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13 मार्च 2022, इतवार चालीसे का दूसरा इतवा

 

13 मार्च 2022, इतवार 

चालीसे का दूसरा इतवार



पहला पाठ : उत्पत्ति 15:5-12, 17-18


5) ईश्वर ने अब्राम को बाहर ले जाकर कहा, ''आकाश की और दृष्टि लगाओ और सम्भव हो, तो तारों की गिनती करो''। उसने उस से यह भी कहा, ''तुम्हारी सन्तति इतनी ही बड़ी होगी''।

6) अब्राम ने ईश्वर में विश्वास किया और इस कारण प्रभु ने उसे धार्मिक माना।

7) प्रभु ने उस से कहा, ''मैं वही प्रभु हूँ, जो तुम्हें इस देश का उत्तराधिकारी बनाने के लिए खल्दैयों के ऊर नामक नगर से निकाल लाया था।''

8) अब्राम ने उत्तर दिया, ''प्रभु! मेरे ईश्वर! मैं यह कैसे जान पाऊँगा कि इस पर मेरा अधिकार हो जायेगा?''

9) प्रभु ने कहा, ''तीन वर्ष की कलोर, तीन वर्ष की बकरी, तीन वर्ष का मेढा, एक पाण्डुक और एक कपोत का बच्चा यहाँ ले आना''।

10) अब्राम ये सब ले आया। उसने उनके दो-दो टुकड़े कर दिये और उन टुकड़ों को आमने-सामने रख दिया, किन्तु पक्षियों के दो-दो टुकड़े नहीं किये।

11) गीध लाशों पर उतर आये, किन्तु अब्राम ने उन्हें भगा दिया।

12) जब सूर्य डूबने पर था, तो अब्राम गहरी नींद में सो गया और उस पर आतंक छा गया।

17) सूर्य डूबने तथा गहरा अन्धकार हो जाने पर एक धुँआती हुई अंगीठी तथा एक जलती हुई मशाल दिखाई पड़ी, जो जानवरों के उन टुकडों के बीच से होते हुए आगे निकल गयीं।

18) उस दिन प्रभु ने यह कह कर अब्राम के लिए विधान प्रकट किया, मैं मिस्त्र की नदी से लेकर महानदी अर्थात् फ़रात नदी तक का यह देश तुम्हारे वंशजों को दे देता हूँ।


दूसरा पाठ : फिलिप्पियो 3:17-4:1


3:17) भाईयो! आप सब मिल कर मेरा अनुसरण करें। मैंने आप लोगों को एक नमूना दिया। इसके अनुसार चलने वालों पर ध्यान देते रहें;

18) क्योंकि जैसा कि मैं आप से बार-बार कह चुका हूँ और अब रोते हुए कहता हूँ, बहुत-से लोग ऐसा आचरण करते हैं कि मसीह के क्रूस के शत्रु बन जाते हैं।

19) उनका सर्वनाश निश्चित है। वे भोजन को अपना ईश्वर बना लेते हैं और ऐसी बातों पर गर्व करते हैं, जिन पर लज्जा करनी चाहिए। उनका मन संसार की चीजों में लगा हुआ है।

20) हमारा स्वदेश तो स्वर्ग है और हम स्वर्ग से आने वाले मुक्तिदाता प्रभु ईसा मसीह की राह देखते रहते हैं।

21) वह जिस सामर्थ्य द्वारा सब कुछ अपने अधीन कर सकते हैं, उसी के द्वारा वह हमारे तुच्छ शरीर का रूपान्तरण करेंगे और उसे अपने महिमामय शरीर के अनुरूप बना देंगे।

4:1) इसीलिए मेरे प्रिय भाइयो, प्रभु में इस तरह दृढ़ रहिए। प्रिय भाइयो! मुझे आप लोगों से मिलने की बड़ी इच्छा है। आप मेरे आनन्द और मेरे मुकुट हैं।


सुसमाचार : सन्त लूकस का सुसमाचार 9:28-36


28) इन बातों के करीब आठ दिन बाद ईसा पेत्रुस, योहन और याकूब को अपने साथ ले गये और प्रार्थना करने के लिए एक पहाड़ पर चढ़े।

29) प्रार्थना करते समय ईसा के मुखमण्डल का रूपान्तरण हो गया और उनके वस्त्र उज्जवल हो कर जगमगा उठे।

30) दो पुरुष उनके साथ बातचीत कर रहे थे। वे मूसा और एलियस थे,

31) जो महिमा-सहित प्रकट हो कर येरुसालेम में होने वाली उनकी मृत्यु के विषय में बातें कर रहे थे।

32) पेत्रुस और उसके साथी, जो ऊँघ रहे थे, अब पूरी तरह जाग गये। उन्होंने ईसा की महिमा को और उनके साथ उन दो पुरुषों को देखा।

33) वे विदा हो ही रहे थे कि पेत्रुस ने ईसा से कहा, "गुरूवर! यहाँ होना हमारे लिए कितना अच्छा है! हम तीन तम्बू खड़ा कर दें- एक आपके लिए, एक मूसा और एक एलियस के लिए।" उसे पता नहीं था कि वह क्या कह रहा है।

34) वह बोल ही रहा था कि बादल आ कर उन पर छा गया और वे बादल से घिर जाने के कारण भयभीत हो गये।

35) बादल में से यह वाणी सुनाई पड़ी, "यह मेरा परमप्रिय पुत्र है। इसकी सुनो।"

36) वाणी समाप्त होने पर ईसा अकेले ही रह गये। शिष्य इस सम्बन्ध में चुप रहे और उन्होंने जो देखा था, उस विषय पर वे उन दिनों किसी से कुछ नहीं बोले।


📚 मनन-चिंतन


रूपान्तरण शिष्यों के सबसे मनोरम अनुभवों में से एक था। वर्षों बाद संत पेत्रुस ने कहा, “जब हमने आप लोगों को अपने प्रभु ईसा मसीह के सामर्थ्य तथा पुनरागमन के विषय में बताया, तो हमने कपट-कल्पित कथाओं का सहारा नहीं लिया, बल्कि अपनी ही आंखों से उनका प्रताप उस समय देखा, जब उन्हें पिता-परमेश्वर के सम्मान तथा महिमा प्राप्त हुई और भव्य ऐश्वर्य में से उनके प्रति एक वाणी यह कहती हुई सुनाई पड़ी, "यह मेरा प्रिय पुत्र है। मैं इस पर अत्यन्त प्रसन्न हूँ।" (2 पेत्रुस 1:16-18)। संत योहन के पत्र में भी इस घटना के स्थायी प्रभाव की एक प्रतिध्वनि है। वे कहते हैं, “हमारा विषय वह शब्द है, जो आदि से विद्यमान था। हमने उसे सुना है। हमने उसे अपनी आंखों से देखा है। हमने उसका अवलोकन किया और अपने हाथों से उसका स्पर्श किया है। वह शब्द जीवन है और यह जीवन प्रकट किया गया है। यह शाश्वत जीवन, जो पिता के यहाँ था और हम पर प्रकट किया गया है- हमने इसे देखा है, हम इसके विषय में साक्ष्य देते ओर तुम्हें इसका सन्देश सुनाते हैं। हमने जो देखा और सुना है, वही हम तुम लोगों को भी बताते हैं, जिससे तुम हमारे साथ पिता और उस के पुत्र ईसा मसीह के जीवन के सहभागी बनो। (1योहन 1:1-3) रूपान्तरण का यह अनुभव चेलों को उन कष्टों का सामना करने हेतु मज़बूत करने के लिए था, जिनसे येसु गुज़रने वाले थे। प्रभु ईश्वर का अनुभव हमें अपनी परेशानियों तथा मुसीबतों के समय सशक्त बनायें।




📚 REFLECTION

Transfiguration was one of the most captivating experiences of the disciples. Years later St. Peter said, “For we did not follow cleverly devised myths when we made known to you the power and coming of our Lord Jesus Christ, but we had been eyewitnesses of his majesty. For he received honor and glory from God the Father when that voice was conveyed to him by the Majestic Glory, saying, “This is my Son, my Beloved, with whom I am well pleased.” We ourselves heard this voice come from heaven, while we were with him on the holy mountain.” (2Pet 1:16-18). In St. John’s writings too we have an echo of the lasting impact of this event. He says, “We declare to you what was from the beginning, what we have heard, what we have seen with our eyes, what we have looked at and touched with our hands, concerning the word of life— this life was revealed, and we have seen it and testify to it, and declare to you the eternal life that was with the Father and was revealed to us— we declare to you what we have seen and heard so that you also may have fellowship with us; and truly our fellowship is with the Father and with his Son Jesus Christ.” (1Jn 1:1-3) This experience of transfiguration was meant to strengthen the disciples on the face of the sufferings Jesus was about to undergo. Let the experience of God strengthen our life especially in our difficulties.


मनन-चिंतन - 2


हम अपने जीवन में आश्वासन चाहते हैं। यदि हमें किसी से कोई आशा है तो उसका कारण हमारा पूर्व का संतोषप्रद अनुभव होगा। कई बार हम आशाहीन भी हो जाते हैं। इसका कारण भी हमारा पूर्व का कटु अनुभव होगा। बैंक जब ऋण देता है तो वह भी वापसी के आशा में गारंटी के रूप में कुछ भरोसेमंद आश्वासन चाहता है। इस प्रकार हम अपने जीवन में आश्वासन चाहते हैं कि कोई हमारे साथ है या जो हम कर रहे हैं वह सही दिशा में उठाये कदम है। आज के पहले पाठ में पिता इब्राहिम भी ईश्वर से उनकी प्रतिज्ञाओं के प्रति कुछ आश्वासन चाहते हैं। ईश्वर ने जो प्रतिज्ञा उन से की थी वह मानव दृष्टिकोण से लगभग असंभव प्रतीत होती है। ’’आकाश की और दृष्टि लगाओ और सम्भव हो, तो तारों की गिनती करो। ....तुम्हारी सन्तति इतनी ही बड़ी होगी।’’ इब्राहिम जो बुढा तथा निसंतान था किन्तु विश्वास का धनी था ईश्वर पर अविश्वास नहीं करता किन्तु केवल आश्वासन चाहता है जिसके बल पर वह प्रतिज्ञा के पूर्ण हो जाने तक विश्वासी तथा दृढ बना रहे। सृष्टिकर्ता ईश्वर जिनके लिये कुछ भी असंभव नहीं है इब्राहिम को आश्वासन के रूप में ’’धुँआती हुई अंगीठी तथा एक जलती हुई मशाल’’ के रूप में इब्राहिम के बलिदान के बीच से होकर गुजरते हैं।

ईश्वर अपने भक्तों को निराश नहीं करते और बाइबिल में अनेक स्थानों पर हम पाते हैं कि वे अपनी उपस्थिति तथा चिन्हों द्वारा उन्हें आश्वांवित कर उनकी हौसला अफजाई करते हैं। निर्गमन ग्रंथ में मूसा भी प्रभु से आश्वासन चाहते हैं। ’’यदि मैं सचमुच तेरा कृपापात्र हूँ, तो मुझे अपना मार्ग दिखला, जिससे मैं तुझे जान सकूँ और तेरा कृपापात्र बना रहूँ। ....हम यह कैसे जान सकेंगे कि मैं और तेरे ये लोग तेरे कृपापात्र हैं? यदि तू हमारे साथ नहीं चलता, तो मैं और तेरे ये लोग पृथ्वी के अन्य सब लोगों से कैसे विशिष्ट समझे जायेंगे?..., ’’मुझे अपनी महिमा दिखाने की कृपा कर।’ मैं अपनी सम्पूर्ण महिमा के साथ तुम्हारे सामने से निकल जाऊँगा और तुम पर अपना ’प्रभु’ नाम प्रकट करूँगा। मैं जिनके प्रति कृपालु हूँ, उन पर कृपा करूँगा और जिनके प्रति दयालू हूँ, उन पर दया करूँगा। .....तुम एक चट्टान पर खड़े हो सकते हो। और जब तक तुम्हारे सामने से मेरी महिमा नहीं निकल जायेगी, तब तक मैं तुम्हें चट्टान की दरार में रखूँगा और तुम्हारे सामने से निकलते समय अपने हाथ से तुम्हारी रक्षा करूँगा।’’ (देखिए निर्गमन 33:13-22) इस प्रकार ईश्वर मूसा को आश्वांवित करते तथा उसके मिशन को प्रमाणित भी करते हैं।

जब ईश्वर का दूत गिदओन से मिदयानियों से युद्ध पर जाने तथा उसे विजय का आश्वासन देता हैं तो गिदओन भी ईश्वर से आश्वासन चाहते हुये निवेदन करता है, ’’यदि मुझ पर आपकी कृपा दृष्टि हो, तो मुझे एक ऐसा चिन्ह दीजिए, जिससे मैं जान सकूँ कि आप ही मुझ से बोल रहे हैं। आप कृपया यहाँ से तब तक न जायें, जब तक मैं आपके पास न लौट आऊँ। मैं अपना चढ़ावा ले कर आऊँगा और आपके सामने रखूँगा।’’ .....प्रभु के दूत ने उस से कहा, ’’मांस और रोटियाँ वहाँ चट्टान पर रखो और उन पर शोरबा उँड़ेल दो’’। उसने यही किया। तब प्रभु के दूत ने अपने हाथ का डण्डा बढ़ा कर उसके सिरे से मांस और बेखमीर रोटियों को स्पर्श किया। इस पर चट्टान से आग निकली, जिसने मांस और बेखमीर रोटियों को भस्म कर दिया और प्रभु का दूत गिदओन की आँख से ओझल हो गया। तब गिदओन समझ गया कि वह प्रभु का दूत था और उसने कहा, ’’हाय! प्रभु-ईश्वर! मैंने प्रभु के दूत को आमने-सामने देखा है।’’ (देखिए न्यायकताओं 6:17-22)

नबी एलियाह शक्तिशाली तथा साहसिक नबी थे। उन्होंने ईश्वर के लिए लोगों के सामने निडर होकर गवाही दी तथा चमत्कारिक कार्य किये। किन्तु एक मोड पर वे थक-हार जाते हैं। वे ईज़ेबेल की मौत की धमकी से डरकर भयभीत हो जाते हैं। ’’इस से एलियाह भयभीत हो गया और अपने प्राण बचाने के लिय यूदा के बएर-शेबा भाग गया। वहाँ उसने अपने सेवक को छोड़ दिया और वह मरुभूमि में एक दिन का रास्ता तय कर एक झाड़ी के नीचे बैठ गया और यह कह कर मौत के लिए प्रार्थना करने लगा, ‘‘प्रभु! बहुत हुआ। मुझे उठा ले, क्योंकि मैं अपने पुरखों से अच्छा नहीं हूँ।’’ (1 राजाओं 19:3-4)

किन्तु ईश्वर अपने सेवक को नहीं भूलता है। वे स्वर्गदूत को भेज कर उन्हें ढाढस बंधाते हुये कहते हैं, ‘‘उठिए और खाइए, नहीं तो रास्ता आपके लिए अधिक लम्बा हो जायेगा’’। एलियाह भोजन कर चालीस दिन और चालीस रात चल कर ईश्वर के पर्वत होरेब पहुँचा। वहॉ पर उसे अंत में ईश्वर के दर्शन हुये। “....तब प्रभु उसके सामने से हो कर आगे बढ़ा। प्रभु के आगे-आगे एक प्रचण्ड आँधी चली - पहाड़ फट गये और चट्टानें टूट गयीं, किन्तु प्रभु आँधी में नहीं था। आँधी के बाद भूकम्प हुआ, किन्तु प्रभु भूकम्प में नहीं था। भूकम्प के बाद अग्नि दिखाई पड़ी, किन्तु प्रभु अग्नि में नहीं था। अग्नि के बाद मन्द समीर की सरसराहट सुनाई पड़ी। एलियाह ने यह सुनकर अपना मुँह चादर से ढक लिया और वह बाहर निकल कर गुफा के द्वार पर खड़ा हो गया। तब उसे एक वाणी यह कहते हुए सुनाई पड़ी, “एलियाह! तुम यहाँ क्या कर रहे हो?“ (1 राजाओं 19:1-13) इस प्रकार ईश्वर के दर्शन पाकर एलियाह पुनः उत्साहित हो जाता है।

इस प्रकार ईश्वर दाऊद, मनोअह (देखिए न्यायकर्ताओं 13:2-23), दानिएल (दानिएल 14:37-39), स्तेफनुस (प्रेरित चरित 7:55-60), संत पौलुस (2 कुरिन्थियों 12:1-10) सुलेमान (1 राजाओं 3:5-12) आदि अनेकानेक भक्तों को अपनी उपस्थिति या चिन्ह द्वारा आश्वासन एवं सहायता प्रदान करता है। आज का सुसमाचार भी येसु तथा उनके शिष्यों पेत्रुस, योहन और याकूब के लिए भावी दुखःभोग के होने तथा उस दौरान साहसी एवं विश्वासी बने रहने का आश्वासन था। पिता परमेश्वर येसु को अपना प्रिय पुत्र घोषित कर उन्हें भी आश्वासन देते हैं तथा येसु इस दृश्य के द्वारा अपने इन तीन शिष्यों को भविष्य के दुःखभोग तथा कू्रसमरण से उदास एवं हताश नहीं होने के लिए आश्वांवित करते हैं।

हमारे जीवन में भी कठिन अवसर आते हैं। ऐसे मौको पर हम निराश एवं हताश हो उठते हैं। हम भी आशा और दिलासे के लिए इधर-उधर देखते हैं। हमारा विश्वास भी शायद हिल जाता है। हमें पवित्र बाइबिल में दिये इन उदाहरणों से सीखना चाहिये तथा ईश्वर से उसके संरक्षण, सानिध्य तथा सामिप्य की गुहार लगाना चाहिये। ईश्वर हमें कभी भी निराश नहीं करेंगे। बाइबिल के आदर्शों एवं उदाहरणों के अनुसार ईश्वर हमें उनकी उपस्थिति की कृपा प्रदान करेंगे। यह प्रभु का वचन है जो कहता है “उनके दुहाई देने से पहले ही, मैं उन्हें उत्तर दूँगा; उनकी प्रार्थना पूरी होने से पहले ही, मैं उसे स्वीकार करूँगा।“ (इसायाह 65:24)


 -Br. Biniush Topno


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Praise the Lord!

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