प्रकाशना ग्रन्थ में हम पढते हैं- मैं द्वार के सामने खड़ा हो कर खटखटाता हॅू। तो क्रिस्मस एक ऐसा अवसर है जब बालक येसु हम सभी के दिलों में आकर जन्म लेना चाहते हैं; चाहे हम पापी क्यों न हो, चाहे हम गरीब, अनपढ, नगण्य, तुच्छ क्यों न हो। याद रखें कि येसु के जन्म के अवसर पर चरवाहों को ही इस शुभ संदेश दिया गया था; चरणी में जानवरों के बीच में ही येसु का जन्म हुआ। इसलिए हम यह कह कर पीछे नहीं हट सकते हैं कि हम इस के काबिल नहीं। प्रभु का ये वचन इस चिंतन को और भी स्पष्ट करता है कि ”मैं धर्मियों को नहीं, पापियों को बुलाने आया हॅू।” (मत्ती 9:13)

एक समय संत पेत्रुस और संत पौलुस भी हमारे समान पापी थे। पेत्रुस ने येसु के चरणों में गिर कर कहा - प्रभु मेरे पास से चले जाइए। मैं पापी मनुष्य हॅू। (लूकस 5:8) और अपने बारे में पौलुस कहते हैं - येसु मसीह पापियों को बचाने के लिए संसार में आये, और उन में सर्व प्रथम मैं हॅू। (1तिमथी 1:15) इन दोनों ने बाद में येसु मसीह को उन के जीवन में जन्म लेने दिया। पेत्रुस कहते हैं कि - मेरे पास न तो चॉदी है और न सोना; लेकिन मेरे पास येसु है। (प्रेरित-चरित 3:6) इस प्रकार संत पौलुस कहते हैं कि अब मैं जीवित नहीं रहा, बल्कि मसीह मुझमें जीवित हैं। (गलाति 2:20) इसलिए हमारे पास अभी कोई भी बहाना नहीं रहा। हमारे जीवन की अवस्था जो कुछ भी हो, चरणी में जन्म लेने वाले येसु हमारे पाप भरे दिल में जन्म लेने के लिए सदा तैयार है।

हमें कभी भी यह न सोचना चाहिए कि हमारे जीवन को बदलना असंभव है। ईश्वर के लिए कुछ भी असंभव नहीं है। (लूकस 1:37) ”....क्या मेरा हाथ इतना छोटा हो गया है कि वह तुम्हारा उद्वार करने में असमर्थ है? क्या मेरे पास इतना सामर्थ्य नहीं कि मैं तुम को छुड़ा सकता? देखो! मैं धमकी दे कर समुद्र सुखाता हॅू। मैं नदियों को मरुभूमि बना देता हॅू...।’’ (इसायाह 50:2) हॉ, अगर ईश्वर चाहे तो कुवॉरी भी गर्भवती हो सकती है।

आइए हम भी चरवाहों एवं ज्योतिषियों के समान अपने पास जो कुछ भी है येसु के चरणों में अर्पित करें; माता मरियम के समान हम भी कहें ”देखिए, मैं प्रभु की दासी हॅू। तेरा कथन मुझमें पूरा हो जाये।” (लूकस 1:38); हमारी ”पॉच रोटियों और दो मछलियों को” उनके हाथों में दें; विशेष रूप से हमारी पापमय अवस्था को येसु को दें और कहें कि येसु हम अपने आपको पूर्ण रूप में तुझे समर्पित करते हैं।

याद रखें कि प्रभु के कहने पर अगर हम उन को हमारे दिल में जगह देगें तो बदले में वह हमें सबसे बडा उपहार जो अक्षय, अदूषित तथा अविनाशी है (1पेत्रुस 1:4) प्रदान करेंगे। वह उपहार है अनंत जीवन।


  ✍Biniush Topno

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Praise the Lord!

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