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Catholic Bibile Ministry में आप सबों को जय येसु ओर प्यार भरा आप सबों का स्वागत है। Catholic Bibile Ministry offers Daily Mass Readings, Prayers, Quotes, Bible Online, Yearly plan to read bible, Saint of the day and much more. Kindly note that this site is maintained by a small group of enthusiastic Catholics and this is not from any Church or any Religious Organization. For any queries contact us through the e-mail address given below. 👉 E-mail catholicbibleministry21@gmail.com

बुधवार, 01 दिसंबर, 2021

 

बुधवार, 01 दिसंबर, 2021

आगमन का पहला सप्ताह

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पहला पाठ: इसायाह का ग्रन्थ 25:6-10a


6) विश्वमण्डल का प्रभु इस प्रर्वत पर सब राष्ट्रों के लिए एक भोज का प्रबन्ध करेगाः उस में रसदार मांस परोसा जायेगा और पुरानी तथा बढ़िया अंगूरी।

7) वह इस पर्वत पर से सब लोगों तथा सब राष्ट्रों के लिए कफ़न और शोक के वस्त्र हटा देगा,

8) श्वह सदा के लिए मृत्यु समाप्त करेगा। प्रभु-ईश्वर सबों के मुख से आँसू पोंछ डालेगा। वह समस्त पृथ्वी पर से अपनी प्रजा का कलंक दूर कर देगा। प्रभु ने यह कहा है।

9) उस दिन लोग कहेंगे - “देखो! यही हमारा ईश्वर है। इसका भरोसा था। यह हमारा उद्धार करता है। यही प्रभु है, इसी पर भरोसा था। हम उल्लसित हो कर आनन्द मनायें, क्योंकि यह हमें मुक्ति प्रदान करता है।“

10) इस पर्वत पर प्रभु का हाथ बना रहेगा।



सुसमाचार : सन्त मत्ती 15:29-37



29) ईसा वहाँ से चले गये और गलीलिया के समुद्र के तट पर पहुँच कर एक पहाड़ी पर चढे़ और वहाँ बैठ गये।

30) भीड़-की-भीड़ उनके पास आने लगी। वे लँगडे़, लूले, अन्धे, गूँगे और बहुत से दूसरे रोगियों को भी अपने पास ला कर ईसा के चरणों में रख देते और ईसा उन्हें चंगा करते थे।

31) गूँगे बोलते हैं, लूले भले-चंगे हो रहे हैं, लँगड़े चलते और अन्धे देखते हैं- लोग यह देखकर बड़े अचम्भे में पड़ गये और उन्होंने इस्राएल के ईश्वर की स्तुति की।

32) ईसा ने अपने शिष्यों को अपने पास बुला कर कहा, ’’मुझे इन लोगों पर तरस आता है। ये तीन दिनों से मेरे साथ रह रहें हैं और इनके पास खाने के लिए कुछ भी नहीं है मैं इन्हें भूखा ही विदा करना नहीं चाहता। कहीं ऐसा न हो कि ये रास्ते में मूच्र्छित हो जायें।''

33) शिष्यों ने उन से कहा, ’’इस निर्जन स्थान में हमें इतनी रोटियाँ कहाँ से मिलेंगी कि इतनी बड़ी भीड़ को खिला सकें?’’

34) ईसा ने उन से पूछा, ’’तुम्हारे पास कितनी रोटियाँ हैं? उन्होंने कहा, ’’सात और थोड़ी-सी छोटी मछलियाँ’’।

35) ईसा ने लोगों को भूमि पर बैठ जाने का आदेश दिया

36) और वे सात रोटियाँ और मछलियाँ ले कर उन्होंने धन्यवाद की प्रार्थना पढ़ी, और वे रोटियाँ तोड़-तोड़ कर शिष्यों को देते गये और शिष्य लोगों को।

37) सबों ने खाया और खा कर तृप्त हो गये और बचे हुए टुकड़ों से सात टोकरे भर गये।


📚 मनन-चिंतन



जब हम ईश्वर के प्रति ईमानदार रहेंगे, प्रभु येस कभी भी हमे अकेला नहीं छोड़ेंगे।

आज के सुसमाचार में एक विशाल जनसमूह आशा एवं विश्वास के साथ येसु के वचने को सुनने आते हैं। येसु उनके विश्वास को देखकर उनपर अपनी दया व करुणा प्रकट करते हैं। उन्हें सभी प्रकार के रोगों से चंगाई प्रदान करते हैं। हमे भी अपने सुख, दुख, चिंताओ को लेकर येसु के पास आना चाहिये। थके-माँदे और बोझ से दबे हुए लोगों! तुम सभी मेरे पास आओ। मैं तुम्हे विश्राम दूँगा | (मत्ती ११: २१)

यह बहुत महत्वपूर्ण है कि हमें भी विश्वास के साथ येसु के पास आना है। प्रतिदिन कुछ क्षण प्रभु के साथ व्यतीत करना है। प्रतिदिन उनके वचनों को सुनना है, पढना है। ईमानदारी से प्रभु का साथ देना है। तब प्रभु हम पर भी अपनी दया व करुणा बरसायेगा । प्रभु कभी भी हमे अकेला नहीं छोड़ेगे। "तुम प्रभु पर अपना भार छोड़ दो, वह तुम को संभालेगा (स्त्रोत 55:२३)

हम एक विशवासी के रूप में जो भी हमारी जिम्मेदारी है। उसे ईमानदारी से निभायें और बाकी ईश्वर पर छोड़ दे। वह हमे कभी निराश नहीं करेगा |




📚 REFLECTION




If we are sincere towards God, Lord Jesus will never abandon us.

In today's gospel we see that a huge crowd of people comes to Jesus with a lot of hope and faith to hear Jesus words. Looking to the faith of these people Jesus expresses his mercy and compassion and heals the people who were suffering with sickness.

In the same way we should also bring all our joy, sorrow, stress and tension to Jesus.

“Come to me, all you who are weary and burdened, and I will give you rest. Take my yoke upon you and learn from me, for I am gentle and humble in heart, and you will find rest for your souls.” (Mt 11:28)

The most important thing is that, we should always come with faith to Jesus by spending some time with Jesus, by reading scriptures, by being sincere companion to Jesus. Then surely, Jesus will shower his mercy and compassion to us and he will never ever abandon us.

“But you, O God, will cast them down into the pit of destruction; men of blood and treachery shall not live out half their days. But I will trust in you.’’ (Psalm 55:23) v

We should always fulfill the responsibility that we are carrying as a faithfully and surrender the rest of the things in the hand of God who will never disappoint us.



मनन-चिंतन - 2



आज के सुसमाचार में हम रोटियों का दूसरा चमत्कार देखते हैं। येसु सात रोटियों और कुछ छोटी मछलियों से चार हज़ार से ज़्यादा लोगों को खिला कर तृप्त करते हैं। यह मुख्य रूप से करुणा का कार्य था। येसु भीड़ के लिए अनुकम्पा महसूस कर रहे थे। एज़ेकिएल 34 में प्रभु ने इस्राएल के चरवाहों के गैर-जिम्मेदार व्यवहार के बारे में चिन्तित थे। उन्होंने कहा, “धिक्कार इस्राएल के चरवाहों को! वे केवल अपनी देखभाल करते हैं। क्या चरवाहों को झुण्ड की देखवाल नहीं करनी चाहिए। तुम भेड़ों का दूध पीते हो, उनका ऊन पहनते और मोटे पशुओं का वध करते हो, किन्तु तुम भेड़ों को नहीं चराते।”(एज़ेकिएल 34: 2-3)। बाद में उनके लिए स्वयं चरवाहा बनने का वादा करते हुए, उन्होंने कहा, “मैं उन्हें इस्राएल के पहाड़ों पर, घाटियों में और देश भर के बसे हुए स्थानों पर चाराऊँगा। मैं उन्हें अच्छे चरागाहों में ले चलूँगा। वे इस्राएल के पर्वतों पर चरेंगी। वहाँ वे अच्छे चरागाहों में विश्राम करेंगी और इस्राएल के पर्वतों की हरी-भरी भूमि में चरेगी।” (एज़ेकिएल 34:13-14)। प्रभु येसु प्रभु ईश्वर का का वादा पूरा हुआ। प्यार और करुणा के साथ यीशु ने लोगों को खिलाया जो बिना चरवाहे की भेड़ों की तरह थे। सभी ख्रीस्तीय नेताओं को प्रभु येसु के इस आदर्श को अपनाना चाहिए और उनकी प्रेममयी और दयालु सेवा का अनुकरण करना चाहिए।



REFLECTION



In the Gospel we have second story of the multiplication of the bread. Jesus multiplies seven loaves and some small fish to feed over four thousand people. This was primarily an act of compassion. Jesus was feeling sorry for the crowd. In Ezekiel 34 Yahweh lamented about the irresponsible behavior of the shepherds of Israel. He said, “Ah, you shepherds of Israel who have been feeding yourselves! Should not shepherds feed the sheep? You eat the fat, you clothe yourselves with the wool, you slaughter the fatlings; but you do not feed the sheep.” (Ezek 34:2-3). Later promising to become their Shepherd, he says, “I will feed them with good pasture, and the mountain heights of Israel shall be their pasture; there they shall lie down in good grazing land, and they shall feed on rich pasture on the mountains of Israel” (Ezek 34:14). In Jesus the promise of Yahweh is fulfilled. With love and compassion Jesus fed people who were like sheep without a shepherd. All Christian leaders are to imitate Jesus and follow his loving and compassionate service.


 -Br. Biniush topno


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मंगलवार, 30 नवंबर, 2021

 

मंगलवार, 30 नवंबर, 2021

आगमन का पहला सप्ताह

प्रेरित सन्त अन्द्रेयस - पर्व

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पहला पाठ: रोमियों के नाम सन्त पौलुस का पत्र 10:9-18


9) क्योंकि यदि आप लोग मुख से स्वीकार करते हैं कि ईसा प्रभु हैं और हृदय से विश्वास करते हैं कि ईश्वर ने उन्हें मृतकों में से जिलाया, तो आप को मुक्ति प्राप्त होगी।

10) हृदय से विश्वास करने पर मनुष्य धर्मी बनता है और मुख से स्वीकार करने पर उसे मुक्ति प्राप्त होती है।

11) धर्मग्रन्थ कहता है, ‘‘जो उस पर विश्वास करता है, उसे लज्जित नहीं होना पड़ेगा’’।

12) इसलिए यहूदी और यूनानी और यूनानी में कोई भेद नहीं है- सबों का प्रभु एक ही है। वह उन सबों के प्रति उदार है, जो उसकी दुहाई देते है;

13) क्योंकि जो प्रभु के नाम की दुहाई देगा, उसे मुक्ति प्राप्त होगी।

14) परन्तु यदि लोगों को उस में विश्वास नहीं, तो वे उसकी दुहाई कैसे दे सकते हैं? यदि उन्होंने उसके विषय में कभी सुना नहीं, तो उस में विश्वास कैसे कर सकते हैं? यदि कोई प्रचारक न हो, तो वे उसके विषय में कैसे सुन सकते है?

15) और यदि वह भेजा नहीं जाये, तो कोई प्रचारक कैसे बन सकता है? धर्मग्रन्थ में लिखा है - शुभ सन्देश सुनाने वालों के चरण कितने सुन्दर लगते हैं !

16) किन्तु सबों ने सुसमाचार का स्वागत नहीं किया। इसायस कहते हैं- प्रभु! किसने हमारे सन्देश पर विश्वास किया है?

17) इस प्रकार हम देखते हैं कि सुनने से विश्वास उत्पन्न होता है और जो सुना जाता है, वह मसीह का वचन है।

18) अब मैं यह पूछता हूँ - ‘‘क्या उन्होंने सुना नहीं?’’ उन्होंने सुना है, क्योंकि उनकी वाणी समस्त संसार में फैल गयी है और उनके शब्द पृथ्वी के सीमान्तों तक।



सुसमाचार : सन्त मत्ती 4:18-22.


(18) गलीलिया के समुद्र के किनारे टहलते हुए ईसा ने दो भाइयों को देखा-सिमोन, जो पेत्रुस कहलाता है, और उसके भाई अन्द्रेयस को। वे समुद्र में जाल डाल रहे थे, क्योंकि वे मछुए थे।

(19) ईसा ने उन से कहा, ’’मेरे पीछे चले आओ। मैं तुम्हें मनुष्यों के मछुए बनाऊँगा।’’

(20) वे तुरंत अपने जाल छोड़ कर उनके पीछे हो लिए।

(21) वहाँ से आगे बढ़ने पर ईसा ने और दो भाइयों को देखा- जे़बेदी के पुत्र याकूब और उसके भाई योहन को। वे अपने पिता जे़बेदी के साथ नाव में अपने जाल मरम्मत कर रहे थे।

(22) ईसा ने उन्हें बुलाया। वे तुरंत नाव और अपने पिता को छोड़ कर उनके पीछे हो लिये।



📚 मनन-चिंतन



आज हम संत अंद्रेयस का पर्व मनाते हैं। आज सुसमाचार में हमारे पास प्रथम शिष्यों की बुलाहट का वृतांत है। इस बुलाहट में दो चीजें जो हम देखने को मिलती हैं, वे हैं उनकी सक्रियता और तुरंत प्रतिक्रिया।

सक्रियताः ईश्वर को अपने कार्य के लिए सक्रिय लोगों की आवश्यकता होती है। शिष्य मेहनती लोग थे। येसु ने शिष्यों को बुलाया जब वे काम पर थे। उन्होंने मत्ती को बुलाया जब वह चुंगीघर में था। मूसा को उस समय बुलावा मिला जब वह अपने ससुर यित्रो के झुंड की रखवाली कर रहा था। एलियाह ने एलीशा को बुलाया जब वह खेत में हल जोत रहा था, समूएल ने दाऊद को बुलवा भेजा, जब वह अपने पिता यिशय की भेड चरा रहा था। पुराने विधान के सभी भविष्यवक्ता सक्रिय लोग थे। ईश्वर हमेशा सक्रिय लोगों की तलाश करता है। इसलिए हमें अपनी सेवकाई में सक्रिय होने की आवश्यकता है। यदि हम कमजोर भी है ईश्वर हमें बल प्रदान करेगा। उनके राज्य के लिए कार्य करने की इच्छा सबसे महत्वपूर्ण है। हमें संत पौलुस के शब्दों में विश्वास करना चाहिए ‘‘जो मुझे बल प्रदान करते हैं, मैं उनकी सहायता से सब कुछ कर सकता हूँ’’। (फिल. 4ः13)

तुरंत प्रतिक्रियाः हर बार जब ईश्वर ने लोगों को बुलाया, तो उन्होंने तुरंत प्रतिउत्तर दिया। जब ईश्वर ने मूसा को बुलाया तो वे तैयार और इच्छुक थे, जब समूएल ने दाऊद को बुलाया, तो वह तुरंत घर पहुंचा। जब एलियाह ने एलीशा को बुलाया, तब वह उनके साथ हो लिया। मत्ती ने चुंगी-घर को तुरंत छोड़ दिया। येसु के द्वारा चंगाई प्राप्त करने वाले वह अंधा और वह कोढ़ी उनकेे पीछे हो लिए। येसु की बातें सुनकर बहुत से लोग उनके पीछे हो लिए। ईश्वर के लिए तुरंत या शीघ्र प्रतिक्रिया बहुत महत्वपूर्ण है। वह व्यक्ति जो येसु का अनुसरण बाद में करना चाहता था, उससे येसु ने कहा, ‘‘मेरे पीछे चले आओ; मुरदों को अपने मुरदे दफनाने दो’’।(मत्ती 8ः22) आइए हम अपने दैनिक जीवन में अपने प्रभु के बुलावे की आवाज सुनें और तुरंत उसका प्रतिउत्तर देना सीखें।



📚 REFLECTION



Today we celebrate the feast of Andrew. In the gospel we have today the call of first disciples. Two things we notice in this calling are their activeness and the immediate response.

Activeness: God requires active people for his work. The disciples were hardworking people. Jesus called the disciples when they were at work. He called Mathew when he was in the tax collector’s office. Moses was called while he was keeping the flock of his father-in-law Jethro. Elijah called Elisha when he was plowing the field, Samuel sent for David when he was shepherding the flock of his father Jesse. All the prophets of Old Testament were active people. God always looked for active people. Therefore we need to become active in our ministry. Even if we are weak God will strengthen us. The willingness to work for his kingdom is very important. We should believe in the words of St. Paul “I can do all things through him who strengthens me”. (Phil. 4:13)

Immediate response: Every time when God called people, they responded immediately. When God called Mosses he was ready and willing, When Samuel called David he reached home immediately. When Elijah called Elisha, he joined him. Mathew left the tax collector’s office at once. The blind man and the leaper who were healed by Jesus followed him. Hearing the words of Jesus many followed him. Immediate or quick response to God is very important. To the one who wanted to follow Jesus later he said, “Follow me and let the dead burry their own dead”. (Lk. 8:22) Let us listen to the voice of our Lord’s calling in our daily lives and learn to respond to him immediately.



मनन-चिंतन - 2



संत अन्द्रयस उन प्रेरितों में से एक है जो अपनी उपस्थिति को सुसमाचार में प्रकट करते हैं। पूर्वी परंपरा में अन्द्रयस को 'सब से पहले बुलाये जाने वाले' के रूप में जाना जाता है। योहन 1: 35-42 के अनुसार, अन्द्रयस पहले योहन बपतिस्ता के शिष्य थे। योहन बपतिस्ता ने येसु को 'ईश्वर के मेमने' के रूप में उनसे परिचित कराया। फिर अन्द्रयस ने येसु का अनुसरण किया और येसु को मसीह के रूप में पहचानने के बाद, वे अपने भाई पेत्रुस को येसु के पास ले आये। वास्तव में, अन्द्रयस को लोगों को येसु के पास लाने का करिश्मा है। वे उस बालक को येसु के पास ले आये जिसके पास पाँच रोटियों और दो मछलियाँ थीं (देखें योहन 6: 8-9)। इसी अन्द्रयस की मदद से ही त्योहार पर येरूसालेम आने वाले यूनानी लोग येसु से मिल पाते हैं। परंपरा के अनुसार अन्द्रयस ने ग्रीस और तुर्की में सुसमाचार का प्रचार किया और पैट्रास में क्रूस पर चढ़ाया गया।



REFLECTION



Andrew is one of those apostles who makes his presence felt in the Gospel. In the Orthodox tradition Andrew is known as ‘the First-Called’. According to Jn 1:35-42, Andrew was originally a disciple of John, the Baptist. John the Baptist indicated Jesus as ‘lamb of God’ to him. He then followed Jesus and after having recognized Jesus as the Messiah, he brought Peter, his brother, also to Jesus. In fact, Andrew has a charism of bringing people to Jesus. He brought the boy with five loaves and two fish to Jesus (cf. Jn 6:8-9). It was with the help of Andrew that the Greeks who had come the festival could meet Jesus. According to tradition Andrew preached in Greece and Turkey and was crucified in Patras.


 -Br. Biniush topno


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सोमवार, 29 नवंबर, 2021

 

सोमवार, 29 नवंबर, 2021

आगमन का पहला सप्ताह

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📒 पहला पाठ: इसायाह का ग्रन्थ 2:1-5


1) येरुसालेम तथा यूदा के विषय में आमोस के पुत्र इसायाह का देखा हुआ दिव्य दृश्य।

2) अन्तिम दिनों में - ईश्वर के मन्दिर का पर्वत पहाड़ों से ऊपर उठेगा और पहाड़ियों से ऊँचा होगा। सभी राष्ट्र वहाँ इकट्ठे होंगे;

3) असंख्य लोग यह कहते हुए वहाँ जायेंगे, “आओ! हम प्रभु के पर्वत पर चढ़ें, याकूब के ईश्वर के मन्दिर चलें, जिससे वह हमें अपने मार्ग दिखाये और हम उसके पथ पर चलते रहें“; क्योंकि सियोन से सन्मार्ग की शिक्षा प्रकट होगी और येरुसालेम से प्रभु की वाणी।

4) वह राष्ट्रों के बीच न्याय करेगा और देशों के आपसी झगड़े मिटायेगा। वे अपनी तलवार को पीट-पीट कर फाल और अपने भाले को हँसिया बनायेंगे। राष्ट्र एक दूसरे पर तलवार नहीं चालायेंगे और युद्ध-विद्या की शिक्षा समाप्त हो जायेगी।

5) याकूब के वंश! आओ, हम प्रभु की ज्योति में चलते रहें।



📒 सुसमाचार : सन्त मत्ती 8:5-11



5) ईसा कफरनाहूम में प्रवेश कर ही रहे थे कि एक शतपति उनके पास आया और उसने उन से यह निवेदन किया,

6) ’’प्रभु! मेरा नौकर घर में पड़ा हुआ है। उसे लक़वा हो गया है और वह घोर पीड़ा सह रहा है।’’

7) ईसा ने उस से कहा, ’’मैं आ कर उसे चंगा कर दूँगा’’।

8) शतपति नें उत्तर दिया, ’’प्रभु! मैं इस योग्य नहीं हूँ कि आप मेरे यहाँ आयें। आप एक ही शब्द कह दीजिए और मेरा नौकर चंगा हो जायेगा।

9) मैं एक छोटा-सा अधिकारी हूँ। मेरे अधीन सिपाही रहते हैं। जब मैं एक से कहता हूँ- ’जाओ’, तो वह जाता है और दूसरे से- ’आओ’, तो वह आता है और अपने नौकर से-’यह करो’, तो वह यह करता है।’’

10) ईसा यह सुन कर चकित हो गये और उन्होंने अपने पीछे आने वालों से कहा, ’’मैं तुम लोगों से यह कहता हूँ-इस्राएल में भी मैंने किसी में इतना दृढ़ विश्वास नहीं पाया’’।

11) ’’मैं तुम से कहता हूँ- बहुत से लोग पूर्व और पश्चिम से आ कर इब्राहीम, इसहाक और याकूब के साथ स्वर्गराज्य के भोज में सम्मिलित होंगे,



📚 मनन-चिंतन



आज के सुसमाचार में शतपति हमारे अनुसरण के लिए एक अच्छा उदाहरण प्रस्तुत करता है। यह शतपति के आध्यात्मिक यात्रा की प्रक्रिया को दर्शाता है।

विश्वासः वृत्तांत की शुरुआत शतपति का येसु में भरोसा और विश्वास के साथ होती है। वह येसु के चंगााई-शक्ति में दृढ़ता से विश्वास करता था। इसलिए वह येसु से अपने सेवक की चंगाई के लिए अनुरोध करने आता है। हमें भी इस बात की बहुत चिंता होती है कि क्या ईश्वर हमारी प्रार्थना सुनेगा और हमारे अनुरोध को पूरा करेगा। इसके साथ ही हम ईश्वर की शक्ति और उसके प्रेम और प्रावधान पर भरोसा करने में भी असफल होते हैं। एक गैरइस्राएली होने के बावजूद भी शतपति को येसु में विश्वास था। विश्वास बढ़ाने की हमारी इच्छा केवल हमारी मौखिक प्रार्थनाओं तक समाप्त नहीं होनी चाहिए, बल्कि हमें कार्य करने के लिए प्रेरित करना चाहिए। हमें अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास करना चाहिए और बाकी सब चीज़ ईश्वर के हाथों में छोड़ देना चाहिए।

नौकर के लिए सम्मान और गरीमाः आम तौर पर नौकरों को मालिक की संपत्ति माना जाता था। वह नौकर के साथ जो चाहे कर सकता था। उससे सवाल करने वाला कोई नहीं था। लेकिन फिर भी शतपति ने अपने सेवक के लिए अपनी चिंता और परवाह दिखाई। शतपति के मन में अपने सेवक के प्रति बहुत सम्मान था। वह नहीं चाहता था कि उसका नौकर कष्ट भुगतेे। शतपति हमें सिखाता है कि अपने साथियों की भले ही समाज में उनकी स्थिति कुछ भी हो, उनकी देखभाल और चिंता कैसे की जाए।

येसु के अधिकार को स्वीकारनाः शतपति कोई साधारण सैनिक नहीं था। वह एक अधिकारी था। अधिकार की शक्ति होने के कारण वह येसु को अपने घर पहुँचने और अपने सेवक को चंगा करने का आदेश दे सकता था। लेकिन उसने कृपापूर्वक उस अधिकार और विशेष रूप से उस चंगाई-शक्ति को स्वीकार किया जो येसु के पास थी। इसलिए उसने येसु के पास आने और अपने सेवक की चंगाई के लिए प्रार्थना करने का कष्ट उठाया। हमें शतपति से सभी लोगों के वरदानों और प्रतिभाओं का सम्मान करना और उन्हें स्वीकार करना सीखना होगा।

यह शतपति हमारे विश्वास, मानवीय गरिमा के सम्मान और अधिकार को स्वीकार करने जैसे मामलों में हमारी आध्यात्मिक यात्रा में एक मार्गदर्शक बने।




📚 REFLECTION



In today’s gospel centurion presents a good example for us to follow. It shows the process of centurion’s spiritual journey.

Faith: The episode begins with Centurion’s faith and trust in Jesus. He believed strongly in the healing power of Jesus. Therefore he comes to request Jesus for the healing of his servant. We too have lot of worries as to whether God would hear our prayer and grand our request. At the same time we also fail to trust in God’s power and in His love and providence. The centurion in spite of being a gentile had faith in Jesus. Our desire to increase the faith should not end with our vocal prayers alone but should lead us to action. We should do make our best effort and leave everything into the hands of God to do the rest.

Dignity and respect for the servant: Normally the servants were considered as the property of the master. He could do to the servant whatever he wanted. There was no one to question him. But still the centurion showed his concern and care for his servant. The centurion had good respect for his servant. He didn’t want his servant to suffer. The centurion teaches us how to show care and concern for our fellowmen regardless of their standing in our society.

Acceptance of the authority of Jesus: Centurion was not an ordinary soldier. He was an officer. Having power of authority he could order Jesus to reach his house and heal his servant. But he gracefully accepted the authority and especially the healing power that Jesus had. Therefore he took the trouble to come to Jesus and request for the healing of his servant. We need to learn from centurion to respect and accept the gifts and talents of everyone.

May this centurion be a guide in our spiritual journey in the matters of our faith, respect for human dignity and in the acceptance of authority.


 -Br. Biniush topno


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इतवार, 28 नवंबर, 2021

 

इतवार, 28 नवंबर, 2021

आगमन का पहला इतवार

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पहला पाठ : यिरमियाह का ग्रन्थ 33:14-16


14) “प्रभु यह कहता हैः देखो, वे दिन आ रहे हैं, जब मैं इस्राएल तथा यूदा के घराने के प्रति अपनी प्रतिज्ञा पूरी करूँगा।

15) उन दिनों और उस समय, मैं दाऊद के लिए एक धर्मी वंशज उत्पन्न करूँगा, जो देश पर न्यायपूर्वक शासन करेगा।

16) उन दिनों यूदा का उद्धार होगा और येरुसालेम सुरक्षित रहेगा। यरूसालेम का यह नाम रखा जायेगा- ’प्रभु ही हमारा न्याय है’;



दूसरा पाठ: थेसलनीकियों के नाम सन्त पौलुस का पहला पत्र 3:12-4:2



12) प्रभु ऐसा करें कि जिस तरह हम आप लोगों को प्यार करते हैं, उसी तरह आपका प्रेम एक दूसरे के प्रति और सबों के प्रति बढ़ता और उमड़ता रहे।

13) इस प्रकार वह उस दिन तक अपने हृदयों को हमारे पिता ईश्वर के सामने पवित्र और निर्दोष बनायें रखें, जब हमारे प्रभु ईसा अपने सब सन्तों के साथ आयेंगे।

1) भाइयो! आप लोग हम से यह शिक्षा ग्रहण कर चुके हैं कि किस प्रकार चलना और ईश्वर को प्रसन्न करना चाहिए और आप इसके अनुसार चलते भी हैं। अन्त में, हम प्रभु ईसा के नाम पर आप से आग्रह के साथ अनुनय करते हैं कि आप इस विषय में और आगे बढ़ते जायें।

2) आप लोग जानते हैं कि मैंने प्रभु ईसा की ओर से आप को कौन-कौन आदेश दिये।


सुसमाचार : सन्त लूकस का सुसमाचार 21:25-28.34-36


25) ‘‘सूर्य, चन्द्रमा और तारों में चिन्ह प्रकट होंगे। समुद्र के गर्जन और बाढ़ से व्याकुल हो कर पृथ्वी के राष्ट्र व्यथित हो उठेंगे।

26) लोग विश्व पर आने वाले संकट की आशंका से आतंकित हो कर निष्प्राण हो जायेंगे, क्योंकि आकाश की शक्तियाँ विचलित हो जायेंगी।

27) तब लोग मानव पुत्र को अपार सामर्थ्य और महिमा के साथ बादल पर आते हुए देखेंगे।

28) ‘‘जब ये बातें होने लगेंगी, तो उठ कर खड़े हो जाओ और सिर ऊपर उठाओ, क्योंकि तुम्हारी मुक्ति निकट है।’’

34) ‘‘सावधान रहो। कहीं ऐसा न हो कि भोग-विलास, नशे और इस संसार की चिन्ताओं से तुम्हारा मन कुण्ठित हो जाये और वह दिन फन्दे की तरह अचानक तुम पर आ गिरे;

35) क्योंकि वह दिन समस्त पृथ्वी के सभी निवासियों पर आ पड़ेगा।

36) इसलिए जागते रहो और सब समय प्रार्थना करते रहो, जिससे तुम इन सब आने वाले संकटों से बचने और भरोसे के साथ मानव पुत्र के सामने खड़े होने योग्य बन जाओ।’’



📚 मनन-चिंतन



आज से हम आगमन काल की शुरूआत कर रहे हैं। यह प्रभु के आने के लिए स्वयं को तैयार करने का समय है। आज का दूसरा पाठ और सुसमाचार प्रभु की प्रतीक्षा करते हुए तैयारी की आवश्यकता की बात करते हैं।

थेसलनीकियों के नाम संत पौलुस का पहला पत्र को नए विधान की सबसे पुरानी किताब माना जाता है। उन्होंने थेसलनीकियों में प्रचार किया, कलीसिया की स्थापना की और फिर कुरिन्थ चले गए। जब तिमथी ने थेसलनीकियों के विश्वासियों के बीच विश्वास के संकट के बारे में बताया, तो पौलुस ने उन्हें अपना पत्र लिखा। पौलुस के विरोधियों ने यह खबर फैला दी कि मसीह का दूसरा आगमन ईसाई प्रचारकों द्वारा उनमें भय पैदा करने के लिए एक मनगढ़ंत कहानी थी। उन्होंने दावा किया कि जो लोग इस सिद्धांत को मानते हैं वे पहले ही मर चुके हैं परन्तु पौलुस ने उन्हें उत्तर देते हुए कहा कि उनकी मृत्यु का यह अर्थ नहीं है कि मसीह के आने पर उन्हें कोई हानि होगी। (1 थेसलनीकियों 3ः12-13) में कहा कि मसीह के दूसरे आगमन के लिए तैयार करने का सबसे अच्छा तरीका यह नहीं है कि यह कैसे और कब और कहाँ होगा, इसके बारे में अनुमान लगाना नहीं है, बल्कि ‘‘जिस तरह हम आप लोगों को प्यार करते हैं, उसी तरह आपका प्रेम एक दूसरे के प्रति और सबों के प्रति बढ़ता और उमड़ता रहे। इस प्रकार वह उस दिन तक अपने हृदयों को हमारे पिता ईश्वर के सामने पवित्र और निर्दोष बनायें रखें, जब हमारे प्रभु ईसा अपने सब सन्तों के साथ आयेंगे।’’

प्रारंभिक ईसाई येरूसालेम मंदिर के विनाश के तुरंत बाद येसु के दूसरे आगमन में विश्वास करते थे। जब ऐसा नहीं हुआ तो विश्वास का संकट खड़ा हो गया। उनमें से कई इस संसार की आसारता में वापस चले गए। इन मुद्दों को संबोधित करते हुए लूकस उन्हें प्रोत्साहित करते है कि वे सावधान रहें ताकि वे ‘‘भोग-विलास, नशे और इस संसार की चिन्ताओं’’ के बोझ तले न दब जायें (लूकस 21ः34)। वह लोगों को यह याद दिलाते है कि सामान्य घटनाओं और लोगों के जरिये येसु हमारे जीवन में आते है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि हमें उनमें ईश्वर को पहचानने के लिए सतर्क रहना चाहिए और उनका स्वागत करने के लिए तैयार रहना चाहिए। वह हमारे पास अनपेक्षित समय, स्थान और लोगों के द्वारा आता है।

आगमन सक्रिय रूप से प्रतीक्षा करने का एक समय है। आइए हम अपने जीवन की दैनिक घटनाओं में और अपने आसपास के लोगों के बीच प्रभु का स्वागत करने के लिए स्वयं को तैयार करें।



📚 REFLECTION



Today we begin the season of Advent. It is a time to prepare ourselves for the coming of the Lord. Today’s second reading and the gospel speak of the need for preparation while waiting for the Lord.

St. Paul’s first letter to the Thessalonians is believed to be the oldest book of the New Testament. He preached in Thessalonika, established church and then moved to Corinth. When Timothy reported about the crisis of faith among the believers of Thessalonika, Paul wrote his letter to them. Paul’s opponents spread the news that Christ’s second coming was a fabricated story by Christian preachers to create fear in them. They claimed that those who believed this theory are already dead and gone. But Paul replied to them saying that their death does not mean that they will suffer any disadvantage when Christ comes. In his first letter to Thess. 3:12-13 he said that the best way to prepare for the second coming of Christ is not to engage in speculations of how and when and where it will be but to “increase and abound in love for one another and for all, as we do for you so that he may establish your hearts blameless in holiness before our God and father at the coming of our Lord Jesus with all the saints”.

Early Christians believed in the second coming of Jesus immediately after the destruction of the Jerusalem Temple. When it did not take place there was a crisis of faith. Many of them fell back into the pleasures of this world. Addressing these issues Luke exhorts them to be on their guard so as not to be weighed down with “dissipation and drunkenness and the worries of this life” (Lk. 21:34). He reminds the people about Jesus’ coming to our lives in the ordinary events and people. He emphasized that we should be vigilant to recognize God in them and be prepared to welcome Him. He comes to us at a least expected time, place and people.

Advent is a time of active waiting. Let us prepare ourselves to welcome the Lord in the daily events of our life and among the people around us.



मनन-चिंतन -2


आज, आगमन काल के पहले रविवार, से हम नए पूजन पद्धति वर्ष में प्रवेश कर रहे हैं। आगमन काल इन्तजार का समय है। यह इन्तजार न केवल येसु के जन्म पर्व के लिए बल्कि येसु के पुनरागमन के लिए भी है।

सन् 2008 में ओडिशा के कंधमाल जिले के ख्रीस्तीय विश्वासियों पर बहुत बडा अत्याचार हुआ जिस में सैकडों ख्रीस्तीय विश्वासी मारे गये, उनके घरों को चुन चुन कर जलाया गया। अत्याचारियों ने उम्मीद की होगी कि यहॉ के ख्रीस्तीय लोग विचलित होकर ख्रीस्तीय विश्वास को छोड देंगे। 2009 में मैं ने इस क्षेत्र का दौरा किया और मुझे उनकी दृढता एवं धैर्य देखकर आश्चर्य हुआ। मैं जले हुए घरों और शरणार्थी शिविरों में रहने वाले हजारों विश्वासियों से मिला जिन्होने येसु के पवित्र नाम से हमारा अभिवादन और स्वागत किया। उस भयावह आतंकित परिस्थिति में भी अपने गले में रोजरी माला एवं क्रूस पहने हुए वे अपने ख्रीस्तीय विश्वास का साक्ष्य दे रहे थे। मुझे लगा कि यह उत्पीडित कलीसिया आज के सुसमाचार में सुने पवित्र वचन की जीती जागती अनोखी मिसाल है – “जब ये बातें होने लगेंगी, तो उठकर खडे हो जाओ और सिर उपर उठाओ, क्योंकि तुम्हारी मुक्ति निकट है” (लूकस 21:28)

जैसा कि पहले पाठ में बताया गया है – नबी यिरमियाह के समयकाल में इस्राएली जनता गुलामी का जीवन बिता रही थी। विवश, निराश और व्यथित हो चुकी इस जनता को ढारस बंधाते हुए नबी यिरमियाह उनको मुक्ति देने वाले मसीह के आगमन का संदेश देते हैं और उन्हें मुक्ति का भरोसा देते हैं। पहली शताब्दी की आदिम कलीसिया भी संघर्ष भरा जीवन बिता रही थी। नाना प्रकार की प्राकृतिक आपदायो, अकाल, बीमारियॉं, मृत्यु आदि के अलावा, उन लोगों के ख्रीस्तीय विश्वास के कारण उनके विरोधियों एवं शासकों द्वारा उन पर निर्मम अत्याचार व उनकी हत्या की जाती थी। इसी संदर्भ में संत लूकस ने येसु के शिक्षा-वचनों को याद दिलाते हुए कहा – “जागते रहो और सब समय प्रार्थना करते रहो, जिससे तुम इन सब आने वाले संकटों से बचने और भरोसे के साथ मानव पुत्र के सामने खडे हाने योग्य बन जाओ।“ (लूकस 21:36) इन वचनों से संत लूकस येसु के पुनरागमन का संकेत देते है।

विश्वासी लोग अपने जीवन को येसु की प्रतीक्षा में व्यतीत करें इस बात का उल्लेख येसु मसीह आज के सुसमाचार में एवं संत पौलुस थेसेलेनीकिया की कलीसिया को लिखे पत्र में हमें बताते है -

1. जागते रहो - शैतान हर वक्त हमारी मुक्ति का विनाश करने हेतु प्रयासरत है। भोग-विलास, नशे और इस संसार की चिन्तायें हमें कुण्ठित कर देती और येसु की प्रतीक्षा से हमें विच्छेदित करती है। अतः विश्वासियों को चौकसी बरतना अति आवश्यक है।

2. हर समय प्रार्थना करते रहो - तभी हम जीवन में आने वाले संकटों से बचने और भरोसे के साथ मानव पुत्र के सामने खडे होने के योग्य बन जायेंगे।

3. येसु एवं मानवों के प्रति हमारा प्रेम बढता जायें। मनुष्य प्रगतिशील है किंतु ईश्वर एवं मानवों के प्रति अपना प्रेम दिनों दिन बढते जाना ही सबसे ज्यादा जरूरी है और आगमन काल का उद्येश्य है।

4. हम अपने कर्तव्यों को ईमानदारी से निभायें, आलसीपन और गैर-जिम्मेदाराना व्यवहार को छोड दें, परिवार की देखरेख करें, अपनी कमाई का रोटी खायें (1थेसलनीकियों (3:12)।

5. येसु मसीह के अधिकार से दी जाती कलीसिया की शिक्षा को ध्यान में रखें और उसके अनुसरण करें।

“ईश्वर की इच्छा यह है कि आप लोग पवित्र बनें...” (1थेसलनीकियों 4:3)।

यह आगमन काल हमारे लिए पवित्र बनने एवं हमारे ख्रीस्तीय जीवन में प्रगति लाने का सुअवसर बन जाये।


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शनिवार, 27 नवंबर, 2021

 

शनिवार, 27 नवंबर, 2021

वर्ष का चौंत्तीसवाँ सामान्य सप्ताह

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पहला पाठ: दानिएल का ग्रन्थ 7:15-27

15) मैं बहुत व्याकुल हो उठा और अपने मन के दृश्यों के कारण विस्मित हो गया।

16) मैंने वहाँ उपस्थित लोगों में से एक के पास जा कर पूछा कि इन सब बातों का अर्थ क्या है और उसने मुझे समझाते हुए कहा,

17) ’’ये चार विशालकय पशु चार राज्य हैं, जो पृथ्वी पर प्रकट होंगे,

18) किन्तु सर्वोच्य प्रभु के संतों को जो राजत्व दिया जायेगा, वह अनन्त काल तक बना रहेगा।’’

19) तब मैंने जानना चाहा कि उस चैथे पशु का अर्थ क्या है, जो सभी पहले पशुओं से भिन्न था, जो बहुत डरावना था, जो चबाता और खाता जाता था और जो कुछ रह जाता, उसे पैरों तले रौंदता था।

20) मैंने उसके सिर के दस सींगों के विषय में जानना चाहा और उस अन्य सींग के विषय में भी, जिसके निकलने पर तीन सींग उखड़ गये- उस सींग के विषय में, जिसकी आंखे थी, जिसका एक डींग मारने वाला मुँह था और जो दूसरे सींगों से अधिक बडा दिखता था।

21) मैं देख ही रहा था कि वह सींग संतों से युद्ध कर रहा था और वयोवृद्ध व्यक्ति के आने तक उन पर प्रबल हो रहा था।

22) उसने सर्वोच्य प्रभु के संतों को न्याय दिलाया और वह समय आया, जब संतों ने राज्य पर अधिकार प्राप्त कर लिया।

23) उसने मुझे यह उत्तर दिया, ’’चैथा पशु पृथ्वी पर प्रकट होने वाला चैथा राज्य है। वह अन्य सब राज्यों से भिन्न होगा। वह समस्त पृृथ्वी को खा जायेगा और पैरों तले रौंद कर चूर-चूर कर देगा।

24) वे दस सींग इस राज्य के दस राजा हैं। उनके बाद एक ऐसे राजा का उदय होगा, जो पहले के राजाओं से भिन्न होगा और तीन राजाओं को परास्त कर देगा।

25) वह सर्वोच्य प्रभु के विरुद्ध बोलेगा, सर्वोच्य प्रभु के संतों पर अत्याचार करेगा और पर्वों और प्रथाओं में परिवर्तन लाने की योजना तैयार करेगा। संत साढे तीन वर्ष तक उसके हाथ में दिये जायेंगे।

26) इसके बाद न्याय की कार्यवाही प्रारंभ होगी। राजत्व उस से छीन लिया जायेगा और सदा के लिए उसका सर्वनाश किया जायेगा।

27) तब पृथ्वी भर के सब राज्यों का अधिकार, प्रभुत्व और वैभाव सर्वोच्च प्रभु के संतों की प्रजा को प्रदान किया जायेगा। उसका राज्य सदा बना रहेगा और सभी राष्ट्र उसकी सेवा करेंगे और उसके अधीन रहेंगे।’’

सुसमाचार : सन्त लूकस 21:34-36

34) ‘‘सावधान रहो। कहीं ऐसा न हो कि भोग-विलास, नशे और इस संसार की चिन्ताओं से तुम्हारा मन कुण्ठित हो जाये और वह दिन फन्दे की तरह अचानक तुम पर आ गिरे;

35) क्योंकि वह दिन समस्त पृथ्वी के सभी निवासियों पर आ पड़ेगा।

36) इसलिए जागते रहो और सब समय प्रार्थना करते रहो, जिससे तुम इन सब आने वाले संकटों से बचने और भरोसे के साथ मानव पुत्र के सामने खड़े होने योग्य बन जाओ।’’



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शुक्रवार, 26 नवंबर, 2021

 

शुक्रवार, 26 नवंबर, 2021

वर्ष का चौंत्तीसवाँ सामान्य सप्ताह

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📒 पहला पाठ: दानिएल का ग्रन्थ 7:2-14


2) मैंने रात्रि के समय यह दिव्य दृश्य देखाः आकाश की चारों दिशाओं की हवाएँ महासमुद्र को उद्वेलित कर रही थीं

3) और उस में से चार विशालकाय पशु निकलते थे, जो एक दूसरे से भिन्न थे।

4) पहला सिहं-जैसा था, किन्तु उसके गरूड़ के जैसे पख थे। मैं देख ही रहा था कि उसके पंख उखाड़ गये, उसे उठा कर दो पाँवों पर मनुय की तरह खड़ा कर दिया गया और उसे मनुय-जैसा हृदय दिया गया।

5) दूसरा भालू-जैसा था। वह आधा ही खड़ा था और वह अपने मुँह में दाँतों के बीच तीन पसलियाँ लिये था। उसे यह आदेश दिया गया, ’’उठो और बहुत-सा मांस खाओ’’।

6) इसके बाद मैंने चीते-जैसा एक और पशु देखा।

7) उसकी पीठ पर पक्षियों के चार डैने थे और उसके चार सिर थे। उसे राजाधिकार दिया गया। अंत में मैंने रात्रि के दृश्य में एक चैथा पशु देखा। वह विभीषण, डरावना और उत्यन्त बलवान् था। उसके दाँत लोहे के थे। वह चबाता और खाता जाता था और जो कुछ रह जाता, उसे पैरों तले रौंद देता था।

8) वह पहले के सभी पशुओं से भिन्न था और उसके दस सींग थे। मैं वे सींग देख ही रहा था कि उनके बीच में से एक और छोटा-सा सींग निकला और उसके लिए जगह बनाने के लिए पहले सींगों में से तीन उखाड़े गये। उस सींग की मनुय-जैसी आँखें थी और उसका एक डींग मारता हुआ मुँह भी था।

9) मैं देख ही रहा था कि सिंहासन रख दिये गये और एक वयोवृद्ध व्यक्ति बैठ गया। उसके वस्त्र हिम की तरह उज्जवल थे और उसके सिर के केश निर्मल ऊन की तरह।

10) उसका सिंहासन ज्वालाओं का समूह था और सिहंासन के पहिये धधकती अग्नि। उसके सामने से आग की धारा बह रही थी। सहस्रों उसकी सेवा कर रहे थे। लाखों उसके सामने खड़े थे। न्याय की कार्यवाही प्रारंभ हो रही थी। और पुस्तकें खोल दी गयीं।

11) मैंने देखा कि सींग के डींग मारने के कारण चैथा पशु मारा गया। उसकी लाश आग में डाली और जलायी गयी।

12) दूसरे पशुओं से भी उनके अधिकार छीन लिये गये, किन्तु उन्हें कुछ और समय तक जीवित ही छोड दिया गया।

13) तब मैंने रात्रि के दृश्य में देखा कि आकाश के बादलों पर मानवपुत्र-जैसा कोई आया। वह वयोवृद्ध के यहाँ पहुँचा और उसके सामने लाया गया।

14) उसे प्रभुत्व, सम्मान तथा राजत्व दिया गया। सभी देश, राष्ट्र और भिन्न-भिन्न भाषा-भाषी उसकी सेवा करेंगे। उसका प्रभुत्व अनन्त है। वह सदा ही बना रहेगा। उसके राज्य का कभी विनाश नहीं होगा।


📒 सुसमाचार : सन्त लूकस 21:29-33


29) ईसा ने उन्हें यह दृष्टान्त सुनाया, ‘‘अंजीर और दूसरे पेड़ों को देखो।

30) जब उन में अंकुर फूटने लगते हैं, तो तुम सहज ही जान जाते हो कि गर्मी आ रही है।

31) इसी तरह जब तुम इन बातों को होते देखोगे, तो यह जान लो कि ईश्वर का राज्य निकट है।

32) ’’मैं तुम से यह कहता हूँ, इस पीढ़ी के अन्त हो जाने से पूर्व ही ये सब बातें घटित हो जायेंगी।

33) आकाश और पृथ्वी टल जायें, तो टल जायें, परन्तु मेरे शब्द नहीं टल सकते।

📚 मनन-चिंतन

येसु आज हमें समय और ऋतुओं के चिन्ह, लौकिक परिवर्तनों की संभावना, और अपने वचन की शाश्वत स्थिरता के प्रति जागरूक होने के लिए आमंत्रित करते हैं।

चिन्ह अंत नहीं है, लेकिन उनका उपयोग किसी वस्तु या किसी व्यक्ति को इंगित करने के लिए किया जाता है, या हमें आने वाली किसी चीज की याद दिलाता है। अंजीर के पेड़ के दृष्टांत के माध्यम से येसु ऋतुओं के चक्र और प्रत्येक मौसम के साथ होने वाले परिवर्तनों का वर्णन करने का प्रयास कर रहे हैं। हम परिवर्तन और अस्थिरता की दुनिया में रहते हैं। विज्ञान के विकास और इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स के आगमन के कारण जीवन में हर पल उतार-चढ़ाव हो रहा है। हमारे जीवन में आने वाले परिवर्तन सकारात्मक या नकारात्मक हो सकते हैं। कभी-कभी बीमारी और आर्थिक संकट जैसे बदलाव हमारे बीच में डर पैदा कर सकते हैं। यह हमारे जीवन को कई बार कठिन, दर्दनाक और भ्रमित करने वाला बना देता है।

आज येसु हमें ईश्वर के उन चिन्ह से अवगत होने के लिए आमंत्रित करते हैं जो कई तरह से हमारे पास आते हैं। ईश्वर की अधिकांश अभिव्यक्तियाँ भव्य तरीकों से नहीं बल्कि सरल और विनम्र सामान्य चीजों और घटनाओं में प्रकट होती हैं। हमें उनके चिन्ह से परिचित होने के लिए बुलाया गया है, जिससे हम उससे चूक न जायें। ईश्वर के साथ मौन रूप में तथा प्रार्थना और चिंतन में समय बिताने से हमें इस संदर्भ में मदद मिलेगी।

परिवर्तन हमेशा चुनौतीपूर्ण होते हैं इसलिए हमें किसी ऐसी चीज पर टिके रहने की जरूरत है जो अपरिवर्तनीय है। येसु अपने शिष्यों से कहते हैं कि सारी सृष्टि टल जाएगी, परन्तु उनके वचन कभी नहीं टलेंगे। जिस दुनिया में हम रहते हैं वह एक दिन लुप्त हो जाएगी, लेकिन येसु के वचन सत्य और जीवन हैं। ये हमेशा के लिए मान्य रहेंगे क्योंकि वे जीवन के दूरदर्शिता का प्रतिनिधित्व करते हैं और उनमें कालनिरपेक्ष गुण हैं।

हम प्रार्थना करें कि पवित्र ग्रंथ के अपरिवर्तनीय वचन हमारे दिलों में शाश्वत स्थिरता प्रदान करें। यह वचन हमारी आध्यात्मिक यात्रा के लिए सांत्वना और मार्गदर्शन बनें।



📚 REFLECTION



Jesus invites us today to become aware of the signs of time and seasons, to the possibility of cosmic changes, and eternal stability of his word.

Signs are not the end but they are used to point out something or somebody, or remind us of something that is to come. Through the parable of fig tree Jesus is trying to describe the cycle of the seasons and the changes that occur with each season. We live in a world of change and instability. With the development of science and arrival of electronic gadgets the life is fluctuating every moment. Changes that come to our life may be positive or negative. Sometimes changes like illness and financial crisis may create fear among us. It makes our life difficult, painful and confusing at times.

Today Jesus invites us to become aware of God’s signs that come to us in many ways. Most of God‘s manifestations come not in spectacular ways but in the simple and humble ordinary things and events. We are called to become familiar with His signs, so that we don’t miss it. Spending time with Him in silence and in prayer and reflection would help us in this regard.

Changes are always challenging therefore we need to hold on to something that is unchanging. Jesus tells his disciples that all created things will pass away, but his words will never pass away. The world in which we live will one day disappear, but the words of Jesus are Truth and Life. It will be valid forever because they represent a vision of life and have timeless values.

We pray that unchanging words of the sacred scripture may give eternal stability in our hearts. Let these words be comfort and guide for our spiritual journey.


📚 मनन-चिंतन -2



सुसमाचार में प्रभु येसु यरूशलेम के विनाश और अपने दूसरे आगमन के विषय में रुक-रुक कर बातें करते हैं। 70 ईस्वी में रोमियों ने येरूसलम पर आक्रमण किया और पूरे शहर का विनाश किया। इस घटना से लगभग चालीस साल पहले ही, येसु इसके बारे में भविष्यवाणी करते हैं। येसु की ये बातें एक दिन जरूर सच होंगी। यही बात प्रभु के दूसरे आने के विषय में भी लागू है। ईश्वर का वचन जीवित और सक्रिय है। ईश्वर का वचन शाश्वत और शक्तिशाली है। कई दृष्टांतों के माध्यम से येसु अपने शिष्यों को अपने दूसरे आगमन के बारे में बताते हैं और अपने सभी लोगों को उस दिन के लिए तैयार रहने की चेतावनी भी देते हैं। जब हम केवल शुरुआत करते हैं तो अंतिम चीजों की याद क्यों दिलाई जाती है? क्योंकि, हमें अंत को मन में रखते हुए दौड़ शुरू करना होगा। हमें लक्ष्य को सामने रखते हुए दौड़ते रहना होगा। प्रभु येसु के शिष्यों को उस दिन का बेसब्री से इंतजार करना चाहिए। विदाई अभिवादन के पहले पवित्र बाइबल का अंतिम वचन प्रभु का निमंत्रण है - “प्रभु ईसा! आइए!” (प्रकाशना 22:20) 1थेसलनीकियों 4:18 में, संत पौलुस विश्वासियों को प्रभु के वचनों का सहारा ले कर एक दूसरे को प्रोत्साहित करने को कहते हैं। जैसा कि हम प्रभु के आगमन का इंतजार करते हैं, हमारे पास ईश्वर का वचन है कि हम उस पर मनन-चिंतन करें और उसके अनुसार कार्य करें। प्रभु का विश्वसनीय शब्द हमारा दैनिक भोजन है जो हमारी रोजमर्रा की गतिविधियों के लिए ताकत देता है।



📚 REFLECTION



In the Gospel Jesus speaks intermittently about the destruction of Jerusalem and his own second coming. In AD 70 Jerusalem fell to the Romans. About forty years ahead of the event, Jesus foretold about it. The words that Jesus spoke will definitely come true one day. So also the words he spoke about his own second coming. The Word of God is living and active. The Word of God is eternal and powerful. Through many parables Jesus taught about his second coming and warned his disciples to be prepared for that day. Why are reminded of the final things when we are only beginning? Because, we need to start running with the end in mind. We have to keep running with the end in focus. Christians should eagerly wait for that day. The last verse of the Bible, before the farewell greeting, is an invitation to the Lord – “Come, Lord Jesus!” (Rev 22:20) In 1Thess 4:18, St. Paul asks the faithful to encourage one another with the Word of God. As we await the coming of the Lord, we have the Word of God to reflect upon and to act upon. The reliable Word of God is our daily food which gives strength for our everyday activities.

 -Br. Biniush topno


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गुरुवार, 25 नवंबर, 2021

 

गुरुवार, 25 नवंबर, 2021

वर्ष का चौंत्तीसवाँ सामान्य सप्ताह

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⭐ पहला पाठ : दानिएल 6:12-28

12) कुछ लोगों ने दानिएल के यहाँ पहुँचने पर उसे अपने ईश्वर से प्रार्थना और अनुनय-विनय करते पाया।

13) वे राजा से मिलने गये और उसे राजकीय निषेधाज्ञा का स्मरण दिलाते हुए बोले, "राजा! क्या आपने यह निषेधाज्ञा नहीं निकाली कि तीस दिनों तक जो कोई आप को छोड़ कर किसी भी देवता अथवा मनुष्य से प्रार्थना करेगा, वह सिंहों के खड्ड में डाल दिया जायेगा?" राजा ने उत्तर दिया, "यह मेदियों और फारसियों के अपरिवर्तनीय कानून के अनुसार सुनिश्चित है।''

14) इस पर उन्होंने राजा से कहा, "दानिएल- यूदा के निर्वासितों में से एक- आपके द्वारा घोषित निषेधाज्ञा की परवाह नहीं करता। वह दिन में तीन बार अपने ईश्वर से प्रार्थना करता है।"

15) राजा को यह सुन कर बहुत दुःख हुआ। उसने दानिएल को बचाने को निश्चत किया और सूर्यास्त तक कोई रास्ता खोज निकालने का प्रयत्न किया।

16) किन्तु उन लोगों ने यह कहते हुए राजा से अनुरोध किया, "राजा! स्मरण रखिए कि मेदियों और फारसियों के कानून के अनुसार राजा द्वारा घोषित कोई भी निषेधाज्ञा अथवा आदेश अपरिवर्तनीय है"।।

17) इस पर राजा ने दानिएल को ले आने और सिंहों के खड्ड में डालने का आदेश दिया। उसने दानिएल से कहा, "तुम्हारा ईश्वर, जिसकी तुम निरन्तर सेवा करते हो, तुम्हारी रक्षा करे"।

18) एक पत्थर खड्ड के द्वार पर रखा गया और राजा ने उस पर अपनी अंगूठी और अपने सामन्तों की अंगूठी की मुहर लगायी, जिससे कोई भी दानिएल के पक्ष में हस्तक्षेप न कर सके।

19) इसके बाद राजा अपने महल चला गया; उसने उस रात को अनशन किया और अपनी उपपत्नियों को नहीं बुलाया। उसे नींद नहीं आयी और वह सबेरे,

20) पौ फटते ही उठा, और सिंहों के खड्ड की ओर जल्दी-जल्दी चल पड़ा।

21) खड्ड के निकट आ कर उसने दुःख भरी आवाज़ में दानिएल को पुकार कर कहा, "दानिएल! जीवन्त ईश्वर के सेवक! तुम जिस ईश्वर की निरन्तर सेवा करते हो, क्या वह तुम को सिंहों से बचा सका?"

22) दानिएल ने राजा को उत्तर दिया, "राजा! आप सदा जीते रहें!

23) मेरे ईश्वर ने अपना दूत भेज कर सिंहों के मुँह बन्द कर दिये। उन्होंने मेरी कोई हानि नहीं की, क्योंकि मैं ईश्वर की दृष्टि में निर्दोष था।

24) राजा! मैंने आपके विरुद्ध भी कोई अपराध नहीं किया।" राजा आनन्दित हो उठा और उसने दानिएल को खड्ड से बाहर निकालने का आदेश दिया। इस पर दानिएल को खड्ड से बाहर निकाला गया; उसके शरीर पर कोई घाव नहीं था क्योंकि उसने अपने ईश्वर पर भरोसा रखा था।

25) जिन लोगों ने दानिएल पर अभियोग लगाया था, राजा ने उन्हें बुला भेजा और उन को अपने पुत्रों तथा पत्नियों के साथ सिंहों के खड्ड में डाल देने का आदेश दिया। वे खड्ड के फर्श तक भी नहीं पहुँचे थे कि सिंहों न उन पर टूट कर उनकी सब हाड्डियाँ तोड़ डाली

26) इसके बाद राजा ने पृथ्वी भर के लोगों, राष्ट्रों और भाषा-भाशियों को लिखा,

27) "आप लोगों को शांति मिले! मेरी राजाज्ञा यह है कि मेरे राज्य क्षेत्र समस्त क्षेत्र के लोग दानिएल के ईश्वर पर श्रद्धा रखें और उससे डरेंः क्योंकि वह सदा बना रहने वाला जीवन्त ईश्वर है, उसका राज्य कभी नष्ट नहीं किया जायेगा और उसके प्रभुत्व का कभी अंत नहीं होगा।

28) वह रक्षा करता और बचाता है, वह स्वर्ग और पृथ्वी पर चिन्ह और चमत्कार दिखाता है, उसने दानिएल को सिंहों के पंजों से छुडाया है।"


⭐ सुसमाचार : लूकस 21:20-28


20) "जब तुम लोग देखोगे कि येरूसालेम सेनाओं से घिर रहा है, तो जान लो कि उसका सर्वनाश निकट है।

21) उस समय जो लोग यहूदिया में हों, वे पहाड़ों पर भाग जायें; जो येरूसालेम में हों, वे बाहर निकल जायें और जो देहात में हों, वे नगर में न जायें;

22) क्योंकि वे दण्ड के दिन होंगे, जब जो कुछ लिखा है, वह पूरा हो जायेगा।

23) उनके लिए शोक, जो उन दिनों गर्भवती या दूध पिलाती होंगी! क्योंकि देश में घोर संकट और इस प्रजा पर प्रकोप आ पड़ेगा।

24) लोग तलवार की धार से मृत्यु के घाट उतारे जायेंगे। उन को बन्दी बना कर सब राष्ट्रों में ले जाया जायेगा और येरूसालेम ग़ैर-यहूदी राष्ट्रों द्वारा तब तक रौंदा जायेगा, जब तक उन राष्ट्रों का समय पूरा न हो जाये।

25) "सूर्य, चन्द्रमा और तारों में चिन्ह प्रकट होंगे। समुद्र के गर्जन और बाढ़ से व्याकुल हो कर पृथ्वी के राष्ट्र व्यथित हो उठेंगे।

26) लोग विश्व पर आने वाले संकट की आशंका से आतंकित हो कर निष्प्राण हो जायेंगे, क्योंकि आकाश की शक्तियाँ विचलित हो जायेंगी।

27) तब लोग मानव पुत्र को अपार सामर्थ्य और महिमा के साथ बादल पर आते हुए देखेंगे।

28) "जब ये बातें होने लगेंगी, तो उठ कर खड़े हो जाओ और सिर ऊपर उठाओ, क्योंकि तुम्हारी मुक्ति निकट है।"


📚 मनन-चिंतन


आज का सुसमाचार येरूसालेम के विनाश और मनुष्य के पुत्र के आगमन की बात करता है।

येरूसालेम का विनाशः येसु लोगों को येरूसालेम के विनाश की प्रक्रिया समझाते हैं। 1. सेनाओं से घिरा होनाः येरूसालेम रोमियों द्वारा घिरा हुआ था और उन्हें पूरे शहर को घेरने में काफी समय लगा। एक बार जब शहर को घेर लिया गया तो उनके प्रावधानों को रोक दिया गया। 2. जेरूसलम से पलायनः खाद्य सामग्री की कमी के कारण एक आंदोलन/संचलन की आवश्यकता पड़ी। प्रावधानों के बिना लोगों का संघर्ष बढ़ता गया और उनके पास शहर से बाहर जाने के अलावा और कोई विकल्प नहीं था। यह आंदोलन/संचलन वास्तव में दुनिया भर में ईसाई धर्म के प्रसार के लिए एक आशीर्वाद था। 3. संघर्षः जिन लोगों ने शहर से बाहर जाने से इनकार कर दिया, उन्हें एक वास्तविक संघर्ष से गुजरना पड़ा, खासकर गर्भवती महिलाओं और शिशुओं वाली महिलाओं को। कई मारे गए और अन्य को बंदी बना लिया गया। 4. अन्यजातियों/अन्यराष्ट्रों का समयः बाइबल बताती है कि संघर्ष तब तक जारी रहेगा जब तक अन्यजातियों का समय पूरा नहीं हो जाता। वह समय कब आएगा यह स्पष्ट नहीं है।

मनुष्य के पुत्र का आगमनः पाठ का दूसरा भाग येसु के आने की पूर्व सावधानी, उनके प्रकट होने का स्थान और उनके आने के उद्देश्य की बात करता है। आकाशीय पिंड और पार्थिव पिंड में अशांति को मनुष्य के पुत्र के आने से पूर्व एक चेतावनी के रूप में बताया गया है। कहा जाता है कि वह बादलों में शक्ति और महिमा के साथ प्रकट होगा। दानिएल 7ः13 में, हम पढ़ते हैं, ‘‘मैंने देखा कि आकाश के बादलों पर मानवपुत्र-जैसा कोई आया।’’ उसके आने का उद्देश्य मानवता की मुक्ति के रूप में घोषित किया गया है। ईश्वर के साथ प्रेम और आत्मीयता का आनंद लेने के लिए, उनके स्वतंत्रता, शांति और आनंद का अनुभव करने के लिए पाठ अंतिम मुक्ति की आशा के साथ समाप्त होता है

हमारे जीवन में जिन संघर्षों से हम गुजरते हैं, वे हमारे लिए ईश्वर की ओर लौटने के लिए एक सबक हों और हम मुक्ति के उपहार के लिए आभारी रहें, जो येसु हमारे लिए लेकर आयें हैं।



📚 REFLECTION

Gospel of today speaks of the destruction of Jerusalem and the coming of the son of man.

Destruction of Jerusalem: Jesus explains to the people the process of destruction of Jerusalem. 1. Surrounded by armies: Jerusalem was surrounded by the Romans and it took long time for them to encircle the entire city. Once the city was surrounded their provisions were stopped. 2. Escape from Jerusalem: A movement was necessitated due to lack of food materials. Without the provisions the struggle of people increased and they had no other option than to move out of the city. This movement was in fact a blessing for the spread of Christianity around the world. 3. The struggle: For those who refused to move out of the city had to undergo a real struggle, especially the pregnant women and the women with infants. Many were killed and others were taken as captives. 4. Time of Gentiles: The bible says that the struggles will continue until the times of gentiles are fulfilled. It is not clear when that time would arrive.

Coming of the Son of Man: The second part of the reading speaks of prior caution of Jesus’ coming, place of his appearance and purpose of his coming. Disturbance in the heavenly and earthly bodies are stated as a warning prior to the coming of Son of Man. He is said to appear in the clouds with power and glory. In Dan. 7:13 we read, “I saw one like human being coming with the clouds of heaven” The purpose of His coming is declared as redemption of humanity. The reading ends with a hope of final liberation.

May the process of struggles we undergo in our life be a lesson for us to return to god and Let us be grateful for the gift of redemption that Jesus has brought for us.


📚 मनन-चिंतन - 2

आज के सुसमाचार में, प्रभु अपने दूसरे आगमन के बारे कहते हैं, “जब ये बातें होने लगेंगी, तो उठ कर खड़े हो जाओ और सिर ऊपर उठाओ, क्योंकि तुम्हारी मुक्ति निकट है"। संत पौलुस कहते हैं, “हम जानते हैं कि समस्त सृष्टि अब तक मानो प्रसव-पीड़ा में कराहती रही है और सृष्टि ही नहीं, हम भी भीतर-ही-भीतर कराहते हैं। हमें तो पवित्र आत्मा के पहले कृपा-दान मिल चुके हैं, लेकिन इस ईश्वर की सन्तान बनने की और अपने शरीर की मुक्ति की राह देख रहे हैं।” (रोमियों 8:22-23) कलकत्ता की संत तेरेसा अपनी मौत को हमेशा “अपना घर जाने” से तुलना करती थीं। योहन 14 में प्रभु येसु ने अपने शिष्यों से कहा कि वे उनके लिए जगह तैयार करने जा रहे हैं और जगह तैयार होने पर वे वापस उन्हें लेने आयेंगे ख्रीस्तीय विश्वास के अनुसार, मृत्यु जीवन का अंत नहीं है बल्कि एक नए जीवन की शुरुआत है। एक ख्रीस्तीय विश्वासी आशावादी और अंतहीन आशावाद का व्यक्ति है क्योंकि वह एक प्रेममय और दयालु ईश्वर में विश्वास करता है।



📚 REFLECTION


In today’s Gospel, when Jesus speaks about his second coming and says “when these things begin to take place, stand up and raise your heads, because your redemption is drawing near”. St. Paul says, “We know that the whole creation has been groaning in travail together until now; and not only the creation, but we ourselves, who have the first fruits of the Spirit, groan inwardly as we wait for adoption as sons, the redemption of our bodies.” (Rom 8:22-23) St. Theresa of Calcutta used to refer to her death as “going home”. In Jn 14 Jesus told his disciples that he was going to prepare a place for them and once it was ready he would come and take them. In the Christian understanding, death is not the end but beginning of a new life. A Christian is a person of undying hope and endless optimism because he believes in a loving and merciful God.


 -Br. Biniush topno


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Praise the Lord!