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26 जून 2022, इतवार

 

26 जून 2022, इतवार

वर्ष का तेरहवाँ समान्य इतवार



पहला पाठ : 1 राजाओं 19:16,19-21

16) और निमशी के पुत्र येहू को इस्राएल के राजा के रूप में अभिशेक करो। इसके बाद आबेल-महोला के निवासी, शफ़ाट के पुत्र एलीशा का अभिशेक करो, जिससे वह तुम्हारे स्थान में नबी हो।

19) एलियाह वहाँ से चला गया और उसने शाफ़ाट के पुत्र एलीशा के पास पहुँच कर उसे हल जोतते हुए पाया। उसने बारह जोड़ी बैल लगा रखे थे और वह स्वयं बारहवीं जोड़ी चला रहा था। एलियाह ने उसकी बग़ल से गुज़र कर उस पर अपनी चादर डाल दी।

20) एलीशा ने अपने बैल छोड़ कर एलियाह के पीछे दौड़ते हुए कहा, "मुझे पहले अपने माता-पिता का चुम्बन करने दीजिए। तब मैं आपके साथ चलूँगा।"

21) एलियाह ने उत्तर दिया, “जाओ, लौटो। तुम जानते ही हो कि मैंने तुम्होरे साथ क्या किया है।“

दूसरा पाठ : गलातियों 5:1, 13-18

1) मसीह ने स्वतन्त्र बने रहने के लिए ही हमें स्वतन्त्र बनाया, इसलिए आप लोग दृढ़ रहें और फिर दासता के जुए में नहीं जुतें।

13) भाइयो! आप जानते हैं कि आप लोग स्वतन्त्र होने के लिए बुलाये गये हैं। आप सावधान रहें, नहीं तो यह स्वतन्त्रता भोग-विलास का कारण बन जायेगी।

14) आप लोग प्रेम से एक दूसरे की सेवा करें, क्योंकि एक ही आज्ञा में समस्त संहिता निहित है, और वह यह है- अपने पड़ोसी को अपने समान प्यार करो।

15) यदि आप लोग एक दूसरे को काटने और फाड़ डालने की चेष्टा करेंगे, तो सावधान रहें। कहीं ऐसा न हो कि आप एक दूसरे का सर्वनाश करें।

16) मैं यह कहना चाहता हूँ- आप लोग आत्मा की प्रेरणा के अनुसार चलेंगे, तो शरीर की वासनाओं को तृप्त नहीं करेंगे।

17) शरीर तो आत्मा शरीर के विरुद्ध। ये दोनों एक दूसरे के विररोधी हैं। इसलिए आप जो चाहते हैं, वही नहीं कर पाते हैं।

18) यदि आप आत्मा की प्रेरणा के अनुसार चलते है, तो संहिता के अधीन नहीं हैं।

सुसमाचार : लूकस 9:51-62

51) अपने स्वर्गारोहण का समय निकट आने पर ईसा ने येरूसालेम जाने का निश्चय किया

52) और सन्देश देने वालों को अपने आगे भेजा। वे चले गये और उन्होंने ईसा के रहने का प्रबन्ध करने समारियों के एक गाँव में प्रवेश किया।

53) लोगों ने ईसा का स्वागत करने से इनकार किया, क्योंकि वे येरूसालेम जा रहे थे।

54) उनके शिष्य याकूब और योहन यह सुन कर बोल उठे, "प्रभु! आप चाहें, तो हम यह कह दें कि आकाश से आग बरसे और उन्हें भस्म कर दे"।

55) पर ईसा ने मुड़ कर उन्हें डाँटा

56) और वे दूसरी बस्ती चले गये।

57) ईसा अपने शिष्यों के साथ यात्रा कर रहे थे कि रास्ते में ही किसी ने उन से कहा, "आप जहाँ कहीं भी जायेंगे, मैं आपके पीछे-पीछे चलूँगा"।

58) ईसा ने उसे उत्तर दिया, "लोमडि़यों की अपनी माँदें हैं और आकाश के पक्षियों के अपने घोंसले, परन्तु मानव पुत्र के लिए सिर रखने को भी अपनी जगह नहीं है"।

59) उन्होंने किसी दूसरे से कहा, "मेरे पीछे चले आओ"। परन्तु उसने उत्तर दिया, "प्रभु! मुझे पहले अपने पिता को दफ़नाने के लिए जाने दीजिए"।

60) ईसा ने उस से कहा, "मुरदों को अपने मुरदे दफनाने दो। तुम जा कर ईश्वर के राज्य का प्रचार करो।"

61) फिर कोई दूसरा बोला, "प्रभु! मैं आपका अनुसरण करूँगा, परन्तु मुझे अपने घर वालों से विदा लेने दीजिए"।

62) ईसा ने उस से कहा, "हल की मूठ पकड़ने के बाद जो मुड़ कर पीछे देखता है, वह ईश्वर के राज्य के योग्य नहीं"।



📚 मनन-चिंतन




प्रभु कहते है, जो मेरा अनुसरण करना चाहता है वह आत्मत्याग करें और अपना कू्रस उठा कर मेरे पीछे हो ले। प्रभु येसु ख्रीस्त की लोकप्रियता, चमत्कार, चंगाईयों को देखकर बहुत से लोग उनके पीछे हो लेते है। परंतु उनमें से कुछ ही उनका सच्चा अनुसरण कर पाते है। आज के सुसमाचार के द्वारा प्रभु येसु ख्रीस्त उनके पीछे आने से पूर्व कुछ बातों को सामने रखते है। सर्वप्रथम तो वह यह बताना चाहते है कि उनका जीवन फूल के समान आरामदायक ही नहीं परंतु उसमें काँटों के समान कष्ट और परेशानियों से भरा हुआ भी है। दूसरा प्रभु का अनुसरण करने के लिए हमें हमारे लगाव और असक्ताओं से दूर रहने की आवश्यकता है। तीसरा उनका सच्चा अनुसरण वही कर पाता है जो केवल आगे की ओर देखकर बढ़ता चला जाता है। प्रभु का अनुसरण करने के लिए क्या हम तैयार है? आइये हम अपने मन और ह्दय को आज के वचनों पर आधारित करते हुयें प्रभु के सच्चे अनुयायी बनें।



📚 REFLECTION


The Lord says, ‘whoever wants to follow me, must deny himself and take up his cross and follow me.’ Seeing the popularity, miracles, healings of Lord Jesus Christ, many people came to follow him. But only a few of them can truly follow him. Through today's gospel, the Lord Jesus Christ puts forward some things or criteria before following him.

First of all, he wants to tell that his life is not only as comfortable as a flower, but it is also full of troubles and difficulties like thorns. Secondly, to follow the Lord, we need to stay away from our attachments and dissipations. Thirdly, only those can truly follow him who moves forward by always looking ahead. Are we ready to follow the Lord? Let us become true followers of the Lord by basing our mind and heart on today's words.



मनन-चिंतन-2


आज के पाठों में हम बुलाहट के विषय में सुनते हैं। पहले पाठ में प्रभु ईश्वर एलीशा को नबी एलियाह के उत्तराधिकारी के रूप में बुलाते हैं। बुलाहट के चिन्ह स्वरूप नबी एलियाह उसके ऊपर अपनी चादर डाल देते हैं। उस समय एलीशा अपने खेती के काम में व्यस्त था। वह इस दुनिया की कमाई में मस्त था। पर जैसे ही उसे सांसारिक कमाई से भी बडकर आत्मिक कमाई का बुलावा मिलता है वह खत्म हो जाने वाली कमाई को छोडकर आत्मिक धन कमाने एलियाह के पीछे चल देता है जो कि कभी खत्म नहीं होगा। वह अपनी खेती, अपने बैल सब कुछ का त्याग कर देता है। अपने सांसारिक चीजों के त्याग के प्रतीक रूप में उसने अपने हल में जुते बैल को मारा और उसी हल की लकडी से उसे पकाया तब मजदूरों को भोजन कराकर सब कुछ का त्याग करते हुए वह ईश्वर भक्त का अनुयायी बन जाता है।

प्रभु की राहों पर चलने के लिए बहुत कुछ छोडना और बहुत कुछ का त्याग करना पडता है। सुसमाचार में प्रभु येसु कहते हैं - ‘‘लोमडियों की अपनी माँदे है और आकाश के पक्षियों के अपने घौंसले, परन्तु मानव पुत्र के लिए सिर रखने को भी जगह नहीं है”। कोई व्यक्ति जो येसु का अनुयायी तो बनना चाहता था पर जिसे अपने परिवार व रिश्ते नातों से बहुत अधिक लगाव था प्रभु उससे कहते हैं – “मुरदों को अपने मुरदे दफनाने दो तुम जाकर ईश्वर के राज्य का प्रचार करो”। क्या इसका मतलब यह हुआ कि ईश्वर के राज्य में सांसारिक रिश्तों नातों का कोई औचित्य नहीं अथवा कोई महत्व नहीं? हरगिज़ नहीं।

संत मत्ती 10:37 में प्रभु येसु कहते हैं - ‘‘जो अपने पिता या अपनी माता को मुझसे अधिक प्यार करता है वह मेरे योग्य नहीं”। यहाँ पर बात साँसारिक रिश्तों नातों की नहीं परन्तु बात उचित चुनाव की है। ईश्वर और संसार के बीच मैं सबसे पहले किसको चुनता हूँ। ईश्वर और संसार के बीच चयन में मेरी प्राथमिकता किस के लिए है। संसार के लिए या फिर ईश्वर के लिए? वचन कहता है जो मुझसे अधिक दुनिया को और दुनिया के रिश्तों को महत्व देता है वह उसके लायक नहीं है।

प्यारे विश्वासियों हमारा सारा जीवन ईश्वर और संसार के बीच के इसी चयन में बीतता है। हमें जिंदगी के हर पडाव पर, जीवन के हर कदम पर यह चुनाव करना होता है। और इस चुनाव अथवा चयन करने में ईश्वर हमारे साथ कोई जबरदस्ती नहीं करता। संत पौलुस आज के दूसरे पाठ में हमें कहते हैं - ‘‘मसीह ने हमें स्वतंत्र बने रहने के लिए बुलाया है”। परन्तु वे आगे हमें आगाह करते हुए कहते हैं कि हमारी यह स्वतंत्रता हमारे लिए भोग विलास का कारण न बन जाये। याने ईश्वर द्वारा प्रदत इस स्वतंत्रता का दुरूपयोग कर हम अपने आप को सांसारिक भोग विलास के लिए न सौंप दें। संत पौलुस हमसे कहते हैं - ‘‘आप लोग आत्मा की प्रेरणा के अनुसार चलेंगे तो शरीर की वासनाओं को तृप्त नहीं करेंगे”। इस दुनिया के दूषण से मुक्त रहने के लिए आत्मा की प्रेरणा के अनुसार चलना अति आवश्यक है।

तो आईये आज हम ईश्वर से आशिष व कृपा मॉंगें कि हम उनकी कृपा से आत्मा से प्रेरित जीवन जीयें और येसु मसीह के नक्शे कदम पर चलने के लिए हर पग पर ईश्वर को सांसारिक चीजों व सुखों के ऊपर महत्व दें। और हमेशा उन्हें अपने जीवन में प्राथमिकता देते हुए अपने आत्मा द्वारा हमारा संचालन करने दें। आमेन।

 -Br. Biniush Topno


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Praise the Lord!

12 जून 2022, इतवार पवित्र त्रित्व का महापर्व

 *✞ CATHOLIC BIBLE MINISTRY ✞*

 

 12 जून 2022, इतवार

पवित्र त्रित्व का महापर्व




💦पहला पाठ : सूक्ति 8:22-31

22) "आदि में, प्रभु ने अन्य कार्यो से पहले मेरी सृष्टि की है।


23) प्रारम्भ में, पृथ्वी की उत्पत्ति से पहले, अनन्त काल पूर्व में मेरी सृष्टि हुई है।


24) जिस समय मेरा जन्म हुआ था, न तो महासागर था और न उमड़ते जलस्त्रोत थे।


25) मैं पर्वतों की स्थापना से पहले, पहाड़ियों से पहले उत्पन्न हुई थी।


26) जब उसने पृथ्वी, समतल भूमि तथा संसार के मूल-तत्व बनाये, तो मेरा जन्म हो चुका था।


27) जब उसने आकाशमण्डल का निर्माण किया और महासागर के चारों ओर वृत्त खींचा, तो मैं विद्यमान थी।


28) जब उसने बादलों का स्थान निर्धारित किया और समुद्र के स्रोत उमड़ने लगे,


29) जब उसने समुद्र की सीमा निश्चित की, जिससे जल तट का अतिक्रमण न करे- जब उसने पृथ्वी की नींव डाली,


30) उस समय मैं कुशल शिल्पकार की तरह उसके साथ थी। मैं नित्यप्रति उसका मनोरंजन करती और उसके सम्मुख क्रीड़ा करती रही।


31) मैं पृथ्वी पर सर्वत्र क्रीड़ा करती और मनुष्यों के साथ मनोरंजन करती रही।"


💦दूसरा पाठ : रोमियों 5:1-5

1) ईश्वर ने हमारे विश्वास के कारण हमें धार्मिक माना है। हम अपने प्रभु ईसा मसीह द्वारा ईश्वर से मेल बनाये रखें।


2) मसीह ने हमारे लिए उस अनुग्रह का द्वार खोला है, जो हमें प्राप्त हो गया है। हम इस बात पर गौरव करें कि हमें ईश्वर की महिमा के भागी बनने की आशा है।


3) इतना ही नहीं, हम दुःख-तकलीफ पर भी गौरव करें, क्योंकि हम जानते हैं कि दुःख-तकलीफ से धैर्य,


4) धैर्य से दृढ़ता, और दृढ़ता से आशा उत्पन्न होती है।


5) आशा व्यर्थ नहीं होती, क्योंकि ईश्वर ने हमें पवित्र आत्मा प्रदान किया है और उसके द्वारा ही ईश्वर का प्रेम हमारे हृदयों में उमड़ पड़ा है।



💦सुसमाचार : योहन 16:12-15

12) मुझे तुम लोगों से और बहुत कुछ कहना है परन्तु अभी तुम वह नहीं सह सकते।


13) जब वह सत्य का आत्मा आयेगा, तो वह तुम्हें पूर्ण सत्य तक ले जायेगा; क्योंकि वह अपनी ओर से नहीं कहेगा, बल्कि वह जो कुछ सुनेगा, वही कहेगा और तुम्हें आने वाली बातों के विषय में बतायेगा।


14) वह मुझे महिमान्वित करेगा, क्योंकि उसे मेरी ओर से जो मिला है, वह तुम्हें वही बतायेगा।


15) जो कुछ पिता का है, वह मेरा है। इसलिये मैंने कहा कि उसे मेरी ओर से जो मिला है, वह तुम्हें वही बतायेगा।


        


💦 *मनन-चिंतन* 

हम सब ख्रीस्तीय पिता और पुत्र और पवित्र आत्मा के नाम पर सभी कार्य करते है, विशेष रूप से प्रार्थना की शुरुआत और अंत। पिता और पुत्र और पवित्र आत्मा तीन व्यक्ति है परंतु एक ईश्वर है और इसी त्रियेक ईश्वर का पर्व हम आज मनाते है, जिसे पवित्र त्रित्व के महापर्व से जाना जाता है।


मनुष्यों ने हमेशा से ही ईश्वर के बारे में जानने की कोशिश की है। प्रभु येसु और पवित्र आत्मा के द्वारा हमने ईश्वर और उनकी योजनाओं के बारे में कई रहस्य या सिद्धांत को समझा और जाना है परंतु जरूरी नहीं कि हम ईश्वर के हर रहस्य को समझ पाये। उनमें से एक रहस्य पवित्र त्रित्व का है जो हमारे इस क्षणिक दिमाग में कभी भी नहीं समा सकता।


आज के तीनों पाठ आज के पर्व के संदर्भ के अनुसार है। पहला पाठ में हमे शक्तिशाली पिता ईश्वर के विषय में बताया गया है जिसने इस अद्भुत सृष्टि की रचना की और महान चमत्कारों द्वारा इस्राएल को बचाया; वह पिता एक शक्तिशाली ईश्वर है और उसके सिवा कोई और ईश्वर नहीं है।


दूसरे पाठ में पवित्र आत्मा के विषय में बताया गया है। पवित्र आत्मा ईश्वर बाहर नहीं परंतु हमारे भीतर बसने वाला ईश्वर है क्योकि हमारा शरीर पवित्र आत्मा का मंदिर है। जो लोग ईश्वर के आत्मा से संचालित है उनमें ईश्वर के जीवन का संचार है और वह इस संसार से परे रहकर ईश्वर के पुत्र के मनोभाव के अनुसार जीवन बिताता है।


सुसमाचार में हम प्रभु येसु के अंतिम आदेश के बारे में जानते है जहॉं प्रभु येसु अपने शिष्यों से कहते है कि, ’’मुझे स्वर्ग में और पृथ्वी पर पूरा अधिकार मिला है। इसलिए तुम लोग जा कर सब राष्ट्रों को शिष्य बनाओ और उन्हें पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा के नाम पर बपतिस्मा दो।’’ प्रभु येसु जाते जाते पवित्र त्रित्व के नाम को उजागर कर के जाते है।


पवित्र त्रित्व का पर्व हमारे लिए त्रियेक ईश्वर को जानने का और प्रार्थना करने का सुंदर अवसर है परंतु इस रहस्य या सिद्धांत को पूर्ण रूप से समझना हमारे दिमाग के बस की बात नहीं। एक ईश्वर में तीन जन- इस रहस्य को समझाने के लिए कई विद्वानों ने कई उदाहरण देकर समझना चाहा परंतु किसी ने भी एक ठोस रूप से इसकी गहराई को समझा नहीं पाया है।


पवित्र त्रित्व का पर्व एकता का पाठ पढ़ाती है। जिस प्रकार पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा अलग अलग व्यक्ति है परंतु वे एक है। जिस प्रकार प्रभु येसु कहते है मै पिता में हुँ और पिता मुझमें है ठीक उसी प्रकार पवित्र आत्मा भी पिता और पुत्र में हैं और वे पवित्र आत्मा में अर्थात् वे तीनों एक है। आज के पर्व की आशीष द्वारा हम भी ईश्वर में एक बनें रहें जिस प्रकार प्रभु येसु हमारे लिए चाह रखते है, ’’सब के सब एक हो जायें। पिता! जिस तरह तू मुझ में है और मैं तुझ में, उसी तरह वे भी हम में एक हो जायें’’ (योहन 17:21)। आमेन!


✍Br. Biniush Topno

5 जून 2022, इतवार पेंतेकोस्त

 

*✞ CATHOLIC BIBLE MINISTRY ✞*



*05 जून 2022, इतवार*

*पेंतेकोस्त*

💦 *पहला पाठ*
प्रेरित-चरित 2:1-11

1) जब पेंतेकोस्त का दिन आया और सब शिष्य एक स्थान पर इकट्ठे थे,

2) तो अचानक आँधी-जैसी आवाज आकाश से सुनाई पड़ी और सारा घर, जहाँ वे बैठे हुए थे, गूँज उठा।

3) उन्हें एक प्रकार की आग दिखाई पड़ी जो जीभों में विभाजित होकर उन में से हर एक के ऊपर आ कर ठहर गयी।

4) वे सब पवित्र आत्मा से परिपूर्ण हो गये और पवित्र आत्मा द्वारा प्रदत्त वरदान के अनुसार भिन्न-भिन्न भाषाएं बोलने लगे।

5) पृथ्वी भर के सब राष्ट्रों से आये हुए धर्मी यहूदी उस समय येरुसालेम में रहते थे।

6) बहुत-से लोग वह आवाज सुन कर एकत्र हो गये। वे विस्मित थे, क्योंकि हर एक अपनी-अपनी भाषा में शिष्यों को बोेलते सुन रहा था।

7) वे बड़े अचम्भे में पड़ गये और चकित हो कर बोल उठे, ’’क्या ये बोलने वाले सब-के-सब गलीली नहीं है?

8) तो फिर हम में हर एक अपनी-अपनी जन्मभूमि की भाषा कैसे सुन रहा है?

9) पारथी, मेदी और एलामीती; मेसोपोतामिया, यहूदिया और कम्पादुनिया, पोंतुस और एशिया,

10 फ्रुगिया और पप्फुलिया, मिश्र और कुरेने के निकवर्ती लिबिया के निवासी, रोम के यहूदी तथा दीक्षार्थी प्रवासी,

11) क्रेत और अरब के निवासी-हम सब अपनी-अपनी भाषा में इन्हें ईश्वर के महान् कार्यों का बख़ान करते सुन रहे हैं।’’
_______________________________
💦 *दूसरा पाठ*
1 कुरिन्थियों 12:3-7,12-13

4) कृपादान तो नाना प्रकार के होते हैं, किन्तु आत्मा एक ही है।

5) सेवाएँ तो नाना प्रकार की होती हैं, किन्तु प्रभु एक ही हैं।

6) प्रभावशाली कार्य तो नाना प्रकार के होते हैं, किन्तु एक ही ईश्वर द्वारा सबों में सब कार्य सम्पन्न होते हैं।

7) वह प्रत्येक को वरदान देता है, जिससे वह सबों के हित के लिए पवित्र आत्मा को प्रकट करे।

12) मनुष्य का शरीर एक है, यद्यपि उसके बहुत-से अंग होते हैं और सभी अंग, अनेक होते हुए भी, एक ही शरीर बन जाते हैं। मसीह के विषय में भी यही बात है।

13) हम यहूदी हों या यूनानी, दास हों या स्वतन्त्र, हम सब-के-सब एक ही आत्मा का बपतिस्मा ग्रहण कर एक ही शरीर बन गये हैं। हम सबों को एक ही आत्मा का पान कराया गया है।

अथवा

💦 *दूसरा पाठ*
रोमियों 8:8-17

8) जो लोग शरीर की वासनाओं से संचालित हैं, उन पर ईश्वर प्रसन्न नहीं होता।

9) यदि ईश्वर का आत्मा सचमुच आप लोगों में निवास करता है, तो आप शरीर की वासनाओं से नहीं, बल्कि आत्मा से संचालित हैं। जिस मनुष्य में मसीह का आत्मा निवास नहीं करता, वह मसीह का नहीं।

10) यदि मसीह आप में निवास करते हैं, तो पाप के फलस्वरूप शरीर भले ही मर जाये, किन्तु पापमुक्ति के फलस्वरूप आत्मा को जीवन प्राप्त है।

11) जिसने ईसा को मृतकों में से जिलाया, यदि उनका आत्मा आप लोगों में निवास करता है, तो जिसने ईसा मसीह को मृतकों में से जिलाया वह अपने आत्मा द्वारा, जो आप में निवास करता है, आपके नश्वर शरीरों को भी जीवन प्रदान करेगा।

12) इसलिए, भाइयो! शरीर की वासनओं का हम पर कोई अधिकर नहीं। हम उनके अधीन रह कर जीवन नहीं बितायें।

13) यदि आप शरीर की वासनाओं के अधीन रह कर जीवन बितायेंगे, तो अवश्य मर जायेंगे।

14) लेकिन यदि आप आत्मा की प्रेरणा से शरीर की वासनाओें का दमन करेंगे, तो आप को जीवन प्राप्त होगा।

15) जो लोग ईश्वर के आत्मा से संचालित हैं, वे सब ईश्वर के पुत्र हैं- आप लोगों को दासों का मनोभाव नहीं मिला, जिस से प्रेरित हो कर आप फिर डरने लगें। आप लोगों को गोद लिये पुत्रों का मनोभाव मिला, जिस से प्रेरित हो कर हम पुकार कर कहते हैं, "अब्बा, हे पिता!

16) आत्मा स्वयं हमें आश्वासन देता है कि हम सचमुच ईश्वर की सन्तान हैं।

17) यदि हम उसकी सन्तान हैं, तो हम उसकी विरासत के भागी हैं-हम मसीह के साथ ईश्वर की विरासत के भागी हैं। यदि हम उनके साथ दुःख भोगते हैं, तो हम उनके साथ महिमान्वित होंगे।
_______________________________

💦*सुसमाचार*
सन्त योहन 20:19-23

19) उसी दिन, अर्थात सप्ताह के प्रथम दिन, संध्या समय जब शिष्य यहूदियों के भय से द्वार बंद किये एकत्र थे, ईसा उनके बीच आकर खडे हो गये। उन्होंने शिष्यों से कहा, "तुम्हें शांति मिले!"

20) और इसके बाद उन्हें अपने हाथ और अपनी बगल दिखायी। प्रभु को देखकर शिष्य आनन्दित हो उठे। ईसा ने उन से फिर कहा, "तुम्हें शांति मिले!

21) जिस प्रकार पिता ने मुझे भेजा, उसी प्रकार मैं तुम्हें भेजता हूँ।"

22) इन शब्दों के बाद ईसा ने उन पर फूँक कर कहा, "पवित्र आत्मा को ग्रहण करो!

23) तुम जिन लोगों के पाप क्षमा करोगे, वे अपने पापों से मुक्त हो जायेंगे और जिन लोगों के पाप क्षमा नहीं करोगे, वे अपने पापों से बँधे रहेंगे।

✍️ -Br. Biniush Topno

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        *Have a Blessed Day*

04 जून 2022, शनिवार* *पास्का का सातवाँ सप्ताह

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*04 जून 2022, शनिवार*

*पास्का का सातवाँ सप्ताह*

💦*पहला पाठ*
प्रेरित-चरित 28:16-20,30-31

16) जब हम रोम पहुँचे, तो पौलुस को यह अनुमति मिली की वह पहरा देने वाले सैनिक के साथ जहाँ चाहे, रह सकता है।

17) तीन दिन बाद पौलुस ने प्रमुख यहूदियों को अपने पास बुलाया और उनके एकत्र हो जाने पर उन से कहा, भाइयो! मैंने न तो राष्ट्र के विरुद्ध कोई अपराध किया और न पूर्वजों की प्रथाओं के विरुद्ध, फिर भी मुझे बन्दी बनाया और येरुसालेम में रोमियों के हवाले कर दिया गया है।

18) वे सुनवाई के बाद मुझे रिहा करना चाहते थे, क्योंकि मैंने प्राणदण्ड के योग्य कोई अपराध नहीं किया था।

19) किंतु जब यहूदी इसका विरोध करने लगे, तो मुझे कैसर से अपील करनी पड़ी, यद्यपि मुझे अपने राष्ट्र पर कोई अभियोग नहीं लगाना था।

20) इसलिए मैंने आप लोगों से मिलने और बातें करने का निवेदन किया, क्योंकि इस्राएल की आशा के कारण मैं जंजीर पहने हूँ।’’

30) पौलुस पूरे दो वर्षों तक अपने किराये के मकान में रहा। वह सभी मिलने वालों का स्वागत करता था।

31) और आत्मविश्वास के साथ निर्विघ्न रूप से ईश्वर के राज्य का सन्देश सुनाता और प्रभु ईसा मसीह के विषय में शिक्षा देता था।
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💦*सुसमाचार*
सन्त योहन 21:20-25

20) पेत्रुस ने मुड़ कर उस शिष्य को पीछे पीछे आते देखा जिसे ईसा प्यार करते थे और जिसने व्यारी के समय उनकी छाती पर झुक कर पूछा था, ’प्रभु! वह कौन है, जो आप को पकड़वायेगा?’

21) पेत्रुस ने उसे देखकर ईसा से पूछा, ’’प्रभ! इनका क्या होगा?’’

22) ईसा ने उसे उत्तर दिया, ’’यदि मैं चाहता हूँ कि यह मेरे आने तक रह जाये तो इस से तुम्हें क्या? तुम मेरा अनुसरण करो।’’

23) इन शब्दों के कारण भाइयों में यह अफ़वाह फैल गयी कि वह शिष्य नहीं मरेगा। परन्तु ईसा ने यह नहीं कहा कि यह नहीं मरेगा; बल्कि यह कि ’यदि मैं चाहता हूँ कि यह मेरे आने तक रह जाये, तो इस से तुम्हें क्या?’

24) यह वही शिष्य है, जो इन बातों का साक्ष्य देता है और जिसने यह लिखा है। हम जानते हैं कि उसका साक्ष्य सत्य है।

25) ईसा ने और भी बहुत से कार्य किये। यदि एक-एक कर उनका वर्णन किया जाता तो मैं समझता हूँ कि जो पुस्तकें लिखी जाती, वे संसार भर में भी नहीं समा पातीं।


💦 *मनन-चिंतन*
आज के सुसमाचार के अंश में हम संत योहन के सुसमाचार के अंतिम पदों को पाते है जहॉं पर येसु संत योहन के विषय में पेत्रुस को बताते है तथा साथ ही साथ हमें यह पता चलता है कि संत योहन ने अपने सुसमाचार में प्रभु के कार्यो का विवरण तो दिया है परंतु सभी कार्यो का विवरण नहीं दिया क्योंकि वह इतने अधिक है कि इस पुस्तक में समा नहीं पाती।

संत योहन का सुसमाचार चारों सुसमाचार के बीच में अलग पहचान बना के रखता है। संत योहन अपने सुसमाचार में गहरी से गहरी रहस्यों को हमारे समक्ष प्रकट करते है।

प्रभु येसु संत योहन के विषय में कहते है, ‘‘यदि मैं चाहता हॅूं कि यह मेरे आने तक रह जाये तो इससे तुम्हें क्या?’’ आगे चलकर इतिहास हमें बताता है कि उन बारह शिष्यों में सभी को शहादत मिली सिवाय एक शिष्य के और वे शिष्य है संत योहन।

प्रभु के जीवन को और उनके कार्यो को हमारे समक्ष रखने में संत योहन का बहुत बड़ा योगदान रहा है। संत योहन प्रभु येसु के प्रिय शिष्य थे और उन्होने प्रभु येसु के अद्भुत कार्यों, चमत्कारों, घटनाओं का प्रत्यक्ष दर्शन किया है और वहीं चीज़ों को संत योहन साक्ष्य के रूप में हमारे सामने प्रकट करते है।

आईये हम प्रार्थना करें कि संत योहन के सुसमाचार द्वारा बहुतो का उद्धार हो और बहुत से लोग विश्वासी बनें। आमेन!

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💦*मनन-चिंतन - 2*
आज का सुसमचार संत योहन के अनुसार सुसमाचार का अंतिम भाग है। संत योहन लिखते हैं कि जो कार्य प्रभु येसु ने किए उन सबको लिखा जाए तो इतनी पुस्तकें लिख जातीं कि इस दुनिया में भी नहीं समातीं। संत योहन ने सुसमचार की रचना साक्ष्य के रूप में की है। जैसे उन्होंने प्रभु येसु को अनुभव किया अपने जीवन में और दूसरों के जीवन में, उस अनुभव को साक्ष्य के रूप में सुसमाचार में वर्णित किया है।

ईश्वर सदा हमारे जीवन में चमत्कार करते रहते हैं, वे सदा हमारे जीवन में सक्रिय हैं। वह अनेक तरह से हमारे प्रति अपने प्रेम को प्रकट करते हैं। वह अनेक तरह से दूसरों के जीवन को छू लेते हैं। हम अपने मन में झाँकें और खुद से पूछें, ‘क्या मैंने अपने जीवन में ईश्वर के चमत्कारों को अनुभव किया है? क्या मैं अपने जीवन द्वारा ईश्वर के प्रेम का साक्ष्य देता हूँ? क्या मैं अपने जीवन में और दूसरों के जीवन में ईश्वर के चमत्कारों के साक्ष्य को अपने सुसमाचार के रूप में लिख सकता हूँ? संत योहन के सुसमाचार का अंत एक अंत नहीं बल्कि एक नहीं शुरुआत है - हम सब के अपने-अपने सुसमाचार की शुरुआत। आमेन।

✍ - Br. Biniush Topno

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        *Have a Blessed Day*