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शनिवार, 23 अक्टूबर, 2021

 

शनिवार, 23 अक्टूबर, 2021

वर्ष का उन्तीसवाँ सामान्य सप्ताह

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पहला पाठ रोमियों के नाम सन्त पौलुस का पत्र 8:1-11


1) जो लोग ईसा मसीह से संयुक्त हैं, उनके लिए अब कोई दण्डाज्ञा नहीं रह गयी है;

2) क्योंकि आत्मा के विधान ने, जो ईसा मसीह द्वारा जीवन प्रदान करता है, मुझ को पाप तथा मृत्यु की अधीनता से मुक्त कर दिया है।

3) मानव स्वभाव की दुर्बलता के कारण मूसा की संहिता जो कार्य करने में असमर्थ थी, वह कार्य ईश्वर ने कर दिया है। उसने पाप के प्रायश्चित के लिए अपने पुत्र को भेजा, जिसने पापी मनुष्य के सदृश शरीर धारण किया। इस प्रकार ईश्वर ने मानव शरीर में पाप को दण्डित किया है;

4) जिससे हम में- जो कि शरीर के अनुसार नहीं, बल्कि आत्मा के अनुसार आचरण करते हैं- संहिता की धार्मिकता पूर्णता एक पहुँच जाये।

5 (5-6) क्योंकि जो शरीर की वासनाओं सें संचालित हैं, वे शरीर की बातों की चिन्ता करते हैं और इसका परिणाम मृत्यु है: जो आत्मा से संचालित हैं, वे आत्मा की बातों की चिन्ता करते हैं और इसका परिणाम जीवन और शान्ति है।

7) क्योंकि शरीर की वासना ईश्वर के प्रतिकूल है। वह ईश्वर के नियम के अधीन नहीं होती और हो भी नहीं सकती।

8) जो लोग शरीर की वासनाओं से संचालित हैं, उन पर ईश्वर प्रसन्न नहीं होता।

9) यदि ईश्वर का आत्मा सचमुच आप लोगों में निवास करता है, तो आप शरीर की वासनाओं से नहीं, बल्कि आत्मा से संचालित हैं। जिस मनुष्य में मसीह का आत्मा निवास नहीं करता, वह मसीह का नहीं।

10) यदि मसीह आप में निवास करते हैं, तो पाप के फलस्वरूप शरीर भले ही मर जाये, किन्तु पापमुक्ति के फलस्वरूप आत्मा को जीवन प्राप्त है।

11) जिसने ईसा को मृतकों में से जिलाया, यदि उनका आत्मा आप लोगों में निवास करता है, तो जिसने ईसा मसीह को मृतकों में से जिलाया वह अपने आत्मा द्वारा, जो आप में निवास करता है, आपके नश्वर शरीरों को भी जीवन प्रदान करेगा।


सुसमाचार : सन्त लूकस 13:1-9


1) उस समय कुछ लोग ईसा को उन गलीलियों के विषय में बताने आये, जिनका रक्त पिलातुस ने उनके बलि-पशुओं के रक्त में मिला दिया था।

2) ईसा ने उन से कहा, "क्या तुम समझते हो कि ये गलीली अन्य सब गलीलियों से अधिक पापी थे, क्योंकि उन पर ही ऐसी विपत्ति पड़ी?

3) मैं तुम से कहता हूँ, ऐसा नहीं है; लेकिन यदि तुम पश्चात्ताप नहीं करोगे, तो सब-के-सब उसी तरह नष्ट हो जाओगे।

4) अथवा क्या तुम समझते हो कि सिल़ोआम की मीनार के गिरने से जो अठारह व्यक्ति दब कऱ मर गये, वे येरूसालेम के सब निवासियों से अधिक अपराधी थे?

5) मैं तुम से कहता हूँ, ऐसा नहीं है; लेकिन यदि तुम पश्चात्ताप नहीं करोगे, तो सब-के-सब उसी तरह नष्ट हो जाओगे।"

6) तब ईसा ने यह दृष्टान्त सुनाया, "किसी मनुष्य की दाखबारी में एक अंजीर का पेड़ था। वह उस में फल खोजने आया, परन्तु उसे एक भी नहीं मिला।

7) तब उसने दाखबारी के माली से कहा, ’देखो, मैं तीन वर्षों से अंजीर के इस पेड़ में फल खोजने आता हूँ, किन्तु मुझे एक भी नहीं मिलता। इसे काट डालो। यह भूमि को क्यों छेंके हुए हैं?’

8) परन्तु माली ने उत्तर दिया, ’मालिक! इस वर्ष भी इसे रहने दीजिए। मैं इसके चारों ओर खोद कर खाद दूँगा।

9) यदि यह अगले वर्ष फल दे, तो अच्छा, नहीं तो इसे काट डालिएगा’।"



📚 मनन-चिंतन



एक राजनीतिक या प्राकृतिक आपदा हमें ईश्वर के राज्य और हमारे कार्यों और निर्णयों के परिणामों के बारे में क्या सिखा सकती है? यीशु ने लोगों के साथ ऐसी दो घटनाओं को संबोधित किया। येसु का उद्देश्य इन घटनाओं को आने वाले समय के लिए आध्यात्मिक रूप से तैयार करने का था

ईश्वर का न्याय इन चिन्हों से कैसे संबंधित है? जिस तरह प्राकृतिक संकेत के तौर पर यह बताती हैं कि आज क्या हो रहा है, उसी तरह ईश्वर हमें संकेत देते हैं जो हमारे जीवन, हमारे समुदायों और दुनिया में उनके कार्यों और हस्तक्षेप को इंगित करते हैं। ईश्वर विपत्तियाँ या दर्दनाक अनुभव क्यों देता है? वह इसे ताड़ना देने, अनुशासन देने और हम में पश्चाताप को प्रेरित करने के लिए करते है।

बंजर अंजीर के पेड़ हमें ईश्वर के राज्य के बारे में क्या बता सकते हैं? निष्फल अंजीर का पेड़ ईश्वर के वचन के प्रति इस्राएल की सकारात्मक प्रतिक्रिया न दिखाने के परिणाम का प्रतीक था। यह दृष्टांत ईश्वर के धैर्य को प्रदर्शित करता है, लेकिन इसमें एक चेतावनी भी है। ईश्वर हमें उसके साथ ठीक होने का समय देता है, लेकिन वह समय अभी है। हमें यह नहीं मान लेना चाहिए कि कोई जल्दी नहीं है। येसु हमें चेतावनी देते हैं कि हमें हर समय तैयार रहना चाहिए। पापमय आदतों और पश्‍चाताप न करनेवाली मनोवृत्ति का परिणाम बुरे फल और अन्त में विनाश होगा। प्रभु अपनी दया में हमें पाप और सांसारिकता से दूर होने के लिए अनुग्रह और समय दोनों देते है, और लेकिन वह समय अभी है।



📚 REFLECTION



What can a political or natural disaster teach us about God's kingdom and the consequences of our actions and decisions? Jesus addressed two such incidences with the people. Jesus intended these incidences to serve as signs helping us to avert the worst disaster by preparing spiritually for the time to come.

How does God's judgment relate to these signs? Just as natural signs point to what is happening today, so God gives us signs which indicate his action and intervention in our lives, our communities, and in the world. Why does God cause disasters or painful experiences? He does it to chastise, to discipline, and to inspire repentance in us.

What can barren fig trees tell us about the kingdom of God? The unfruitful fig tree symbolized the outcome of Israel's unresponsiveness to the word of God. This parable demonstrates the patience of God, but it also contains a warning. God gives us time to get right with him, but that time is now. We must not assume that there is no hurry. Jesus warns us that we must be ready at all times. The sinful habits and unrepentant attitude will result in bad fruit and eventual destruction. The Lord in his mercy gives us both grace and time to turn away from sin and from worldliness, but that time is right now.


मनन-चिंतन - 2



आज प्रभु येसु पश्चाताप की आवश्यकता और तात्कालिकता के बारे में हमें समझाते हैं। हम में से हर एक की तुलना एक अंजीर के पेड़ से की जाती है। प्रभु फलों की तलाश में आते हैं। वे चाहते हैं कि हम फलदायी हों। उन्होंने फल पाने की आशा से हमारी देखभाल करने के लिए बागवानों और नौकरों को नियुक्त किया है। वे हमारे आध्यात्मिक नेताओं, माता-पिता, शिक्षकों और कई अन्य लोगों के माध्यम से हमारी देखरेख करते हैं। हमें ईश्वर के कार्य में सहयोग करते हुए जवाब देने की आवश्यकता है। इसायाह 55:6-7 में प्रभु का वचन कहता है। “जब तक प्रभु मिल सकता है, तब तक उसके पास चली जा। जब तक वह निकट है, तब तक उसकी दुहाई देती रह। पापी अपना मार्ग छोड़ दे और दुष्ट अपने बुरे विचार त्याग दे। वह प्रभु के पास लौट आये और वह उस पर दया करेगा; क्योंकि हमारा ईश्वर दयासागर है।”

संत पौलुस कहते हैं, “ईश्वर ने अज्ञान के युगों का लेखा लेना नहीं चाहा, परन्तु अब उसकी आज्ञा यह है कि सर्वत्र सभी मनुष्य पश्चात्ताप करें; क्योंकि उसने वह दिन निश्चित किया है, जिस में वह एक पूर्व निर्धारित व्यक्ति द्वारा समस्त संसार का न्यायपूर्वक विचार करेगा। ईश्वर ने उस व्यक्ति को मृतकों में से पुनर्जीवित कर सबों को अपने इस निश्चय का प्रमाण दिया है।"(प्रेरित-चरित 17:30-31। प्रकाशना ग्रन्थ, अध्याय 2 और 3 में हम प्रभु ईश्वर के वचन को पश्चाताप करने के लिए सात कलीसियाओं को चुनौती देते हुए पाते हैं। पवित्र वचन से पता चलता है कि उनमें क्या-क्या कमियाँ हैं। प्रभु धैर्यवान है, लेकिन एक दिन हमारे पश्चाताप के लिए आवंटित समय समाप्त हो जाएगा; फिर कुछ और सुधारने की संभावना नहीं होगी।



SHORT REFLECTION



Today Jesus speaks about the necessity and urgency of repentance. Each one of us is compared to a fig tree. The Lord comes in search of fruits. He wants us to be fruitful. He has appointed gardeners and servants to take care of us with the hope of finding fruits. He cares for us through our spiritual leaders, parents, teachers and many others. We need to respond by co-operating with God’s work in us. In Is 55:6-7 we read, “Seek the Lord while he may be found, call upon him while he is near; let the wicked forsake their way, and the unrighteous their thoughts; let them return to the Lord, that he may have mercy on them, and to our God, for he will abundantly pardon.” St. Paul tells, “While God has overlooked the times of human ignorance, now he commands all people everywhere to repent, because he has fixed a day on which he will have the world judged in righteousness by a man whom he has appointed, and of this he has given assurance to all by raising him from the dead.” (Act17:30-31). In Revelation 2 & 3 we find the Word of God challenging the seven Churches to repent. The Word reveals to them what has been lacking in them. The Lord is patient, but one day the time allotted for our repentance will run out; then there will no possibility to rectify anything more.


 -Br. Biniush Topno


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Praise the Lord!

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