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बुधवार, 21 जुलाई, 2021 वर्ष का सोलहवाँ सामान्य सप्ताह

 

बुधवार, 21 जुलाई, 2021

वर्ष का सोलहवाँ सामान्य सप्ताह

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पहला पाठ : निर्गमन 16:1-5,9-15


1) इस्राएली एलीम से आगे बढ़े। मिस्र देश से निकलने के बाद दूसरे महीने के पन्द्रहवें दिन इस्राएलियों का सारा समुदाय एलीम और सोनई के बीच सीन नामक मरूभूमि पहुँचा।

2) इस्राएलियों का सारा समुदाय मरूभूमि में मूसा और हारून के विरुद्ध भुनभुनाने लगा।

3) इस्राएलियों ने उन से कहा, ''हम जिस समय मिस्र देश में मांस की हड्डियों के सामने बैठते थे और इच्छा-भर रोटी खाते थे, यदि हम उस समय प्रभु के हाथ मर गये होते, तो कितना अच्छा होता! आप हम को इस मरूभूमि में इसलिए ले आये हैं कि हम सब-के-सब भूखों मर जायें।''

4) प्रभु ने मूसा से कहा, ''मैं तुम लोगों के लिए आकाश से रोटी बरसाऊँगा। लोग बाहर निकल कर प्रतिदिन एक-एक दिन का भोजन बटोर लिया करेंगे। मैं इस तरह उनकी परीक्षा लूँगा और देखूँगा कि वे मेरी संहिता का पालन करते हैं या नहीं।

5) छठे दिन उन्हें दूसरे दिनों की अपेक्षा दुगुनी रोटी बटोर कर तैयार करनी चाहिए।

9) मूसा ने हारून से कहा, ''इस्राएलियों के सारे समुदाय को यह आदेश दो प्रभु के सामने उपस्थित हो, क्योंकि वह तुम्हारा भुनभुनाना सुन चुका है।''

10) जब हारून इस्राएलियों को संबोधित कर रहा था, तो उन्होंने मुड़ कर मरुभूमि की ओर देखा और प्रभु की महिमा बादल के रूप में उन्हें दिखाई दी।

11) प्रभु ने मूसा से यह कहा,

12) ''मैं इस्राएलियों का भुनभुनाना सुन चुका हूँ। तुम उन से यह कहना शाम को तुम लोग मांस खा सकोगे और सुबह इच्छा भर रोटी। तब तुम जान जाओगे कि मैं प्रभु तुम लोगों का ईश्वर हूँ।''

13) उसी शाम को बटेरों का झुण्डा उड़ता हुआ आया और छावनी पर बैठ गया और सुबह छावनी के चारों और कुहरा छाया रहा।

14) कुहरा दूर हो जाने पर मरुभूमि की जमीन पर पाले की तरह एक पतली दानेदार तह दिखाई पड़ी।

15) इस्राएली यह देखकर आपस में कहने लगे, ''मानहू'' अर्थात् ''यह क्या है?'' क्योंकि उन्हें मालूम नहीं था कि यह क्या था। मूसा ने उस से कहा, ''यह वही रोटी है, जिसे प्रभु तुम लोगों को खाने के लिए देता है।


सुसमाचार : मत्ती 13:1-9


1) ईसा किसी दिन घर से निकल कर समुद्र के किनारे जा बैठे।

2) उनके पास इतनी बड़ी भीड़ इकट्ठी हो गयी कि वे नाव पर चढ़ कर बैठ गये और सारी भीड़ तट पर बनी रही।

3) उन्होंने दृष्टान्तों द्वारा उन्हें बहुत-सी बातों की शिक्षा दी। उन्होंने कहा, ’’सुनो! कोई बोने वाला बीज बोने निकला।

4) बोते-बोते कुछ बीज रास्ते के किनारे गिरे और आकाश के पक्षियों ने आ कर उन्हें चुग लिया।

5) कुछ बीज पथरीली भूमि पर गिरे, जहाँ उन्हें अधिक मिट्टी नहीं मिली। वे जल्दी ही उग गये, क्योंकि उनकी मिट्टी गहरी नहीं थी।

6) सूरज चढने पर वे झुलस गये और जड़ न होने के कारण सूख गये।

7) कुछ बीज काँटों में गिरे और काँटों ने बढ़ कर उन्हें दबा दिया।

8) कुछ बीज अच्छी भूमि पर गिरे और फल लाये- कुछ सौ गुना, कुछ साठ गुना और कुछ तीस गुना।

9) जिसके कान हों, वह सुन ले।‘‘


📚 मनन-चिंतन


ईश्वर सबों के हृदयों के रहस्य जानता है. जो मनुष्य की नज़रों से छुपा है वह ईश्वर की नज़रों के सामने साफ-सपाट है. आज के सुसमाचार में हम बहुत सारे लोगों को प्रभु येसु के पास आते हुए देखते है. इतने सारे लोग आते हैं कि प्रभु येसु चैन से बैठकर उन्हें उपदेश भी नहीं सुना सकते, अतः वह नाव पर चढ़कर बैठ जाते हैं और वहाँ से प्रवचन देते हैं. प्रभु येसु की एक खासियत है कि वे लोगों को देखते हुए उनके अनुसार ही अपनी शिक्षा को चुनते हैं कि किस विषय पर शिक्षा देनी है. उन्होंने उस विशाल भीड़ को देखा, उनके हृदयों के मनोभावों को देखा, उनकी ज़िन्दगी के हर पहलु को देखा.

उनमें तरह-तरह के लोग थे, वे जो सच्चे दिल से प्रभु को अपना मुक्तिदाता स्वीकार करना चाहते थे, वे जो अपने कठिनाई भरे जीवन से कुछ पल निकालकर प्रभु की बातें सुनने आये थे और वापस जाकर उसी जीवन में लौटने वाले थे, वे जो शैतान के चंगुल में फंसे थे, लेकिन इस आशा के साथ आये थे, कि शायद उनका जीवन बदल जाये. इसलिए प्रभु येसु सब लोगों के हृदयों को जानते हुए उन्हें बीज बोने वाले का दृष्टान्त सुनाते हैं, ताकि लोग अपने हृदयरूपी मिटटी को समझें जिसमें ईश्वर के वचन का वह बीज उगने वाला है, वे अपने वातावरण को समझें जिसमें वह बीज फलीभूत होने वाला है. उन्हें एक विकल्प चुनना है, कि ईश्वर के वचन के लिए उचित मिट्टी और वातारण तैयार करना है, और बहुत फल लाना है, या फिर जीवन में कोई परिवर्तन नहीं लाना है, जैसी मिट्टी और वातारण है उसी में ईश्वर के वचन को अपने आप बढ़ने देना है. आईये हम अपने मनों की जाँच करें, मेरा ह्रदय ईश्वर के वचन के लिए किस तरह की भूमि है?



📚 REFLECTION



God knows the deepest secrets of the human hearts. What is hidden from the eyes of human beings, it is clear as daylight for God. We see great crowds coming to Jesus in the Gospel today. There was so great number of people that Jesus could not speak to them without being restless and disturbed so he gets into a boat and starts preaching. Jesus choses to speak according to the disposition of the people, he choses the subject of his teachings according to the need of the people. Jesus saw the great crowds, he looked into the hearts of each of them, he could look into their entire lives.

There were people from all walks of life, those who were eager to accept the saviour into their hearts, then there were those who with great difficulty stole few moments from their struggles of life, just to listen to the words of eternal life, there were those who were under the clutches of the evil one, and came with the expectation of changing their lives forever. Knowing the hearts of all, Jesus chooses to speak about the sower of the seeds, in fact it is more about soil. Jesus wants the people to reflect about the soil of their own hearts, to know its productivity when the seeds of the words of Jesus fall into that soil, so that they know the atmosphere that is required for the appropriate growth of those seeds. They are given a choice to work on the soil and atmosphere of their lives to make it suitable for the Word of God to bear much fruit, or to remain indifferent and let them fall on infertile soil. This also invites us to reflect about own lives and soil for the seeds. Amen.


 -Fr. Johnson B


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Praise the Lord!

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