गुरुवार, 29 जुलाई, 2021
सत्रहवाँ सामान्य सप्ताह
पहला पाठ : 1 योहन 4:7-16
7) प्रिय भाइयो! हम एक दूसरे को प्यार करें, क्योंकि प्रेम ईश्वर से उत्पन्न होता है।
8) जौ प्यार करता है, वह ईश्वर की सन्तान है और ईश्वर को जानता है। जो प्यार नहीं करता, वह ईश्वर को नहीं जानता; क्येोंकि ईश्वर प्रेम है।
9) ईश्वर हम को प्यार करता है। यह इस से प्रकट हुआ है कि ईश्वर ने अपने एकलौते पुत्र को संसार में भेजा, जिससे हम उसके द्वारा जीवन प्राप्त करें।
10) ईश्वर के प्रेम की पहचान इस में है कि पहले हमने ईश्वर को नहीं, बल्कि ईश्वर ने हम को प्यार किया और हमारे पापों के प्रायश्चित के लिए अपने पुत्र को भेजा।
11) प्रयि भाइयो! यदि ईश्वर ने हम को इतना प्यार किया, तो हम को भी एक दूसरे को प्यार करना चाहिए।
12) ईश्वर को किसी ने कभी नहीं देखा। यदि हम एक दूसरे को प्यार करते हैं, तो ईश्वर हम में निवास करता है और ईश्वर के प्रति हमारा प्रेम पूर्णता प्राप्त करता है।
13) यदि वह इस प्रकार हमें अपना आत्मा प्रदान करता है, तो हम जान जाते हैं कि हम उस में और वह हम में निवास करता है।
14) पिता ने अपने पुत्र को संसार के मुक्तिदाता के रूप में भेजा। हमने यह देखा है और हम इसका साक्ष्य देते हैं।
15) जो यह स्वीकार करता है कि ईसा ईश्वर के पुत्र हैं, ईश्वर उस में निवास करता है और वह ईश्वर में।
16) इस प्रकार हम अपने प्रति ईश्वर का प्रेम जान गये और इस में विश्वास करते हैं। ईश्वर प्रेम है और जो प्रेम में दृढ़ रहता है, वह ईश्वर में निवास करता है और ईश्वर उस में।
सुसमाचार योहन 11:19-27
19) इसलिये भाई की मृत्यु पर संवेदना प्रकट करने के लिये बहुत से यहूदी मरथा और मरियम से मिलने आये थे।
20) ज्यों ही मरथा ने यह सुना कि ईसा आ रहे हैं, वह उन से मिलने गयी। मरियम घर में ही बैठी रहीं।
21) मरथा ने ईसा से कहा, “प्रभु! यदि आप यहाँ होते, तो मेरा भाई नही मरता
22) और मैं जानती हूँ कि आप अब भी ईश्वर से जो माँगेंगे, ईश्वर आप को वही प्रदान करेगा।“
23) ईसा ने उसी से कहा “तुम्हारा भाई जी उठेगा“।
24) मरथा ने उत्तर दिया, “मैं जानती हूँ कि वह अंतिम दिन के पुनरुथान के समय जी उठेगा“।
25) ईसा ने कहा, "पुनरुथान और जीवन में हूँ। जो मुझ में विश्वास करता है वह मरने पर भी जीवित रहेगा
26) और जो मुझ में विश्वास करते हुये जीता है वह कभी नहीं मरेगा। क्या तुम इस बात पर विश्वास करती हो?"
27) उसने उत्तर दिया, "हाँ प्रभु! मैं दृढ़ विश्वास करती हूँ कि आप वह मसीह, ईश्वर के पुत्र हैं, जो संसार में आने वाले थे।"
अथवा लूकस 10:38-42
38) ईसा यात्रा करते-करते एक गाँव आये और मरथा नामक महिला ने अपने यहाँ उनका स्वागत किया।
39) उसके मरियम नामक एक बहन थी, जो प्रभु के चरणों में बैठ कर उनकी शिक्षा सुनती रही।
40) परन्तु मरथा सेवा-सत्कार के अनेक कार्यों में व्यस्त थी। उसने पास आ कर कहा, ’’प्रभु! क्या आप यह ठीक समझते हैं कि मेरी बहन ने सेवा-सत्कार का पूरा भार मुझ पर ही छोड़ दिया है? उस से कहिए कि वह मेरी सहायता करे।’’
41) प्रभु ने उसे उत्तर दिया, ’’मरथा! मरथा! तुम बहुत-सी बातों के विषय में चिन्तित और व्यस्त हो;
42) फिर भी एक ही बात आवश्यक है। मरियम ने सब से उत्तम भाग चुन लिया है; वह उस से नहीं लिया जायेगा।’’
📚 मनन-चिंतन
आज माता कलीसिया सन्त मारथा का स्मृति दिवस मनाती है. हम जानते हैं कि सन्त मारथा मरियम और लज़ारस की बहन थी. वे येरुसालेम से कुछ ही दूर बेथानी नामक गॉंव में रहते थे. आज का सुसमाचार उस समय का दृश्य है जब मारथा और मरियम का भाई लाजरुस मर गया था, और प्रभु येसु मारथा और मरियम से मिलने उनके गॉंव आते हैं. मारथा रोती हुई उनसे मिलने के लिए बाहर जाती है, जबकि मरियम घर में ही बैठी रहती है. सन्त मारथा हमारे लिए इसलिए महत्वपूर्ण हैं क्योंकि उनके आंसुओं को देखकर प्रभु के मुख से एक महान शिक्षा हमें मिली. प्रभु येसु मारथा से कहते हैं, “पुनरुत्थान और जीवन मैं हूँ. जो मुझमें विश्वास करता है वह मरने पर भी जीवित रहेगा और जो मुझमें विश्वास करते हुए जीता है, वह कभी नहीं मरेगा.” प्रभु येसु अनन्त जीवन पाने का मन्त्र हमें देते हैं.
प्रभु येसु जीवन और पुनरुत्थान के बारे में दो चीज़ें समझाते हैं - प्रभु येसु में विश्वास करना और विश्वास करते हुए जीना. यह दो तरह के लोगों को इंगित करता है - एक वे जो प्रभु येसु में विश्वास करते हैं, लेकिन उनकी भक्ति अधिक गहरी नहीं है, लेकिन फिर भी मृत्यु के बाद प्रभु येसु उन्हें अनन्त जीवन देने का वादा करते हैं. और दूसरे वे लोग हैं, जिनमें प्रभु येसु के प्रति गहरी भक्ति है, इतनी गहरी कि उनके जीवन का हर पहलु प्रभु येसु में विश्वास के अनुसार है. उनका व्यवहार, उबकी बात-चीत, उनका स्वाभाव सब कुछ में प्रभु येसु और उनकी शिक्षाओं की झलक दिखती है. ऐसे लोग अमर हैं, वे मरने पर भी जीवित रहते हैं. ऐसे लोगों को हम सन्त कहते हैं. वे मरने के बाद भी हमारे बीच में जिंदा हैं. हमारे जीवन का उद्देश्य भी मरने के बाद भी सदा जीवित रहने में हो. आमेन.
📚 REFLECTION
Today we celebrate the memoria of St. Martha. St. Martha was the sister of Lazarus and Mary. They lived in a village called Bethany, little away from the Holy City Jerusalem. Today’s gospel shows the situation when Lazarus, the brother of Mary and Martha had died and Jesus comes their village to console Mary and Martha. Martha comes out to Jesus, crying while Mary remained in the house. St. Martha is important for us because it is through her pleading that Jesus utters very important words about christian faith. Jesus tells Martha, “I am the resurrection and the life. Those who believe in me, even though, they die, will live, and everyone who lives and believes in me will never die.” Jesus gives us the formula to enter into the eternal life.
Jesus explains two things about life and the resurrection – to believe in Jesus and to live a life believing in Jesus. This indicates two kinds of people – those who believe in Jesus, but their faith in Jesus is not so deep, but still Jesus promises eternal life to them after death. Second kind of people are the ones who have deeper faith in Jesus, every aspect of their life is governed by their faith in Jesus. Their behaviour, their talking, their nature, every aspect of their life expresses the teachings of Christ. Such people never die, even if they die, they still live forever. These are called the saints, they are very much alive even if they have physically died centuries ago. Our ultimate aim of life also should be to live forever, even after death. Amen.
✍ Br. Biniush Topno
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