सोमवार, 24 मई, 2021
माता मरियम, कलिसिया की माता
<पहला पाठ : उत्पत्ति 3:9-15
9) प्रभु-ईश्वर ने आदम से पुकार कर कहा, ''तुम कहाँ हो?''
10) उसने उत्तर दिया, ''मैं बगीचे में तेरी आवाज सुन कर डर गया, क्योंकि में नंगा हूँ और मैं छिप गया''।
11) प्रभु ने कहा, ''किसने तुम्हें बताया कि तुम नंगे हो? क्या तुमने उस वृक्ष का फल खाया, जिस को खाने से मैंने तुम्हें मना किया था?''
12) मनुष्य ने उत्तर दिया, ''मेरे साथ रहने कि लिए जिस स्त्री को तूने दिया, उसी ने मुझे फल दिया और मैंने खा लिया''।
13) प्रभु-ईश्वर ने स्त्री से कहा, ''तुमने क्या किया है?'' और उसने उत्तर दिया, ''साँप ने मुझे बहका दिया और मैंने खा लिया''।
14) तब ईश्वर ने साँप से कहा, ''चूँकि तूने यह किया है, तू सब घरेलू तथा जंगली जानवरों में शापित होगा। तू पेट के बल चलेगा और जीवन भर मिट्टी खायेगा।
15) मैं तेरे और स्त्री के बीच, तेरे वंश और उसके वंश में शत्रुता उत्पन्न करूँगा। वह तेरा सिर कुचल देगा और तू उसकी एड़ी काटेगा''।
<अथवा - पहला पाठ : प्रेरित-चरित 1:12-14
12) प्रेरित जैतून नामक पहाड़ से येरूसालेम लौटे। यह पहाड़ येरूसालेम के निकट, विश्राम-दिवस की यात्रा की दूरी पर है।
13) वहाँ पहुँच कर वे अटारी पर चढ़े, जहाँ वे ठहरे हुए थे। वे थे-पेत्रुस तथा योहन, याकूब तथा सिमोन, जो उत्साही कहलाता था और याकूब का पुत्र यूदस।
14) ये सब एकहृदय हो कर नारियों, ईसा की माता मरियम तथा उनके भाइयों के साथ प्रार्थना में लगे रहते थे।
सुसमाचार : योहन 19:25-34
25) ईसा की माता, उसकी बहिन, क्लोपस की पत्नि मरियम और मरियम मगदलेना उनके कू्रस के पास खडी थीं।
26) ईसा ने अपनी माता को और उनके पास अपने उस शिष्य को, जिसे वह प्यार करते थे देखा। उन्होंने अपनी माता से कहा, "भद्रे! यह आपका पुत्र है"।
27) इसके बाद उन्होंने उस शिष्य से कहा, "यह तुम्हारी माता है"। उस समय से उस शिष्य ने उसे अपने यहाँ आश्रय दिया।
28) तब ईसा ने यह जान कर कि अब सब कुछ पूरा हो चुका है, धर्मग्रन्थ का लेख पूरा करने के उद्देश्य से कहा, "मैं प्यासा हूँ"।
29) वहाँ खट्ठी अंगूरी से भरा एक पात्र रखा हुआ था। लेागों ने उस में एक पनसोख्ता डुबाया और उसे जूफ़े की डण्डी पर रख कर ईसा के मुख से लगा दिया।
30) ईसा ने खट्ठी अंगूरी चखकर कहा, "सब पूरा हो चुका है"। और सिर झुकाकर प्राण त्याग दिये।
31) वह तैयारी का दिन था। यहूदी यह नहीं चाहते थे कि शव विश्राम के दिन कू्रस पर रह जाये क्योंकि उस विश्राम के दिन बड़ा त्यौहार पडता था। उन्होंने पिलातुस से निवेदन किया कि उनकी टाँगें तोड दी जाये और शव हटा दिये जायें।
32) इसलिये सैनिकेां ने आकर ईसा के साथ क्रूस पर चढाये हुये पहले व्यक्ति की टाँगें तोड दी, फिर दूसरे की।
33) जब उन्होंने ईसा के पास आकर देखा कि वह मर चुके हैं तो उन्होंने उनकी टाँगें नहीं तोडी;
34) लेकिन एक सैनिक ने उनकी बगल में भाला मारा और उस में से तुरन्त रक्त और जल बह निकला।
📚 मनन-चिंतन
आज हमारे समक्ष मॉं मरियम का पर्व है जिसे हम माता मरियम, कलीसिया की माता के रूप में मनाते है। मॉं मरियम को यह सौभाग्य प्राप्त हुआ कि वह येसु-ईश्वर की माता बन सकें। स्वर्गदूत गाब्रिएल मरियम के पास संदेश देेते है कि उनके द्वारा मुक्तिदाता का जन्म होगा। गाब्रिएल के उस कथन पर अपनी सहमति देने के बाद मरियम येसु की माता बनती है-येसु अर्थात् ईश्वर की माता। जब प्रभु येसु कू्रस पर थे तब येसु ने अपनी माता मरियम को हम सभी के लिए मॉं के रूप में दिया, यह सब उस कू्रस के पास हुआ जब येसु ने मॉं मरियम से कहा, ‘‘भद्रे! यह आपका पुत्र है’’ तथा संत योहन से कहा, ‘‘यह तुम्हारी माता है’’।
आज का पर्व हमें बताता है कि मॉ मरियम न केवल हमारी माता है परंतु कलीसिया की भी माता है। प्रभु येसु जो ‘शरीर अर्थात् कलीसिया के शीर्ष है’ (कलो. 1ः18) और हम सब मिलकर मसीह का शरीर हैं (1 कुरिंथ. 12ः27)। यदि मॉं मरियम शरीर के शीर्ष अर्थात् येसु की मॉं है तब वे कलीसिया रूपी शरीर के सभी अंगों की मॉं है। कलीसिया की स्थापना प्रभु येसु ने की तथा यह कलीसिया पेंतेकोस्त के दिन पवित्र आत्मा के आगमन से सामर्थ्य से भर गई। जिस दिन कलीसिया पवित्र आत्मा से परिपूर्ण हो गई उस समय मॉं मरियम उस कलीसिया के साथ थी। इस हेतु हर साल पेंतेकोस्त के पर्व के दूसरे दिन ही हम कलीसिया की मॉं मरियम का पर्व मनाते है।
प्रभु येसु के स्वर्गारोहण के बाद मॉं मरियम ने कलीसिया को सहारा दिया और उस कलीसिया को उस महान शक्ति पवित्र आत्मा को ग्रहण करने के लिए प्रार्थना में संजोय रखा। मॉं मरियम का कलीसिया को सम्भालने, आगे बढ़ाने, प्रार्थना में समय बिताने में अहम् भूमिका रही है। इस हेतु भी मॉं मरियम कलीसिया की मॉं है।
आज जब हम यह पर्व को मनाते है तो हम मॉ मरियम से प्रार्थना करें कि वह सदा अपनी कलीसिया को अपने आश्रय में रखें और निरंतर प्रभु येसु के पथ चिन्हांे पर चलने में मदद करें। आमेन!
📚 REFLECTION
Today we have the feast of Mother Mary celebrated as Mary, the mother of the Church. It was the blessed fortune of Mother Mary to become the mother of Jesus. Angel Gabriel gave the message to Mary that through him the Saviour will be born. Giving the consent on the sayings of Gabriel Mary becomes the Mother of Jesus i.e Mother of God. When Jesus was crucified on the cross Jesus gave her mother to be our mother, all this happened near the cross when Jesus said to Mary, “Woman, here is your son” and to John he said, “Here is your mother.”
Today’s feast tells us that Mother Mary is not only our mother but also the Mother of the Church. Lord Jesus who is the ‘head of the body, the church’ (Col 1:18) and ‘we are the body of Christ and individually members of it’ (1Cor 12:27). If the Mother Mary is the mother of the head then she is the mother of body-the Church too. Church was established by Jesus and was empowered by the Holy Spirit on the day of Pentecost. When the Church was empowered by the Holy Spirt that time Mother Mary was with the Church. Due to this every year the feast of Mary the Mother of Church is being celebrated the next day to the feast of Pentecost.
After the Ascension of Lord Jesus Mother Mary gave the support to the Church and gathered the Church in prayer to receive the Holy Spirit. The role of Mother Mary in caring the, in the growth of the Church and leading the Church in prayer was eminent. For this reason too she is also the mother of the Church.
When we are celebrating today’s feast Let’s pray to Mother Mary that she may always keep the Church in her shelter and help continually to walk in the path of Jesus Christ. Amen!
✍ -Br Biniush Topno
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