मंगलवार, 14 दिसंबर, 2021
आगमन का तीसरा सप्ताह
पहला पाठ : सफ़न्याह का ग्रन्थ 3:1-2,9-13
1) उस विद्रोही, दूषित और कठोर हृदय नगर को धिक्कार!
2) उसने न तो कभी प्रभु की वाणी पर ध्यान दिया और न कभी उसकी चेतावनी ही स्वीकारी। उसने कभी प्रभु पर भरोसा नहीं रखा। वह कभी उसकी शरण नहीं गया।
9) मैं लोगों के होंठ फिर शुद्ध करूँगा, जिससे वे सब-के-सब प्रभु का नाम लें और एक हृदय हो कर उसकी सेवा करें।
10) इथोपिया की नदियों के उस पार से मेरे बिखरे हुए उपासक चढ़ावा लिये मेरे पास आयेंगे।
11) उस दिन तुम्हें लज्जित नहीं होना पडे़गा- तुम्हारे बीच मेरे विरुद्ध कोई पाप नहीं किया जायेगा, क्योंकि मैं तुम लोगों में से डींग हाँकने वाले अहंकारियों को दूर करूँगा। उसके बाद मेरे पवित्र पर्वत पर कोई भी घमण्ड नहीं करेगा।
12) मैं तुम लोगों के देश में एक विनम्र एवं दीन प्रजा को छोड़ दूँगा। जो इस्राएल में रह जायेंगे, वे प्रभु के नाम की शरण लेंगे।
13) वे अधर्म नहीं करेंगे, झूठ नहीं बोलेंगे और छल-कपट की बातें नही करेंगे। वे खायेंगे-पियेंगे और विश्राम करेंगे और कोई भी उन्हें भयभीत नहीं करेगा।
सुसमाचार : मत्ती 21:28-32
28) "तुम लोगों का क्या विचार है? किसी मनुष्य के दो पुत्र थे। उसने पहले के पास जाकर कहा, ’बेटा जाओ, आज दाखबारी में काम करो’।
29) उसने उत्तर दिया, ’मैं नहीं जाऊँगा’, किन्तु बाद में उसे पश्चात्ताप हुआ और वह गया।
30) पिता ने दूसरे पुत्र के पास जा कर यही कहा। उसने उत्तर दिया, ’जी हाँ पिताजी! किन्तु वह नहीं गया।
31) दोनों में से किसने अपने पिता की इच्छा पूरी की?" उन्होंने ईसा को उत्तर दिया, "पहले ने"। इस पर ईसा ने उन से कहा, "मैं तुम लोगों से यह कहता हूँ - नाकेदार और वैश्याएँ तुम लोगों से पहले ईश्वर के राज्य में प्रवेश करेंगे।
32) योहन तुम्हें धार्मिकिता का मार्ग दिखाने आया और तुम लोगों ने उस पर विश्वास नहीं किया, परन्तु नाकेदारों और वेश्याओं ने उस पर विश्वास किया। यह देख कर तुम्हें बाद में भी पश्चात्ताप नहीं हुआ और तुम लोगों ने उस पर विश्वास नहीं किया।
📚 मनन-चिंतन
आज के सुसमाचार में दो पुत्रो के दृष्टांत को येसु बताते है। एक पुत्र ने ईश्वर-पिता की इच्छा पूरी की, दूसरे ने पिता कि इच्छा को अस्वीकार किया। इसी प्रकार ईश्वर सभी को स्वर्गराज्य में शामिल होने के लिए आमंत्रित करते हैं। यही ईश्वर की इच्छा थी। गैर-यहूदी, नाकेदार, पापियों ने ईश्वर की इच्छा को स्वीकार किया। लेकिन फरीसी, शास्त्री, सदूकी इन्होंने ईश्वर की इच्छा को अस्वीकार किया | हम भी कई बार ईश्वर को हाँ कहते हैं। लेकिन प्रभु कि इच्छा पूरा करने में विफल हो जाते हैं। येसु हम सभों के लिए उदाहरण है। जिन्होंने अंत तक ईश्वर कि इच्छा को पूरा किया। संत योहन 5:30 में येसु कहते हैं "मैं अपनी इच्छा नहीं, बल्कि जिसने मुझे भेजा, उसकी इच्छा पूरी करना चाहता हूँ।" योहन 4:34 में येसु कहते हैं, "जिसने मुझे भेजा, उसकी इच्छा पर चलना और उसका कार्य पूरा करना यही मेर भोजन है | फ़िर भी मेरी नहीं बल्कि तेरी ही इच्छा पूरी हो|" हम भी पिता की इच्छा को समझे और पूरा करे।
📚 REFLECTION
In today’s Gospel Jesus tells us about the parable of two sons. Father invites both of them for work. One of them obeyed and the other one disobeyed him. Likewise Jesus invites all of us to enter into the kingdom of heaven. This is the will of God; many accepted the will of God. Even tax collectors, gentiles, sinners accepted the will of God but the Pharisees and Sadducees failed to accept Jesus and his teachings. Many times we too say yes and accept the will of God but failed to practice. Jesus himself is the greatest example for all of us who obeyed his Abba until the end of his time even to the point of death.
Jesus says in (Jn 5:30) “I seek to do not my own will but the will of him who sent me”.
“My food is to do the will of him who sent me and to complete his work”. (Jn 4:34)
“I want to your will to be done, not mine”. (Mk 14:36)
Let us understand and accept the will of God and fulfill it.
✍ -Br. Biniush Topno
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