शुक्रवार, 10 सितम्बर, 2021
वर्ष का तेईसवाँ सामान्य सप्ताह
पहला पाठ : 1 तिमथि 1:1-2, 12-14
1) विश्वास में सच्चे पुत्र तिमथी के नाम पौलुस का पत्र, जो हमारे मुक्तिदाता ईश्वर और हमारी आशा ईसा मसीह के आदेशानुसार ईसा मसीह का प्रेरित है।
2) पिता-परमेश्वर और हमारे प्रभु ईसा मसीह तुम्हें अनुग्रह, दया और शान्ति प्रदान करें!
12) मैं हमारे प्रभु ईसा मसीह को धन्यवाद देता हूँ, जिन्होंने मुझे बल दिया और मुझे विश्वास के योग्य समझ कर अपनी सेवा में नियुक्त किया है।
13) मैं पहले ईश-निन्दक, अत्याचारी और अन्यायी था; किन्तु मुझ पर दया की गयी है, क्योंकि अविश्वास के कारण मैं यह नहीं जानता था कि मैं क्या कर रहा हूँ।
14) मुझे हमारे प्रभु का अनुग्रह प्रचुर मात्रा में प्राप्त हुआ और साथ ही वह विश्वास और प्रेम भी, जो हमें ईसा मसीह द्वारा मिलता है।
सुसमाचार : सन्त लूकस 6:39-42
39) ईसा ने उन्हें एक दृष्टान्त सुनाया, "क्या अन्धा अन्धे को राह दिखा सकता है? क्या दोनों ही गड्ढे में नहीं गिर पडेंगे?
40) शिष्य गुरू से बड़ा नहीं होता। पूरी-पूरी शिक्षा प्राप्त करने के बाद वह अपने गुरू-जैसा बन सकता है।
41) "जब तुम्हें अपनी ही आँख की धरन का पता नहीं, तो तुम अपने भाई की आँख का तिनका क्यों देखते हो?
42) जब तुम अपनी ही आँख की धरन नहीं देखते हो, तो अपने भाई से कैसे कह सकते हो, ’भाई! मैं तुम्हारी आँख का तिनका निकाल दूँ?’ ढोंगी! पहले अपनी ही आँख की धरन निकालो। तभी तुम अपने भाई की आँख का तिनका निकालने के लिए अच्छी तरह देख सकोगे।
📚 मनन-चिंतन
भूले भटके को राह दिखाना एक अच्छी बात है परंतु वह व्यक्ति जिसे स्वयं को रास्ता मालूम न हो तो वह दूसरो को सही रास्ता दिखाने के बदले उनको और गलत रास्ता में फसा देगा। कहने का तात्पर्य यह है कि यदि हमे किसी से सलाह लेना हो या किसी रास्ते में आगे बढ़ना हो तो हमें उन लोगों से ही सलाह लेना चाहिए जो उन रास्तों में यह उन कार्यो में निपुण है।
इसके साथ साथ यदि हम किसी को सलाह दे रहे तो हमें यह ध्यान में रखना चाहिये कि हम उस क्षेत्र में निपुण हों। अक्सर हम हमारे देश में देखते है कि लोगो द्वारा सलाह देने की कोई कमी नहीं है। कही कुछ हुआ कि नहीं लोग अपनी अपनी सलाह देना शुरू हो जाते है परंतु वह स्वयं उस क्षेत्र में इतना दुविधा में है वह यह नहीं देखते। उदारण के तौर पर जो व्यक्ति शराब पीता है वह अपने बच्चे को कहता है कि शराब नहीं पीना, गलत काम न करना। हम दूसरों के लिए आशीष का श्रोत तभी बन पायेंगे जब हमारे अंदर अच्छाईयॉं होगी। हम सर्वप्रथम अपने जीवन में पवित्रता लाये तभी हम जाकर दूसरों को उस राह में चलने के लिए एक आशीष बन सकते है।
📚 REFLECTION
To show the way to the lost is a good thing but if the person himself doesn’t know the way then he will mislead another person to the wrong way instead of showing the correct way. It means to say that if we want to take the advise from some one or to move forward in particular direction then we have to take the advise from those people who are experts in that way or in that work.
Along with this if we give an advice to some one then we should take care that we are well versed in that. Often we see in our country that there is no lack of people for giving advice. Somewhere something happened or not people start giving their advices but they do not see that they themselves are in deep mess in that field. For example one who drinks alcohol tells his child not to drink alcohol or not to do anything bad. We can be the sourse of blessings for others only when their will be goodness in ourselves. Let’s bring the purity in our lives then only we can become a blessing for others to move in that way.
✍ -Br Biniush Topno
No comments:
Post a Comment