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मंगलवार, 18 मई, 2021 पास्का का सातवाँ सप्ताह

 

मंगलवार, 18 मई, 2021

पास्का का सातवाँ सप्ताह

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पहला पाठ : प्रेरित-चरित 20:17-27



17) पौलुस ने मिलेतुस से एफ़ेसुस की कलीसिया के अध्यक्षों को बुला भेजा

18) और उनके पर उन से यह कहा, ’’आप लोग जानते हैं कि जब मैं पहले एहल एशिया पहुँचा, तो उस दिन से मेरा आचरण आपके बीच कैसा था।

19) यहूदियों के षड्यन्त्रों के कारण मुझ पर अनेक संकट आये, किन्तु मैं आँसू बहा कर बड़ी विनम्रता से प्रभु की करता रहा।

20) जो बातें आप लोगों के लिए हितकर थीं, उन्हें बताने में मैंने कभी संकोच नहीं किया, बल्कि मैं सब के सामने और घर-घर जा कर उनके सम्बन्ध में शिक्षा देता रहा।

21) मैं यहूदियों तथा यूनानियों, दोनों से अनुरोध करता रहा है कि वे ईश्वर की ओर अभिमुख हो जायें और हमारे प्रभु ईसा में विश्वास करें।

22) अब में आत्मा की प्रेरणा से विवश हो कर येरुसालेम जा रहा हूँ। वहाँ मुझ पर क्या बीतेगी, मैं यह नहीं जानता;

23) किन्तु पवित्र आत्मा नगर-नगर में मुझे विश्वास दिलाता है कि वहाँ बेडि़याँ और कष्ट मेरी प्रतीक्षा कर रहे हैं।

24) किन्तु मेरी दृष्टि में मेरे जीवन का कोई मूल्य नहीं। मैं तो केवल अपनी दौड़ समाप्त करना और ईश्वर की कृपा का सुसमाचार सुनाने का वह कार्य पूरा करना चाहता हूँ, जिसे प्रभु ईसा ने मुझे सौंपा।

25) ’’मैं आप लोगों के बीच राज्य का सन्देश सुनाता रहा। अब, मैं जानता हूँ कि आप में कोई भी मुझे फिर कभी नहीं देख पायेगा।

26) इसलिए मैं आज आप लोगों को विश्वास दिलाता हूँ कि मैं किसी के दुर्भाग्य का उत्तरदायी नहीं हूँ;

27) क्योंकि मैंने आप लोगों के लिए ईश्वर का विधान पूर्ण रूप से स्पष्ट करने में कुछ भी उठा नहीं रखा।



सुसमाचार : योहन 17:1-11अ



1) यह सब कहने के बाद ईसा अपनी आँखें उपर उठाकर बोले, ’’पिता! वह घडी आ गयी है। अपने पुत्र को महिमान्वित कर, जिससे पुत्र तेरी महिमा प्रकट करे।

2) तूने उसे समस्त मानव जाति पर अधिकार दिया है, जिससे वह उन सबों को अनन्त जीवन प्रदान करे, जिन्हें तूने उसे सौंपा है।

3) वे तुझे, एक ही सच्चे ईश्वर को और ईसा मसीह को, जिसे तूने भेजा है जान लें- यही अनन्त जीवन है।

4) जो कार्य तूने मुझे करने को दिया था वह मैंने पूरा किया है। इस तरह मैंने पृथ्वी पर तेरी महिमा प्रकट की है।

5) पिता! संसार की सृष्टि से पहले मुझे तेरे यहाँ जो महिमा प्राप्त थी, अब उस से मुझे विभूषित कर।

6) तूने जिन लोगो को संसार में से चुनकर मुझे सौंपा, उन पर मैने तेरा नाम प्रकट किया है। वे तेरे ही थे। तूने उन्हें मुझे सौंपा और उन्होंने तेरी शिक्षा का पालन किया है।

7) अब वे जान गये हैं कि तूने मुझे जो कुछ दिया है वह सब तुझ से आता है।

8) तूने जो संदेश मुझे दिया, मैने वह सन्देश उन्हें दे दिया। वे उसे ग्रहण कर यह जान गये है कि मैं तेरे यहाँ से आया हूँ और उन्होंने यह विश्वास किया कि तूने मुझे भेजा।

9) मैं उनके लिये विनती करता हूँ। मैं ससार के लिये नहीं, बल्कि उनके लिये विनती करता हूँ, जिन्हें तूने मुझे सौंपा है; क्योंकि वे तेरे ही हैं।

10) जो कुछ मेरा है वह तेरा है और जो तेरा, वह मेरा है। मैं उनके द्वारा महिमान्वित हुआ।

11) अब मैं संसार में नहीं रहूँगा; परन्तु वे संसार में रहेंगे और मैं तेरे पास आ रहा हूँ।



📚 मनन-चिंतन



यदि हमें प्रभु येसु का इस संसार में आने का मक्सद को जानना है तो हमें संत योहन का सुसमाचार अध्याय 17 पढ़ना चाहिए जहॉं प्रभु येसु पिता ईश्वर से प्रार्थना करते हुए अपने ह्दय को खोल कर प्रस्तुत करते है। अध्याय 17 की प्रार्थना को प्रभु येसु की महापुरोहिताई प्रार्थना के रूप में भी जाना जाता है।

आज के सुसमाचार में हम अध्याय 17 के कुछ अंश पर मनन चिंतन करते है जो प्रभु येसु की महापुरोहिताई प्रार्थना में से लिया गया है। येसु इस प्रार्थना की शुरुआत ऑंखे उपर उठाकर करते है, ‘‘पिता! वह घड़ी आ गयी है। अपने पुत्र को महिमान्वित कर, जिससे पुत्र तेरी महिमा प्रकट करे।’’ इस प्रार्थना भरे वार्तालाप में प्रभु येसु उस घड़ी के विषय में बातचीत कर रहें जिसके लिए वे भेजे गये थे; अर्थात् दुखभोग, मरण एवं पुनरुत्थान। हम इस संसार में जीना चाहते है परंतु प्रभु येसु इस संसार में मरने के लिए आये जिससे हम सब पाप की दासता से मुक्त हो जायें।

प्रभु येसु आगे चल कर ईश्वर से कहते है कि जो कार्य पिता ने उन्हें सौपा था वह कार्य उन्होने पूरा कर लिया है। जिन लोगों को पिता ईश्वर ने संसार से चुनकर येसु के हाथों में सौपा था, उन पर येसु ने ईश्वर का रहस्य प्रकट किया और वे जान गये है कि येसु कौन है और येसु के जाने के बाद वे इस संसार में रहकर ईश्वर के कार्यो को आगे बढ़ायेंगे।

प्रभु येसु ने अपनी प्रार्थना में अपने आने का मकसद हमारे सामने प्रकट किया है; वे इसलिए आये जिससे हम सब मुक्ति प्राप्त करें तथा शिष्यगण तैयार हो सके जिससे वे इस संसार में ईश्वर के कार्यो को आगे बढ़ा सकें। आईये जो ईश्वर ने इस संसार के लिए सोच कर रखा है हम उसमंे अपना सहयोग दें। आमेन!



📚 REFLECTION



If we want to know the purpose of Jesus’ coming in this world then we have to read the Gospel of John chapter 17 where opening his heart Lord Jesus prays to Father Almighty. The prayer of Chapter 17 is also known as Jesus’ high priestly prayer.

In today’s gospel we will meditate on some part of chapter 17 which is taken from the high priestly prayer of Jesus. Jesus starts this prayer by looking up towards heaven, “Father, the hour has come; glorify your Son so that the Son may glorify you.” In this prayerful conversation Jesus is talking about that hour for which he was being sent; i.e., passion, death and resurrection. We want to live in this world but Lord Jesus came in this world to die so that we may be free from the slavery of sin.

Lord Jesus further says that he as finished the work that was given by the Father. Those who were given from the world to Jesus, Jesus has revealed the mystery of God and they came tp know who Jesus really is and that they have to carry forward the work of God after Jesus.

Lord Jesus has revealed the purpose of his coming in his prayer; He came so that we may receive salvation and the disciples may get ready to carry forward the work of God in the world. Let’s cooperate with what the Lord has thought of this world. Amen!


 -Br. Biniush Topno



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Praise the Lord!

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