*✞ CATHOLIC BIBLE MINISTRY✞*
*04 जून 2022, शनिवार*
*पास्का का सातवाँ सप्ताह*
💦*पहला पाठ*
प्रेरित-चरित 28:16-20,30-31
16) जब हम रोम पहुँचे, तो पौलुस को यह अनुमति मिली की वह पहरा देने वाले सैनिक के साथ जहाँ चाहे, रह सकता है।
17) तीन दिन बाद पौलुस ने प्रमुख यहूदियों को अपने पास बुलाया और उनके एकत्र हो जाने पर उन से कहा, भाइयो! मैंने न तो राष्ट्र के विरुद्ध कोई अपराध किया और न पूर्वजों की प्रथाओं के विरुद्ध, फिर भी मुझे बन्दी बनाया और येरुसालेम में रोमियों के हवाले कर दिया गया है।
18) वे सुनवाई के बाद मुझे रिहा करना चाहते थे, क्योंकि मैंने प्राणदण्ड के योग्य कोई अपराध नहीं किया था।
19) किंतु जब यहूदी इसका विरोध करने लगे, तो मुझे कैसर से अपील करनी पड़ी, यद्यपि मुझे अपने राष्ट्र पर कोई अभियोग नहीं लगाना था।
20) इसलिए मैंने आप लोगों से मिलने और बातें करने का निवेदन किया, क्योंकि इस्राएल की आशा के कारण मैं जंजीर पहने हूँ।’’
30) पौलुस पूरे दो वर्षों तक अपने किराये के मकान में रहा। वह सभी मिलने वालों का स्वागत करता था।
31) और आत्मविश्वास के साथ निर्विघ्न रूप से ईश्वर के राज्य का सन्देश सुनाता और प्रभु ईसा मसीह के विषय में शिक्षा देता था।
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💦*सुसमाचार*
सन्त योहन 21:20-25
20) पेत्रुस ने मुड़ कर उस शिष्य को पीछे पीछे आते देखा जिसे ईसा प्यार करते थे और जिसने व्यारी के समय उनकी छाती पर झुक कर पूछा था, ’प्रभु! वह कौन है, जो आप को पकड़वायेगा?’
21) पेत्रुस ने उसे देखकर ईसा से पूछा, ’’प्रभ! इनका क्या होगा?’’
22) ईसा ने उसे उत्तर दिया, ’’यदि मैं चाहता हूँ कि यह मेरे आने तक रह जाये तो इस से तुम्हें क्या? तुम मेरा अनुसरण करो।’’
23) इन शब्दों के कारण भाइयों में यह अफ़वाह फैल गयी कि वह शिष्य नहीं मरेगा। परन्तु ईसा ने यह नहीं कहा कि यह नहीं मरेगा; बल्कि यह कि ’यदि मैं चाहता हूँ कि यह मेरे आने तक रह जाये, तो इस से तुम्हें क्या?’
24) यह वही शिष्य है, जो इन बातों का साक्ष्य देता है और जिसने यह लिखा है। हम जानते हैं कि उसका साक्ष्य सत्य है।
25) ईसा ने और भी बहुत से कार्य किये। यदि एक-एक कर उनका वर्णन किया जाता तो मैं समझता हूँ कि जो पुस्तकें लिखी जाती, वे संसार भर में भी नहीं समा पातीं।
💦 *मनन-चिंतन*
आज के सुसमाचार के अंश में हम संत योहन के सुसमाचार के अंतिम पदों को पाते है जहॉं पर येसु संत योहन के विषय में पेत्रुस को बताते है तथा साथ ही साथ हमें यह पता चलता है कि संत योहन ने अपने सुसमाचार में प्रभु के कार्यो का विवरण तो दिया है परंतु सभी कार्यो का विवरण नहीं दिया क्योंकि वह इतने अधिक है कि इस पुस्तक में समा नहीं पाती।
संत योहन का सुसमाचार चारों सुसमाचार के बीच में अलग पहचान बना के रखता है। संत योहन अपने सुसमाचार में गहरी से गहरी रहस्यों को हमारे समक्ष प्रकट करते है।
प्रभु येसु संत योहन के विषय में कहते है, ‘‘यदि मैं चाहता हॅूं कि यह मेरे आने तक रह जाये तो इससे तुम्हें क्या?’’ आगे चलकर इतिहास हमें बताता है कि उन बारह शिष्यों में सभी को शहादत मिली सिवाय एक शिष्य के और वे शिष्य है संत योहन।
प्रभु के जीवन को और उनके कार्यो को हमारे समक्ष रखने में संत योहन का बहुत बड़ा योगदान रहा है। संत योहन प्रभु येसु के प्रिय शिष्य थे और उन्होने प्रभु येसु के अद्भुत कार्यों, चमत्कारों, घटनाओं का प्रत्यक्ष दर्शन किया है और वहीं चीज़ों को संत योहन साक्ष्य के रूप में हमारे सामने प्रकट करते है।
आईये हम प्रार्थना करें कि संत योहन के सुसमाचार द्वारा बहुतो का उद्धार हो और बहुत से लोग विश्वासी बनें। आमेन!
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💦*मनन-चिंतन - 2*
आज का सुसमचार संत योहन के अनुसार सुसमाचार का अंतिम भाग है। संत योहन लिखते हैं कि जो कार्य प्रभु येसु ने किए उन सबको लिखा जाए तो इतनी पुस्तकें लिख जातीं कि इस दुनिया में भी नहीं समातीं। संत योहन ने सुसमचार की रचना साक्ष्य के रूप में की है। जैसे उन्होंने प्रभु येसु को अनुभव किया अपने जीवन में और दूसरों के जीवन में, उस अनुभव को साक्ष्य के रूप में सुसमाचार में वर्णित किया है।
ईश्वर सदा हमारे जीवन में चमत्कार करते रहते हैं, वे सदा हमारे जीवन में सक्रिय हैं। वह अनेक तरह से हमारे प्रति अपने प्रेम को प्रकट करते हैं। वह अनेक तरह से दूसरों के जीवन को छू लेते हैं। हम अपने मन में झाँकें और खुद से पूछें, ‘क्या मैंने अपने जीवन में ईश्वर के चमत्कारों को अनुभव किया है? क्या मैं अपने जीवन द्वारा ईश्वर के प्रेम का साक्ष्य देता हूँ? क्या मैं अपने जीवन में और दूसरों के जीवन में ईश्वर के चमत्कारों के साक्ष्य को अपने सुसमाचार के रूप में लिख सकता हूँ? संत योहन के सुसमाचार का अंत एक अंत नहीं बल्कि एक नहीं शुरुआत है - हम सब के अपने-अपने सुसमाचार की शुरुआत। आमेन।
✍ - Br. Biniush Topno
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*Have a Blessed Day*
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