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शनिवार, 12 जून, 2021 कुँवारी मरियम का निष्कलंक हृदय - अनिवार्य स्मृति

 

शनिवार, 12 जून, 2021

कुँवारी मरियम का निष्कलंक हृदय - अनिवार्य स्मृति

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पहला पाठ : इसायाह 61:9-11



9) उनके वंशज राष्ट्रों में प्रसिद्ध होंगे और उनकी सन्तति का नाम देश-विदेश में फैलेगा। उन्हें देखने वाले सब-के-सब जान जायेंगे कि वे प्रभु की चुनी हुई प्रजा है।“

10) मैं प्रभु में प्रफुल्लित हो उठता हूँ, मेरा मन अपने ईश्वर में आनन्द मनाता है। जिस प्रकार वह याजक की तरह मौर बाँध कर और वधू आभूषण पहन कर सुशोभित होते हैं, उसी प्रकार प्रभु ने मुझे मुक्ति के वस्त्र पहनाये और मुझे धार्मिकता की चादर ओढ़ा दी है।

11) जिस प्रकार पृथ्वी अपनी फ़सल उगाती है और बाग़ बीजों को अंकुरित करता है, उसी प्रकार प्रभु-ईश्वर सभी राष्ट्रों में धार्मिकता और भक्ति उत्पन्न करेगा।



सुसमाचार : सन्त लूकस का सुसमाचार 2:41-51



41) ईसा के माता-पिता प्रति वर्ष पास्का पर्व के लिए येरुसालेम जाया करते थे।

42) जब बालक बारह बरस का था, तो वे प्रथा के अनुसार पर्व के लिए येरुसालेम गये।

43) पर्व समाप्त हुआ और वे लौट पडे़; परन्तु बालक ईसा अपने माता-पिता के अनजाने में येरुसालेम में रह गया।

44) वे यह समझ रहे थे कि वह यात्रीदल के साथ है; इसलिए वे एक दिन की यात्रा पूरी करने के बाद ही उसे अपने कुटुम्बियों और परिचितों के बीच ढूँढ़ते रहे।

45) उन्होंने उसे नहीं पाया और वे उसे ढूँढ़ते-ढूँढ़ते येरुसालेम लौटे।

46) तीन दिनों के बाद उन्होंने ईसा को मन्दिर में शास्त्रियों के बीच बैठे, उनकी बातें सुनते और उन से प्रश्न करते पाया।

47) सभी सुनने वाले उसकी बुद्धि और उसके उत्तरों पर चकित रह जाते थे।

48) उसके माता-पिता उसे देख कर अचम्भे में पड़ गये और उसकी माता ने उस से कहा “बेटा! तुमने हमारे साथ ऐसा क्यों किया? देखो तो, तुम्हारे पिता और मैं दुःखी हो कर तुम को ढूँढते रहे।“

49) उसने अपने माता-पिता से कहा, “मुझे ढूँढ़ने की ज़रूरत क्या थी? क्या आप यह नहीं जानते थे कि मैं निश्चय ही अपने पिता के घर होऊँगा?“

50) परन्तु ईसा का यह कथन उनकी समझ में नहीं आया।

51) ईसा उनके साथ नाज़रेत गये और उनके अधीन रहे। उनकी माता ने इन सब बातों को अपने हृदय में संचित रखा।



📚 मनन-चिंतन



आज के पहले पाठ में संत पौलुस अपने श्राताओं को याद दिलाते हैं कि वे मसीह में एक नये सृष्टि बन गये हैं। यदि कोई मसीह के साथ एक हो गया है, तो वह नयी सृष्टि बन गया है (2 कुरिन्थ 5:17)। मसीह मनुष्यों के प्रेम के कारण मरे और जी उठे हैं। इसीलिए मसीह का प्रेम हमारे हदयों में उमड़ पड़ा है। पौलुस कहते हैं कि यह सब ईश्वर ने किया है-उसने मसीह के द्वारा अपने से मेल कराया है। और हमारे अपराध उनके खर्चे में न लिखकर मसीह द्वारा अपने साथ संसार का मेल कराया है।

आज के सुसमाचर में प्रभु येसु शपथ और प्रतिज्ञा के बारे में बताते हैं कि झूठी शपथ कभी नहीं खानी चाहिए और प्रभु के सामने खायी शपथ हमेशा पुरी करना चाहिए (मत्ती 5:33) हमें किसी के सामने शपथ लेने का कोई अधिकार नहीं है क्योंकि हम ईश्वर के सामने शुन्य हैं। हम लेवी ग्रन्थ मे पढ़ते हैं-’’अपने ईश्वर का नाम अपवित्र करते हुए मेरे नाम की झूठी शपथ मत लो। मैं प्रभु हूँ।’’ (लेवी ग्रन्थ 19:12) प्रभु ने मुझे यह आदेश दिया है। यदि कोई प्रभु के लिए मन्नत या शपथ खाकर कोई दायित्व स्वीकार करता है, तो वह अपना वचन भंग न करे, बल्कि अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार उसका ठीक-ठीक पालन करें। (गणना ग्रन्थ 30:3)।

आइये हम प्रभु के वचन को स्वीकार करें और हमेशा संजोये रखने का प्रयास करें। हमारी बात इतनी हो हाँ की हाँ, नहीं की नहीं (मत्ती 5:37)।



📚 REFLECTION




In the first reading, Paul reminds his listeners that they have become new creation in Christ. If anyone is in Christ, there is a new creation. (2cor5:17). Because of the love of the humanity Christ died on the cross and rose again. And that is why the love of Christ is flowing in us. St Paul says that, “All this is from God, who reconciled us to himself through Christ. And that is, in Christ God was reconciling the world to himself, not counting their trespasses against them, and entrusting the message of reconciliation to us.

In today’s gospel Jesus tells about oaths and promises. We should never swear falsely, but carry out the vows made before God (Mt.5:33). No one has the right to take oaths and promises, because we are insignificant before God. We read in the book of Leviticus 19:12, “And you shall not swear falsely by my name, profaning the name of your God: I am the Lord”. The Lord has commanded us that, when a man makes a vow to the Lord, or swears an oath to bind himself by a pledge, he shall not break his word; he shall do according to all that proceeds out of his mouth (Num.30:2).Let us accept the word of the Lord and try to assimilate it. “Let our words be ‘yes, ‘yes or ‘no, ‘no (Mt5:37).



 -Br Biniush Topno


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Praise the Lord!

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