सोमवार, 23 अगस्त, 2021
वर्ष का इक्कीसवाँ सामान्य सप्ताह
पहला पाठ : 1 थेसलनीकियों 1:1-5, 8b-10
1) पिता-परमेश्वर और प्रभु ईसा मसीह पर आधारित थेसलनीकियों की कलीसिया के नाम पौलुस, सिल्वानुस और तिमथी का पत्र। आप लोगों को अनुग्रह तथा शान्ति!
2 (2-3) जब-जब हम आप लोगों को अपनी प्रार्थनाओं में याद करते हैं, तो हम हमेशा आप सब के कारण ईश्वर को धन्यवाद देते है। आपका सक्रिय विश्वास, प्रेम से प्रेरित आपका परिश्रम तथा हमारे प्रभु ईसा मसीह पर आपका अटल भरोसा- यह सब हम अपने ईश्वर और पिता के सामने निरन्तर स्मरण करते हैं।
4) भाइयो! ईश्वर आप को प्यार करता है। हम जानते हैं कि ईश्वर ने आप को चुना है,
5) क्योंकि हमने निरे शब्दों द्वारा नहीं, बल्कि सामर्थ्य, पवित्र आत्मा तथा दृढ़ विश्वास के साथ आप लोगों के बीच सुसमाचार का प्रचार किया। आप लोग जानते हैं कि आपके कल्याण के लिए हमारा आचरण आपके यहाँ कैसा था।
8) हमें कुछ नहीं कहना है।
9) लोग स्वयं हमें बताते है। कि आपके यहाँ हमारा कैसा स्वागत हुआ और आप किस प्रकार देवमूर्तियाँ छोड़ कर ईश्वर की ओर अभिमुख हुए,
10) जिससे आप सच्चे तथा जीवन्त ईश्वर के सेवक बनें और उसके पुत्र ईसा की प्रतीक्षा करें, जिन्हें ईश्वर ने मृतकों में से जिलाया। यही ईसा स्वर्ग से उतरेंगे और हमें आने वाले प्रकोप से बचायेंगे।
सुसमाचार : सन्त मत्ती 23:13-22
13) ’’ढोंगी शास्त्रियों और फरीसियों! धिक्कार तुम लोगों को! तुम मनुष्यों के लिए स्वर्ग का राज्य बन्द कर देते हो।
14) तुम स्वय प्रवेश नहीं करते और जो प्रवेश करना चाहते हैं, उन्हें रोक देते हो।
15) ’’ढोंगी शास्त्रियों और फरीसियों! धिक्कार तुम लोगों को! एक चेला बनाने के लिए तुम जल और थल लाँघ जाते हो और जब वह चेला बन जाता है, तो उसे अपने से दुगुना नारकी बना देते हो।
16) ’’अन्धे नेताओं! धिक्कार तुम लोगों को! तुम कहते हो- यदि कोई मन्दिर की शपथ खाता है, तो इसका कोई महत्व नही; परन्तु यदि कोई मन्दिर के सोने की शपथ खाता है, तो वह बँध जाता है।
17) मूर्खों और अन्धों! कौन बडा है- सोना अथवा मन्दिर, जिस से वह सोना पवित्र हो जाता है?
18) तुम यह भी कहते हो- यदि कोई वेदी की शपथ खाता है, तो इसका कोई महत्व नही; परन्तु यदि कोई वेदी पर रखे हुए दान की शपथ खाता है, तो वह बँध जाता है?
19) अन्धा ! कौन बडा है- दान अथवा वेदी, जिस से वह दान पवित्र हो जाता है?
20) इसलिय जो वेदी की शपथ खाता है, वह उसकी और उस पर रखी हुई चीजों की शपथ खाता है।
21) जो मन्दिर की शपथ खता है, वह उसकी और उस में निवास करने वाले की शपथ खाता है।
22) और जो स्वर्ग की शपथ खाता है, वह ईश्वर के सिंहासन और उस पर बैठने वाले की शपत खाता है।
📚 मनन-चिंतन
आज के सुसमाचार में यीशु ने फरीसियों की निंदा की क्योंकि उन्होंने लोगों के के लिए स्वर्ग राज्य को बंद कर दिया दूसरे शब्दों में, वे लोगों को स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने से रोकते थे, सुसमाचार से हमें पता चलता है कि येसु उन लोगों की आलोचना कर रहे थे जो उन पर विश्वास करने वाले लोगों के लिए एक बाधा थे। जब माता पिता अपने बच्चों को येसु के पास उनकी आशीष पाने के लिए ला रहे थे और शिष्यों ने उन्हें रोकना चाहा तो येसु ने उन्हें भी टोका था। लोगों के लिए स्वर्ग के राज्य को बंद करने के बजाय, येसु चाहते कि हम स्वर्ग के राज्य को एक दूसरे के लिए खोल दें. हमें एक दूसरे को प्रभु के पास लाना है, प्रभु को एक दूसरे के सामने प्रकट करना है,और ऐसा करते हुए, स्वर्ग के राज्य की ओर अपनी यात्रा में एक दूसरे का समर्थन व सहयोग करना है।
सुसमाचार में ऐसे बहुत से लोग हैं जो दूसरों को येसु के पास लाए और वे आज हमारे लिए एक प्रेरणा के स्रोत हैं।योहन बपतिस्ता के जीवन को ही ले ले लीजिये उनके तो जीवन का मकसद ही लोगों को येसु के पास ले जाना व स्वर्ग राज्य के द्वार दूसरों के लिए खोलना था। हमारी इस जीवन यात्रा में हमें अकेले ही उस पार नहीं जाना है। हमारे बपतिस्मा की बुलाहट यह है कि हम हमारे साथ अनेकों को स्वर्ग राज्य में जाने में मदद करें।
📚 REFLECTION
In today's gospel reading Jesus condemns the Pharisees because they shut up the kingdom of heaven in people's faces. In other words, they hinder people from entering the kingdom of heaven, possibly by trying to keep people from following Jesus who came to proclaim the nearness of the kingdom of heaven. The gospels suggest that Jesus was critical of those who were an obstacle to people coming to believe in him. He was critical of his own disciples for trying to prevent children drawing near to him, in spite of the wishes of the children's parents for Jesus to bless their children. Rather than shutting up the kingdom of heaven in people's faces, Jesus wants us to open up the kingdom of heaven to each other. We are to bring each other to the Lord, to reveal the Lord to each other, and, in so doing, to support one another on our journey towards the kingdom of heaven.
There are many people in the gospels who brought others to Jesus and who can be an inspiration to us. We only have to think of John the Baptist, whose life mission was to lead people to Jesus, to open up the kingdom of heaven to others. We need the support of each other's faith, each other's witness, as we journey on our pilgrim way through life.
✍ -Br Biniush Topno
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