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शुक्रवार, 12 नवंबर, 2021

 

शुक्रवार, 12 नवंबर, 2021

वर्ष का बत्तीसवाँ सामान्य सप्ताह

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पहला पाठ: प्रज्ञा-ग्रन्थ 13:1-9


1) वे मनुष्य कितने मूर्ख है, जिन में ईश्वर का ज्ञान नहीं है! जो दृष्य जगत् को देख कर ‘सत्‘ नामक ईश्वर को नहीं जान सके, जो सृष्टि को देख कर सृष्टिकर्ता को पहचानने में असमर्थ रहे!

2) किन्तु उन्होंने अग्नि, पवन, सूक्ष्म वायु, तारामण्डल, जल का तीव्र प्रवाह अथवा आकाश के ज्योति-पिण्डों को संसार का संचालन करने वाले देवता समझा है।

3) यदि उन्होंने इन वस्तुओं के सौन्दर्य से मोहित हो कर इन्हें देवता समझ लिया है, तो वे यह जान जायें कि इन सब का स्वामी इन से कितना श्रेष्ठ है; क्योंकि समस्त सौन्दर्य के मूलस्त्रोत द्वारा उनकी सृष्टि हुई है

4) और यदि वे इन वस्तुओं की शक्ति और क्रियाशीलता से प्रभावित हुए, तो वे इन वस्तुओं से अनुमान लगायें कि इनका निर्माता, कितना अधिक शक्तिशाली है;

5) क्योंकि सृष्ट वस्तुओं की महानता और सौन्दर्य के आधार पर इनके निर्माता का अनुमान लगाया जा सकता है।

6) किन्तु उन लोगों का दोष बड़ा नहीं है; क्योंकि वे ईश्वर को ढूँढ़ते और उसे पाने के इच्छुक थे, किन्तु वे भटक गये।

7) वे ईश्वर के कार्यों के बीच जीवन बिता कर उनकी छानबीन करते और दृष्य वस्तुओं के सौन्दर्य के कारण भ्रम में फँस जाते हैं।

8) फिर भी वे लोग क्षम्य नहीं है;

9) क्योंकि यदि वे ज्ञान में इतना आगे बढ़ गये थे कि विश्व के विषय में चिन्तन कर सके, तो वे शीघ्र ही इसके स्वामी को क्यों नहीं पहचान सके?



सुसमाचार : सन्त लूकस 17:26-37



26) ‘‘जो नूह के दिनों में हुआ था, वही मानव पुत्र के दिनों में भी होगा।

27) नूह के जहाज़ पर चढ़ने के दिन तक लोग खाते-पीते और शादी-ब्याह करते रहे। तब जलप्रलय आया और उसने सब को नष्ट कर दिया।

28) लोट के दिनों में भी यही हुआ था। लोग खाते-पीते, लेन-देन करते, पेड़ लगाते और घर बनाते रहे;

29) परन्तु जिस दिन लोट ने सोदोम छोड़ा, ईश्वर ने आकाश से आग और गंधक बरसायी और सब-के-सब नष्ट हो गये।

30) मानव पुत्र के प्रकट होने के दिन वैसा ही होगा।

31) ‘‘उस दिन जो छत पर हो और उसका सामान घर में हो, वह उसे ले जाने नीचे न उतरे और जो खेत में हो, वह भी घर न लौटे।

32) लोट की पत्नी को याद करो।

33) जो अपना जीवन सुरक्षित रखने का प्रयत्न करेगा, वह उसे खो देगा, और जो उसे खो देगा, वह उसे सुरक्षित रखेगा।

34) ’’मैं तुम से कहता हूँ, उस रात दो एक खाट पर होंगे-एक उठा लिया जायेगा और दूसरा छोड़ दिया जायेगा।

35) दो स्त्रियाँ साथ-साथ चक्की पीसती होंगी-एक उठा ली जायेगी और दूसरी छोड़ दी जायेगी।’’

36) ’’मैं तुम से कहता हूँ, दो खेत में होंगे-एक उठा लिया जायेगा और दूसरा छोड़ दिया जायेगा।

37) इस पर उन्होंने ईसा से पूछा, ‘‘प्र्रभु! यह कहाँ होगा?’’ उन्होंने उत्तर दिया, ‘‘जहाँ लाश होगी, वहाँ गीध भी इकट्ठे हो जायेंगे’’।



मनन-चिंतन



आज का सुसमाचार दो महत्वपूर्ण पहलूओं की भविष्यवाणी करता है -

 राज्य का हिस्सा बनने के लिए आवश्यक तैयारी

 राज्य के आने का अज्ञात समय ।

जीवन की सामान्य दिनचर्या में हमें अपनी और संबंधित अन्य लोगो की भौतिक और अन्य जरूरतो की देखभाल करने की आवश्यकता होती है । यह हर इंसान की जिम्मेदारी है । येसु हमे अनंत जीवन के विषय में एक कदम आगे सोचने के लिए आमंत्रित करते है । अनन्त जीवन की तुलना में इस संसार की अवश्यकताओं की कोई कीमत नहीं है । नूह और लोट के दिनों में लोग भौतिक संसार में व्यस्त थे जबकि नूह और लोट एक कदम आगे बढ गए थे उन्होंने ईश्वर की बात मानी और उसी के अनुसार जलप्रलय और आग का सामना करने के लिए अपने आप को तैयार किया जिसने पृथ्वी पर सभी को और सदोम के लोगों को नष्ट कर दिया । परिवार के सदस्यों सहित उन्हें बचा लिया गया । हमें हमारे प्रियजनों, हमारे समाज और दुनिया की हर चींजो को त्यागने की जरूरत नहीं बल्कि उनका उपयोग। साथ जीवन के अर्थ और उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए करना है ।

बजाय इसके कि हम अपना जीवन खो दें। हालांकि आखिरी मिनट/समय में अच्छी तरह से तैयार होने के बावजूद लोट की पत्नी नमक के खम्भे में बदल गई । अर्थ और उद्देश्यको भूल जाना हमेशा विनाश को आमंत्रित करेगा ।

ईश्वर के राज्य के महिमामय आगमन पर भी घ्यान देने की आवश्यकता है । यह एक अप्रत्याशित समय है । इसलिए इसके आगमन के लिए सभी को सदैव तैयार रहने की जरूरत है । बाद के लिए स्थगित करने से हमे केवल और केवल खेद और निराशा हो सकती है । हमें दिया गया समय कम है और उस समय पर हमारा कोई नियंत्रण नही है । यही कारण है कि संत पौलुस कहते है, “और देखिए अभी उपयुक्त समय है, अभी कल्याण का दिन है ।“ (श्कुरि 6:2 बी).




REFLECTION



Today’s gospel foretells two important aspects: the preparation required to be the part of the kingdom and the unknown time of the coming of the kingdom.

In the normal routine of life we need to look after the physical and material needs of oneself and of others related to them. It is a responsibility of every human person. Jesus invites us to think a step further about the eternal life. As compared to eternal life the needs of this world are worth nothing.

In the days of Noah and Lot people were busy in the material world where as Noah and Lot went a step further. They listened to God and prepared themselves accordingly to face the flood and the fire which destroyed everyone on earth and people of Sodom. They were saved along with their family members. It is not to discard our loved ones, our society and everything in the world but to use them to achieve the meaning and purpose of life rather than losing our life to them. Though well prepared the last minute attachment turned Lot’s wife into a pillar of salt. Forgetting the meaning and purpose will always invite destruction.

Imminent arrival of the kingdom of God is also need to be looked into. It is an unexpected time. Therefore all need to be ready at its arrival. Postponing for later stage may cause regret and disappointment. The time given to us is short and we have no control over that time. That is why St. Paul says “See now is the acceptable time; see now is the day of salvation” 2Cor. 6:2b.




मनन-चिंतन - 2



प्रभु येसु बार-बार हमें बताते हैं कि अंत बिना किसी घोषणा या चेतावनी के अचानक आएगा। इसलिए हमें हमेशा तैयार रहना होगा। येसु चाहते हैं कि हम जागते रहें और हर समय तैयार रहें। अचानक पकड़ा जाना एक त्रासदी होगी। नूह के समय में लोग अपने जीवन की बहुत सी चीजों और चिंताओं में व्यस्त थे। वे इस पर ध्यान नहीं दे रहे थे कि अपने निर्माता और प्रभु हम से क्या अपेक्षा रखते हैं। नूह ईश्वर से जुड़े हुए थे। हम भी बहुत सारी चीजों में व्यस्त हो सकते हैं और प्रभु को भूल सकते हैं। हम अपने काम, आराम, कार्यक्रमों और परियोजनाओं में डूबे रह सकते हैं। येसु चाहते हैं कि हम अपने ईश्वर के प्रति प्रेम और अपने उद्धार के बारे में चिंतित हों। दुनिया के कार्यों में फंसे, हमें उस उद्धार को नहीं भूलना चाहिए जो प्रभु हमें प्रदान करते हैं। मार्था के प्रति उनकी प्रतिक्रिया हमारे मनन-चिंतन के योग्य है, "मरथा! मरथा! तुम बहुत-सी बातों के विषय में चिन्तित और व्यस्त हो; फिर भी एक ही बात आवश्यक है। मरियम ने सब से उत्तम भाग चुन लिया है; वह उस से नहीं लिया जायेगा।”(लूकस 10: 41-42)



REFLECTION



Time and again Jesus tells us that the end will suddenly come without any announcement or warning. Therefore we have to be prepared always. Jesus wants us to keep awake and be ready at all times. It will be tragedy to get caught unaware. At the time of Noah people were busy with too many things and concerns of their lives. They hardly bothered about what their Creator and Lord expected from them. Noah was tuned to God. We too can be busy with too many things and can forget God. We can be immersed in our work, in our comfort, in our programmes and projects. Jesus wants us to be concerned about our love for God and about our salvation. Caught up in the chores of the world, we should not lose sight of the Salvation the Lord offers to us. His response to Martha is worth reflecting upon, “Martha, Martha, you are worried and distracted by many things; there is need of only one thing. Mary has chosen the better part, which will not be taken away from her.” (Lk 10:41-42)


 -Br Biniush Topno


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Praise the Lord!

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