मंगलवार, 23 नवंबर, 2021
वर्ष का चौंत्तीसवाँ सामान्य सप्ताह
पहला पाठ: दानिएल का ग्रन्थ 2:31-45
31) राजा! आपने यह दिव्य दृश्य देखा। एक विशाल, देदीप्यमान और भीषण मूर्ति आपके सामने खड़ी थी।
32) उस मूर्ति का सिर सोने का था, उसकी छाती और भुजाएँ चाँदी की थी, उसका पेट और कमर पीतल की,
33) उसकी जाँघें लोहे की और उसके पैर अंशतः लोहे के और अंशतः मिट्टी के थे।
34) आप उसे देख ही रहे थे कि एक पत्थर अचानक अपने आप गिरा, उस मूर्ति के लोहे और मिट्टी के पैरों पर लगा गया और उसने उनके टूकडे-टुकड़े कर डाले।
35) उसी समय लोहा, मिट्टी, पीतल, चाँदी और सोना सब चूर-चूर हो क्रर हो कर ग्रीष्म-ऋतु की भूसी की तरह पवन द्वारा उड़ा लिया गया और उसका कुछ भी शेष नहीं रहा। जो पत्थर मूर्ति पर लग गया था, वह समस्त पृथ्वी को ढकने वाला विशाल पर्वत बन गया।
36) यह था आपका स्वप्न। अब मैं आप को उसका अर्थ बताऊँगा।
37) राजा! आप राजाओं को राजा हैं।
38) स्वर्ग के ईश्वर ने आप को राजत्व, अधिकार, सामर्थ्य और सम्मान प्रदान किया। उसने मनुयों, मैदान के पशुओं और आकाश के पक्षियों को- वे चाहें कहीं भी निवास करें- आपके हाथों सौंपा और आप को सब का अधिपति बना दिया। मूर्ति के सोने का सिर आप ही हैं।
39) आपके बाद का दूसरा राज्य आयेगा। वह आपके राज्य से कम वैभवशाली होगा और इसके बाद एक तीसरा राज्य, जो पीतल का होगा और समस्त पृथ्वी पर शासन करेगा।
40) चैथा राज्य लोहे की तरह मजबूत होगा। जिस प्रकार लोहा सब कुछ पीस कर चूर कर सकता है, उसी प्रकार वह राज्य पहले के राज्यों को चूर-चूर कर नष्ट कर देगा।
41) आपने देखा है कि वे पैर अंशतः मिट्टी के और अशंतः लोहे के थे- इसका अर्थ है कि उस राज्य में फूट होगी।
42) उस में लोहे की शक्ति होगी, क्योंकि आपने देखा है कि मिट्टी में लोहा मिला हुआ था।
43) उसके पैर अशंतः लाहेे और अशंत: मिट्टी के थे- इसका अर्थ यह है कि उस राज्य का एक भाग शक्तिशाली और एक भाग दुर्बल होगा। आपने देखा है कि लोहा मिट्टी से मिला हुआ था- इसका अर्थ है कि विवाह-सम्बन्ध द्वारा राज्य के भागों को मिलाने का प्रयत्न किया जायेगा, किन्तु वे एक नहीं हो जायेंगे जिस तरह लोहा मिट्टी से एक नहीं हो सकता है।
44) ’’इन राज्यों के समय स्वर्ग का ईश्वर एक ऐसे राज्य की स्थापना करेगा, जो अनंत काल तक नष्ट नहीं होगा और जो दूसरे राष्ट्र के हाथ नहीं जायेगा। वह इन राज्यों को चूर-चूर कर नष्ट कर देगा और सदा बना रहेगा।
45) आपने देखा है कि अपने आप पर्वत पर से एक पत्थर गिर गया और उसने लोहा, पीतल, मिट्टी चाँदी और सोने को चूर-चूर कर दिया है, महान् ईश्वर ने राजा को सूचित किया कि भविय में क्या होने वाला है। यह स्वप्न सच्चा है और इसकी व्याख्या विश्वसनीय है।’’
सुसमाचार : सन्त लूकस 21:5-11
5) कुछ लोग मन्दिर के विषय में कह रहे थे कि वह सुन्दर पत्थरों और मनौती के उपहारों से सजा है। इस पर ईसा ने कहा,
6) ‘‘वे दिन आ रहे हैं, जब जो कुछ तुम देख रहे हो, उसका एक पत्थर भी दूसरे पत्थर पर नहीं पड़ा रहेगा-सब ढा दिया जायेगा’’।
7) उन्होंने ईसा से पूछा, ‘‘गुरूवर! यह कब होगा और किस चिन्ह से पता चलेगा कि यह पूरा होने को है?’’
8) उन्होंने उत्तर दिया, ‘‘सावधान रहो तुम्हें कोई नहीं बहकाये; क्योंकि बहुत-से लोग मेरा नाम ले कर आयेंगे और कहेंगे, ‘मैं वही हूँ’ और ‘वह समय आ गया है’। उसके अनुयायी नहीं बनोगे।
9) जब तुम युद्धों और क्रांतियों की चर्चा सुनोगे, तो मत घबराना। पहले ऐसा हो जाना अनिवार्य है। परन्तु यही अन्त नहीं है।’’
10) तब ईसा ने उन से कहा, ‘‘राष्ट्र के विरुद्ध राष्ट्र उठ खड़ा होगा और राज्य के विरुद्ध राज्य।
11) भारी भूकम्प होंगे; जहाँ-तहाँ महामारी तथा अकाल पड़ेगा। आतंकित करने वाले दृश्य दिखाई देंगे और आकाश में महान् चिन्ह प्रकट होंगे।
मनन-चिंतन
आज के पाठ हमें तीन चेतावनियाँ देते हैंः 1) बीतने वाली दुनिया, 2) झूठे भविष्यवक्ताओं के बहकावे में नहीं पड़ना और 3) इस दुनिया में घटित होने वाले चीज़ों से डरना नहीं।
बीतने वाली दुनियाः आज के पाठ हमें याद दिलाती है कि इस दुनिया में कुछ भी स्थायी नहीं है। आज का पहला पाठ सबसे शक्तिशाली राज्य के टुकड़े-टुकड़े होने और सुसमाचार में मंदिर के विनाश के बारे में बात करता है। इस धरती पर सब कुछ नष्ट हो रहा है। हमारी दुनिया और हमारा जीवन समाप्त हो जाएगा। बालक येसु की संत तेरेसा कहती हैं, ‘‘कुछ भी आपको परेशान न करें, कुछ भी आपको डराएं नहीं, सभी चीजें नष्ट हो जाती हैंः ईश्वर कभी नहीं बदलते’’।
धोखे में न आएंः येसु ने अपने अनुयायियों को दुनिया के अंत के बारे में सटीक विवरण जानने का दावा करने वाले झूठे भविष्यवक्ता पर विश्वास नहीं करने के लिए कहा क्योंकि यह उनकी अज्ञानता, अविश्वास और छलयोजना को उजागर करता है। मत्ती 24ः36 में लिखा है, ‘‘उस दिन और उस घड़ी के विषय में कोई नहीं जानता- न तो स्वर्ग के दूत और न पुत्र। केवल पिता ही जानता है।’’ वे स्वयं येसु से बेहतर जानने का दावा करते हैं। वे अंत समय के बारे में बोलकर लोगों को डरातेे हैं और दावा करते हैं कि उन्हें ईश्वर से रहस्योद्घाटन प्राप्त हुआ है। यह ईश्वर में उनके अविश्वास का खुलासा करता है। वे यह कहते हुए लोगों से छल़ करते हैं कि समय के अंत में उनके समूह से संबंधित सभी लोगों को बख्शा जाएगा या सभी परीक्षणों से सुरक्षित कर लिया जाएगा। इन झूठे भविष्यवक्ताओं पर विश्वास करने से हममें भय और घबराहट उत्पन्न होगा। इतनी सारी आवाजों और विकल्पों से लोग भ्रमित होंगे। हमें केवल मसीह और उसके वचनों पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है जो हमें सत्य की ओर ले जाएंगे।
भयभीत न होंः सुसमाचार में प्राकृतिक आपदाओं, व्यापक बीमारियों और स्वर्गीय निकायों की अप्राकृतिक गतिविधियों का उल्लेख करने का उद्देश्य हमें डराना नहीं है, बल्कि हमें यह आशा देना है कि येसु किसी भी विनाश और तबाही से कहीं अधिक शक्तिशाली हैं। अगर दुनिया की सोच हमें डराती है, तो इसका मतलब है कि हमारा जीवन अभी तक येसु के जीवन से नहीं मिला है। येसु में आशा और विश्वास रखते हुए, हमें डरने की कोई बात नहीं है। वह हमें संसार में आशा लाने और परीक्षाओं के बीच विश्वास को जीवित रखने के लिए प्रोत्साहित करता है।
आइए हम इस दुनिया की गुजरती वास्तविकताओं से अवगत हों, झूठी शिक्षाओं के बहकावें में न आएं बल्कि येसु पर अपना विश्वास और आशा रखना सीखें।
REFLECTION
Today’s readings give us three warnings: 1) Passing world, 2) not to be deceived by false prophets and 3) not to be afraid of happening in this world.
Passing world: The readings of today remind us that nothing is lasting in this world. First reading of today speaks of most powerful kingdom crumbling into pieces and the gospel about the destruction of the temple. All things on this earth are passing. Our world and our life will come to an end. St. Teresa of Jesus says, “Let nothing disturb you, let nothing frighten you, all things pass away: God never changes”.
Not be deceived: Jesus tells His followers not to believe false prophet’s claim of knowing exact details about the end of the world because it exposes their ignorance, distrust and manipulation. Mat. 13:32 reads “No one knows about the day or hour, not even the angels in heaven, nor the Son, but only the Father”. They claim to know better than Jesus himself. They panic the people speaking about end times and claim to have revelations from God. It discloses their distrust in God. They manipulate people saying that everyone belonging to their group will be spared or secured of all trails at the end of time. Believing in these false prophets will bring fear and panic in us. People will be confused with so many voices and choices. We need to focus only on Christ and His words which will lead us to the truth.
Not be terrified: The purpose of mentioning natural disasters, widespread diseases and unnatural movements of the heavenly bodies in the gospel is not to frighten us but to instill in us hope that Jesus is far more powerful than any destruction and devastation. If the thought of the world frightens us, it means that our life is not yet attuned with the life of Jesus. Having hope and faith in Jesus, we have nothing to fear. He encourages us to bring hope into the world and to keep the faith alive in midst of trials.
Let us become aware of the passing realities of this world, not to be carried away with the false teaching but learn to place our faith and hope in Jesus.
मनन-चिंतन - 2
जब लोग यरूसालेम के मंदिर की बाहरी सुंदरता की सराहना कर रहे थे, तब प्रभु येसु शायद उस से अधिक महत्वपूर्ण बातों के बारे में सोच रहे थे। 1राजाओं 9 में हम पढ़ते हैं कि जब राजा सुलैमान ने यरूसालेम के खूबसूरत मंदिर को ईश्वर को समर्पित किया और ईश्वर से वहाँ लोगों को आशीर्वाद लेने के लिए उपस्थित होने की प्रार्थना की, तो प्रभु ने अपनी उपस्थिति के लिए कुछ शर्तें रखीं। उन्होंने राजा से कहा कि अगर वह और इस्राएल के लोग उन्हें प्यार करने और उनकी आज्ञाओं का पालन करने में विश्वसनीय बने रहेंगे, तो उनकी आँखें और दिल हर समय उस मंदिर में रहेगा। लेकिन अगर वे उनकी अवज्ञा करते हैं और उनकी आज्ञाओं और विधियों को नहीं रखते हैं, तो वे इस्राएलियों को उस देश से निकाल देंगे, जिसे उन्होंने उन्हें दिया था और उस मन्दिर को त्याग देंगे, जिसका उन्होंने अपने नाम के लिए प्रतिष्ठान किया था और सब राष्ट्र इस्राएल की निन्दा और उपहास करेंगे। (देखें 1राजाओं 9: 7) मंदिर की पूजा का समुदाय के लोगों के जीवन से संबंध है। अगर हम ईमानदारी से उनसे प्यार करते हैं और उनकी आज्ञाओं का पालन करते हैं, तो ईश्वर मंदिर में हमारे बलिदानों से प्रसन्न होंगे। दूसरी ओर, यदि हम अच्छे कार्यों द्वारा प्रभु के नाम की महिमा से पीछे हटते हैं, तो मंदिर में हमारे बलिदान सार्थक या स्वीकार्य नहीं होंगे।
REFLECTION
When people were appreciating the external beauty of the Temple of Jerusalem, Jesus was thinking about greater things. In 1Kgs 9 we read that when King Solomon dedicated the beautiful temple of Jerusalem and prayed to God to be present there to bless the people, God in reply put certain conditions for his presence. He told the king that if he and the people of Israel were faithful in loving Him and following His commandments, his eyes and heart will be there all the time. But if they disobey him and do not keep his commandments and statutes, then he would cut Israel off from the land that he had given them; and the house that he had consecrated for his name He would cast out of His sight; and Israel will become a proverb and a taunt among all peoples (cf. 1Kgs 9:7). The temple worship and the life should go hand in hand. If we sincerely love him and follow His commandments, the Lord will be pleased with our worship in the temple. On the other hand, if we do not glorify the name of the Lord by good deeds, our temple worship will not be meaningful or acceptable.
✍ -Br. Biniush topno
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