इतवार, 24 सितंबर, 2023
वर्ष का पच्चीसवाँ सामान्य सप्ताह
📒 पहला पाठ : इसायाह का ग्रन्थ 55:6-9
6) “जब तक प्रभु मिल सकता है, तब तक उसके पास चली जा। जब तक वह निकट है, तब तक उसकी दुहाई देती रह।
7) पापी अपना मार्ग छोड़ दे और दुष्ट अपने बुरे विचार त्याग दे। वह प्रभु के पास लौट आये और वह उस पर दया करेगा; क्योंकि हमारा ईश्वर दयासागर है।
8) प्रभु यह कहता है- तुम लोगों के विचार मेरे विचार नहीं हैं और मेरे मार्ग तुम लोगों के मार्ग नहीं हैं।
9) जिस तरह आकश पृथ्वी के ऊपर बहुत ऊँचा है, उसी तरह मेरे मार्ग तुम्हारे मार्गों से और मेरे विचार तुम्हारे विचारों से ऊँचे हैं।
दूसरा पाठ : फ़िलिप्पियों के नाम पत्र 1:20c,24,27a
20) मसीह मुझ में महिमान्वित होंगे।
24) किन्तु शरीर में मेरा विद्यमान रहना आप लोगों के लिए अधिक हितकर है।
27) आप लोग एक बात का ध्यान रखें- आपका आचरण मसीह के सुसमाचार के योग्य हो।
📙 सुसमाचार : सन्त मत्ती 20: 1-16a
1) ’’स्वर्ग का राज्य उस भूमिधर के सदृश है, जो अपनी दाखबारी में मज़दूरों को लगाने के लिए बहुत सबेरे घर से निकला।
2) उसने मज़दूरों के साथ एक दीनार का रोज़ाना तय किया और उन्हें अपनी दाखबारी भेजा।
3) लगभग पहले पहर वह बाहर निकला और उसने दूसरों को चैक में बेकार खड़ा देख कर
4) कहा, ’तुम लोग भी मेरी दाखबारी जाओ, मैं तुम्हें उचित मज़दूरी दे दूँगा’ और वे वहाँ गये।
5) लगभग दूसरे और तीसरे पहर भी उसने बाहर निकल कर ऐसा ही किया।
6) वह एक घण्टा दिन रहे फिर बाहर निकला और वहाँ दूसरों को खड़ा देख कर उन से बोला, ’तुम लोग यहाँ दिन भर क्यों बेकार खड़े हो’
7) उन्होंने उत्तर दिया, ’इसलिए कि किसी ने हमें मज़दूरी में नहीं लगाया’ उसने उन से कहा, ’तुम लोग भी मेरी दाखबारी जाओ।
8) ’’सन्ध्या होने पर दाखबारी के मालिक ने अपने कारिन्दों से कहा, ’मज़दूरों को बुलाओ। बाद में आने वालों से ले कर पहले आने वालों तक, सब को मज़दूरी दे दो’।
9) जब वे मज़दूर आये, जो एक घण्टा दिन रहे काम पर लगाये गये थे, तो उन्हें एक एक दीनार मिला।
10) जब पहले मज़दूर आये, तो वे समझ रहे थे कि हमें अधिक मिलेगा; लेकिन उन्हें भी एक-एक दीनार ही मिला।
11) उसे पाकर वे यह कहते हुए भूमिधर के विरुद्ध भुनभुनाते थे,
12) इन पिछले मज़दूरों ने केवल घण्टे भर काम किया। तब भी आपने इन्हें हमारे बराबर बना दिया, जो दिन भर कठोर परिश्रम करते और धूप सहते रहे।’
13) उसने उन में से एक को यह कहते हुए उत्तर दिया, ’भई! मैं तुम्हारे साथ अन्याय नहीं कर रहा हूँ। क्या तुमने मेरे साथ एक दीनार नहीं तय किया था?
14) अपनी मजदूरी लो और जाओ। मैं इस पिछले मजदूर को भी तुम्हारे जितना देना चाहता हूँ।
15) क्या मैं अपनी इच्छा के अनुसार अपनी सम्पत्ति का उपयोग नहीं कर सकता? तुम मेरी उदारता पर क्यों जलते हो?
16) इस प्रकार जो पिछले हैं, अगले हो जायेंगे।’’
📚 मनन-चिंतन
दाखबारी में मजदूरों का दृष्टान्त मुख्यतः ईश्वर की उदारता पर प्रकाश डालता है। ईश्वर न्यायी और दयालु है। ईश्वर का न्याय दयालु न्याय है। प्रभु ईश्वर किसी को उसके न्यायसंगत हक से वंचित नहीं करते हैं। यही उनके न्याय का प्रमाण है। परन्तु अपनी दया से, वे बहुतों को उनके वास्तविक योग्यता से कहीं अधिक देते हैं। दृष्टान्त में, हम देखते हैं कि स्वामी किसी के साथ अन्याय नहीं करता। पहले से काम करने वाले सामान्य दैनिक वेतन के लिए सहमत हो गए थे। यहाँ दो बातें स्पष्ट हैं। ज़मींदार ने किसी भी मज़दूर के साथ बहस कर उसे सामान्य दैनिक मज़दूरी से कम मज़दूरी पर काम करने के लिए मजबूर नहीं किया। दूसरी बात यह है कि जो सब से पहले आये थे, वे मजदूर सामान्य दिहाड़ी पर काम करने को राजी हो गए थे। उस समय उन्होंने अधिक वेतन की मांग नहीं की थी। जिस पर सहमति बनी थी और जो सामान्य था, उन्हें दे दिया गया है। इसलिए उनके साथ कोई अन्याय नहीं हुआ है। यह सच है कि अन्य मजदूरों पर स्वामी ने दया दिखाई। उस स्वामी की तरह प्रभु ईश्वर हमारे साथ ऐसे ही करते हैं। वे किसी के साथ अन्याय नहीं करते हैं; लेकिन किसी-किसी पर दया तो अवश्य दिखाते हैं। इब्रानियों के नाम पत्र में हम पढ़ते हैं, “ईश्वर अन्याय नहीं करता। आप लोगों ने उसके प्रेम से प्रेरित हो कर जो कष्ट उठाया, सन्तों की सेवा की और अब भी कर रहे हैं, ईश्वर वह सब नहीं भुला सकता।" (इब्रानियों 6:10)। विधि-विवरण 32:4 कहता है, "ईश्वर सत्यप्रतिज्ञ है, उसमें अन्याय नहीं, वह न्यायी और निष्कपट है।" शोकगीत 3:22-23 में हम पढ़ते हैं, “प्रभु की कृपा बनी हुई है, उसकी अनुकम्पा समाप्त नहीं हुई है - वह हर सबेरे नयी हो जाती है। उसकी सत्यप्रतिज्ञता अपूर्व है”। संत पेत्रुस कहते हैं, “धन्य है ईश्वर, हमारे प्रभु ईसा मसीह का पिता! मृतकों में से ईसा मसीह के पुनरुत्थान द्वारा उसने अपनी महती दया से हमें जीवन्त आशा से परिपूर्ण नवजीवन प्रदान किया।” (1 पेत्रुस 1:3) हम अपनी ईर्ष्या में, कभी-कभी उन लोगों से ईर्ष्या करते हैं जो हम से अधिक ईश्वर की दया का अनुभव करते हैं। आइए हम उन अवसरों के लिए प्रभु की क्षमा की याचना करें।
✍ - Br. Biniush Topno
📚 REFLECTION
The parable of the labourers in the vineyard is primarily about the generosity of God. God is just and merciful. God’s justice is merciful justice. God does not deny anyone what he deserves. That is the proof of his justice. But in his mercy, he gives to many much more than what they actually deserve. In the parable, we see that the master is not unjust to anyone. Those who worked from the first had agreed for the usual daily wage. Two things are clear. The landowner did not argue with the labourers to force them to work for a wage less than the usual daily wage. Secondly, when they were hired, the labourers who came first had agreed to work for the usual daily wage. They did not demand a higher wage. What was agree upon and what was usual is given to them. Hence, there is no injustice done to them. To all other labourers the landowner showed different degrees of mercy. In the Letter to the Hebrews we read, “For God is not unjust; he will not overlook your work and the love that you showed for his sake in serving the saints, as you still do” (Heb 6:10). Deut 32:4 says, “A faithful God, without deceit, just and upright is he”. In Lam 3:22-23 we read, “The steadfast love of the Lord never ceases, his mercies never come to an end; they are new every morning; great is your faithfulness”. St. Peter says, “Blessed be the God and Father of our Lord Jesus Christ! By his great mercy he has given us a new birth into a living hope through the resurrection of Jesus Christ from the dead” (1 Pet 1:3). We in our jealousy, are sometimes envious of those who experience greater mercy of God.
✍ -Br. Biniush Topno
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Praise the Lord!
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