इतवार, 23 मई, 2021
पेंतेकोस्त का पर्व
पहला पाठ : प्रेरित-चरित 2:1-11
1) जब पेंतेकोस्त का दिन आया और सब शिष्य एक स्थान पर इकट्ठे थे,
2) तो अचानक आँधी-जैसी आवाज आकाश से सुनाई पड़ी और सारा घर, जहाँ वे बैठे हुए थे, गूँज उठा।
3) उन्हें एक प्रकार की आग दिखाई पड़ी जो जीभों में विभाजित होकर उन में से हर एक के ऊपर आ कर ठहर गयी।
4) वे सब पवित्र आत्मा से परिपूर्ण हो गये और पवित्र आत्मा द्वारा प्रदत्त वरदान के अनुसार भिन्न-भिन्न भाषाएं बोलने लगे।
5) पृथ्वी भर के सब राष्ट्रों से आये हुए धर्मी यहूदी उस समय येरुसालेम में रहते थे।
6) बहुत-से लोग वह आवाज सुन कर एकत्र हो गये। वे विस्मित थे, क्योंकि हर एक अपनी-अपनी भाषा में शिष्यों को बोेलते सुन रहा था।
7) वे बड़े अचम्भे में पड़ गये और चकित हो कर बोल उठे, ’’क्या ये बोलने वाले सब-के-सब गलीली नहीं है?
8) तो फिर हम में हर एक अपनी-अपनी जन्मभूमि की भाषा कैसे सुन रहा है?
9) पारथी, मेदी और एलामीती; मेसोपोतामिया, यहूदिया और कम्पादुनिया, पोंतुस और एशिया,
10 फ्रुगिया और पप्फुलिया, मिश्र और कुरेने के निकवर्ती लिबिया के निवासी, रोम के यहूदी तथा दीक्षार्थी प्रवासी,
11) क्रेत और अरब के निवासी-हम सब अपनी-अपनी भाषा में इन्हें ईश्वर के महान् कार्यों का बख़ान करते सुन रहे हैं।’’
दूसरा पाठ : 1 कुरिन्थियों 12:3-7, 12-13
3) इसलिए मैं आप लोगों को बता देता हूँ कि कोई ईश्वर के आत्मा से प्रेरित हो कर यह नहीं कहता, "ईसा शापित हो" और कोई पवित्र आत्मा की प्रेरणा के बिना यह नहीं कह सकता, "ईसा ही प्रभु है"।
4) कृपादान तो नाना प्रकार के होते हैं, किन्तु आत्मा एक ही है।
5) सेवाएँ तो नाना प्रकार की होती हैं, किन्तु प्रभु एक ही हैं।
6) प्रभावशाली कार्य तो नाना प्रकार के होते हैं, किन्तु एक ही ईश्वर द्वारा सबों में सब कार्य सम्पन्न होते हैं।
7) वह प्रत्येक को वरदान देता है, जिससे वह सबों के हित के लिए पवित्र आत्मा को प्रकट करे।
12) मनुष्य का शरीर एक है, यद्यपि उसके बहुत-से अंग होते हैं और सभी अंग, अनेक होते हुए भी, एक ही शरीर बन जाते हैं। मसीह के विषय में भी यही बात है।
13) हम यहूदी हों या यूनानी, दास हों या स्वतन्त्र, हम सब-के-सब एक ही आत्मा का बपतिस्मा ग्रहण कर एक ही शरीर बन गये हैं। हम सबों को एक ही आत्मा का पान कराया गया है।
सुसमाचार : योहन 20:19-23
19) उसी दिन, अर्थात सप्ताह के प्रथम दिन, संध्या समय जब शिष्य यहूदियों के भय से द्वार बंद किये एकत्र थे, ईसा उनके बीच आकर खडे हो गये। उन्होंने शिष्यों से कहा, "तुम्हें शांति मिले!"
20) और इसके बाद उन्हें अपने हाथ और अपनी बगल दिखायी। प्रभु को देखकर शिष्य आनन्दित हो उठे। ईसा ने उन से फिर कहा, "तुम्हें शांति मिले!
21) जिस प्रकार पिता ने मुझे भेजा, उसी प्रकार मैं तुम्हें भेजता हूँ।"
22) इन शब्दों के बाद ईसा ने उन पर फूँक कर कहा, "पवित्र आत्मा को ग्रहण करो!
23) तुम जिन लोगों के पाप क्षमा करोगे, वे अपने पापों से मुक्त हो जायेंगे और जिन लोगों के पाप क्षमा नहीं करोगे, वे अपने पापों से बँधे रहेंगे।
📚 मनन-चिंतन
सही और गलत इस जिंदगी के दो ऐसे पहलु है जिससे हर कोई वाकिफ है। हर कोई जानता है कि क्या सही है और क्या गलत। धूम्रपान करने वाला व्यक्ति जानता है कि धूम्रपान उसके शरीर के लिए हानिकारक है फिर भी वह धूम्रपान करता है। चोरी करने वाला व्यक्ति जानता है कि चोरी करना गलत है फिर भी वह चोरी करता है। क्रोध, ईर्ष्या, लालच एक व्यक्ति के लिए हानिकारक है फिर भी वे न चाहते हुए भी क्रोध, ईर्ष्या या लालच करते है। हमारे जीवन में अक्सर ऐसा होता है कि हम सही इंसान बनना चाहते है परंतु हम बन नही पाते। इसका क्या कारण है? इसका एक ही कारण है कि हमारे जीवन में पवित्र आत्मा क्रियाशील नहीं है। हम जितना भी अपने बल शक्ति बुद्धि से अपने आप को बदलना चाहे तो हम नहीं बदल सकते। हमारे परिवर्तन में केवल हमारा सहायक पवित्र आत्मा ही मदद कर सकता है। पवित्र आत्मा ही वह ईश्वर है जो हमारे जीवन को अंदर से बदल सकता है। प्रभु येसु जानते थे कि हम अपने आप से बदलाव नहीं कर पायेंगे इसलिए प्रभु येसु ने वह सहायक प्रदान करने की प्रतिज्ञा की थी।
पेंतेकोस्त का पर्व जिसे आज हम सम्पूर्ण कलीसिया के साथ मना रहें है, उस पवित्र आत्मा के आगमन का पर्व है जहॉं पर पवित्र आत्मा उन शिष्यों पर उतरा और उनके जीवन को बदल कर रख दिया। जो शिष्य डर से छिपे हुए थे वे अब निडर हो कर लोगों के समक्ष येसु ख्रीस्त का साक्ष्य निडर हो कर दे रहें थे। जो अपना जीवन बचाना चाहते थे वे अब येसु के लिए मरने के लिए भी तैयार थे।
हमारे इस जीवन में सबसे ज्यादा जरूरत धन दौलत, यश, बुद्धि या प्रतिभा की नहीं परंतु सबसे ज्यादा जरूरत हमें पवित्र आत्मा की है, इसका महत्व प्रभु येसु हमें लूकस 11ः13 में बताते है, ‘‘बुरे होने पर भी यदि तुम लोग अपने बच्चों को सहज ही अच्छी चीजें देते हो, तो तुम्हारा स्वर्गिक पिता मॉंगने वालों को पवित्र आत्मा क्यों नहीं देगा?’’ प्रभु येसु अप्रत्यक्ष रूप से यह बताना चाह रहें थें कि हमें पिता ईश्वर से क्या मॉगने की जरूरत है। हमारे जीवन के हर समस्या का समाधान पवित्र आत्मा है। जिसके भीतर पवित्र आत्मा क्रियाशील है उसके जीवन में आनंद ही आनंद है और वे इस संसार से परे हो जाते है, इस संसार के दुख पीड़ा खुशी, चिंता से ऊपर उठ कर ऊपर ही बाते सोचते है।
बपतिस्मा संस्कार में हम सभी को पवित्र आत्मा मिलता है तथा ढृढ़ीकरण संस्कार में हमें पूर्ण रूप से पवित्र आत्मा फल, उपहार और वरदान के साथ प्राप्त होता है। तब सवाल उठता है कि जब हमें पवित्र आत्मा प्राप्त है तो हम इस दुनिया में हताश और निराश क्यों है? इसका एक ही कारण है और वह यह है कि हमने अब तक पवित्र आत्मा को अपने जीवन में कार्य करने नहीं दिया, हमने उसे क्रियाशील होने नहीं दिया।
संत पौलुस गलातियों के नाम पत्र में हमें बहुत अच्छी तरह से समझाते है कि, ‘‘शरीर तो आत्मा के विरुद्ध इच्छा करता है और आत्मा शरीर के विरुद्ध। ये दोनो एक दूसरे के विरोधी है। इसलिए आप जो चाहते हैं, वही नहीं कर पाते हैं’’(गला 5ः17)। हमारे मन में दो आवाजें आती है एक है आत्मा का और दूसरा है हमारे शरीर का। यदि हम शरीर की आवाज़ सुनेंगे तो हम शरीर को तृप्त करने वाले कार्य करेंगे और हम शरीरिक अर्थात् संासारिकता में ही सिमट कर रह जायेंगे; परंतु हम पवित्र आत्मा की आवाज़ सुनकर उसके अनुसार कार्य करते जायेंगे तो हम पवित्र होते जायेंगे और हमारे जीवन में पवित्र आत्मा कार्य करता रहेगा।
इस संसार में श्रेष्ठ या उत्तम जीवन पवित्र आत्मा से भरा जीवन जीना है क्योकि शारीरिक जीवन जीना आसान है और इसे तो हर कोई जी रहा है। हमारे जीवन की सफलता हमारे नाम, शौहरत या धन दौलत से बिताया हुआ जीवन नहीं अपितु पवित्र आत्मा से बिताया हुआ जीवन है।
आईये आज के दिन जब सारी कलीसिया पवित्र आत्मा के आगमन पेंतेकोस्त का पर्व मना रही है हम प्रभुु से यही प्रार्थना करें कि संसार भर में सभी निरंतर पवित्र आत्मा की आवाज़ सुनकर अपने जीवन में आगे बढ़े जिससे हमारे जीवन में पवित्र आत्मा क्रियाशील हो जाये और हमारा जीवन परिवर्तन हो जायें। आमेन!
📚 REFLECTION
Right and wrong or good and bad are the two dimesions of this life of which everyone is well aware of. Everyone knows what is good and what is bad, what is right and what is wrong. One who smokes he knows that smoking is injurious to his health but still he smokes. Thieves know that stealing is wrong but still they steal. Anger, jealousy, greed is harmful for any person but still many become angry, jealousy and greedy even if they are not willing. This happens in our lives very often that we want to be good human being but we fail to be. What is the reason behind it? The only reason for this is that Holy Spirit is not active in our lives. With whatever efforts, strength, power, intelligent of ours we use to change ourselves, we will not be able to change ourselves by our own. For the change in us only our helper the Holy Spirit can help us. Holy Spirit is the Triune God who can transform us from within. Lord Jesus knew that we will not be able to change ourselves by our own that is why Lord Jesus has promised to send the Holy Spirit.
The feast of Pentecost which we are celebrating along with the whole churh is the feast of coming of the Holy Spirit where Holy Spirit descended on the apostles and transformed their lives. Those disciples who were hiding in fear were now giving the witness to Jesus with boldness in front of all. Those who wanted to save their lives were now ready to die for Jesus.
In this life the most needed thing is not wealth, fame, intelligence or talent but it is the Holy Spirit which we need the most. The importance of this is told by Jesus in Luke 11:13, “If you then, who are evil, know how to give good gifts to your children, how much more will the heavenly Father give the Holy Spirit to those who ask him!” Lord Jesus wants to tell indirectly that what we need to ask from the Father Almighty. Every solution to the problems of our lives is Holy Spirit. In those whom Holy Spirit is active, their lives are full of joy and they are set apart from this world; they rise above pain, sorrows, happiness, worry and aspire for the things that are above.
We receive the Holy Spirit during the sacrament of Baptism and during the sacrament of confirmation we receive the Holy Spirit in full dimension with the fruits, gifts and charisms. Then the question arises when we have already received the Holy Spirit then why we are frustrated and disappointed in this world? The only reason for this is that we have not allowed the Holy Spirit to work in our lives, we did not allow him to be activated in our lives.
St. Paul explains us very well in the letter to the Galatians that, “For what the flesh desiresis opposed to the Spirit, and what the Spirit desires is opposed to the flesh; for these ae opposed to each other, to prevent you from doing what you want” (Gal 5:17). We hear the two voices in our hearts; one is the voice of the Spirit and another is the voice of the flesh. If we listen to the voice of the flesh then we will try to gratify the desires of the flesh and we will restrict ourselves to the flesh and worldliness; but if we listen to the voice of the Holy Spirit and do accordingly then slowly slowly we will become holy and Holy Spirit will start working in our lives.
The best life to live in this world is to live in the Holy Spirit because the worldly life is easy to live and many are living this life. The success of our life is not the life lived with name, fame, or wealth but it is the life lived in Holy Spirit.v
Along with the whole church which is celebrating the coming of the Holy Spirit the feast of Pentecost, let’s pray to God that all may listen to the voice of the Holy Spirit and go forward sot that Holy Spirit may become active in our lives and our lives may be a transformed one. Amen!
✍ -Br Biniush Topno
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