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मंगलवार, 12 अक्टूबर, 2021

 

मंगलवार, 12 अक्टूबर, 2021

वर्ष का अट्ठाईसवाँ सामान्य सप्ताह



पहला पाठ : रोमियों के नाम सन्त पौलुस का पत्र 1:16-25


16) मुझे सुसमाचार से लज्जा नहीं। यह ईश्वर का सामर्थ्य है, जो प्रत्येक विश्वासी के लिए-पहले यहूदी और फिर यूनानी के लिए-मुक्ति का स्त्रोत है।

17) सुसमाचार में ईश्वर की सत्यप्रतिज्ञता प्रकट होती है, जो विश्वास द्वारा मनुष्य को धार्मिक बनाता है। जैसा कि लिखा है: धार्मिक मनुष्य अपने विश्वास द्वारा जीवन प्राप्त करेगा।

18) ईश्वर का क्रोध स्वर्ग से उन लोगों के सब प्रकार के अधर्म और अन्याय पर प्रकट होता है, जो अन्याय द्वारा सत्य को दबाये रखते हैं।

19) ईश्वर का ज्ञान उन लोगों को स्पष्ट रूप से मिल गया है, क्योंकि ईश्वर ने उसे उन पर प्रकट कर दिया है।

20) संसार की सृष्टि के समय से ही ईश्वर के अदृश्य स्वरूप को, उसकी शाश्वत शक्तिमत्ता और उसके ईश्वरत्व को बुद्धि की आँखों द्वारा उसके कार्यों में देखा जा सकता है। इसलिए वे अपने आचरण की सफाई देने में असमर्थ है;

21) क्योंकि उन्होंने ईश्वर को जानते हुए भी उसे समुचित आदर और धन्यवाद नहीं दिया। उनका समस्त चिन्तन व्यर्थ चला गया और उनका विवेकहीन मन अन्धकारमय हो गया।

22) वे अपने को बुद्धिमान समझते हैं, किन्तु वे मूर्ख बन गये हैं।

23) उन्होंने अनश्वर ईश्वर की महिमा के बदले नश्वर मनुष्य, पक्षियों, पशुओं तथा सर्पों की अनुकृतियों की शरण ली।

24) इसलिए ईश्वर ने उन्हें उनकी घृणित वासनाओं का शिकार होने दिया और वे एक दूसरे के शरीर को अपवित्र करते हैं।

25) उन्होंने ईश्वर के सत्य के स्थान पर झूठ को अपनाया और सृष्ट वस्तुओं की उपासना और आराधना की, किन्तु उस सृष्टिकर्ता की नहीं, जो युगों-युगों तक धन्य है। आमेन!



सुसमाचार : सन्त लूकस 11:37-41



37) ईसा के उपदेश के बाद किसी फ़रीसी ने उन से यह निवेदन किया कि आप मेरे यहाँ भोजन करें और वह उसके यहाँ जा कर भोजन करने बैठे।

38) फ़रीसी को यह देख कर आश्चर्य हुआ कि उन्होंने भोजन से पहले हाथ नहीं धोये।

39) प्रभु ने उस से कहा, ’’तुम फ़रीसी लोग प्याले और थाली को ऊपर से तो माँजते हो, परन्तु तुम भीतर लालच और दुष्टता से भरे हुए हो।

40) मूर्खों! जिसने बाहर बनाया, क्या उसी ने अन्दर नहीं बनाया?

41) जो अन्दर है, उस में से दान कर दो, और देखो, सब कुछ तुम्हारे लिए शुद्ध हो जायेगा।



📚 मनन-चिंतन



फरीसी अक्सर येसु के साथ टकराव में थे। अपनी संकीर्णता से, वे अक्सर येसु को सचमुच परेशान करते थे। वे अच्छे लोग थे जो मूसा की सन्हिता के प्रति आसक्त थे और अनुष्ठानों को यथासंभव शाब्दिक रूप से पालन करने के इच्छुक थे, लेकिन इससे वे अक्सर अधिक महत्वपूर्ण चीजों के प्रति अंधे हो जाते थे।

येसु जो एक व्यक्ति के अंदर, मानव हृदय में है पर जोर देते है। फरीसी, इसके विपरीत, मुख्य रूप से नियमों और विनियमों के बाहरी पालन से संबंधित है, जैसे कि भोजन से पहले धोना। यहाँ येसु दान और हृदय की शुद्धि के बीच एक कड़ी को देखते है। वे दिल की साफ-सफाई को बाहरी सफाई से कहीं ज्यादा जरूरी बताते है।

जरूरतमंदों के साथ साझा करने की सच्ची भावना में भिक्षा देना आंतरिक अच्छाई और अखंडता का एक प्रामाणिक संकेत है। हम सभी में एक फरीसी है, चाहे वह बड़ा हो या छोटा, जो अंदर के लालच और दुष्टता से निपटने के बजाय प्याले के बाहर की सफाई करना पसंद करता है। क्या हम अपने दिलों में एक फरीसी को देख सकते हैं, चाहे वह बड़ा हो या छोटा? मैं अपने भीतर के दिल को कैसे देखूं? क्या मेरे जीवन में इतना पाखंड है? क्या लालसा और बाहरी व्यवहार से भरा दिल व्यवहार की सुंदरता से भरा जा सकता है? यदि ऐसा है तो प्रभु चाहते हैं कि हम अधर्मी इच्छाओं को त्याग दें और सच्चे ईसाई स्वाभाव के साथ भिक्षा दें।



📚 REFLECTION



The Pharisees were often in confrontation with Jesus. With their narrow-mindedness, they often really upset Jesus. They were good people obsessed with the Mosaic law and keen to observe the rituals as literally as possible but this often made them blind to more important things.

Jesus is focused on what is inside a person, in the human heart. The Pharisee, on the contrary, is primarily concerned with external observance of rules and regulations, such as the washing before a meal. Here Jesus sees a link between almsgiving and purification of the heart. The cleanliness of my heart is far more important than external cleanliness.

The almsgiving in a genuine spirit of sharing with the needy is an authentic sign of inner goodness and integrity. There is a Pharisee in all of us, big or small, who prefers cleaning the outside of the cup rather than tackle the greed and wickedness inside. Can we see a Pharisee in our hearts, big or small? How do I see my inner heart? Is there so much hypocrisy in my life? Is a heart full of craving and outside behavior replenished with the fineness of mannerism? If so the Lord wants us to discard in ungodly desires and give alms with a true Christian self.



मनन-चिंतन - 2



आज के सुसमाचार के उस फरीसी के इरादे को समझना मुश्किल है जिसने प्रभु येसु को अपने घर पर भोजन करने के लिए आमंत्रित किया था। सुसमाचारों में, हम प्रभु येसु को कुख्यात पापियों और अपराधियों के साथ कभी भी कठोर नहीं पाते हैं। लेकिन उन्हें अक्सर फरीसियों और सदूकियों के साथ कठोर होते देखा जाता है। कारण बहुत स्पष्ट है। प्रभु येसु को पाखंड और दिखावा पसंद नहीं है क्योंकि यह ईश्वर के नाम पर धोखा है। येसु ने पाया कि फरीसी और सदूकी अक्सर सार्वजनिक रूप से खुद को भले प्रस्तुत करने की कोशिश कर रहे थे जबकि वे वास्तव में बुरे थे। इसके द्वारा वे अपने आस-पास के लोगों को धोखा दे रहे थे। लेकिन हम ईश्वर को धोखा नहीं दे सकते हैं। संत पौलुस कहते हैं, “धोखे में न रहें! ईश्वर का उपहास नहीं किया जा सकता। मनुष्य जो बोता हे वही लुनता है” (गलातियों 6:7)। जब फरीसी बाहरी और शारीरिक स्वच्छता के बारे में ही सोचते हैं, तब येसु आंतरिक तथा आध्यात्मिक स्वच्छता के बारे में बात करते हैं। इसके अतिरिक्त, येसु आंतरिक स्वच्छता के लिए एक विधि के रूप में भिक्षा देने का सुझाव देता है। वे कहते हैं, “जो अन्दर है, उस में से दान कर दो, और देखो, सब कुछ तुम्हारे लिए शुद्ध हो जायेगा” (लूकस 11:41)। यह पूरी तरह धर्मग्रन्थ की शिक्षा के अनुसार है। प्रवक्ता 3:30 में हम पढ़ते हैं, “पानी प्रज्वलित आग बुझाता और भिक्षादान पाप मिटाता है”| टोबीत अपने बेटे टोबियास से कहता है, “ बेटा! अपनी सम्पत्ति में से भिक्षादान दोगे और किसी कंगाल की उपेक्षा नहीं करोगे, जिससे ईश्वर भी तुम्हारी उपेक्षा नहीं करे। अपनी सम्पत्ति के अनुसार दान दोगे। यदि तुम्हारे पास बहुत हो, तो अधिक दोगे; यदि तुम्हारे पास कम हो, तो कम देने में नहीं हिचकोगे। तुम्हारा यह दान विपत्ति के दिन तुम्हारे लिए एक अच्छी निधि प्रमाणित होगा; क्योंकि भिक्षादान मृत्यु से बचाता और अन्धकार में प्रवेश करने से रोकता है। हर भिक्षा-दान सर्वोच्च प्रभु की दृष्टि में सर्वोत्तम चढ़ावा है।” (तोबीत 4: 7-11)



SHORT REFLECTION


It is difficult to understand the intention of the Pharisee who invited Jesus to dine at his house. Jesus was very straightforward. In the Gospels, we do not find Jesus being harsh with notorious sinners and criminals. But he is often seen to be harsh with the Pharisees and Scribes. The reason is very clear. Jesus does not like hypocrisy and pretensions because it is deception in the name of God. Jesus found that the Pharisees and Scribes were often trying to present themselves in public to be good when they were actually bad. By this they were deceiving people around them. But God cannot be deceived. St. Paul says, “Do not be deceived; God is not mocked, for whatever a man sows, that he will also reap” (Gal 6:7). When the Pharisee thinks of external and physical cleanliness, Jesus speaks about internal and spiritual cleanliness. Added to that, Jesus suggests almsgiving as a method for inner cleansing. He says, “So give for alms those things that are within; and see, everything will be clean for you” (Lk 11:41). This is very much scriptural. In Sirach 3:30 we read, “Water extinguishes a blazing fire: so almsgiving atones for sin”. Tobit tells his son Tobias, “Give alms from your possessions to all who live uprightly, and do not let your eye begrudge the gift when you make it. Do not turn your face away from any poor man, and the face of God will not be turned away from you. If you have many possessions, make your gift from them in proportion; if few, do not be afraid to give according to the little you have. So you will be laying up a good treasure for yourself against the day of necessity. For charity delivers from death and keeps you from entering the darkness; and for all who practice it charity is an excellent offering in the presence of the Most High.” (Tob 4:7-11)


 -Br Biniush Topno


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Praise the Lord!

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