*✞ CATHOLIC BIBLE MINISTRY ✞*
*अप्रैल 23, 2023, इतवार*
*पास्का का तीसरा इतवार*
*पहला पाठ*
प्रेरित-चरित 2:14,22-33
14) पेत्रुस ने ग्यारहो के साथ खड़े हो कर लोगों को सम्बोधित करते हुए ऊँचे स्वर से कहा, "यहूदी भाइयो और येरूसालेम के सब निवासियो! आप मेरी बात ध्यान से सुनें और यह जान लें कि
22) इस्राएली भाइयो! मेरी बातें ध्यान से सुनें! आप लोग स्वयं जानते हैं कि ईश्वर ने ईसा नाज़री के द्वारा आप लोगों के बीच कितने महान् कार्य, चमत्कार एवं चिन्ह दिखाये हैं। इस से यह प्रमाणित हुआ कि ईसा ईश्वर की ओर से आप लोगों के पास भेजे गये थे।
23) वह ईश्वर के विधान तथा पूर्वज्ञान के अनुसार पकड़वाये गये और आप लोगों ने विधर्मियों के हाथों उन्हें क्रूस पर चढ़वाया और मरवा डाला है।
24) किन्तु ईश्वर ने मृत्यु के बन्धन खोल कर उन्हें पुनर्जीवित किया। यह असम्भव था कि वह मृत्यु के वश में रह जायें,
25) क्योंकि उनके विषय में दाऊद यह कहते हैं - प्रभु सदा मेरी आँखों के सामने रहता है। वह मेरे दाहिने विराजमान है, इसलिए मैं दृढ़ बना रहता हूँ।
26) मेरा हृदय आनन्दित है, मेरी आत्मा प्रफुल्लित है और मेरा शरीर भी सुरक्षित रहेगा;
27) क्योंकि तू मेरी आत्मा को अधोलोक में नहीं छोड़ेगा, तू अपने भक्त को क़ब्र में गलने नहीं देगा।
28) तूने मुझे जीवन का मार्ग दिखाया है। तेरे पास रह कर मुझे परिपूर्ण आनन्द प्राप्त होगा।
29) भाइयो! मैं कुलपति दाऊद के विषय में। आप लोगों से निस्संकोच यह कह सकता हूँ कि वह मर गये और कब्र में रखे गये। उनकी कब्र आज तक हमारे बीच विद्यमान है।
30) दाऊद जानते थे कि ईश्वर ने शपथ खा कर उन से यह कहा था कि मैं तुम्हारे वंशजों में एक व्यक्ति को तुम्हारे सिंहासन पर बैठाऊँगा;
31) इसलिये नबी होने के नाते भविष्य में होने वाला मसीह का पुनरुत्थान देखा और इनके विषय में कहा कि वह अधोलोक में नहीं छोड़े गये और उनका शरीर गलने नहीं दिया गया।
32) ईश्वर ने इन्हीं ईसा नामक मनुष्य को पुनर्जीवित किया है-हम इस बात के साक्षी हैं।
33) अब वह ईश्वर के दाहिने विराजमान हैं। उन्हें प्रतिज्ञात आत्मा पिता से प्राप्त हुआ और उन्होंने उसे हम लोगों को प्रदान किया, जैसा कि आप देख और सुन रहे हैं।
_______________________________
*दूसरा पाठ*
1 पेत्रुस 1:17-21
17) यदि आप उसे ’पिता’ कह कर पुकारते हैं, जो पक्षपात किये बिना प्रत्येक मनुष्य का उसके कर्मों के अनुसार न्याय करता है, तो जब तक आप यहाँ परदेश में रहते हैं, तब तक उस पर श्रद्धा रखते हुए जीवन बितायें।
18) आप लोग जानते हैं कि आपके पूर्वजों से चली आयी हुई निरर्थक जीवन-चर्या से आपका उद्धार सोने-चांदी जैसी नश्वर चीजों की कीमत पर नहीं हुआ है,
19) बल्कि एक निर्दोष तथा निष्कलंक मेमने अर्थात् मसीह के मूल्यवान् रक्त की कीमत पर।
20) वह संसार की सृष्टि से पहले ही नियुक्त किये गये थे, किन्तु समय के अन्त में आपके लिए प्रकट हुए।
21) आप लोग अब उन्हीं के द्वारा ईश्वर में विश्वास करते हैं। ईश्वर ने उन्हें मृतकों में से जिलाया और महिमान्वित किया; इसलिए आपका विश्वास और आपका भरोसा ईश्वर पर आधारित है।
_______________________________
*सुसमाचार*
लूकस 24:13-35
13) उसी दिन दो शिष्य इन सब घटनाओं पर बातें करते हुए एम्माउस नामक गाँव जा रहे थे। वह येरूसालेम से कोई चार कोस दूर है।
14) वे आपस में बातचीत और विचार-विमर्श कर ही रहे थे
15) कि ईसा स्वयं आ कर उनके साथ हो लिये,
16) परन्त शिष्यों की आँखें उन्हें पहचानने में असमर्थ रहीं।
17) ईसा ने उन से कहा, "आप लोग राह चलते किस विषय पर बातचीत कर रहे हैं?" वे रूक गये। उनके मुख मलिन थे।
18) उन में एक क्लेओपस-ने उत्तर दिया, "येरूसालेम में रहने वालों में आप ही एक ऐसे हैं, जो यह नहीं जानते कि वहाँ इन दिनों क्या-क्या हुआ है’।
19) ईसा ने उन से कहा, "क्या हुआ है?" उन्होंने उत्तर दिया, "बात ईसा नाज़री की है वे ईश्वर और समस्त जनता की दृष्टि में कर्म और वचन के शक्तिशाली नबी थे।
20) हमारे महायाजकों और शासकों ने उन्हें प्राणदण्ड दिलाया और क्रूस पर चढ़वाया।
21) हम तो आशा करते थे कि वही इस्राएल का उद्धार करने वाले थे। यह आज से तीन दिन पहले की बात है।
22) यह सच है कि हम में से कुछ स्त्रियों ने हमें बड़े अचम्भे में डाल दिया है। वे बड़े सबेरे क़ब्र के पास गयीं
23) और उन्हें ईसा का शव नहीं मिला। उन्होंने लौट कर कहा कि उन्हें स्वर्गदूत दिखाई दिये, जिन्होंने यह बताया कि ईसा जीवित हैं।
24) इस पर हमारे कुछ साथी क़ब्र के पास गये और उन्होंने सब कुछ वैसा ही पाया, जैसा स्त्रियों ने कहा था; परन्तु उन्होंने ईसा को नहीं देखा।"
25) तब ईसा ने उन से कहा, "निर्बुद्धियों! नबियों ने जो कुछ कहा है, तुम उस पर विश्वास करने में कितने मन्दमति हो !
26) क्या यह आवश्यक नहीं था कि मसीह वह सब सहें और इस प्रकार अपनी महिमा में प्रवेश करें?"
27) तब ईसा ने मूसा से ले कर अन्य सब नबियों का हवाला देते हुए, अपने विषय में जो कुछ धर्मग्रन्थ में लिखा है, वह सब उन्हें समझाया।
28) इतने में वे उस गाँव के पास पहुँच गये, जहाँ वे जा रहे थे। लग रहा था, जैसे ईसा आगे बढ़ना चाहते हैं।
29) शिष्यों ने यह कह कर उन से आग्रह किया, "हमारे साथ रह जाइए। साँझ हो रही है और अब दिन ढल चुका है" और वह उनके साथ रहने भीतर गये।
30) ईसा ने उनके साथ भोजन पर बैठ कर रोटी ली, आशिष की प्रार्थना पढ़ी और उसे तोड़ कर उन्हें दे दिया।
31) इस पर शिष्यों की आँखे खुल गयीं और उन्होंने ईसा को पहचान लिया ... किन्तु ईसा उनकी दृष्टि से ओझल हो गये।
32) तब शिष्यों ने एक दूसरे से कहा, हमारे हृदय कितने उद्दीप्त हो रहे थे, जब वे रास्ते में हम से बातें कर रहे थे और हमारे लिए धर्मग्रन्थ की व्याख्या कर रहे थे!"
33) वे उसी घड़ी उठ कर येरूसालेम लौट गये। वहाँ उन्होंने ग्यारहों और उनके साथियों को एकत्र पाया,
34) जो यह कह रहे थे, "प्रभु सचमुच जी उठे हैं और सिमोन को दिखाई दिये हैं"।
35) तब उन्होंने भी बताया कि रास्ते में क्या-क्या हुआ और उन्होंने ईसा को रोटी तोड़ते समय कैसे पहचान लिया।
_______________________________
*मनन-चिंतन*
प्रभु येसु की मृत्यु के बाद सब सहमे एवं ड़रे हुए थे। सब कोई यहां-वहां तितर-बितर हो गये। धिरे-धिरे वे अपने दैनिक जीवन की दिनचर्या में शामिल होने लगे। लेकिन मां मरियम ने उन्हें फिर से नयी उमींद दी। पेंतेकोस्त के दिन पवित्र आत्मा का उतरना उनके लिए एक नये मिशन की शुरूवात थी। पवित्र आत्मा से परिपूण होकर साहस के साथ पुनजीवित प्रभु का प्रचार करना उनका मिशन बन गया। पेत्रुस अन्य शिष्यों के साथ सुसमाचार का प्रचार करने लगे। पेत्रुस अपने पत्र में कहते हैं, “ईश्वर ने mUgsa मृतकों में से जिलाया और महिमान्वित किया इसलिए vkidk विश्वास और vkidk भरोसा ईश्वर पर आधारित हैं।” हमारा भरोसा एवं विश्वास प्रभु येसु पर हो जो हमें हमारे पापों से बचाने मे सक्षम हैं। एम्माउस जाने वाले शिष्य तो येरूसालेम में हुई घटना को लेकर बात करते हुए आगे बढ़ते हैं। येसु का उनके साथ चलना उनके लिए एक अद्भुत अनुभव था। प्रभु उनके साथ चलते हैं लेकिन वे उन्हें पहचान नहीं पाते हैं। जब वे उनके साथ समय बिताते है तो भोजन के समय वे येसु को पहचान जाते हैं। क्या हम प्रभु के साथ चलते हैं? आइये, हम प्रभु के साथ चलें एवं उन्हें पहचानें।
✍ -Br. BiniushTopno
Copyright © www.catholicbibleministry1.blogspot.com.
Praise the Lord!
No comments:
Post a Comment