सोमवार, 31 मई, 2021
एलिजबेथ से कुवारी मरियम की भेन्ट - पर्व
पहला पाठ : सफ़न्याह का ग्रन्थ 3:14-18
14) सियोन की पुत्री! आनन्द का गीत गा। इस्राएल! जयकार करो! येरुसालेम की पुत्री! सारे हृदय से आनन्द मना।
15) प्रभु ने तेरा दण्डादेश रद्द किया और तेरे शत्रुओं को भगा दिया है। प्रभु तेरे बीच इस्राएल का राजा है।
16) विपत्ति का डर तुझ से दूर हो गया है। उस दिन येरुसालेम से कहा जायेगा-’’सियोन! नहीं डरना, हिम्मत नहीं हारना। तेरा प्रभु-ईश्वर तेरे बीच है।
17) वह विजयी योद्धा है। वह तेरे कारण आनन्द मनायेगा, वह अपने प्रेम से तुझे नवजीवन प्रदान करेगा,
18) वह उत्सव के दिन की तरह तेरे कारण आनन्दविभोर हो जायेगा।’’ मैं तेरी विपत्ति को दूर करूँगा, मैं तेरा कलंक मिटा दूँगा।
अथवा - पहला पाठ : रोमियों 12:9-16
9) आप लोगों का प्रेम निष्कपट हो। आप बुराई से घृणा तथा भलाई से प्र्रेम करें।
10) आप सच्चे भाइयों की तरह एक दूसरे को सारे हृदय से प्यार करें। हर एक दूसरों को अपने से श्रेष्ठ माने।
11) आप लोग अथक परिश्रम तथा आध्यात्मिक उत्साह से प्रभु की सेवा करें।
12) आशा आप को आनन्दित बनाये रखे। आप संकट में धैर्य रखें तथा प्रार्थना में लगे रहें,
13) सन्तों की आवश्यकताओं के लिए चन्दा दिया करें और अतिथियों की सेवा करें।
14) अपने अत्याचारियों के लिए आशीर्वाद माँगें- हाँ, आशीर्वाद, न कि अभिशाप!
15) आनन्द मनाने वालों के साथ आनन्द मनायें, रोने वालों के साथ रोयें।
16) आपस में मेल-मिलाप का भाव बनाये रखें। घमण्डी न बनें, बल्कि दीन-दुःखियों से मिलते-जुलते रहें। अपने आप को बुद्धिमान् न समझें।
सुसमाचार : सन्त लूकस का सुसमाचार 1:39-56
39) उन दिनों मरियम पहाड़ी प्रदेश में यूदा के एक नगर के लिए शीघ्रता से चल पड़ी।
40) उसने ज़करियस के घर में प्रवेश कर एलीज़बेथ का अभिवादन किया।
41) ज्यों ही एलीज़बेथ ने मरियम का अभिवादन सुना, बच्चा उसके गर्भ में उछल पड़ा और एलीज़बेथ पवित्र आत्मा से परिपूर्ण हो गयी।
42) वह ऊँचे स्वर से बोली उठी, ’’आप नारियों में धन्य हैं और धन्य है आपके गर्भ का फल!
43) मुझे यह सौभाग्य कैसे प्राप्त हुआ कि मेरे प्रभु की माता मेरे पास आयीं?
44) क्योंकि देखिए, ज्यों ही आपका प्रणाम मेरे कानों में पड़ा, बच्चा मेरे गर्भ में आनन्द के मारे उछल पड़ा।
45) और धन्य हैं आप, जिन्होंने यह विश्वास किया कि प्रभु ने आप से जो कहा, वह पूरा हो जायेगा!’’
46) तब मरियम बोल उठी, ’’मेरी आत्मा प्रभु का गुणगान करती है,
47) मेरा मन अपने मुक्तिदाता ईश्वर में आनन्द मनाता है;
48) क्योंकि उसने अपनी दीन दासी पर कृपादृष्टि की है। अब से सब पीढि़याँ मुझे धन्य कहेंगी;
49) क्योंकि सर्वशक्तिमान् ने मेरे लिए महान् कार्य किये हैं। पवित्र है उसका नाम!
50) उसकी कृपा उसके श्रद्धालु भक्तों पर पीढ़ी-दर-पीढ़ी बनी रहती है।
51) उसने अपना बाहुबल प्रदर्शित किया है, उसने घमण्डियों को तितर-बितर कर दिया है।
52) उसने शक्तिशालियों को उनके आसनों से गिरा दिया और दीनों को महान् बना दिया है।
53) उसने दरिंद्रों को सम्पन्न किया और धनियों को ख़ाली हाथ लौटा दिया है।
54) इब्राहीम और उनके वंश के प्रति अपनी चिरस्थायी दया को स्मरण कर,
55) उसने हमारे पूर्वजों के प्रति अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार अपने दास इस्राएल की सुध ली है।’’
56) लगभग तीन महीने एलीज़बेथ के साथ रह कर मरियम अपने घर लौट गयी।
📚 मनन-चिंतन
एलिजबेथ से कुवारी मरियम की भेंट की घटना को आज सम्पूर्ण कलीसिया एक पर्व के रूप में मना रहीं है। यह मात्र दो व्यक्तियों का मिलन नहीं परंतु इसमें कई सारी महत्वपूर्ण चीज़े जुड़ी हुई है।
मरियम और एलिजबेथ यू तो कई बार मिली होंगी परंतु यह मिलन बाकि सभी मिलन से अलग और विशेष थी क्योंकि यह मिलन दोनो को एक ईश्वरीय अनुभव के बाद हुई थी तथा इस मिलन में केवल मरियम और एलिजबेथ ही नहीं परंतु येसु और योहन भी थे जो मरियम और एलिजबेथ के गर्भ में थे।
एलिजबेथ से कुवारी मरियम की भेंट पर एलिजबेथ को एक अनोखा अनुभव हुआ जहॉं पर मरियम का अभिवादन सुनकर बच्चा एलिजबेथ के गर्भ में आनंद के मारे उछल पड़ा और वह पवित्र आत्मा से परिपूर्ण हो गयी। जिसके बाद उसे पता चला कि मरियम अब एक साधारण स्त्री नहीं परंतु वह प्रभु की माता है। यह पूरी घटना पूरे वातावरण को ईश्वरीय आनंद और ईश्वरीय अनुभव से भर देती है इन्हीं सभी के कारण यह पर्व कलीसिया के लिए एक महत्वपूर्ण पर्व है। मरियम पवित्र आत्मा से गर्भवती होने के बाद एलिजबेथ के पास जाती है और उन्हें येसु का एहसास तथा पवित्र आत्मा की प्राप्ति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
यह पर्व हमें ईश्वरीयता से परिपूर्ण रहने के लिए प्रेरित करता है विशेष करके पवित्र आत्मा से परिपूर्ण रहने के लिए जिससे जिस किसी से भी हम मिले उन्हे येसु का अनुभव हो तथा पवित्र आत्मा से परिपूर्ण हो। आईये आज के दिन हम यहीं प्रार्थना करें कि हम हमेंशा पवित्र आत्मा से परिपूर्ण रहें तथा येसु को दूसरों को दे सकें। आमेन!
📚 REFLECTION
The event of Virgin Mary visiting Eilzabeth is being celebrated today as feast by the Universal Church. It is not merely the meeting of two persons but many important things are connected to this event.
Mary and Elizebeth might have met many times earlier but this visit or meeting was different and special from all that earlier meetings because this meeting happened after the divine encounter by both of them and in this meeting not only Mary and Elizabeth were there but also Jesus and John who were in the womb of Mary and Elizabeth.
Elizabeth had a unique experience in the visit of Mary where after hearing the greeting of Mary, the child leaped in her womb and she was filled with the Holy Spirit. After which she realized that Mary is now no more a simple woman but she is the mother of God. This whole event fills the whole atmosphere with divine joy and divine experience and because of all these; this feast is an important feast for the Catholic Church. After conceiving Jesus by the power of the Holy Spirit Mary goes to visit Elizabeth and gives her the presence of Jesus and plays an important role in receiving the Holy Spirit.
This feast inspire us to always remain filled with the godliness specially filled with the Holy Spirit so that whom so ever we may meet they may experience Jesus and be filled with the Holy Spirit. Come let’s pray today that we may always be filled with the Holy Spirit and can give Jesus to others. Amen!
✍ -Br Biniush Topno
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