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गुरुवार, 02 दिसंबर, 2021

 

गुरुवार, 02 दिसंबर, 2021

आगमन का पहला सप्ताह

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पहला पाठ: इसायाह का ग्रन्थ 26:1-6



1) उस दिन यूदा देश में यह गीत गाया जायेगाः हमारा नगर सुदृढ़ है। प्रभु ने हमारी रक्षा के लिए प्राचीर और चारदीवारी बनायी है।

2 फाटकों को खोल दो- सद्धर्धी और विश्वासी राष्ट्र प्रवेश करें।

3) तू दृढ़तापूर्वक शान्ति बनाये रखता हैं, क्योंकि इस राष्ट्र को तुझ पर भरोसा है।

4) प्रभु पर सदा भरोसा रखो, क्योंकि वही चिरस्थायी चट्टान है।

5) वह ऊँचाई पर निवास करने वालों को नीचा दिखाता है। वह उनका दुर्गम गढ़ तोड़ कर गिराता और धूल में मिला देता है।

6) अब दीन-हीन और दरिद्र उसे पैरों तले रौंदेंगे।



सुसमाचार : सन्त मत्ती 7:21.24-27



21) ’’जो लोग मुझे ’प्रभु ! प्रभु ! कह कर पुकारते हैं, उन में सब-के-सब स्वर्ग-राज्य में प्रवेश नहीं करोगे। जो मेरे स्वर्गिक पिता की इच्छा पूरी करता है, वही स्वर्गराज्य में प्रवेश करेगा।

24) ’’जो मेरी ये बातें सुनता और उन पर चलता है, वह उस समझदार मनुष्य के सदृश है, जिसने चट्टान पर अपना घर बनवाया था।

25) पानी बरसा, नदियों में बाढ आयी, आँधियाँ चलीं और उस घर से टकरायीं। तब भी वह घर नहीं ढहा; क्योंकि उसकी नींव चट्टान पर डाली गयी थी।

26) ’’जो मेरी ये बातें सुनता है, किन्तु उन पर नहीं चलता, वह उस मूर्ख के सदृश है, जिसने बालू पर अपना घर बनवाया।

27) पानी बरसा, नदियों में बाढ आयी, आँधियाँ चलीं और उस घर से टकरायीं। वह घर ढह गया और उसका सर्वनाश हो गया।’’.


📚 मनन-चिंतन.



आज का सुसमाचार हमे बताता है, कि सिर्फ हे प्रभु! हे प्रभु! कहने भर से हम सवर्गराज्य में प्रवेश नहीं कर सकते। बल्कि प्रभु के वचनों के अनुसार जीवन व्यतीत करने से ही हम सवर्णराज्य के भागी बन सकते है। संत याकूब (1:18) मे कहते हैं। वचन के श्रोता ही नहीं बल्कि उसके पालनकर्त्ता भी बने ।

हमारा जीवन भी एक घर के समान है। हमारा जीवन अगर प्रभु के वचनों के अनुसार संचालित है, तो वह घर चटटान पर बना हुआ है। अगर नहीं तो हमारा जीवन बालू पर बने घर के समान है। जो प्रभु के वचन के अभाव में ज्यादा दिनों तक नहीं टिक पाता है। 'प्रभु पर सदा भरोसा रखो, क्योंकि वही चिरस्थायी चटटान है। (इसा-26:4)

प्रभु हमारा चिरस्थायी चट्टान है। हमे उस चयन पर अपनी जीवन की नींव रखती है। आइये हम सदैव प्रभु से जुड़े रहे। जिससे वह भी हमेशा चटटान के समान मजबुती से हमसे जुड़े रहे।




📚 REFLECTION




Today's gospel tells us, that only by acclaiming oh Lord, oh Lord will not help us to enter the Kingdom of heaven but by living the word of the Lord literally and meaningfully will surely help us to enter the Kingdom of heaven.

In James 1:22–25 we read: “But be doers of the word, and not merely hearers only”.

Our life too, is similar to like a house. If our lives are guided by the word of the Lord then it is similar to the house which is established on the foundation of a strong rock. If not, then the house is similar to like a house whose foundation is laid on sand which will not be able to sustain is stability for more days.

Isaiah 26:4 Trust in the LORD forever, for the LORD, the LORD himself, is the Rock eternal.

Lord is our never moving Rock. What we need to do is to surrender our lives on this strong Rock. Come, let us always be together with the Lord so that we too remain as strong as Rock in our faith.




मनन-चिंतन - 2



प्रभु येसु एक बुध्दिमान व्यक्ति और एक बेवकूफ व्यक्ति की बात करते हैं। बुद्धिमान व्यक्ति अपना घर चट्टान पर बनाता है और बेवकूफ व्यक्ति रेत पर अपना घर बनाता है। प्रभु एक उदार व्यक्ति और एक कंजूस की चर्चा नहीं करते; न ही एक सावधान आदमी और एक लापरवाह आदमी की बात। उनका विषयवस्तु ज्ञान है। चट्टान पर निर्माण करने वाले के पास ज्ञान होता है जबकि रेत पर निर्माण करने वाले के पास इसका अभाव होता है। समझदार व्यक्ति ईश्वर का वचन सुनता है और उस पर कार्य करता है। कुछ भी उसे विचलित, परेशान या नष्ट नहीं कर सकता। उसकी नींव पक्की है। ईश्वर का वचन सर्वज्ञ ईश्वर का ज्ञान है। जो वास्तव में, ईश्वरीय शब्द को प्राप्त करता है, वह ईश्वर का ज्ञान ही प्राप्त करता है। वह ईश्वर के ज्ञान को अपना कर्म बनाता है। स्वाभाविक रूप से वह असफल नहीं हो सकता। आइए हम ईश्वर से इस ज्ञान की कृपा मांगें।



REFLECTION



Jesus distinguishes between a wise man who builds his house on rock and a stupid man who builds his house on sand. Jesus does not distinguish between a spendthrift and a miser; nor between a careful man and a careless man. What is in question is the wisdom of the person. The person who builds on the rock has wisdom while the person who builds on sand lacks it. The sensible man listens to the Word of God and acts on it. Nothing can shake, disturb or destroy him. He has an unshakeable foundation. The Word of God is the wisdom of the omniscient God. One who receives the Word, in fact, receives the wisdom of God. He makes the wisdom of God his own in action. Naturally he cannot fail. Let us ask the Lord for the grace of this wisdom.


 -Br. Biniush topno


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Praise the Lord!

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