सोमवार, 13 दिसंबर, 2021
आगमन का तीसरा सप्ताह
पहला पाठ : गणना 24:2-7,15-17
2) अपनी आँखें ऊपर उठायीं और इस्राएलियों को देखा, जो अपने-अपने वंश के अनुसार शिविर डाल चुके थे। ईश्वर का आत्मा उस पर उतरा
3) और वह अपना यह काव्य सुनाने लगाः
4) यह उसकी भविष्यवाणी है, जो ईश्वर के वचन सुनता
5) याकूब! तुम्हारे तम्बू कितने सुन्दर है!
6) वे घाटियों की तरह फैले हुए हैं,
7) इस्राएलियों के पात्र जल से भरे रहेंगे,
15) इसके बाद बिलआम ने फिर कहा
16) यह उसकी भविष्यवाणी है, जो ईश्वर के वचन सुनता
17) मैं उसे देखता हूँ - किन्तु वर्तमान में नहीं,
सुसमाचार : मत्ती 21:23-27
23) जब ईसा मंदिर पहुँच गये थे और शिक्षा दे रहे थे, तो महायाजक और जनता के नेता उनके पास आ कर बोले, "आप किस अधिकार से यह सब कर रहें हैं? किसने आप को यह अधिकार दिया ?"
24) ईसा ने उन्हें उत्तर दिया, "मैं भी आप लोगों से एक प्रश्न पूछना चाहता हूँ। यदि आप मुझे इसका उत्तर देंगे, तो मैं भी आपको बता दूँगा कि मैं किस अधिकार से यह सब कर रहा हूँ।
25) योहन का बपतिस्मा कहाँ का था? स्वर्ग का अथवा मनुष्यों का?" वे यह कहते हुए आपस में परामर्श करते थे - "यदि हम कहें: ’स्वर्ग का’, तो यह हम से कहेंगे, ’तब आप लोगों ने उस पर विश्वास क्यों नहीं किया?’
26) यदि हम कहें: ’मनुष्यों का’, तो जनता से डर है! क्योंकि सब योहन को नबी मानते हैं।"
27) इसलिए उन्होंने ईसा को उत्तर दिया, "हम नहीं जानते"। इस पर ईसा ने उन से कहा, "तब मैं भी आप लोगों को नहीं बताऊँगा कि मैं किस अधिकार से यह सब कर रहा हूँ।.
📚 मनन-चिंतन.
आज के सुसमाचार में महायाजक, येसु से उनके अधिकार को चुनौती देते हुए उनसे प्रश्न करते हैं। आप किस अधिकार से यह कर रहे हैं। येसु स्वयं ईश्वर के पुत्र थे। उन्हें अधिकार ईश्वर से प्राप्त था। "मैंने अपने पिता के यहां जो देखा है, वहीं कहता हूँ (योहन 8:38) "कोई मुझसे मेरा जीवन नहीं हर सकता, मैं स्वयं उसे अर्पित करता हूँ। मुझे अपना जीवन अर्पित करने और उसे फिर ग्रहण करने का अधिकार है। मुझे अपने पिता कि ओर से यह आदेश मिला है। (योहन 10:18)
बाईबल में हम पढ़ते हैं की बहुत से लोगों ने विश्वास किया और येसु को मसीह के रूप में स्वीकार किया। मत्ती 14:33 में पढ़ते हैं, जब येसु पानी पर चलते हुए शिष्यों के पास आये। उन्होंने आँधी को शांत किया। शिष्यों ने दंडवत करते हुए कहा आप ईश्वर के पुत्र है। मत्ती 16:16 में येसु शिष्यों से पुछते हैं कि तुम क्या रहते हो, मैं कौन हूँ? पेत्रुस उत्तर देता है, "आप जीवन ईश्वर के पुत्र हैं" आप मसीह है ।"
योहन11:27 में मार्था येसु से कहती है "प्रभु मैं दृढ विश्वास करती हूँ, कि आप मसीह है, ईश्वर के पुत्र है जो संसार में आने वाले थे।" इस प्रकार जिन लोगों ने भी येसु के अधिकार को स्वीकार किया। उन्होंने येसु के अनुग्रह व आशीष को पाया।
📚 REFLECTION
In today’s gospel the chief priests and the elders of the people challenge Jesus of his authority. In fact Jesus was the son of God and had got the authority from his father. He says; “I am telling you what I saw when I was with my Father” (Jn 8:38).
No one can take my life from me. I sacrifice it voluntarily. For I have the authority to lay it down when I want to and also to take it up again. For this is what my Father has commanded”. (Jn10:18)
In the Holy Bible we see many people believed in Jesus and accepted His authority. In (Mth 14:33) we read, when Jesus came towards them, walking on the water. He calmed down the strong wind. Then the disciples worshipped Him. “You really are the Son of God”. In (Mth 16:16) Jesus asked them, “But who do you say I am?” Simon peter answered, “You are the Messiah, the Son of the living God.” In ( Jn 11:27) Martha says, yes Lord , “ I have always believed you are the Messiah, the Son of God, the one who has come into the world from God”.
In this way whoever accepted Jesus authority got the mercy and blessings of Jesus.
मनन-चिंतन - 2
येसु ने अपने कई कार्यों और संदेशों में महान ज्ञान का प्रदर्शन किया। मत्ती 22: 23-34 में, हम देखते हैं कि उन्होंने कैसे सदूकियों को चुप कराया जब उन्होंने मृतकों के पुनरुत्थान पर उनके साथ चर्चा की। जब लोगों ने उन्हें अपने सवालों के जाल में फंसाने की कोशिश की, तो उन्होंने उन्हें एक अप्रत्याशित और असाधारण जवाब दिया। योहन 8: 7 में, येसु ने व्यभिचार में पकड़ी गई महिला को पत्थर मारने पर अड़ी हुई हिंसक भीड़ को बताया, "तुम में जो निष्पाप हो, वह इसे सब से पहले पत्थर मारे"। इससे उन्हें खुद को आत्मनिरीक्षण करना पड़ा और अपनी कमियों का एहसास हुआ। ईश्वर का वचन हृदय के रूपांतरण के लिए है। यह तभी संभव है जब हर कोई जो ईश्वर का वचन सुनता है, वह इसे सबसे पहले स्वयं पर लागू करता है, किसी और पर लागू करने से पहले। संत याकूब अपने पत्र 1: 22-25 में ईश्वर के वचन की तुलना दर्पण से करते हैं जिसमें हम स्वयं को देखते हैं। आज के सुसमाचार में हम देखते हैं कि प्रधान याजक और जनता के नेता येसु से पूछते हैं कि उनके पास क्या अधिकार है और किसने उन्हें यह अधिकार दिया है। उन्होंने शायद सोचा था कि वे इस सवाल से येसु पर अपना वर्चस्व स्थापित करेंगे। लेकिन येसु ने उनके सवाल का जवाब देने के बजाय, उनसे एक सवाल किया और नतीजतन वे चुप हो गए। ईश्वर के साथ हर मुलाकात आत्मनिरीक्षण, सुधार और आत्म-नवीनीकरण का समय है। हो सकता है कि क्रिसमस का पर्व हममें से प्रत्येक के लिए आत्म-नवीनीकरण का समय हो।
REFLECTION
Jesus exhibited great wisdom in many of his actions and messages. In Mt 22:23-34, we see how he silenced the Sadducees when they discussed with him on the resurrection of the dead. When people tried to trap him by their questions, oftentimes he gave them an unexpected and extraordinary answer. In Jn 8:7, Jesus told the violent crowd who were adamant on stoning the woman caught in adultery to death, “Let anyone among you who is without sin be the first to throw a stone at her”. This led them to introspect themselves and realize their own shortcomings. The Word of God is meant for conversion of the heart. This is possible only when everyone who hears the Word of God applies it first of all to the self, before applying it to anyone else. In the Letter of St. James 1:22-25 the Word of God is compared to a mirror in which we see ourselves. In today’s Gospel we find the chief priests and the elders of the people asking Jesus as to what authority he had and who gave him that authority. They probably thought that by this question they would establish their supremacy over Jesus. But instead of answering their question, Jesus put a counter-question to them and as a result they were silenced. Every encounter with God is a time for introspection, correction and self-renewal. May the coming feast of Nativity be a time of self-renewal for each one of us./p>
✍ -Br. Biniush topno
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