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मंगलवार, 07 सितम्बर, 2021

 

मंगलवार, 07 सितम्बर, 2021

वर्ष का तेईसवाँ सामान्य सप्ताह

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पहला पाठ : कलोसियों 2:6-15


6) आपने ईसा मसीह को प्रभु के रूप में स्वीकार किया है;

7) इसलिए उन्हीं से संयुक्त हो कर जीवन बितायें। उन्हीं से संयुक्त हो कर जीवन बितायें। उन्हीं में आपकी जड़ें गहरी हों और नींव सुदृढ़ हो। आप को जिस विश्वास की शिक्षा प्राप्त हुई है, उसी में दृढ़ बने रहें और आपके हृदयों में धन्यवाद की प्रार्थना उमड़ती रहे ।

8) सावधान रहें। कहीं ऐसा न हो कि कोई आप लोगों को ऐसे खोखले और भ्रामक दर्शन-शास्त्र द्वारा बहकाये, जो मनुष्यों की परम्परागत शिक्षा के अनुसार है और मसीह पर नहीं, बल्कि संसार के तत्वों पर आधारित हैं।

9) क्योंकि मसीह में ईश्वरीय तत्व की परिपूर्णता अवतरित हो कर निवास करती है

10) और उन में आप इस परिपूर्णता के सहभागी है। मसीह विश्व के सभी आधिपत्यों और अधिकारों के शीर्ष हैं- सभी मसीह के अधीन हैं।

11) उन्हीं में आप लोगों का ख़तना भी हुआ है। वह ख़तना हाथ से नहीं किया जाता, वह ख़तना मसीह का अर्थात् बपतिस्मा है, जिसके द्वारा पापमय शरीर को उतार कर फेंक दिया जाता है।

12) आप लोग बपतिस्मा के समय मसीह के साथ दफ़नाये गये और उन्हीं के साथ पुनर्जीवित भी किये गये हैं, क्योंकि आप लोगों ने ईश्वर के सामर्थ्य में विश्वास किया, जिसने उन्हें मृतकों में से पुनर्जीवित किया।

13) आप लोग पापों के कारण और अपने स्वभाव के ख़तने के अभाव के कारण मर गये थे। ईश्वर ने आप लोगों को मसीह के साथ पुनर्जीवित किया है और हमारे सब अपराधों को क्षमा किया है।

14) उसने नियमों का वह बन्धपत्र, जो हमारे विरुद्ध था, रद्द कर दिया और उसे क्रूस पर ठोंक कर उठा दिया है।

15) उसने विश्व के प्रत्येक आधिपत्य और अधिकर को अपदस्थ किया, संसार की दृष्टि में उन को नीचा दिखाया और क्रूस के द्वारा उन्हें पराजित कर दिया है।



सुसमाचार : सन्त लूकस 6:12-19


12) उन दिनों ईसा प्रार्थना करने एक पहाड़ी पर चढ़े और वे रात भर ईश्वर की प्रार्थना में लीन रहे।

13) दिन होने पर उन्होंने अपने शिष्यों को पास बुलाया और उन में से बारह को चुन कर उनका नाम ’प्रेरित’ रखा-

14) सिमोन जिसे उन्होंने पेत्रुस नाम दिया और उसके भाई अन्द्रेयस को; याकूब और योहन को; फि़लिप और बरथोलोमी को,

15) मत्ती और थोमस को; अलफाई के पुत्र याकूब और सिमोन को, जो ’उत्साही’ कहलाता है;

16) याकूब के पुत्र यूदस और यूदस इसकारियोती को, जो विश्वासघाती निकला।

17) ईसा उनके साथ उतर कर एक मैदान में खड़े हो गये। वहाँ उनके बहुत-से शिष्य थे और समस्त यहूदिया तथा येरुसालेम का और समुद्र के किनारे तीरूस तथा सिदोन का एक विशाल जनसमूह भी था, जो उनका उपदेश सुनने और अपने रोगों से मुक्त होने के लिए आया था।

18) ईसा ने अपदूतग्रस्त लोगों को चंगा किया।

19) सभी लोग ईसा को स्पर्श करने का प्रयत्न कर रहे थे, क्योंकि उन से शक्ति निकलती थी और सब को चंगा करती थी।



📚 मनन-चिंतन


प्रार्थना प्रभु येसु के जीवन का एक अभिन्न अंग था जो उन्होने इस संसार में रहते हुए निरंतर किया। प्रार्थना से उन्हे बल और शक्ति मिलती थी जिससे वे पिता ईश्वर के कार्यो को पूरा कर सकें। प्रभु येसु ने हमेशा महत्वपूर्ण निर्णय लेने से पहले देर रात तक या पूरी रात प्रार्थना किया करते थे। प्रार्थना के द्वारा वे पिता की ईच्छा को अच्छी तरह जान कर उन में आगे बढ़ने के लिए बल प्राप्त करते थे।

प्रभु येसु के लिए प्रार्थना सबसे महतवपूर्ण था, उन महान चिन्ह और चमत्कारों से भी महत्वपूर्ण जो उन्होंने किया। वे एक प्रार्थनामय इंसान थे और इस बात को उनके शिष्यों ने गहराई से जाना।

प्रार्थना एक ऐसा मधुर संवाद है जो मनुष्य और ईश्वर के बीच होता है। इस संवाद में दोनो तरफ से विचारों का आदान प्रदान होता है। हम भी प्रार्थना करते है परंतु अधिकतर लोगो की प्रार्थना केवल एक तरफा संवाद ही रहता है जहॉं पर हम केवल अपनी ही बाते करते जाते है परंतु प्रभु हम से क्या कहना चाहते है हम उनकी नहीं सुनतें। यही कारण है कि बहुत से लोग प्रार्थना में रुचि नहीं लेते क्योंकि उन्होने अभी तक प्रार्थना करना नहीं सीखा है। प्रार्थना वही सफल होती है जहॉं हम प्रभु के वचनो को भी सुनते है। हम प्रभु येसु के समान सच्चे प्रार्थनामय व्यक्ति बने।



📚 REFLECTION



Prayer was the integral part of Jesus’ life which he always did while living on this earth. He was receiving the strength and power from the prayer in order to accomplish the work of Father Almighty. Before taking any important decision Lord Jesus always used to spend late night or even whole night in prayer. Through prayer knowing the will of God he receives the strength to go forward.

For Lord Jesus prayer was very important, even from the mighty signs and miracles which he performed. He was a prayerful person and this the disciples knew in depth.

Prayer is a sweet conversation between the human and God. In this conversation there is exchange of thoughts or words from both the sides. We too also pray but very often many people prayer remains one sided talking where we share only our thoughts but fail to listen what God wants us to tell. For this reason only many don’t take interest in prayer because till now they have not learned to pray properly. The prayer is only meaningful when we also listen to the words of God. We all should be a prayerful person like Jesus.


 -Br Biniush Topno


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Praise the Lord!

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