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इतवार, 13 जून, 2021 वर्ष का ग्यारहवाँ इतवार

 

इतवार, 13 जून, 2021

वर्ष का ग्यारहवाँ इतवार

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पहला पाठ : एज़ेकिएल का ग्रन्थ 17:22-24



22) “प्रभु-ईश्वर यह कहता है- मैं देवदार की फुनगी से, उसकी ऊँची-ऊँची शाखाओं से एक टहनी काटूँगा। उसे मैं स्वयं एक ऊँचे पहाड़ पर लगाऊँगा,

23) उसे मैं इस्राएल के ऊँचे पहाड़ पर लगाऊँगा। उस में डालियाँ निकल आयेंगी। वह फल उत्पन्न करेगा और एक शानदार देवदार बन जायेगा। नाना प्रकार के पक्षी उसके नीचे आ जायेंगे; वे उसकी डालियों की छाया में बसेरा करेंगे

24) और मैदान के सभी पेड़ जान लेंगे कि मैं प्रभु, ऊँचे वृक्ष को नीचा बना देता हूँ और नीचे वृक्ष को ऊँचा। मैं हरे वृक्ष को सूखा बना देता हूँ और सूखे वृक्ष को हरा। मैं, प्रभु जो कह चुका हूँ, उसे पूरा कर देता हूँ।“



दूसरा पाठ: कुरिन्थियों के नाम सन्त पौलुस का दूसरा पत्र 5:6-10



6) इसलिए हम सदा ईश्वर का भरोसा रखते हैं। हम यह जानते हैं, कि हम जब तक इस शरीर में हैं, तब तक हम प्रभु से दूर, परदेश में निवास करते हैं;

7) क्योंकि हम आँखों-देखी बातों पर नहीं, बल्कि विश्वास पर चलते हैं। हमें तो ईश्वर पर पूरा भरोसा है।

8) हम शरीर का घर छोड़ कर प्रभु के यहाँ बसना अधिक पसन्द करते हैं।

9) इसलिए हम चाहे घर में हों चाहे परदेश में, हमारी एकमात्र अभिलाषा यह है कि हम प्रभु को अच्छे लगे;

10) क्योंकि हम सबों को मसीह के न्यायासन के सामने पेश किया जायेगा। प्रत्येक व्यक्ति ने शरीर में रहते समय जो कुछ किया है, चाहे वह भलाई हो या बुराई, उसे उसका बदला चुकाया जायेगा।



सुसमाचार : सन्त मारकुस का सुसमाचार 4:26-34



26) ईसा ने उन से कहा, ’’ईश्वर का राज्य उस मनुष्य के सदृश है, जो भूमि में बीज बोता है।

27) वह रात को सोने जाता और सुबह उठता है। बीज उगता है और बढ़ता जाता है हालाँकि उसे यह पता नहीं कि यह कैसे हो रहा है।

28) भूमि अपने आप फसल पैदा करती है- पहले अंकुर, फिर बाल और बाद में पूरा दाना।

29 फ़सल तैयार होते ही वह हँसिया चलाने लगता है, क्योंकि कटनी का समय आ गया है।’’

30) ईसा ने कहा, ’’हम ईश्वर के राज्य की तुलना किस से करें? हम किस दृष्टान्त द्वारा उसका निरूपण करें?

31) वह राई के दाने के सदृश है। मिट्टी में बोये जाते समय वह दुनिया भर का सब से छोटा दाना है;

32) परन्तु बाद में बढ़ते-बढ़ते वह सब पौधों से बड़ा हो जाता है और उस में इतनी बड़ी-बड़ी डालियाँ निकल आती हैं कि आकाश के पंछी उसकी छाया में बसेरा कर सकते हैं।

33) वह इस प्रकार के बहुत-से दृष्टान्तों द्वारा लोगों को उनकी समझ के अनुसार सुसमाचार सुनाते थे।

34) वह बिना दृष्टान्त के लोगों से कुछ नहीं कहते थे, लेकिन एकान्त में अपने शिष्यों को सब बातें समझाते थे।



📚 मनन-चिंतन



आज वर्ष का ग्यारहवाँ इतवार है। आज के पहले पाठ एवं सुसमाचार में हम एक आर्दश पिता के बारे में सुनते हैं, जो हमेशा अपने बच्चों की भलाई की कामना करता हैं। और हर संभव उनकी आवश्यकताओं को पुरा करने का प्रयास करता है। वह इसके लिए योजना बनाता है एवं हर सपनों को पुरा करने का भरसक प्रयास करता है। इसे हम संत योहन के सुसमाचार 3:16 में पढ़ते हैं, ’’ईश्वर ने संसार को इतना प्यार किया कि उसने उसके लिए अपने एकलौते पुत्र को अर्पित कर दिया, जिससे जो उसमें विश्वास करता है, उसका सर्वनाश न हो, बल्कि वह अनंन्त जीवन प्राप्त करे।’’ ईश्वर हर व्यक्ति के जीवन में कार्य करता है जैसा कि वह प्रकृति के साथ करता है। वह सृष्टि के हर एक चीज पर अपनी उपस्थिति एवं कार्य बनाये रखता है।

आज के पहले पाठ मे ंहम सुनते हैं कि ईश्वर (इसा्रलियों) लोगों की भलाई की पहल करता है वह एक छोटी सी टहनी से शक्तिशाली पेड़ बनाता है। प्रभु कहता है, वह इस्राएल को ऊँचे पहाड़ पर लगायेगा और उसमें डालियाँ निकल आएगी (ऐजेकिएल 17:23)। इससे ईश्वर यह स्पष्ट करना चाहता है कि वह इस्राएल को एक महान राष्ट्र बनायेगा।

दूसरे पाठ में संत पौलुस कुरिन्थ के विश्वासियों को बताते हैं कि हमें ईश्वर को प्रसन्न रखना है। वे आगे बताते हैं कि हमें प्रभु येसु ने एक नये सृष्टि बनना है। प्रभु येसु के अनुयायी होने के नाते प्रभु के समनरूप बनना है। संत पौलुस की भी यही इच्छा थी कि वे भी हमेशा प्रभु के लिए एक नया जीवन जीयें।

आज के सुसमाचार में दो दृष्टांत है जो ईश्वर के राज्य की रहस्यों के बारे में बताते हैं इसके लिए वह बीज और पौधे का उपयोग करते हैं जिस प्रकार जब बीज बोया जाता है तो वह अंकुरित होकर बिना किसी बाहय दबाव से बढ़ता है उसी प्रकार हमारा ख्रीस्तीय विश्वास भी बढ़ता है जब हम ईश्वर पर सब कुछ समर्पित करते हैं और उसी प्रकार पौधा भी जब बढ़कर पेड़ में परिर्वत हो जाता है तब वह सबको आश्रय देता, और पंछी उसकी छाया में बसेरा करते हैं। (मारकुस 4:32)


फादर आइजक एक्का

📚 REFLECTION




Today is the eleventh Sunday of the year. In today’s first reading and in the gospel we hear about the benevolent father, who always wishes for the wellbeing of his children, and tries to fulfil every need. For this he plans a dream and dreams for them. He is a benevolent father who cares for his children. We read in gospel of John3:16, “For God so loved the world that he gave his only son, so that everyone who believes in him may not perish but may have eternal life.” God works in every human person as he would work in nature. We can see how God causes for each single item of his creation and builds into his own presence and action.

In today’s first reading we hear that God takes initiative for the wellbeing of the people of Israel. He causes a small shoot to grow into a mighty tree. God says he will plant Israel on high mountain and its branches shall spread (Ez.17:23); with this God wished to make Israel a great nation.

In the second reading Paul reminds the Corinthian that we need to always please God. And further he says that we have to become a new creation in Christ. As a follower of Christ we need to be like Christ. This was also the aim of Paul that we have to live a new life in Christ.

In the gospel today we have two parables concerning the growth and the mystery of the kingdom of God. For this he uses the images of seed and the plant. As the seed is sown it first sprouts and grows without any hindrance, likewise our Christian life grows without any external hurdles when we submit ourselves to God. And as the plant grows and becomes a tree, it gives shade and the birds make shelter in it (Mk.4:32).



 -Fr. Isaac Ekka

मनन-चिंतन-2


आज के सुसमाचार में प्रभु येसु कहते हैं, "ईश्वर का राज्य उस मनुष्य के सदृश है, जो भूमि में बीज बोता है। वह रात को सोने जाता और सुबह उठता है। बीज उगता है और बढ़ता जाता है हालाँकि उसे यह पता नहीं कि यह कैसे हो रहा है। भूमि अपने आप फसल पैदा करती है- पहले अंकुर, फिर बाल और बाद में पूरा दाना। फ़सल तैयार होते ही वह हँसिया चलाने लगता है, क्योंकि कटनी का समय आ गया है।" किसान खेत में मेहनत तो ज़रूर करता है, परन्तु वह यह नहीं कह सकता कि मैंने कुछ पैदा किया है। फ़सल तो ईश्वर की देन है। स्तोत्र 127:1-2 में हम पढ़ते हैं, “यदि प्रभु ही घर नहीं बनाये, तो राजमन्त्रियों का श्रम व्यर्थ है। यदि प्रभु ही नगर की रक्षा नहीं करे, तो पहरेदार व्यर्थ जागते हैं। कठोर परिश्रम की रोटी खानेवालो! तुम व्यर्थ ही सबेरे जागते और देर से सोने जाते हो; वह अपने सोये हुए भक्त का भरण-पोषण करता है।”

हमारे बच्चे भी ईश्वर के वरदान है। काईन को जन्म देने के बाद हेवा ने कहा, ''मैंने प्रभु की कृपा से एक मनुष्य को जन्म दिया'' (उत्पत्ति 4:1) ईश्वर ने पति-पत्नियों को विवाह संस्कार के अंतर्गत बच्चे पैदा करने की क्षमता दी है, परन्तु वास्तव मे बच्चे ईश्वर की देन है। उत्पत्ति 20:1-2 में हम देखते हैं, कि “जब राहेल ने देखा कि उससे याकूब को कोई पुत्र नहीं हुआ है, तब वह अपनी बहन से जलने लगी और उसने याकूब से कहा, ''मुझे बाल-बच्चे दो, नहीं तो मैं मर जाऊँगी'' याकूब को राहेल पर क्रोध आ गया। वह कहने लगा, ''मैं क्या ईश्वर बन सकता हूँ। उसी ने तो तुम्हें सन्तान से वंचित किया।'' ईश्वर ने इब्राहीम और सारा को उनके बुढ़ापे में एक बच्चे का वरदान दिया।

हम हर कार्य के लिए ईश्वर पर निर्भर है। इसलिए स्तोत्रकार कहते हैं,“यदि प्रभु ने हमारा साथ नहीं दिया होता, तो जब लोगों ने हम पर चढ़ाई की और हम पर उनका क्रोध भड़का, तब वे हमें जीवित ही निगल गये होते। बाढ़ हमें डुबा गयी होती, प्रचण्ड धारा ने हमें बहा दिया होता और चारों ओर उमड़ती लहरों में हम डूब कर मर गये होते।” (स्तोत्र 124:2-5) संत याकूब हम से कहते हैं, “आप लोग जो यह कहते हैं, "हम आज या कल अमुक नगर जायेंगे, एक वर्ष तक वहाँ रह कर व्यापार करेंगे और धन कमायेंगे", मेरी बात सुनें। आप नहीं जानते कि कल आपका क्या हाल होगा। आपका जीवन एक कुहरा मात्र है- वह एक क्षण दिखाई दे कर लुप्त हो जाता है। आप लोगों को यह कहना चाहिए, "यदि ईश्वर की इच्छा होगी, तो हम जीवित रहेंगे और यह या वह काम करेंगे"। याकूब 4:13-15)

इसी कारण हमें ईश्वर के प्रति हमेशा कृतज्ञ बने रहना चाहिए। एक डाक्टर ने एक 65 साल के मरीज के हृदय का ऑपरेशन किया। उसे यह कहा गया कि कम से कम 5 साल के लिए उसे डरने की कोई ज़रूरत नहीं है। ऑपरेशन का खर्च था 3 लाख रुपये। बिल देख कर उस मरीज ने ईश्वर को धन्यवाद दिया। डाक्टर को आश्चर्य हुआ और उन्होंने उस मरीज से पूछा, “मैंने सोचा कि आप इतना बडा बिल देख कर दुखी होंगे। परन्तु आप खुशी से ईश्वर को धन्यवाद दे रहे हैं। ऐसा क्यों?” तब उसने उत्तर दिया, “आप पाँच साल मेरे हृदय को चलाने के लिए 3 लाख रुपये ले रहे हैं। परन्तु पिछले 65 सालों में उसे चलाने के लिए मेरे ईश्वर ने मुझ से एक पैसा नहीं लिया। यह सोच कर मैं ईश्वर को धन्यवाद देता हूँ।“

राजाओं तथा शासकों को भी ईश्वर के अधिकार का आदर करना चाहिए। प्रज्ञा ग्रन्थ 6:1-5 में कहा गया है, “राजाओें! सुनो और समझो। पृथ्वी भर के शासको! शिक्षा ग्रहण करो। तुम, जो बहुसंख्यक लोगों पर अधिकार जताते हो और बहुत-से राष्ट्रों का शासन करने पर गर्व करते हो, मेरी बातों पर कान दो; क्योंकि प्रभु ने तुम्हें प्रभुत्व प्रदान किया, सर्वोच्च ईश्वर ने तुम्हे अधिकार दिया। वही तुम्हारे कार्यों का लेखा लेगा और तुम्हारे विचारों की जाँच करेगा। तुम उसके राज्य के सेवक मात्र हो। इसलिए यदि तुमने सच्चा न्याय नहीं किया, विधि का पालन नहीं किया और ईश्वर की इच्छा पूरी नहीं की, तो वह भीषण रूप में अचानक तुम्हारे सामने प्रकट होगा; क्योंकि उच्च अधिकारियों का कठोर न्याय किया जायेगा।” समुएल के पहले ग्रन्थ, अध्याय 17 में हमे देखते हैं कि दाऊद फ़िलिस्ती महापराक्रमी गोलयत से कहते हैं, “तुम तलवार, भाला और बरछी लिये मुझ से लड़ने आ रहे हो। मैं तो विश्वमण्डल के प्रभु, इस्राएली सेनाओं के ईश्वर के नाम पर तुम से लड़ने आ रहा हूँ, जिसे तुमने चुनौती दी है।” उसी ईश्वर की शक्ति से बालक दाऊद ने फिलिस्ती महापराक्रमी को मार गिराया। बाद में दाऊद भी घमण्ड कर अपनी ताकत पर भरोसा रख कर जनगणना की आज्ञा दे कर पाप करते हैं। न्यायकर्ता के ग्रन्थ अध्याय 7 में हम देखते हैं कि गिदओन 32,000 सैनिकों को लेकर मिदियानियों के विरुध्द युध्द करने जाते हैं, तब ईश्वर उन से कहते हैं, "तुम्हारे पास लोगों की संख्या बहुत अधिक है। इसलिए मैं मिदयानियों को उनके हाथ नहीं दूँगा, क्योंकि इस से इस्राएली डींग मारेंगे कि हमने अपने बाहुबल से अपना उद्धार किया है।“ तब प्रभु 31,700 सैनिकों वापस भेजने की आज्ञा देते है। ईश्वर की शक्ति पर निर्भर रह कर गिदयोन ने केवल 300 सैनिकों के साथ युध्द में जा कर मिदियानियों को पराजित किया।

इस प्रकार पवित्र वचन हमें यह शिक्षा देता है कि ईश्वर के बिना हम कुछ भी नहीं कर सकते हैं। प्रभु येसु कहते हैं, “जिस तरह दाखलता में रहे बिना डाली स्वयं नहीं फल सकती, उसी तरह मुझ में रहे बिना तुम भी नहीं फल सकते”। योहन 15:4)



-Br. Biniush Topno

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Praise the Lord!

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