शुक्रवार, 26 नवंबर, 2021
वर्ष का चौंत्तीसवाँ सामान्य सप्ताह
📒 पहला पाठ: दानिएल का ग्रन्थ 7:2-14
2) मैंने रात्रि के समय यह दिव्य दृश्य देखाः आकाश की चारों दिशाओं की हवाएँ महासमुद्र को उद्वेलित कर रही थीं
3) और उस में से चार विशालकाय पशु निकलते थे, जो एक दूसरे से भिन्न थे।
4) पहला सिहं-जैसा था, किन्तु उसके गरूड़ के जैसे पख थे। मैं देख ही रहा था कि उसके पंख उखाड़ गये, उसे उठा कर दो पाँवों पर मनुय की तरह खड़ा कर दिया गया और उसे मनुय-जैसा हृदय दिया गया।
5) दूसरा भालू-जैसा था। वह आधा ही खड़ा था और वह अपने मुँह में दाँतों के बीच तीन पसलियाँ लिये था। उसे यह आदेश दिया गया, ’’उठो और बहुत-सा मांस खाओ’’।
6) इसके बाद मैंने चीते-जैसा एक और पशु देखा।
7) उसकी पीठ पर पक्षियों के चार डैने थे और उसके चार सिर थे। उसे राजाधिकार दिया गया। अंत में मैंने रात्रि के दृश्य में एक चैथा पशु देखा। वह विभीषण, डरावना और उत्यन्त बलवान् था। उसके दाँत लोहे के थे। वह चबाता और खाता जाता था और जो कुछ रह जाता, उसे पैरों तले रौंद देता था।
8) वह पहले के सभी पशुओं से भिन्न था और उसके दस सींग थे। मैं वे सींग देख ही रहा था कि उनके बीच में से एक और छोटा-सा सींग निकला और उसके लिए जगह बनाने के लिए पहले सींगों में से तीन उखाड़े गये। उस सींग की मनुय-जैसी आँखें थी और उसका एक डींग मारता हुआ मुँह भी था।
9) मैं देख ही रहा था कि सिंहासन रख दिये गये और एक वयोवृद्ध व्यक्ति बैठ गया। उसके वस्त्र हिम की तरह उज्जवल थे और उसके सिर के केश निर्मल ऊन की तरह।
10) उसका सिंहासन ज्वालाओं का समूह था और सिहंासन के पहिये धधकती अग्नि। उसके सामने से आग की धारा बह रही थी। सहस्रों उसकी सेवा कर रहे थे। लाखों उसके सामने खड़े थे। न्याय की कार्यवाही प्रारंभ हो रही थी। और पुस्तकें खोल दी गयीं।
11) मैंने देखा कि सींग के डींग मारने के कारण चैथा पशु मारा गया। उसकी लाश आग में डाली और जलायी गयी।
12) दूसरे पशुओं से भी उनके अधिकार छीन लिये गये, किन्तु उन्हें कुछ और समय तक जीवित ही छोड दिया गया।
13) तब मैंने रात्रि के दृश्य में देखा कि आकाश के बादलों पर मानवपुत्र-जैसा कोई आया। वह वयोवृद्ध के यहाँ पहुँचा और उसके सामने लाया गया।
14) उसे प्रभुत्व, सम्मान तथा राजत्व दिया गया। सभी देश, राष्ट्र और भिन्न-भिन्न भाषा-भाषी उसकी सेवा करेंगे। उसका प्रभुत्व अनन्त है। वह सदा ही बना रहेगा। उसके राज्य का कभी विनाश नहीं होगा।
📒 सुसमाचार : सन्त लूकस 21:29-33
29) ईसा ने उन्हें यह दृष्टान्त सुनाया, ‘‘अंजीर और दूसरे पेड़ों को देखो।
30) जब उन में अंकुर फूटने लगते हैं, तो तुम सहज ही जान जाते हो कि गर्मी आ रही है।
31) इसी तरह जब तुम इन बातों को होते देखोगे, तो यह जान लो कि ईश्वर का राज्य निकट है।
32) ’’मैं तुम से यह कहता हूँ, इस पीढ़ी के अन्त हो जाने से पूर्व ही ये सब बातें घटित हो जायेंगी।
33) आकाश और पृथ्वी टल जायें, तो टल जायें, परन्तु मेरे शब्द नहीं टल सकते।
📚 मनन-चिंतन
येसु आज हमें समय और ऋतुओं के चिन्ह, लौकिक परिवर्तनों की संभावना, और अपने वचन की शाश्वत स्थिरता के प्रति जागरूक होने के लिए आमंत्रित करते हैं।
चिन्ह अंत नहीं है, लेकिन उनका उपयोग किसी वस्तु या किसी व्यक्ति को इंगित करने के लिए किया जाता है, या हमें आने वाली किसी चीज की याद दिलाता है। अंजीर के पेड़ के दृष्टांत के माध्यम से येसु ऋतुओं के चक्र और प्रत्येक मौसम के साथ होने वाले परिवर्तनों का वर्णन करने का प्रयास कर रहे हैं। हम परिवर्तन और अस्थिरता की दुनिया में रहते हैं। विज्ञान के विकास और इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स के आगमन के कारण जीवन में हर पल उतार-चढ़ाव हो रहा है। हमारे जीवन में आने वाले परिवर्तन सकारात्मक या नकारात्मक हो सकते हैं। कभी-कभी बीमारी और आर्थिक संकट जैसे बदलाव हमारे बीच में डर पैदा कर सकते हैं। यह हमारे जीवन को कई बार कठिन, दर्दनाक और भ्रमित करने वाला बना देता है।
आज येसु हमें ईश्वर के उन चिन्ह से अवगत होने के लिए आमंत्रित करते हैं जो कई तरह से हमारे पास आते हैं। ईश्वर की अधिकांश अभिव्यक्तियाँ भव्य तरीकों से नहीं बल्कि सरल और विनम्र सामान्य चीजों और घटनाओं में प्रकट होती हैं। हमें उनके चिन्ह से परिचित होने के लिए बुलाया गया है, जिससे हम उससे चूक न जायें। ईश्वर के साथ मौन रूप में तथा प्रार्थना और चिंतन में समय बिताने से हमें इस संदर्भ में मदद मिलेगी।
परिवर्तन हमेशा चुनौतीपूर्ण होते हैं इसलिए हमें किसी ऐसी चीज पर टिके रहने की जरूरत है जो अपरिवर्तनीय है। येसु अपने शिष्यों से कहते हैं कि सारी सृष्टि टल जाएगी, परन्तु उनके वचन कभी नहीं टलेंगे। जिस दुनिया में हम रहते हैं वह एक दिन लुप्त हो जाएगी, लेकिन येसु के वचन सत्य और जीवन हैं। ये हमेशा के लिए मान्य रहेंगे क्योंकि वे जीवन के दूरदर्शिता का प्रतिनिधित्व करते हैं और उनमें कालनिरपेक्ष गुण हैं।
हम प्रार्थना करें कि पवित्र ग्रंथ के अपरिवर्तनीय वचन हमारे दिलों में शाश्वत स्थिरता प्रदान करें। यह वचन हमारी आध्यात्मिक यात्रा के लिए सांत्वना और मार्गदर्शन बनें।
📚 REFLECTION
Jesus invites us today to become aware of the signs of time and seasons, to the possibility of cosmic changes, and eternal stability of his word.
Signs are not the end but they are used to point out something or somebody, or remind us of something that is to come. Through the parable of fig tree Jesus is trying to describe the cycle of the seasons and the changes that occur with each season. We live in a world of change and instability. With the development of science and arrival of electronic gadgets the life is fluctuating every moment. Changes that come to our life may be positive or negative. Sometimes changes like illness and financial crisis may create fear among us. It makes our life difficult, painful and confusing at times.
Today Jesus invites us to become aware of God’s signs that come to us in many ways. Most of God‘s manifestations come not in spectacular ways but in the simple and humble ordinary things and events. We are called to become familiar with His signs, so that we don’t miss it. Spending time with Him in silence and in prayer and reflection would help us in this regard.
Changes are always challenging therefore we need to hold on to something that is unchanging. Jesus tells his disciples that all created things will pass away, but his words will never pass away. The world in which we live will one day disappear, but the words of Jesus are Truth and Life. It will be valid forever because they represent a vision of life and have timeless values.
We pray that unchanging words of the sacred scripture may give eternal stability in our hearts. Let these words be comfort and guide for our spiritual journey.
📚 मनन-चिंतन -2
सुसमाचार में प्रभु येसु यरूशलेम के विनाश और अपने दूसरे आगमन के विषय में रुक-रुक कर बातें करते हैं। 70 ईस्वी में रोमियों ने येरूसलम पर आक्रमण किया और पूरे शहर का विनाश किया। इस घटना से लगभग चालीस साल पहले ही, येसु इसके बारे में भविष्यवाणी करते हैं। येसु की ये बातें एक दिन जरूर सच होंगी। यही बात प्रभु के दूसरे आने के विषय में भी लागू है। ईश्वर का वचन जीवित और सक्रिय है। ईश्वर का वचन शाश्वत और शक्तिशाली है। कई दृष्टांतों के माध्यम से येसु अपने शिष्यों को अपने दूसरे आगमन के बारे में बताते हैं और अपने सभी लोगों को उस दिन के लिए तैयार रहने की चेतावनी भी देते हैं। जब हम केवल शुरुआत करते हैं तो अंतिम चीजों की याद क्यों दिलाई जाती है? क्योंकि, हमें अंत को मन में रखते हुए दौड़ शुरू करना होगा। हमें लक्ष्य को सामने रखते हुए दौड़ते रहना होगा। प्रभु येसु के शिष्यों को उस दिन का बेसब्री से इंतजार करना चाहिए। विदाई अभिवादन के पहले पवित्र बाइबल का अंतिम वचन प्रभु का निमंत्रण है - “प्रभु ईसा! आइए!” (प्रकाशना 22:20) 1थेसलनीकियों 4:18 में, संत पौलुस विश्वासियों को प्रभु के वचनों का सहारा ले कर एक दूसरे को प्रोत्साहित करने को कहते हैं। जैसा कि हम प्रभु के आगमन का इंतजार करते हैं, हमारे पास ईश्वर का वचन है कि हम उस पर मनन-चिंतन करें और उसके अनुसार कार्य करें। प्रभु का विश्वसनीय शब्द हमारा दैनिक भोजन है जो हमारी रोजमर्रा की गतिविधियों के लिए ताकत देता है।
📚 REFLECTION
In the Gospel Jesus speaks intermittently about the destruction of Jerusalem and his own second coming. In AD 70 Jerusalem fell to the Romans. About forty years ahead of the event, Jesus foretold about it. The words that Jesus spoke will definitely come true one day. So also the words he spoke about his own second coming. The Word of God is living and active. The Word of God is eternal and powerful. Through many parables Jesus taught about his second coming and warned his disciples to be prepared for that day. Why are reminded of the final things when we are only beginning? Because, we need to start running with the end in mind. We have to keep running with the end in focus. Christians should eagerly wait for that day. The last verse of the Bible, before the farewell greeting, is an invitation to the Lord – “Come, Lord Jesus!” (Rev 22:20) In 1Thess 4:18, St. Paul asks the faithful to encourage one another with the Word of God. As we await the coming of the Lord, we have the Word of God to reflect upon and to act upon. The reliable Word of God is our daily food which gives strength for our everyday activities.
✍ -Br. Biniush topno
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