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बुधवार, 01 दिसंबर, 2021

 

बुधवार, 01 दिसंबर, 2021

आगमन का पहला सप्ताह

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पहला पाठ: इसायाह का ग्रन्थ 25:6-10a


6) विश्वमण्डल का प्रभु इस प्रर्वत पर सब राष्ट्रों के लिए एक भोज का प्रबन्ध करेगाः उस में रसदार मांस परोसा जायेगा और पुरानी तथा बढ़िया अंगूरी।

7) वह इस पर्वत पर से सब लोगों तथा सब राष्ट्रों के लिए कफ़न और शोक के वस्त्र हटा देगा,

8) श्वह सदा के लिए मृत्यु समाप्त करेगा। प्रभु-ईश्वर सबों के मुख से आँसू पोंछ डालेगा। वह समस्त पृथ्वी पर से अपनी प्रजा का कलंक दूर कर देगा। प्रभु ने यह कहा है।

9) उस दिन लोग कहेंगे - “देखो! यही हमारा ईश्वर है। इसका भरोसा था। यह हमारा उद्धार करता है। यही प्रभु है, इसी पर भरोसा था। हम उल्लसित हो कर आनन्द मनायें, क्योंकि यह हमें मुक्ति प्रदान करता है।“

10) इस पर्वत पर प्रभु का हाथ बना रहेगा।



सुसमाचार : सन्त मत्ती 15:29-37



29) ईसा वहाँ से चले गये और गलीलिया के समुद्र के तट पर पहुँच कर एक पहाड़ी पर चढे़ और वहाँ बैठ गये।

30) भीड़-की-भीड़ उनके पास आने लगी। वे लँगडे़, लूले, अन्धे, गूँगे और बहुत से दूसरे रोगियों को भी अपने पास ला कर ईसा के चरणों में रख देते और ईसा उन्हें चंगा करते थे।

31) गूँगे बोलते हैं, लूले भले-चंगे हो रहे हैं, लँगड़े चलते और अन्धे देखते हैं- लोग यह देखकर बड़े अचम्भे में पड़ गये और उन्होंने इस्राएल के ईश्वर की स्तुति की।

32) ईसा ने अपने शिष्यों को अपने पास बुला कर कहा, ’’मुझे इन लोगों पर तरस आता है। ये तीन दिनों से मेरे साथ रह रहें हैं और इनके पास खाने के लिए कुछ भी नहीं है मैं इन्हें भूखा ही विदा करना नहीं चाहता। कहीं ऐसा न हो कि ये रास्ते में मूच्र्छित हो जायें।''

33) शिष्यों ने उन से कहा, ’’इस निर्जन स्थान में हमें इतनी रोटियाँ कहाँ से मिलेंगी कि इतनी बड़ी भीड़ को खिला सकें?’’

34) ईसा ने उन से पूछा, ’’तुम्हारे पास कितनी रोटियाँ हैं? उन्होंने कहा, ’’सात और थोड़ी-सी छोटी मछलियाँ’’।

35) ईसा ने लोगों को भूमि पर बैठ जाने का आदेश दिया

36) और वे सात रोटियाँ और मछलियाँ ले कर उन्होंने धन्यवाद की प्रार्थना पढ़ी, और वे रोटियाँ तोड़-तोड़ कर शिष्यों को देते गये और शिष्य लोगों को।

37) सबों ने खाया और खा कर तृप्त हो गये और बचे हुए टुकड़ों से सात टोकरे भर गये।


📚 मनन-चिंतन



जब हम ईश्वर के प्रति ईमानदार रहेंगे, प्रभु येस कभी भी हमे अकेला नहीं छोड़ेंगे।

आज के सुसमाचार में एक विशाल जनसमूह आशा एवं विश्वास के साथ येसु के वचने को सुनने आते हैं। येसु उनके विश्वास को देखकर उनपर अपनी दया व करुणा प्रकट करते हैं। उन्हें सभी प्रकार के रोगों से चंगाई प्रदान करते हैं। हमे भी अपने सुख, दुख, चिंताओ को लेकर येसु के पास आना चाहिये। थके-माँदे और बोझ से दबे हुए लोगों! तुम सभी मेरे पास आओ। मैं तुम्हे विश्राम दूँगा | (मत्ती ११: २१)

यह बहुत महत्वपूर्ण है कि हमें भी विश्वास के साथ येसु के पास आना है। प्रतिदिन कुछ क्षण प्रभु के साथ व्यतीत करना है। प्रतिदिन उनके वचनों को सुनना है, पढना है। ईमानदारी से प्रभु का साथ देना है। तब प्रभु हम पर भी अपनी दया व करुणा बरसायेगा । प्रभु कभी भी हमे अकेला नहीं छोड़ेगे। "तुम प्रभु पर अपना भार छोड़ दो, वह तुम को संभालेगा (स्त्रोत 55:२३)

हम एक विशवासी के रूप में जो भी हमारी जिम्मेदारी है। उसे ईमानदारी से निभायें और बाकी ईश्वर पर छोड़ दे। वह हमे कभी निराश नहीं करेगा |




📚 REFLECTION




If we are sincere towards God, Lord Jesus will never abandon us.

In today's gospel we see that a huge crowd of people comes to Jesus with a lot of hope and faith to hear Jesus words. Looking to the faith of these people Jesus expresses his mercy and compassion and heals the people who were suffering with sickness.

In the same way we should also bring all our joy, sorrow, stress and tension to Jesus.

“Come to me, all you who are weary and burdened, and I will give you rest. Take my yoke upon you and learn from me, for I am gentle and humble in heart, and you will find rest for your souls.” (Mt 11:28)

The most important thing is that, we should always come with faith to Jesus by spending some time with Jesus, by reading scriptures, by being sincere companion to Jesus. Then surely, Jesus will shower his mercy and compassion to us and he will never ever abandon us.

“But you, O God, will cast them down into the pit of destruction; men of blood and treachery shall not live out half their days. But I will trust in you.’’ (Psalm 55:23) v

We should always fulfill the responsibility that we are carrying as a faithfully and surrender the rest of the things in the hand of God who will never disappoint us.



मनन-चिंतन - 2



आज के सुसमाचार में हम रोटियों का दूसरा चमत्कार देखते हैं। येसु सात रोटियों और कुछ छोटी मछलियों से चार हज़ार से ज़्यादा लोगों को खिला कर तृप्त करते हैं। यह मुख्य रूप से करुणा का कार्य था। येसु भीड़ के लिए अनुकम्पा महसूस कर रहे थे। एज़ेकिएल 34 में प्रभु ने इस्राएल के चरवाहों के गैर-जिम्मेदार व्यवहार के बारे में चिन्तित थे। उन्होंने कहा, “धिक्कार इस्राएल के चरवाहों को! वे केवल अपनी देखभाल करते हैं। क्या चरवाहों को झुण्ड की देखवाल नहीं करनी चाहिए। तुम भेड़ों का दूध पीते हो, उनका ऊन पहनते और मोटे पशुओं का वध करते हो, किन्तु तुम भेड़ों को नहीं चराते।”(एज़ेकिएल 34: 2-3)। बाद में उनके लिए स्वयं चरवाहा बनने का वादा करते हुए, उन्होंने कहा, “मैं उन्हें इस्राएल के पहाड़ों पर, घाटियों में और देश भर के बसे हुए स्थानों पर चाराऊँगा। मैं उन्हें अच्छे चरागाहों में ले चलूँगा। वे इस्राएल के पर्वतों पर चरेंगी। वहाँ वे अच्छे चरागाहों में विश्राम करेंगी और इस्राएल के पर्वतों की हरी-भरी भूमि में चरेगी।” (एज़ेकिएल 34:13-14)। प्रभु येसु प्रभु ईश्वर का का वादा पूरा हुआ। प्यार और करुणा के साथ यीशु ने लोगों को खिलाया जो बिना चरवाहे की भेड़ों की तरह थे। सभी ख्रीस्तीय नेताओं को प्रभु येसु के इस आदर्श को अपनाना चाहिए और उनकी प्रेममयी और दयालु सेवा का अनुकरण करना चाहिए।



REFLECTION



In the Gospel we have second story of the multiplication of the bread. Jesus multiplies seven loaves and some small fish to feed over four thousand people. This was primarily an act of compassion. Jesus was feeling sorry for the crowd. In Ezekiel 34 Yahweh lamented about the irresponsible behavior of the shepherds of Israel. He said, “Ah, you shepherds of Israel who have been feeding yourselves! Should not shepherds feed the sheep? You eat the fat, you clothe yourselves with the wool, you slaughter the fatlings; but you do not feed the sheep.” (Ezek 34:2-3). Later promising to become their Shepherd, he says, “I will feed them with good pasture, and the mountain heights of Israel shall be their pasture; there they shall lie down in good grazing land, and they shall feed on rich pasture on the mountains of Israel” (Ezek 34:14). In Jesus the promise of Yahweh is fulfilled. With love and compassion Jesus fed people who were like sheep without a shepherd. All Christian leaders are to imitate Jesus and follow his loving and compassionate service.


 -Br. Biniush topno


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Praise the Lord!

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