इतवार, 24 अक्टूबर, 2021
वर्ष का तीसवाँ सामान्य इतवार
पहला पाठ :यिरमियाह का ग्रन्थ 31:7-9
7) क्योंकि प्रभु यह कहता है- “याकूब के लिए आनन्द के गीत गाओ। जो राष्ट्रों में श्रेष्ठ है, उसका जयकार करो; उसका स्तुतिगान सुनाओ और पुकार कर कहो: ’प्रभु ने अपनी प्रजा का, इस्राएल के बचे हुए लोगों का उद्धार किया है’।
8) देखो, में उन्हें उत्तरी देश से वापस ले आऊँगा, पृथ्वी के सीमान्तों से उन्हें एकत्र कर लूँगा। उन में अन्धे, लँगड़े, गर्भवती और प्रसूता स्त्रियाँ हैं। वे बड़ी संख्या में लौट रहे हैं।
9) वे रोते हुए चले गये थे, मैं उन्हें सांत्वना दे कर वापस ले आऊँगा। मैं उन्हें जलधाराओं के पास ले चलूँगा, मैं उन्हें समतल मार्ग से ले चलूँगा, जिससे उन्हें ठोकर न लगे ; क्योंकि मैं इस्राएल के लिए पिता-जैसा हूँ और एफ्ऱईम मेरा पहलौठा है।
दूसरा पाठ: इब्रानियों के नाम पत्र 5:1-6
1) प्रत्येक प्रधानयाजक मनुष्यों में से चुना जाता और ईश्वर-सम्बन्धी बातों में मनुष्यों का प्रतिनिधि नियुक्त किया जाता है, जिससे वह भेंट और पापों के प्रायश्चित की बलि चढ़ाये।
2) वह अज्ञानियों और भूले-भटके लोगों के साथ सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार कर सकता है, क्योंकि वह स्वयं दुर्बलताओं से घिरा हुआ है।
3) यही कारण है कि उसे न केवल जनता के लिए, बल्कि अपने लिए भी पापों के प्रायश्चित की बलि चढ़ानी पड़ती है।
4) कोई अपने आप यह गौरवपूर्ण पद नहीं अपनाता। प्रत्येक प्रधानयाजक हारुन की तरह ईश्वर द्वारा बुलाया जाता है।
5) इसी प्रकार, मसीह ने अपने को प्रधानयाजक का गौरव नहीं प्रदान किया। ईश्वर ने उन से कहा, - तुम मेरे पुत्र हो, आज मैंने तुम्हें उत्पन्न किया है।
6) अन्यत्र भी वह कहता है- तुम मेलखिसेदेक की तरह सदा पुरोहित बने रहोगे।
सुसमाचार : सन्त मारकुस का सुसमाचार 10:46-52
46) वे येरीख़ो पहुँचे। जब ईसा अपने शिष्यों तथा एक विशाल जनसमूह के साथ येरीख़ो से निकल रहे थे, तो तिमेउस का बेटा बरतिमेउस, एक अन्धा भिखारी, सड़क के किनारे बैठा हुआ था।
47) जब उसे पता चला कि यह ईसा नाज़री हैं, तो वह पुकार-पुकार कर कहने लगा, ’’ईसा, दाऊद के पुत्र! मुझ पर दया कीजिए’’!
48) बहुत-से लोग उसे चुप करने के लिए डाँटते थे; किन्तु वह और भी जोर से पुकारता रहा, ’’दाऊद के पुत्र! मुझ पर दया कीजिए’’।
49) ईसा ने रूक कर कहा, ’’उसे बुलाओ’’। लोगों ने यह कहते हुए अन्धे को बुलाया, ’’ढ़ारस रखो। उठो! वे तुम्हें बुला रहे हैं।’’
50) वह अपनी चादर फेंक कर उछल पड़ा और ईसा के पास आया।
51) ईसा ने उस से पूछा, ’’क्या चाहते हो? मैं तुम्हारे लिए क्या करूँ?’’ अन्धे ने उत्तर दिया, ’’गुरुवर! मैं फिर देख सकूँ’’।
52) ईसा ने कहा, ’’जाओ, तुम्हारे विश्वास ने तुम्हारा उद्धार किया है’’। उसी क्षण उसकी दृष्टि लौट आयी और वह मार्ग में ईसा के पीछे हो लिया।
📚 मनन-चिंतन
बरतिमेउस एक अंधा भिखारी था। जैसा कि उनकी दयनीय दर्शाती है कि उसका जीवन बहुत तकतीफ़ में था। अंधापन और गरीबी जीवन को बहुत कठिन बना देती है। बरतिमेउस अपने पूरे जीवन में इसको भोग रहा था। जब वह सड़क के किनारे बैठा था, तो उसे किसी तरह पता चला कि येसु वहाँ से गुजर रहे है। वह जानता था कि येसु उसके लिए कुछ असंभव करने में सक्षम है। यह उसके जीवन-मरण का अवसर था जिसे वह जानता था कि वह इसे गंवा नहीं सकता। वह उस एक व्यक्ति के करीब जाने के लिए दृढ़ था जो उसकी जरूरत को पूरा कर सकते थे। वह निश्चित रूप से जानता था कि येसु कौन थे और उसने चंगाई के लिए उसकी प्रसिद्धि के बारे में सुना था, लेकिन अब तक उसके पास दाऊद के पुत्र, मसीह के साथ संपर्क बनाने का कोई साधन नहीं था। येरुसालेम जाते समय येसु के चारों ओर भीड़ थी और येसु का ध्यान आकर्षित करने के लिए बरतिमेउस को बहुत साहस और दृढ़ता की आवश्यकता थी। अंधे के लगातार चीखने-चिल्लाने से भीड़ नाराज हो गई। वह शायद उनकी शांति भंग कर रहा था और येसु के साथ उनकी बातचीत को बाधित कर रहा था। जब भीड़ ने अंधे बरतिमेउस को चुप कराने की कोशिश की तो उसने अपनी भावनात्मक पुकार से उन पर काबू पा लिया और इस तरह येसु का ध्यान आकर्षित किया।
यह घटना इस बारे में कुछ महत्वपूर्ण प्रकट करती है कि ईश्वर हमारे साथ कैसे व्यवहार करता है। अंधा व्यक्ति येसु का ध्यान आकर्षित करने के लिए दृढ़ था और विरोध का सामना करने के लिए वह दृढ़ था। प्रवक्ता ग्रंथ ३५:२०-२१ कहती है, " जो सारे हृदय से प्रभु की सेवा करता है, उसकी सुनवाई होती है और उसकी पुकार मेघों को चीर कर ईश्वर तक पहुँचती हैं। वह तब तक आग्रह करता रहता, जब तक सर्वोच्च ईश्वर उस पर दयादृष्टि न करे और धर्मियों को न्याय न दिलाये।" येसु उसे अनदेखा नहीं कर सकते थे क्योंकि वह चिल्लाता रहा और उनका ध्यान आकर्षित करता रहा। वास्तव में, बरतिमेउस वही कर रहा था जो येसु ने विधवा और अन्यायी न्यायी के दृष्टान्त में कहा था। "और क्या परमेश्वर अपने चुने हुओं को न्याय न देगा जो दिन रात उसकी दुहाई देते हैं? क्या वह उनकी मदद करने में देर करेगा? मैं तुम से कहता हूं, कि वह उन्हें शीघ्र न्याय देगा। तो भी जब मनुष्य का पुत्र आएगा, तो क्या वह पृथ्वी पर विश्वास पाएगा?” (लूकस १८:७-८) यह येसु में एकमात्र विश्वास था जो दृढ़ता के साथ जुड़ा हुआ था जिससे उसने ईश्वर का अनुग्रह प्राप्त किया। बरतिमेउस इतना दृढ़ निश्चयी था कि भीड़ की फटकार भी उसकी आत्मा को नहीं गिरा सकती थी। येसु ने उसमें विश्वास, दृढ़ता और दृढ़ संकल्प के सिद्ध तत्व पाए। उसकी सराहना की जानी चाहिए क्योंकि वह अंधा और गरीब भिखारी होने के बावजूद ऐसा कर रहा था।
येसु ने दिखाया कि कार्य बात करने से ज्यादा महत्वपूर्ण था। इस आदमी की सख्त जरूरत थी और येसु न केवल उसकी पीड़ा के साथ सहानुभूति रखने के लिए बल्कि उसे दूर करने के लिए भी तैयार थे। येसु विश्वास की आँखों से पहचानने के लिए बरतिमेउस की प्रशंसा करते हैं और उन्हें शारीरिक दृष्टि भी प्रदान करते हैं।
बरतिमेउस सिखाता है कि चंगाई कैसे प्राप्त करें और कैसे प्रार्थना करें। जब हम जीवन की घटनाओं की तलाश करते हैं तो वे हमें बताते रहते हैं कि हम एक चट्टान से टकरा गए हैं और कोई सुधार नहीं हुआ है। जब हम प्रार्थना करते हैं, तो हम महसूस कर सकते हैं कि स्थिति बद से बदतर होती जा रही है। हम हताश हो जाते हैं और हार मान लेते हैं। लेकिन बरतिमेउस को भी ऐसी स्थिति का सामना करना पड़ रहा था। वह कुछ असंभव खोज रहा था। वह अन्धा था। वह एक गरीब भिखारी है। वह हताश था। भीड़ की फटकार से वह निराश हो गया। लेकिन वह येसु के सामने अपनी उपस्थिति दर्ज कराने की कोशिश करता रहा। हमें भी प्रार्थना करते समय बरतिमेउस के आदर्श को अपनाना चाहिए।
📚 REFLECTION
Bartimaeus was a blind beggar. He had as his state suggests miserable run of life. Blindness and poverty make life very hard. Bartimaeus had been through it all his life. While he was sitting at the roadside, he somehow came to know that Jesus was passing by. He knew Jesus was able to do something impossible for him. It was a once in a lifetime opportunity he knew he could not pass up. He was determined to get near that one person who could meet his need. He definitely knew who Jesus was and had heard of his fame for healing, but until now had no means of making contact with the Son of David, the Messiah. It took a lot of courage and persistence for Bartimaeus to get the attention of Jesus over the noisy crowd who crowded around Jesus as he made his way to Jerusalem. The crowd was annoyed with the blind man's persistent shouts. He was perhaps disturbing their peace and interrupting their talk with Jesus. When the crowd tried to silence the blind Bartimaeus he overpowered them with his emotional outburst and thus caught the attention of Jesus.
This incident reveals something important about how God interacts with us. The blind man was determined to get Jesus' attention and he was persistent in the face of opposition. The book of Sirach 35:21 says, “The prayer of the humble pierces the clouds, and it will not rest until it reaches its goal; it will not desist until the Most High responds” Jesus could not ignore him because he kept on shouting and imploring his attention. In fact, Bartimaeus was doing what the Lord had told in the parable of the widow and the unjust judge. “And will not God grant justice to his chosen ones who cry to him day and night? Will he delay long in helping them? I tell you, he will quickly grant justice to them. And yet, when the Son of Man comes, will he find faith on earth?” (Luke 18:7-8) It was the sole faith in Jesus coupled with persistence that won him God’s favour. Bartimaeus was so determined that even the rebuke of the crowd could not pull down his spirit. Jesus found in him perfect ingredients of faith, persistence and determination. He was to be appreciated because he was doing it inspite of the fact that he was blind and a poor beggar.
Jesus showed that acting was more important than talking. This man was in desperate need and Jesus was ready, not only to empathize with his suffering but to relieve it as well. Jesus commends Bartimaeus for recognizing who he is with the eyes of faith and grants him physical sight as well.
Bartimaeus teaches how to receive healing and how to pray. While we seek the events of life keep on telling us that we have hit a rock bottom and there is no recovery. While we pray, we may realize that situation keeps on growing from worse to worst. We become desperate and give up. But Bartimaeus too was facing such a situation. He was seeking something impossible. He was blind. He is a poor beggar. He was desperate. He was discouraged by the rebukes of the crowd. But he kept on trying to make his presence felt in the sight of Jesus. We too must adopt the model of Bartimaeus while we pray.
मनन-चिंतन - 2
जब कोई व्यक्ति लक्ष्य बनाता है तो उस तक पहुँचने के लिए कई कठिनाईयों का सामना करना पड़ता है। परन्तु उसमें साहस, आशा या उर्जा हो तो वह हर बाधा को पार कर उसे पा लेता है। मनुष्य को कई प्रकार की बाधाओं का सामना करना पडता है - शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक, पारिवारिक, सामाजिक आदि। सुसमाचार में हम ऐसे कई पात्रो के विषय में जानते हैं, जिनको विशेषकर प्रभु येसु से मिलने या उनके पास आने के लिए इन बाधाओं का सामना करना पड़ा। जैसे ज़केयुस को सामाजिक एवं शारीरिक बाधाओं का सामना करना पडा क्योंकि वह नाकेदार था तथा उस का कद छोटा था; रक्तस्राव से पीड़ित स्त्री को उस स्थिति में समाज में आना वर्जित था; बच्चों को समाज में ऊँचा दर्जा प्राप्त न होने के कारण रब्बी के पास आने में रुकावट थी; एक गैर-यहूदी होने के कारण कनानी स्त्री का अपनी बेटी की चंगाई के लिए प्रभु से प्रार्थना करने में संकोच था इत्यादि। परन्तु इन सब ने इन बाधाओं का सामना कर प्रभु येसु से कृपाएं और आशीष प्राप्त की।
आज के सुसमाचार में हम येसु द्वारा एक अंधे व्यक्ति की चंगाई की घटना पाते हैं। एक अंधे व्यक्ति के मन में हमेशा क्या आस लगी रहती है या उसके मन में क्या विचार चलता रहता हैः यही कि बिना आँख की रोशनी से उसे दर दर ठोकर खाना पड़ता है, लोगों से हर समय मदद माँगनी पड़ती; कोई मदद करता है तो कोई नहीं। एक अँधे व्यक्ति के जीवन में सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण बात क्या हो सकती हैः धन-दौलत? नहीं, परन्तु सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण उसकी आँखो की रोशनी है। वह आँख की रोशनी पाने के लिए हर प्रयत्न, प्रयास करता है; वैद्य के पास जाना, हर प्रकार के नुस्खे अपनाना आदि। जब इन सब चीज़ो से कुछ असर नहीं मिलता तो वह आखिर में ईश्वर की दुहाई देता है। उसने ईश्वर के वचनों और ग्रंथ में लिखी हुई बातों को सुना होगा। ‘‘प्रभु यह कहते हैः ‘वे दिन आ रहे हैं, जब मैं दाऊद के लिए एक न्यायी वंशज उत्पन्न करूँगा।’’ (यिरमियाह 23:5) ’’यिशय के धड़ से एक टहनी निकलेगी, उसकी जड़ से एक अंकुर फूटेगा। प्रभु का आत्मा उस पर छाया रहेगा, प्रज्ञा तथा बुद्धि का आत्मा, सुमति तथा धैर्य का आत्मा, ज्ञान तथा ईश्वर पर श्रद्धा का आत्मा’’(इसायह 11:1-2)। ‘‘ढारस रखों डरो मत! देखो, तुम्हारा ईश्वर आ रहा है। वह बदला चुकाने आता है, वह प्रतिशोध लेने आता है, वह स्वयं तुम्हे बचाने आ रहा है। तब अन्धों की आँखें देखने और बहरों के कान सुनने लगेंगे। लँगड़ा हिरणी की तरह छलाँग भरेगा। और गूँगे की जीभ आनन्द का गीत गायेगी।’’ (इसायह 35:4-5)।
उस अँधे व्यक्ति को इतना तो जरूर ज्ञात था कि ईश्वर ने उसे अकेला नही छोड़ा है परन्तु एक मसीहा आएगा जो कि दाऊद के वंश से होगा और वह उसकी हर पीड़ा को दूर कर देगा। अनेक यहूदियों की तरह वह भी उसका इंतज़ार करता है। उसे येसु नाज़री के विषय में पता चला होगा कि किस प्रकार येसु अनेकों को चंगाई प्रदान कर रहें है, तब वह विश्वास करने लगा कि यह वही है जो आने वाला था और वही उसके आँखों को रोशनी दिला सकता है। अतः वह उस पल का इंतज़ार करने लगा कि कब येसु वहाँ से गुजरे और वह अपनी प्रार्थना येसु के सामने प्रकट कर सकें।
अंततः वह पल आ ही गया जिसका उसे इंतज़ार था, जब उसे पता चला कि येसु वहाँ से गुजर रहे हैं तो वह येसु को पुकारने लगा। परंतु लोगों नें उसे चुप रहने के लिए कहा। लोगों की बात सुन कर उसे लग रहा था मानो उसके हाथ से रेत फिसलती जा रही हो और उसे मालूम था अगर आज वह येसु से नहीं मिल पाया तो वह कभी भी चंगा नहीं हो पायेगा इसलिए वह अपनी पूरी शक्ति से और भी ज़ोर से पुकारने लगा। अंततः प्रभु येसु उसे बुलाते हैं और वार्तालाप के बाद अंत में कहते हैं कि “जाओ, तुम्हारे विश्वास ने तुम्हारा उद्धार किया है”। और वह चंगा हो जाता हैं।
यह भले ही शारीरिक चंगाई के विषय में क्यों न हो परन्तु यह हमारे आध्यात्मिक जीवन के लिए सबसे अच्छा उदाहरण है। यह घटना हमें कई चीज़ें सिखाती है। सर्वप्रथम, पवित्र होने की इच्छा या लालसा। अक्सर हमारे दुखों का कारण हमसे पाप होते है जो हमारे जीवन में कई प्रकार से दुख लाकर हमारे जीवन को बेजान कर देते है ‘‘क्योंकि पाप का वेतन मृत्यु है’’(रोमियो 6:23)। लोग पाप में इतना डूब जाते हैं कि उन्हें वही जीवन लगने लगता है परंतु जो पाप से, दुखों से निराश है वह अपने जीवन को बदलने की भरपूर कोशिश करता है। हर प्रकार के नुस्खे अपनाता है, संसार में दी गई जानकारी, मनोवैज्ञानिक तरीकों से, विभिन्न लोगों के परामर्शो आदि से। कुछ दिन तक तो वह असर करती है परंतु फिर से वही पुराना जीवन सामने आ जाता है। हमारे जीवन का सिर्फ एक ही व्यक्ति उद्धार कर सकता है और वह है प्रभु येसु ख्रीस्त ‘‘क्योंकि समस्त संसार में ईसा नाम के सिवा मनुष्यों को कोई दूसरा नाम नहीं दिया गया है, जिसके द्वारा हमे मुक्ति मिल सकती है’’ (प्रेरित चरित 4:12)। यह मालूम होने पर कि हमारा उद्धार केवल एक ही ईश्वर, प्रभु येसु ख्रीस्त कर सकते है हमें उनसे मिलने और प्रार्थना करने के लिए निरंतर तैयार रहना चाहिए। कई लोग, कई परिस्थितिया, अच्छी और बुरी स्थिति, कई कार्य हमें रोकने की कोशिश करेंगे ताकि हम चुप हो जायें और प्रभु को न पुकारें। ये सारे कार्य शैतान की ओर से हमें भटकाने के लिए आते है। ऐसे समय में हमें और भी तत्परता से प्रभु को पुकारना या प्रभु के पास जाने का प्रयत्न करना चाहिए और अंततः हमें हमारे प्रयासों और प्रयत्नों का फल अवश्य मिलेगा।
इस पूरी प्रक्रिया में सबसे महत्वपूर्ण है विश्वास। प्रभु येसु ने उस अंधे व्यक्ति से कहा कि जाओ, तुम्हारे विश्वास ने तुम्हारा उद्धार किया है। उसका क्या विश्वास था? उसका यही विश्वास था कि येसु नाज़री ही प्रभु द्वारा भेजे गये मसीहा है और वही उसका उद्धार कर सकते हैं और कोई नहीं। उसके प्रयासों से अधिक उसके विश्वास ने उसे चंगाई प्राप्त कराई। क्योंकि उसके विश्वास ने उसे हर बाधा को पार करने की शक्ति एवं आशा दी। अगर उसका यह विश्वास होता कि येसु दूसरों के समान कोई साधारण व्यक्ति है जो कुछ चमत्कार दिखाता है तो वह शायद ही वह देख पाता। यह पूरी घटना हमें विश्वास में मजबूत होने के लिए प्रेरित करती है। प्रभु येसु कहते हैं, ‘‘यदि तुम्हारा विश्वास राई के दाने के बराबर भी होता और तुम इस पहाड़ से यह कहो, यहाँ से वहाँ तक हट जा, तो यह हट जायेगा; और तुम्हारे लिए कुछ भी असम्भव नहीं होगा’’ (मत्ती 17:20)।
अक्सर लोगो की धारणा रहती है कि अगर हमारे जीवन कुछ चमत्कार हो जाये तो हम विश्वास करेंगे परंतु सही धारणा यह कि अगर हम विश्वास करेंगे तो हम हमारे जीवन में ईश्वर की आशीषों को देखेंगे। ईसा ने मारथा से कहा, ‘’यदि तुम विश्वास करोगी तो ईश्वर की महिमा देखोगी’’(योहन 11:40)। आईये भले ही कितने दुख, संकट या भले ही कितने अच्छे या भले समय आ जाये या कितनी ही बाधाएँ क्यों न आ जाये, हम विश्वास में कमजोर नहीं परंतु विश्वास में निरंतर बढ़ते जाये।
✍Br. Biniush Topno
No comments:
Post a Comment