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21 मई 2022, शनिवार पास्का का पाँचवाँ सप्ताह*
21 मई 2022, शनिवार
पास्का का पाँचवाँ सप्ताह
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पहला पाठ : प्रेरित-चरित 16:1-10
1) इसके बाद वह देरबे और लुस्त्रा पहुँचा। वहाँ तिमथी नामक एक शिष्य था, जो ईसाई यहूदी माता तथा यूनानी पिता का पुत्र था।
2) लुस्त्रा और इकोनियुम के भाइयों में उसका अच्छा नाम था।
3) पौलुस चाहता था कि वह यात्रा में उसका साथी बने। उस प्रदेश में रहने वाले यहूदियों के कारण उसने तिमथी का ख़तना कराया, क्योंकि सब जानते थे कि उसका पिता यूनानी है।
4) वे नगर-नगर जा कर येरुसालेम में प्रेरितों तथा उनके पालन का आदेश देते थे।
5) इस प्रकार कलीसियाओं का विश्वास दृढ़ होता जा रहा था और उनकी संख्या दिन-दिन बढ़ रही थी।
6) जब पवित्र आत्मा ने उन्हें एशिया में वचन का प्रचार करने से मना किया, तो उन्होंने फ्रुगिया तथा गलातिया का दौरा किया।
7) मुसिया के सीमान्तों पर पहुँच कर वे बिथुनिया जाने की तैयारी कर रहे थे कि ईसा के आत्मा ने उन्हें अनुमति नहीं दी।
8) इसलिए वे मुसिया पार कर त्रोआस आये।
9) वहाँ पौलुस ने रात को एक दिव्य दर्शन देखा। एक मकेदूनी उसके सामने खड़ा हो कर यह अनुरोध कर रहा था, ’’आप समुद्र पार कर मकेदूनिया आइए और हमारी सहायता कीजिए’’।
10) इस दर्शन के बाद हमने यह समझ कर तुरन्त मकेदूनिया जाने का प्रयत्न किया कि ईश्वर ने वहाँ सुसमाचार का प्रचार करने के लिए हमें बुलाया है।
* सुसमाचार : योहन 15:18-21
18) यदि संसार तुम लोगों से बैर करे, तो याद रखो कि तुम से पहले उसने मुझ से बैर किया।
19) यदि तुम संसार के होते, तो संसार तुम्हें अपना समझ कर प्यार करता। परन्तु तुम संसार के नहीं हो, क्योंकि मैंने तुम्हें संसार में से चुन लिया हैं। इसीलिये संसार तुम से बैर करता है।
20) मैंनें तुम से जो बात कही, उसे याद रखो- सेवक अपने स्वामी से बडा नहीं होता। यदि उन्होंने मुझे सताया, तो वे तुम्हें भी सतायेंगे। यदि उन्होंने मेरी शिक्षा का पालन किया तो वे तुम्हारी शिक्षा का भी पालन करेंगे।
21) वे यह सब मेरे नाम के कारण तुम लोगो के साथ करेंगे क्योंकि जिसने मुझे भेजा, उसे वे नहीं जानते।
📚 मनन-चिंतन- 2
नफरत एक ऐसा शब्द है जिससे मैं आमतौर पर बचने की कोशिश करता हूं क्योंकि यह मेरे मुंह में एक बुरा स्वाद छोड़ देता है और मेरे दिल के सिकुड़ने और मेरी आत्मा पर काले बादल छाने की शारीरिक अनुभूति को भड़का सकता है। हालाँकि, जब मैं कहता हूँ या सोचता हूँ कि 'मैं किसी से घृणा नहीं करता' या 'मैं घृणा से प्रभावित नहीं हूँ', संत पापा फ्राँसिस मुझे याद दिलाते हैं कि प्रेम का विपरीत घृणा नहीं है, बल्कि उदासीनता है। यह 'मैं संतुष्ट हूं' का रवैया है। मुझे किसी चीज की कमी नहीं है। मेरे पास सब कुछ है। मैंने इस जीवन और अगले जीवन में अपना स्थान सुनिश्चित किया है, क्योंकि मैं हर रविवार को मिस्सा में जाता हूं। मैं एक अच्छा ईसाई हूं। लेकिन होटेल से निकलते हुए, मैं दूसरी तरफ देखता हूँ [भीख माँगने के लिए हाथ उठाने वाली बेघर महिला की उपेक्षा करते हुए]।' आज मैं प्रार्थना करता हूँ कि मेरे दिल में किसी भी नफरत या उदासीनता को दूर करने का साहस हो ताकि मैं सहानुभूति और सांत्वना देने दूसरों तक पहुँच सकूँ और करुणा दिखाता रहूं ।
📚 REFLECTION
Jesus in today’s gospel warns us when He said: “If the world hates you, realize that it hated me first…. If they persecuted me, they will also persecute you,” (vv. 18, 20). What does Jesus mean when he says “the world?” The “world” in Scripture refers to that society of people who are hostile towards God and opposed to His will. When Jesus talks of persecutions also, He was referring to the sufferings and persecutions His disciples would undergo at the hands of the Jews and the Romans in proclaiming His teachings. The “world” that rejects Jesus and His disciples can expect the same treatment. Jesus leaves no middle ground for his followers. We are either for Him or against Him, for His kingdom of light or for the kingdom of darkness.
Why have been Christians persecuted in the course of the centuries? When Christians say that Jesus Christ is Lord, they are saying that nobody else and nothing else is lord, and that creates enemies.
Suffering is part of human existence. It is because a life with Jesus is not a bed of roses. Thus, we should not pray for an easy life. Instead, we pray to become stronger persons in facing challenges of life and bring out the best that God has given us.
But today except in hostile non-Christian countries, the persecutions referred to by the Lord are no longer felt. In day-to-day life these may take the form of being ostracized.
📚 मनन-चिंतन - 2
प्रभु येसु ने अपने कार्यों और विशेष करके स्वर्गराज्य के फैलाव के लिए शिष्यों को चुनते है। वे उनके कार्य, रंग, रूप या धन दौलत को देखकर नहीं अपितु उनका ह्दय और उनके सरल जीवन का देखकर उन्हें चुनते है। आज के सुसमाचार में प्रभु येसु कहते है कि ‘मैने तुम्हें संसार से चुन लिया है’। सभी शिष्यगण अपने अपने कार्यो और जीवन में जी रहें थे। जब येसु उन्हें बुलाते है तो वे अपने कार्यों को छोड़कर उनके पीछे हो लेते है, येसु उन्हे उनके संसारिक कार्यो से छुड़ाकर एक नयें आध्यात्मिक कार्य के लिए चुनता है।
परंतु जब वे उन्हें चुनते है और स्वर्गराज्य के कार्यो में आगे लगाने की बात कहते है तो वे बताते है कि वे इस संसार के होते हुए भी इस संसार के नहीं होंगे अर्थात् उनका मन, विचार, बातचीत, रहन सहन इस संसार से परे हो जाएगा और इस कारण उन्हें संसार से घृणा और बैर सहना पड़ेगा।
प्रभु का संसार से लोगों का चुनना आज भी जारी है, वे सरल ह्दय और अपना जीवन उनको समर्पित करने वाले व्यक्तियों को चुनते है जिससे वे ईश्वर के कार्य में अपना जीवन दे सकें। हम प्रार्थना करें कि अधिक से अधिक लोग ईश्वर के द्वारा चुने जायें जिससे संसार में ईश्वर राज्य निरंतर फैलता जाये। आमेन!
✍फ़ादर डेनिस तिग्गा
📚 REFLECTION
In order to carry forward his work especially the spreading of God’s Kingdom Jesus chooses the disciples. He doesn’t choose them by seeing their work, colour, stature or wealth but he chose them by seeing their hearts and simple lives. In today’s gospel Jesus says, “I have chosen you out of the world.” All the disciples were living in their own world doing their own works. When Jesus calls them they leave their works and start following him. Jesus chooses them for the new spiritual work by making them to leave the worldly works.
But when he chooses and leads them for the work of Kingdom of heaven, he tells them that they being of this world will not be of this world, in other words their mind, thoughts, conversation, livelihood will be different from the others and because of this they have to bear the hostility and enemity from this world.
God continue to choose people even today, He chooses the people with simple hearts and lives so that they can surrender their lives for the work of God. Let’s pray that more and more people may be chosen by God so that God’s Kingdom may continue to spread in the world. Amen!
✍ -Br.Biniush Topno
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Praise the Lord!
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