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24 जुलाई 2022, इतवार वर्ष का सत्रहवाँ इतवार

 

24 जुलाई 2022, इतवार

वर्ष का सत्रहवाँ इतवार




पहला पाठ : उतपत्ति 18:20-32


20) इसलिए प्रभु ने कहा, ''सोदोम और गोमोरा के विरुद्ध बहुत ऊँची आवाज़ उठ रही है और उनका पाप बहुत भारी हो गया है।

21) मैं उतर कर देखना और जानना चाहता हूँ कि मेरे पास जैसी आवाज़ पहुँची है, उन्होंने वैसा किया अथवा नहीं।''

22) वे दो पुरुष वहाँ से विदा हो कर सोदोम की ओर चले गये। प्रभु इब्राहीम के साथ रह गया और

23) इब्राहीम ने उसके निकट आ कर कहा, ''क्या तू सचमुच पापियों के साथ-साथ धर्मियों को भी नष्ट करेगा?

24) नगर में शायद पचास धर्मी हैं। क्या तू उन पचास धर्मियों के कारण, जो नगर में बसते हैं, उसे नहीं बचायेगा?

25) क्या तू पापी के साथ-साथ धर्मी को मार सकता है? क्या तू धर्मी और पापी, दोनों के साथ एक-सा व्यवहार कर सकता है? क्या समस्त पृथ्वी का न्यायकर्ता अन्याय कर सकता है?''

26) प्रभु ने उत्तर दिया, ''यदि मुझे नगर में पचास धर्मी भी मिलें, तो मैं उनके लिए पूरा नगर बचाये रखूँगा''।

27) इस पर इब्राहीम ने कहा, ''मैं तो मिट्ठी और राख हूँ; फिर भी क्या मैं अपने प्रभु से कुछ कह सकता हूँ?

28) हो सकता है कि पचास में पाँच कम हों। क्या तू पाँच की कमी के कारण नगर नष्ट करेगा?'' उसने उत्तर दिया, ''यदि मुझे नगर में पैंतालीस धर्मी भी मिलें, तो मैं उसे नष्ट नहीं करूँगा''।

29) इब्राहीम ने फिर उस से कहा, ''हो सकता है कि वहाँ केवल चालीस मिलें''। प्रभु ने उत्तर दिया, ''चालीस के लिए मैं उसे नष्ट नहीं करूँगा''।

30) तब इब्राहीम ने कहा, ''मेरा प्रभु क्रोध न करें और मुझे बोलने दें। हो सकता है कि वहाँ केवल तीस मिलें।'' उसने उत्तर दिया, ''यदि मुझे वहाँ तीस भी मिलें, तो मैं उसे नष्ट नहीं करूँगा''।

31) इब्राहीम ने कहा, ''तू मेरी धृष्टता क्षमा कर - हो सकता है कि केवल बीस मिले'' और उसने उत्तर दिया, ''बीस के लिए मैं उसे नष्ट नहीं करूँगा''।

32) इब्राहिम ने कहा, ''मेरा प्रभु बुरा न माने तो में एक बार और निवेदन करूँगा - हो सकता है कि केवल दस मिलें'' और उसने उत्तर दिया, ''दस के लिए भी में उसे नष्ट नहीं करूँगा।



दुसरा पाठ : कलोसियों 2:12-14



12) आप लोग बपतिस्मा के समय मसीह के साथ दफ़नाये गये और उन्हीं के साथ पुनर्जीवित भी किये गये हैं, क्योंकि आप लोगों ने ईश्वर के सामर्थ्य में विश्वास किया, जिसने उन्हें मृतकों में से पुनर्जीवित किया।

13) आप लोग पापों के कारण और अपने स्वभाव के ख़तने के अभाव के कारण मर गये थे। ईश्वर ने आप लोगों को मसीह के साथ पुनर्जीवित किया है और हमारे सब अपराधों को क्षमा किया है।

14) उसने नियमों का वह बन्धपत्र, जो हमारे विरुद्ध था, रद्द कर दिया और उसे क्रूस पर ठोंक कर उठा दिया है।



सुसमाचार : लुकस 11:1-13



1) एक दिन ईसा किसी स्थान पर प्रार्थना कर रहे थे। प्रार्थना समाप्त होने पर उनके एक शिष्य ने उन से कहा, "प्रभु! हमें प्रार्थना करना सिखाइए, जैसे योहन ने भी अपने शिष्यों को सिखाया"।

2) ईसा ने उन से कहा, "इस प्रकार प्रार्थना किया करोः पिता! तेरा नाम पवित्र माना जाये। तेरा राज्य आये।

3) हमें प्रतिदिन हमारा दैनिक आहार दिया कर।

4) हमारे पाप क्षमा कर, क्योंकि हम भी अपने सब अपराधियों को क्षमा करते हैं और हमें परीक्षा में न डाल।"

5) फिर ईसा ने उन से कहा, "मान लो कि तुम में कोई आधी रात को अपने किसी मित्र के पास जा कर कहे, ’दोस्त, मुझे तीन रोटियाँ उधार दो,

6) क्योंकि मेरा एक मित्र सफ़र में मेरे यहाँ पहुँचा है और उसे खिलाने के लिए मेरे पास कुछ भी नहीं है’

7) और वह भीतर से उत्तर दे, ’मुझे तंग न करो। अब तो द्वार बन्द हो चुका है। मेरे बाल-बच्चे और मैं, हम सब बिस्तर पर हैं। मैं उठ कर तुम को नहीं दे सकता।’

8) मैं तुम से कहता हूँ - वह मित्रता के नाते भले ही उठ कर उसे कुछ न दे, किन्तु उसके आग्रह के कारण वह उठेगा और उसकी आवश्यकता पूरी कर देगा।

9) "मैं तुम से कहता हूँ - माँगो और तुम्हें दिया जायेगा; ढूँढ़ो और तुम्हें मिल जायेगा; खटखटाओ और तुम्हारे लिए खोला जायेगा।

10) क्योंकि जो माँगता है, उसे दिया जाता है; जो ढूँढ़ता है, उसे मिल जाता है और जो खटखटाता है, उसके लिए खोला जाता है।

11) "यदि तुम्हारा पुत्र तुम से रोटी माँगे, तो तुम में ऐसा कौन है, जो उसे पत्थर देगा? अथवा मछली माँगे, तो मछली के बदले उसे साँप देगा?

12) अथवा अण्डा माँगे, तो उसे बिच्छू देगा?

13) बुरे होने पर भी यदि तुम लोग अपने बच्चों को सहज ही अच्छी चीज़ें देते हो, तो तुम्हारा स्वर्गिक पिता माँगने वालों को पवित्र आत्मा क्यों नहीं देगा?"



📚 मनन-चिंतन



प्रभु, हमें प्रार्थना करना सिखाएँ!

प्रभु की प्रार्थना में पांच याचिकाएँ हैं- पहली दो, ईश्वर संबंधी और तीन हमारी आवश्यकताओं से जुड़ी है। उन तीनों में से प्रत्येक बहुवचन हैं। (हमें दे दो- हमें माफ कर दो-हमें बचाओ) जो विश्वासी समुदाय पर जोर देता है जिसका हम भी हिस्सा हैं। परन्तु मत्त्ती की इस प्रार्थना के संस्करण (मत्ती 6ः9-13) में सात याचिकाएँ सम्मिलित है। येसु सिखाते हैं कि, प्रार्थना में शब्द इतने महत्वपूर्ण नहीं है जितना कि, ईश्वर की दया और अनुकंपा पर हमारा भरोसा। सच्ची प्रार्थना अंततः ईश्वर के प्रति विश्वास और समर्पण के संदर्भ में है। हम पूरी श्रृद्धा और भक्ति से प्रार्थना करें और प्रभु अवश्य हमारी प्रार्थना सुनेंगे और उसका उत्तर देंगे।



📚 REFLECTION



Lord Teach us to Pray!

The Lord’s prayer has five petitions. The first two, have to do with God. The last three, have to do with the fulfillment of our needs. Each of those three is plural (“give us—forgive us—bring us”), emphasizing the community of faith of which we are part. It is interesting that the first two petitions involve adoration and the last three supplication. But Matthew’s version of this prayer (Matthew 6:9-13) includes seven petitions. Jesus teaches that words are not so important in prayer as our trust in the goodness of God. Jesus intended that the words should be taken as a template for prayer, a framework on which one can build a life of conversion and dependence on God. True prayer is ultimately about trust and surrender to God. We trust in his perfect plan and surrender to it. When we do this, we can be assured that the Lord will hear and answer our prayers.





आज के पहले पाठ में हम देखते हैं कि सोदोम और गोमोरा का पाप बहुत भारी हो गया। फलस्वरूप प्रभु ईश्वर उन नगरों पर आकाश से गन्धक और आग बरसा कर उनको नष्ट करना चाह रहे थे। लेकिन वे इस बात को इब्राहीम से छिपाना नहीं चाहते थे। जब प्रभु ने इब्राहीम को इस निर्णय के बारे में बताया, तब इब्राहीम उन नगरों की ओर से ईश्वर के समक्ष उन्हें बचाने के लिए मध्यस्थता करने लगे। ईश्वर से इब्राहीम का सवाल था, “क्या तू सचमुच पापियों के साथ-साथ धर्मियों को भी नष्ट करेगा?” लेकिन वहाँ पर दस धर्मी भी नहीं पाये गये। इस पर इब्राहीम ने भी उनके लिए मध्यस्थता करना छोड दिया।

इब्राहीम एक धर्मी मनुष्य थे। संत याकूब कहते हैं, “धर्मात्मा की भक्तिमय प्रार्थना बहुत प्रभावशाली होती है” (याकूब 5:16) संत पेत्रुस कहते हैं, “प्रभु की कृपादृष्ष्टि धर्मियों पर बनी रहती है और उसके कान उनकी प्रार्थना सुनते हैं, किन्तु प्रभु कुकर्मियों से मुंह फेर लेता है” (1 पेत्रुस 3:12)। सूक्ति ग्रन्थ बताता है, “प्रभु दुष्टों से दूर रहता, किन्तु वह धर्मियों की प्रार्थना सुनता है” (सूक्ति 15:29)। संत योहन का कहना है – “हमें ईश्वर पर यह भरोसा है कि यदि हम उसकी इच्छानुसार उस से कुछ भी मांगते हैं, तो वह हमारी सुनता है” (1योहन 5:14)। प्रभु ईश्वर बार-बार इब्राहीम की प्रार्थना सुनते हैं लेकिन इब्राहीम सोदोम और गोमोरा में कम से कम दस धर्मी पाये जाने की जिस संभावना को अपनी प्रार्थना सुनी जाने के शर्त के रूप में रखा था, वह निराधार पाया गया। तत्पश्चात्‍ इब्राहीम उन नगरों के लिए मध्यस्थता करना ही छोड देते हैं।

एक धर्मी व्यक्ति न केवल अपने लिए बल्कि दूसरों के लिए भी प्रार्थना करता है। धर्मी होने के कारण वह निस्वार्थ प्रेम रखता है तथा दूसरों का ख्याल करता है। कभी-कभी लोगों का अधर्म इतना बढ़ जाता है कि ऐसे लोगों के लिए मध्यस्थता करना भी मुश्किल हो जाता है। प्रभु नबी यिरमियाह से कहते हैं, “तुम अब इस प्रजा के लिए प्रार्थना मत करो। इसके लिए न तो क्षमा-याचना करो और न अनुनय-विनय। मुझ से अनुरोध मत करो, मैं नहीं सुनूँगा। क्या तुम नहीं देखते कि लोग यूदा के नगरों और येरुसालेम की गलियों में क्या कर रहे हैं? बच्चे लकड़ियाँ बटोरते, पिता आग सुलगाते और स्त्रियाँ आटा गूँधती हैं, जिससे ये आकाश की देवी के लिए पूरियाँ पकायें। ये अन्य देवताओं को अर्घ चढ़ाते हैं और इस तरह मेरा क्रोध भड़काते हैं।” (यिरमियाह 7:16-18) “तुम उन लोगों के लिए न तो प्रार्थना करो, न विलाप और न अनुनय-विनय; क्योंकि यदि ये संकट के समय मेरी दुहाई देंगें, तो मैं नहीं सुनूँगा” (यिरमियाह 11:14)। “यदि मूसा और समूएल भी मेरे सामने खड़े हो जाते, तो मेरा हृदय इन लोगों पर तरस न खाता। इन्हें मेरे सामने से हटा दो। ये चले जायें।“ (यिरमियाह 15:1) इस प्रकार कभी-कभी लोग ईश्वर की क्षमा के योग्य नहीं बनते हैं हालांकि प्रभु दयालू और दयासागर हैं।

प्रभु येसु निर्जन स्थानों तथा एकान्त में जाकर प्रार्थना में अपने पिता के साथ समय बिताते हैं। अपने दायित्व तथा अनुभवों के बारे में पिता के साथ परामर्श करने के साथ-साथ वे अपने शिष्यों के लिए विशेष प्रार्थना भी करते हैं। अपने स्वर्गिक पिता को संबोधित करते हुए वे कहते हैं, “मैं उनके लिये विनती करता हूँ। मैं ससार के लिये नहीं, बल्कि उनके लिये विनती करता हूँ, जिन्हें तूने मुझे सौंपा है; क्योंकि वे तेरे ही हैं” (योहन 17:9)। “मैं न केवल उनके लिये विनती करता हूँ, बल्कि उनके लिये भी जो, उनकी शिक्षा सुनकर मुझ में विश्वास करेंगे। सब-के-सब एक हो जायें। पिता! जिस तरह तू मुझ में है और मैं तुझ में, उसी तरह वे भी हम में एक हो जायें, जिससे संसार यह विश्वास करे कि तूने मुझे भेजा। (योहन 17:20-21)

प्रभु येसु जानते थे कि पेत्रुस उनका अस्वीकार करेंगे, फिर भी प्रभु ने उनके लिए प्रार्थना की। “सिमोन! सिमोन! शैतान को तुम लोगों को गेहूँ की तरह फटकने की अनुमति मिली है। परन्तु मैंने तुम्हारे लिए प्रार्थना की है, जिससे तुम्हारा विश्वास नष्ट न हो। जब तुम फिर सही रास्ते पर आ जाओगे, तो अपने भाइयों को भी सँभालोगे।" लेकिन शायद यूदस प्रभु की प्रार्थना के लिए भी योग्य नहीं पाये गये। प्रभु कहते हैं, “तूने जिन्हें मुझे सौंपा है, जब तक मैं उनके साथ रहा, मैंने उन्हें तेरे नाम के सामर्थ्य से सुरक्षित रखा। मैंने उनकी रक्षा की। उनमें किसी का भी सर्वनाश नहीं हुआ है। विनाश का पुत्र इसका एक मात्र अपवाद है, क्योंकि धर्मग्रन्थ का पूरा हो जाना अनिवार्य था।” यह बहुत ही दर्दनाक दशा है कि कोई संतों या धर्मियों की मध्यस्थता के भी क़ाबिल नहीं है।

आज के सुसमाचार में हम देखते हैं कि यह जान कर कि प्रभु की प्रार्थना का उनके तथा दूसरों के ऊपर कितना प्रभाव है, एक दिन उनकी प्रार्थना समाप्त होने पर उनके एक शिष्य ने उन से कहा, "प्रभु! हमें प्रार्थना करना सिखाइए, जैसे योहन ने भी अपने शिष्यों को सिखाया" (लूकस 11:1) जवाब में प्रभु येसु सारे शिष्यगणों को ’पिता हमारे’ प्रार्थना सिखाते हैं। यह एक आदर्श प्रार्थना है जिस से हम जान सकते हैं कि हमें किस प्रकार प्रार्थना करनी चाहिए। जब तक हम सारी मानवजाति को प्रभु ईश्वर के बृहत परिवार के रूप में देख नहीं सकते हैं, तब तक हम यह प्रार्थना नहीं कर सकते हैं। क्योंकि इस प्रार्थना में हम सारी मानवजाति के साथ मिल कर ईश्वर को ’हमारे पिता’ कह कर संबोधित करते हैं। फिर प्रार्थना में हमें ईश्वर के नाम की स्तुति तथा उनके राज्य का स्वागत करते हुए ईश्वर की मर्जी को स्वीकार करना चाहिए। तत्पश्चात हमें दैनिक जीवन के लिए पर्याप्त कृपा की याचना करनी चाहिए। हम सब पापी है। इस प्रार्थाना में हमें यह शिक्षा भी मिलती है कि प्रभु ईश्वर से हमारे अपराधों की क्षमा प्राप्त करने हेतु हमें हमारे अपराधियों को क्षमा करना होगा। इस प्रकार यह उत्कृष्ट प्रार्थना हमारे लिए एक आदर्श प्रार्थना बनती है, सथा ही महत्वपूर्ण शिक्षा भी। आईए, हम इस प्रार्थना को अपनाएं और अर्थपूर्ण ढ़ंग से बोलना सीखें।


 -Br. Biniush Topno


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Praise the Lord!

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