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क्रूस का शिक्षा फादर येशुदास vc

                                                          


                                                                     क्रूस का शिक्षा                            

सितम्बर 14 तारिख कलीसिया पवित्र कूस का विजयोत्सव मनाती है। यह पर्व काथलिक लोगों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। क्योंकि यह मानवमुक्ति का यादगारी का दिन है। इस पर्व के पीछे कुछ ऐतिहासिक बातें जुड़ी हुई है। कहा जाता है कि जो कूस, जिस पर येसु अपना जीवन मानव मुक्ति के लिए चढाया, अधिकारियों द्वारा वह छिपा दिया गया था। सन् 326 में पवित्र आत्मा की विशेष प्रेरणा से संत हेलेना की अगुवाई में येसु के कूस को खोजना शुरू किये और यूदस नामक एक यहूदी को जानकारी मिला कि यह कहाँ छिपाया गया और पवित्र कूस पाया गया। उसके बाद सन् 335 में येसु के कब्र एवं कलवारी में सितम्बर 13 और 14 में गिरजाघर बनवाये गये। उसी समय से कलीसिया में यह पर्व मनाया जाता है। लोगों के अंदर एक ऐसा सवाल आता हैं, कि येसु के पुनरूत्थान के बाद क्रूस का क्या महत्व है? इसमें कोई संदेह नही है कि ईसाई की आशा येसु की पुनरूत्थान है। ऐसे है तो कूस का क्या महत्तव है। संत पौलुस हमें बताते है, “जो विनाश के मार्ग पर चलते है, वे कूस की शिक्षा को 'मूर्खता' समझते हैं। किन्तु हम लोगों के लिए, जो मुक्ति के मार्ग पर चलते है, वह ईश्वर का सामर्थ्य हैं” (कुरिन्थि 1:18) जी हाँ, ईसाई लोगों के लिए या येसु के मार्ग पर चलने वालों के लिए कूस की शिक्षा 'मूर्खता' नहीं है बल्कि वह ईश्वर का सामर्थ्य है। इसके लिए कूस की शिक्षा क्या है यह समझना अनिवार्य है। जीवन में होने वाले दुःख-दर्दो को प्यार से बिना भुन-भुनाये उठाना ही कूस की शिक्षा है। लेकिन मनुष्य का मनोभाव यही है कि जीवन की पीड़ाओ से तुरंत बच निकलना चाहते है। जब येसु ने अपने पीड़ासहन के बारे में शिष्यों को समझाने लगे तो पेत्रुस ने पूरे मानव जाति के कष्ट के प्रति मनोभाव इसी शब्दो में प्रकट किया, “ईश्वर ऐसा न करे। प्रभु! यह आप पर कभी नहीं बीतेगी” (संत मत्ती 16:22) तब येसु ने पेत्रुस को समझाते हुए कहा, तुम ईश्वर की बाते नही मनुष्यों की बाते सोचते हो” (संत मत्ती 16:23) येसु हमें समझाते हैं कि कष्टो से भागना मानवीय है बल्कि कष्टों को स्वीकार करना ईश्वरीय स्वभाव है। वही पेत्रुस, जिसके लिए कष्ट की बात समझ में नही आता था, बाद में पवित्र आत्मा से प्रेरित हो कर लिखता है, “ यदि ईश्वर की यही इच्छा है, तो बुराई करने की अपेक्षा भलाई करने के कारण दुःख  भोगना कहीं अच्छा है।”(1 पेत्रुस 3:17) हमारे जीवन के रोग- बिमारियाँ, मानसिक पीड़ाये, दूसरे लोगो से मिलने वाले अत्याचार ये सब का स्त्रोत ईश्वर नहीं बल्कि शैतान है। इसलिए कूस की शिक्षा का अर्थ यह है कि शैतान या संसार से मिलने-वाले कष्टों को ईश्वर की इच्छा के अनुसार स्वीकार करना है। इसलिए संत पेत्रुस लिखते है, “ इसलिए तो आप बुलाये गये हैं, क्योंकि मसीह ने आप लोगों के लिए दुःख भोगा और आप को उदाहरण दिया,                                                                                                                

                                            
                                                                                    फादर येशुदास vc


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