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बुधवार, 13 अक्टूबर, 2021

 

बुधवार, 13 अक्टूबर, 2021

वर्ष का अट्ठाईसवाँ सामान्य सप्ताह

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पहला पाठ : रोमियों के नाम सन्त पौलुस का पत्र 2:1-11


1) इसलिए दूसरों पर दोष लगाने वाले! तुम चाहे जो भी हो, अक्षम्य हो। तुम दूसरों पर दोष लगाने के कारण अपने को दोषी ठहराते हो; क्योंकि तुम, जो दूसरों पर दोष लगाते हो, यही कुकर्म करते हो।

2) हम जानते है कि ईश्वर ऐसे कुकर्म करने वालों को न्यायानुसार दण्डाज्ञा देता है।

3) तुम ऐसे कुकर्म करने वालों पर दोष लगाते हो और स्वयं यही कुकर्म करते हो, तो क्या तुम समझते हो कि ईश्वर की दण्डाज्ञा से बच जाओगे?

4) अथवा क्या तुम ईश्वर की असीम दयालुता, सहनशीलता और धैर्य का तिरस्कार करते और यह नहीं समझते कि ईश्वर की दयालुता तुम्हें पश्चाताप की ओर ले जाना चाहती है?

5) तुम अपने इस हठ और अपने हृदय के अपश्चाताप के कारण कोप के दिन के लिए अपने विरुद्ध कोप का संचय कर रहे हो, जब ईश्वर का न्यायसंगत निर्णय प्रकट हो जायेगा

6) और वह प्रत्येक मनुष्य को उसके कर्मों का फल देगा।

7) जो लोग धैर्यपूर्वक भलाई करते हुए महिमा, सम्मान और अमरत्व की खोज में लगे रहते हैं, ईश्वर उन्हें अनन्त जीवन प्रदान करेगा।

8) और जो लोग स्वार्थी हैं और सत्य से विद्रोह करते हुए अधर्म पर चलते हैं, वे ईश्वर के क्रोध और प्रकोप के पात्र होंगे।

9) बुराई करने वाले प्रत्येक मनुष्य को-पहले यहूदी और फिर यूनानी को-कष्ट और संकट सहना पड़ेगा।

10) और भलाई करने वाले प्रत्येक मनुष्य को -पहले यहूदी और फिर यूनानी को- महिमा, सम्मान और शान्ति मिलेगी;

11) क्योंकि ईश्वर किसी के साथ पक्षपात नहीं करता।



सुसमाचार : सन्त लूकस 11:42-46



42) "फ़रीसियो! धिक्कार तुम लोगों को! क्योंकि तुम पुदीने, रास्ने और हर प्रकार के साग का दशमांश तो देते हो; लेकिन न्याय और ईश्वर के प्रति प्रेम की उपेक्षा करते हो। इन्हें करते रहना और उनकी भी उपेक्षा नहीं करना, तुम्हारे लिए उचित था।

43 फ़रीसियो! धिक्कार तुम लोगों को! क्योंकि तुम सभागृहों में प्रथम आसन और बाज़ारों में प्रणाम चाहते हो।

44) धिक्कार तुम लोगों को! क्योंकि तुम उन क़ब्रों के समान हो, जो दीख नहीं पड़तीं और जिन पर लोग अनजाने ही चलते-फिरते हैं।"

45) इस पर एक शास्त्री ने ईसा से कहा, "गुरूवर! आप ऐसी बातें कह कर हमारा भी अपमान करते हैं"।

46) ईसा ने उत्तर दिया, "शास्त्रियों! धिक्कार तुम लोगों को भी! क्योंकि तुम मनुष्यों पर बहुत-से भारी बोझ लादते हो और स्वयं उन्हें उठाने के लिए अपनी तक उँगली भी नहीं लगाते।



📚 मनन-चिंतन



येसु ने इस्राएल के धर्मगुरुओं पर कडा प्रहार किया। वे अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने में विफ़ल थे। उन्होंने अपने पद और शक्ति का उपयोग केवल अपने स्वार्थी उद्देश्यों को पूरा करने के लिए किया। ऐसा करके वे घोर पाखंडी हो गए थे। उन्होंने लोगों को धोखा दिया और न तो खुद एक अच्छा जीवन जिया और न ही लोगों को सही जीवन जीने दिया।

प्रभु ने उनकी तुलना 'अचिह्नित कब्र' से की क्योंकि उनके धोखे में यह चालाकी थी कि लोग उन्हें बिना समझे स्वंय को भ्रष्ट कर देते थे। एक अचिह्नित कब्र होना स्वंय या किसी और को इसे महसूस किए बिना मृत्यु का स्थान होना है! पापियों के रूप में उनकी असली पहचान बाहरी धर्मपरायणता के पीछे छिपी हुई थी जिसे उन्होंने जनता के ध्यान के लिए प्रदर्शित किया था। इस प्रक्रिया में, उन्होंने पूरी व्यवस्था या धर्म को भ्रष्ट कर दिया था। धार्मिक नेताओं को हैसियत और प्रतिष्ठा देने के लिए आध्यात्मिक शक्ति का दुरूपयोग और विचलन किया जाना दुखद तथ्य है।

लोग सन्हिता के बोझ से दबे हुए थे। येसु उनके दर्द को महसूस करते है और उनके बचाव में दृढ़ता से सामने आते हैं। क्या मैं इस बात के प्रति संवेदनशील हूँ कि दूसरे व्यक्ति के हृदय में क्या चल रहा होगा? क्या मैं कभी न्याय और ईश्वर के प्रेम की उपेक्षा करता हूँ? 'न्याय और ईश्वर का प्रेम' क्या मायने रखता है? हमें दूसरों के बोझ को कम करने का प्रयास करना चाहिए और समाज के निचले पायदान पर रहने वालों के प्रति दयालु होना चाहिए।




📚 REFLECTION



Jesus scratchily lashes out at the religious leaders of Israel. They had been woeful in discharging their duties. They used their position and power only to meet their selfish purposes. In doing so they had been abashedly hypocritic. They deceived people and neither lived a good life themselves nor let people have access to rightful living.

The Lord compared them with ‘the unmarked grave’ for their deception was go crafty that people got corrupted by them without having realized it. To be an unmarked grave is to be a place of death without myself or anyone else realizing it! Their true identity as sinners was hidden behind the outward piety they displayed for public attention. In the process, they had corrupted the whole system or religion. The sad fact of spiritual power, being abused and diverted so as to give status and prestige to religious leaders.

People were overburdened with laws. Jesus feels for them and comes out strongly in their defense. Am I sensitive to what may be going on in another person’s heart? Do I ever neglect justice and the love of God? ‘Justice and the love of God’ are what matter. We should strive to ease the burdens of others and be compassionate to those at the bottom of society.




मनन-चिंतन - 2



प्रभु येसु के लिए न्याय और ईश्वर का प्रेम संस्कारों के अनुष्ठान और औपचारिकताओं से अधिक महत्वपूर्ण है। येसु के अनुसार फरीसियों ने ईश्वर के न्याय और प्रेम की उपेक्षा करते हुए अनुष्ठानों और औपचारिकताओं की परवाह की। नबी मीकाह कहते हैं, “मनुष्य! तुम को बताया गया है कि उचित क्या है और प्रभु तुम से क्या चाहता है। यह इतना ही है- न्यायपूर्ण व्यवहार, कोमल भक्ति और ईश्वर के सामने विनयपूर्ण आचरण” (मीकाह 6:8)। संत पेत्रुस उसी भावना को ग्रहण करते हैं जब वे कहते हैं, “मैं अब अच्छी तरह समझ गया हूँ कि ईश्वर किसी के साथ पक्ष-पात नहीं करता। मनुष्य किसी भी राष्ट्र का क्यों न हो, यदि वह ईश्वर पर श्रद्धा रख कर धर्माचरण करता है, तो वह ईश्वर का कृपापात्र बन जाता हैं।“ (प्रेरित-चरित 10:34-45) प्रभु येसु ने लोगों के बोझ को बढ़ाने वाले शास्त्रियों की भी आलोचना की। मूसा ने इस्राएलियों में से सत्तर बुजुर्गों को चुना ताकि वे उनके साथ “लोगों का बोझ उठाएँ” (गणना 11:17)। संत पौलुस कहते हैं, "ऐसे भारी बोझ ढोने में एक दूसरे की सहायता करें और इस प्रकार मसीह की विधि पूरी करें” (गलातियों 6:2) हमें एक दूसरे का बोझ उठाना और उन्हें हल्का करना चाहिए।



SHORT REFLECTION



For Jesus justice and love of God are more important than rituals and formalities. According to the perception of Jesus, the Pharisees cared for rituals and formalities while neglecting justice and love of God. Prophet Micah speaks about what the Lord expects from us – “He has showed you, O man, what is good; and what does the Lord require of you but to do justice, and to love kindness, and to walk humbly with your God?” (Mic 6:8) St. Peter echoes the same sentiments when he says, “Truly I perceive that God shows no partiality, but in every nation anyone who fears him and does what is right is acceptable to him”. (Act 10:34-35) Jesus also criticised the lawyers for increasing the burdens of the people. Moses chose seventy elders from among the Israelites so that “they shall bear the burden of the people” (Num 11:17) with him. St. Paul says, “Bear one another’s burdens, and so fulfill the law of Christ” (Gal 6:2). We are called upon to bear one another’s burden and lighten them.


 -Br Biniush Topno


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Praise the Lord!

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