कुछ लोग यहूदिया से अन्ताखि़या आये और भाइयों को यह शिक्षा देते रहे कि यदि मूसा से चली आयी हुई प्रथा के अनुसार आप लोगों का ख़तना नहीं होगा, तो आप को मुक्ति नहीं मिलेगी।
2) इस विषय पर पौलुस और बरनाबस तथा उन लोगों के बीच तीव्र मतभेद और वाद-विवाद छिड़ गया, और यह निश्चय किया गया कि पौलुस तथा बरनाबस अन्ताखि़या के कुछ लोगों के साथ येरूसालेम जायेंगे और इस समस्या पर प्रेरितों तथा अध्यक्षों से परामर्श करेंगे।
22) तब सारी कलीसिया की सहमति से प्रेरितों तथा अध्यक्षों ने निश्चय किया कि हम में कुछ लोगों को चुन कर पौलुस तथा बरनाबस के साथ अन्ताखि़या भेजा जाये। उन्होंने दो व्यक्तियों को चुना, जो भाइयों में प्रमुख थे, अर्थात् यूदस को, जो बरसब्बास कहलाता था, तथा सीलस को,
23) और उनके हाथ यह पत्र भेजा: "प्रेरित तथा अध्यक्ष, आप लोगों के भाई, अन्ताखि़या, सीरिया तथा किलिकिया के ग़ैर-यहूदी भाइयों को नमस्कार करते हैं।
24) हमने सुना है कि हमारे यहाँ के कुछ लोगों ने, जिन्हें हमने कोई अधिकार नहीं दिया था, अपनी बातों से आप लोगों में घबराहट उत्पन्न की और आपके मन को उलझन में डाल दिया है।
25) इसलिए हमने सर्वसम्मति से निर्णय किया है कि प्रतिनिधियों का चुनाव करें और उन को अपने प्रिय भाई बरनाबस और पौलुस के साथ,
26) जिन्होंने हमारे प्रभु ईसा मसीह के नाम पर अपना जीवन अर्पित किया है, आप लोगों के पास भेजें।
27) इसलिए हम यूदस तथा सीलस को भेज रहे हैं। वे भी आप लोगों को यह सब मौखिक रूप से बता देंगे।
28) पवित्र आत्मा को और हमें यह उचित जान पड़ा कि इन आवश्यक बातों के सिवा आप लोगों पर कोई और भार न डाला जाये।
29) आप लोग देवमूर्तियों पर चढ़ाये हुए मांस से, रक्त, गला घोंटे हुए पशुओं के मांस और व्यभिचार से परहेज़ करें। इन से अपने को बचाये रखने में आप लोगों का कल्याण है। अलविदा!"
30) वे विदा हो कर अन्ताखि़या चल दिये और वहाँ पहुँच कर उन्होंने भाइयों को एकत्र कर वह पत्र दिया।
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*दूसरा पाठ* - प्रकाशना 21:10-14,22-23
10)
मैं आत्मा से आविष्ट हो गया और स्वर्गदूत ने मुझे एक विशाल तथा ऊँचे पर्वत पर ले जा कर पवित्र नगर येरूसालेम दिखाया। वह ईश्वर के यहाँ से आकाश में उतर रहा था।
11) वह ईश्वर की महिमा से विभूषित था और बहुमूल्य रत्न तथा उज्ज्वल सूर्यकान्त की तरह चमकता था।
12) उसके चारों ओर एक बड़ी और उँची दीवार थी, जिस में बारह फाटक थे और हर एक फाटक के सामने एक स्वर्गदूत खड़ा था। फाटकों पर इस्राएल के बारह वंशों के नाम अंकित थे।
13) पूर्व की आरे तीन, उत्तर की और तीन, पश्चिम की आरे तीन और दक्षिण की ओर तीन फाटक थे।
14) नगर की दीवार नींव के बारह पत्थरों पर खड़ी थी और उन पर मेमने के बारह प्रेरितों के नाम अंकित थे।
15) जो मुझ से बातें कर रहा था, उसके पास नगर, उसके फाटक और उसकी दीवार नापने के लिए एक मापक-दण्ड, सोने का सरकण्डा था।
16) नगर वर्गाकार था। उसकी लम्बाई उसकी चौड़ाई के बराबर थी। उसने सरकण्डे से नगर नापा, तो बारह हजार ुफरलांग निकला। उसकी लम्बाई, चौड़ाई और उंचाई बराबर थी।
17) उसने उसकी दीवार नापी, तो- मनुष्यों में प्रचिलत माप के अनुसार, जिसका स्वर्गदूत ने उपयोग किया- एक सौ चौवालीस हाथ निकला।
18) नगर की दीवार सूर्यकान्त की बनी थी, लेकिन नगर विशुद्ध स्वर्ण का बना था, जो स्फटिक जैसा चमकता था।
19) दीवार की नींव नाना प्रकार के रत्नों की बनी थी। पहली परत सूर्यकान्त की थी, दूसरी नीलम की, तीसरी गोदन्ती की, चौथी मरकत की,
20) पांचवी गोमेदक की, छठी रूधिराख्य की, सातवीं स्वर्णमणि की, आठवीं फीरोजे की, नवीं पुखराज की, दसवीं रूद्राक्षक की, ग्यारहवीं धूम्रकान्त की और बाहरवीं चन्द्रकान्त की।
21) बारह फाटक बारह मोतियों के बने थे, प्रत्येक फाटक एक-एक मोती का बना था। नगर का चौक पारदर्शी स्फटिक-जैसे विशुद्ध सोने का बना था।
22) मैंने उस में कोई मन्दिर नहीं देखा, क्योंकि सर्वशक्तिमान् प्रभु-ईश्वर उसका मन्दिर है और मेमना भी।
23) नगर को सूर्य अथवा चन्द्रमा के प्रकाश की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि ईश्वर की महिमा उसकी ज्योति और मेमना उसका प्रदीप है।
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_ *सुसमाचार* योहन 14:23-29
23)
ईसा ने उसे उत्तर दिया यदि कोई मुझे प्यार करेगा तो वह मेरी शिक्षा पर चलेगा। मेरा पिता उसे प्यार करेगा और हम उसके पास आकर उस में निवास करेंगे।
24) जो मुझे प्यार नहीं करता, वह मेरी शिक्षा पर नहीं चलता। जो शिक्षा तुम सुनते हो, वह मेरी नहीं बल्कि उस पिता की है, जिसने मुझे भेजा।
25) तुम्हारे साथ रहते समय मैंने तुम लोगों को इतना ही बताया है।
26) परन्तु वह सहायक, वह पवित्र आत्मा, जिसे पिता मेरे नाम पर भेजेगा तुम्हें सब कुछ समझा देगा। मैंने तुम्हें जो कुछ बताया, वह उसका स्मरण दिलायेगा।
27) मैं तुम्हारे लिये शांति छोड जाता हूँ। अपनी शांति तुम्हें प्रदान करता हूँ। वह संसार की शांति-जैसी नहीं है। तुम्हारा जी घबराये नहीं। भीरु मत बनो।
28) तुमने मुझ को यह कहते सुना- मैं जा रहा हूँ और फिर तुम्हारे पास आऊँगा। यदि तुम मुझे प्यार करते, तो आनन्दित होते कि मैं पिता के पास जा रहा हूँ, क्योंकि पिता मुझ से महान है।
29) मैंने पहले ही तुम लोगों को यह बताया, जिससे ऐसा हो जाने पर तुम विश्वास करो।
*मनन-चिंतन*
मुझे आश्चर्य होता है कभी कभी कि यीशु के समय की महिलाओं की सोच क्या होगी । क्योंकि प्रेरित, परिषद के प्रतिनिधि और चर्च के कमिटी के सभी पुरुष थे। पुरुषों को आधिकारिक तौर पर बारह प्रेरितों के रूप में चुना गया और उन्हें सुसमाचार के राजदूत और प्रेरित के रूप में भेजा गया। और फिर भी, हम जानते हैं कि यीशु के जीवन में महिलाएं अहम् भूमिका निभयीं । उसकी माँ, मैरी; मरियम मगदलीनी, जो कब्र के पास जी उठे हुए मसीह का दर्शन की और प्रेरितों को बताई ; समारिया की ओ स्त्री जो कुएं के पास थी और वह स्त्री जिसे पथराव होने से बचाया गया था। स्त्रियाँ भी यीशु को जानती और प्रेम करती थीं और सुसमाचार की वाहक थीं। वे हमें याद दिलाते हैं कि महिलाओं और पुरुषों को दुनिया में यीशु के प्रेम के जीवित गवाह, आशा के राजदूत और दया के प्रेरित और प्रेरक होने के लिए बुलाया गया है। चाहे हमें धार्मिक, विवाहित, अविवाहित, या किसी भी स्थिति में हो, हम सभी को यरूशलेम की परिषद के उस 'पत्र' द्वारा सुसमाचार की घोषणा करने और हमारे पुनर्जीवित मसीह के आनंद में जीने के लिए अनिवार्य किया गया है।
✍ -Br. Biniush Topno
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