ईश्वर अनन्द ज्ञानी और परम भला है यदि यह किसी सृष्ट जीव का निर्माण करता है तो उसका कोई उदेश्य होता है जब उसने हमें विवेकशील और स्वतंत्र प्राणी बनाया तो उसका उदेश्य अपनी महिमा बढ़ाना नहीं था क्योंकि उसकी महिमा तो अनन्त है। असीम भला ईश्वर का एक ही उदेश्य हो सकता है। अपना जीवन और सुख हमें बाँटना चाहिए। इस दृढ़ विश्वास से हम आनन्द मना सकता है कि ईश्वर हम में से प्रत्येक को अपने जीवन और सुख का भागी बनाने के लिए हमारी सृष्टि की है, सभी मनुष्य धन, प्रसिद्धि या अधिकार नहीं चाहते किन्तु सभी सुख के लिए बनाये गये है। हम सुख के लिए बनाये गए है क्योंकि संसार में इतना दुःख होता है। दुःख एक समस्या है। कोई आचार्य इस समस्या का हल यह कह कर करना चाहता है कि संसार का अधिकांश बुराई ईश्वर के क्रोध का परिणाम नहीं किन्तु मनुष्यों के पापों और उनके दुष्टता का फल है। ईश्वर स्वतंत्रता को मानते है किन्तु पूर्ण रूप से आनन्त दायक नहीं क्योंकि बहुत सा दुःख, रोग और प्राकृतिक विपत्तियों से उत्पन्न होती है। मनुष्यों से उत्पन्न दु:ख के संबंध में हम ईश्वर से यह सवाल करते है कि क्यों हमारी जीवन में ऐसे होते है ? ईश्वर जो बुराई होने देते है उस से उच्चतम भलाई निकल सकते है। लेकिन यह पूर्णत: सन्तोष जनक समाधान नहीं। हम बुराई की समस्या के रहस्य के साथ स्थिर मन से और शांति पूर्वक जीने का संकल्प कर के हमें दुःख कष्ट का और अपने चारों और फैली हुई बुराई का सामना उनके यथार्थ रूप में समभाव से करना चाहिए और उदार मन से यहाँ तक आये हुये दुःख और बुराई को कम करने की अभिलाषा रखनी और परिश्रम भी करनी चाहिए। यदि हम विश्वास के साथ ईश्वर की योजना स्वीकार कर ले वह स्पष्ट हो आथ्वा रहस्यमय, तो हम बुराई की समस्या को अच्छा दिल से देख सकेंगे। ईश्वरीय वचन हमें सांत्वना देता है कि विपत्ती के समय तुम्हारा जी घबराये नहीं। ईश्वर से लिपटे रहो, उसे मन त्यागो जिससे अन्त में तुम्हारा कलयाण हो । जो कुछ तुम पर बीतेगा उसे स्वीकार करो तथा दुःख और विपत्ती में धीर बने रहो। (प्रवक्ता 2:2-4) आनन्द और खुशी से जीने केलिए ईश्वर ही हमें शक्ति देता । प्रभु कहता है कि धन्य हो तुम जब लोग मेरे कारण तुम्हारा अपमान करते है तुम पर अत्याचार करते और तरह-तरह के झूठे दोष लगते है। खुश हो और आनन्द मनाओ स्वर्ग में तुम्हें महान पुरस्कार प्राप्त होगा। स्तोत्र ग्रन्थ कार अनुभव करता था कि जो आनन्द तु मुझे प्रदान करता है वह उस आनन्द से गहरा है जो लोगों को अंगूर और गेहूँ की अच्छी फसल से मिलता है। (स्त्रोत्र 4:7) संत योहन के सुसमाचार द्वारा प्रभु हमसे कहते है कि हम ईश वचन पर ध्यान देता तभी हमें आनंद मिलेगा। मैं तुम लोगों से यह इसलिए कहा है कि तुम मेरे आनन्द के भागी बनो और तुम्हारा आनन्द पूर्ण हो । (योहन 15:11)। संत पौलूस और सीलास सुसमाचार की घोषण करके नगर पहूँचा। वहाँ उनको पकड कर खूब पिटवाकर बन्दीग्रह में डलवा दिया। पौलूस और सीलास प्रार्थना करते हुए ईश्वर की स्तुति गा रहे थे। उन लोग सुसमाचार के लिए पिटवाये गये, बन्दी हो गये, वे रोथे नहीं, खुशी से ईश्वर की स्तुति कर रहे थे। ईश्वर उनके मुक्ति के लिए आयें। (प्रेरित चरित 16:25) इस जीवन के दुःख संकट में हम लोग भी ईश्वर से शक्ति पाकर संकट का सामना करना चाहिए।
फादर पौल vc
No comments:
Post a Comment