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शुक्रवार, 28 मई, 2021 वर्ष का आठवाँ सामान्य सप्ताह

 

शुक्रवार, 28 मई, 2021

वर्ष का आठवाँ सामान्य सप्ताह

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पहला पाठ : प्रवक्ता ग्रन्थ 44:1,9-13



1) हम पीढ़ियों के क्रमानुसार अपने लब्ध प्रतिष्ठ पूर्वजों का गुणगान करें।

9) कुछ लोगों की स्मृति शेष नहीं रही। वे इस प्रकार लुप्त हो गये हैं, मानो कभी थे ही नहीं। वे इस प्रकार चले गये हैं, मानो उनका कभी जन्म नहीं हुआ और उनकी सन्तति की भी यही दशा है।

10) जिन लोगों के उपकार नहीं भुलाये गये हैं, उनके नाम यहाँ दिये जायेंगे।

11) उन्होनें जो सम्पत्ति छोड़ी है, वह उनके वंशजों में निहित है।

12) उनके वंशज आज्ञाओें का पालन करते हैं

13) और उनके कारण उनकी सन्तति भी। उनका वंश सदा बना रहेगा और उनकी कीर्ति कभी नहीं मिटेगी।



सुसमाचार : मारकुस 11:11-26



11) ईसा ने येरूसालेम पहुँच कर मन्दिर में प्रवेश किया। वहाँ सब कुछ अच्छी तरह देख कर वह अपने शिष्यों के साथ बेथानिया चले गये, क्योंकि सन्ध्या हो चली थी।

12) दूसरे दिन जब वे बेथानिया से आ रहे थे, तो ईसा को भूख लगी।

13) वे कुछ दूरी पर एक पत्तेदार अंजीर का पेड़ देख कर उसके पास गये कि शायद उस पर कुछ फल मिलें; किन्तु पास आने पर उन्होंने पत्तों के सिवा और कुछ नहीं पाया, क्योंकि वह अंजीर का मौसम नहीं था।

14) ईसा ने पेड़ से कहा, "फिर कभी कोई तेरे फल न खाये"। उनके शिष्यों ने उन्हें यह कहते सुना।

15) वे येरूसालेम पहुँचे। मन्दिर में प्रवेश कर ईसा वहाँ से बेचने और ख़रीदने वालों को बाहर निकालने लगे। उन्होंने सराफ़ों की मेज़ें और कबूतर बेचने वालों की चैकियाँ उलट दीं

16) और वे किसी को भी घड़ा लिये मन्दिर से हो कर आने-जाने नहीं देते थे।

17) उन्होंने, लोगों को शिक्षा देते हुए कहा, "क्या यह नहीं लिखा है- मेरा घर सब राष्ट्रों के लिए प्रार्थना का घर कहलायेगा; परन्तु तुम लोगों ने उसे लुटेरों का अड्डा बनाया है"।

18) महायाजकों तथा शास्त्रियों को इसका पता चला और वे ईसा के सर्वनाश का उपाय ढूँढ़ते रहे। वे उन से डरते थे, क्योंकि लोग मन्त्रमुग्ध हो कर उनकी शिक्षा सुनते थे।

19) सन्ध्या हो जाने पर वे शहर के बाहर चले जाते थे।

20) प्रातः जब वे उधर से आ रहे थे, तो शिष्यों ने देखा कि अंजीर का वह पेड़ जड़ से सूख गया है।

21) पेत्रुस को वह बात याद आयी और उसने कहा, "गुरुवर! देखिए, अंजीर का वह पेड़, जिसे आपने शाप दिया था, सूख गया है"।

22) ईसा ने उन्हें उत्तर दिया, "ईश्वर में विश्वास करो।

23) मैं तुम लोगों से यह कहता हूँ - यदि कोई इस पहाड़ से यह कहे, ’उठ, समुद्र में गिर जा’ , और मन में सन्देह न करे, बल्कि यह विश्वास करे कि मैं जो कह रहा हूँ, वह पूरा होगा, तो उसके लिए वैसा ही हो जायेगा।

24) इसलिए मैं तुम से कहता हूँ - तुम जो कुछ प्रार्थना में माँगते हो, विश्वास करो कि वह तुम्हें मिल गया है और वह तुम्हें दिया जायेगा।

25) "जब तुम प्रार्थना के लिए खड़े हो और तुम्हें किसी से कोई शिकायत हो, तो क्षमा कर दो,

26) जिससे तुम्हारा स्वर्गिक पिता भी तुम्हारे अपराध क्षमा कर दे।"


📚 मनन-चिंतन


आज के सुसमाचार को जब हम ध्यान से समझेंगे तो हमे पता चलेगा कि आज के सुसमाचार के अंश में तीन भाग हैः पहला- अंजीर पेड़ और येसु के बीच संवाद, दूसरा- येरूसालेम मंदिर में येसु द्वारा बेचने और खरीददारों को बाहर निकालना और तीसरा- विश्वास के विषय में शिक्षा।

पहले घटना में प्रभु येसु अंजीर के पेड़ से फल न मिलने के कारण कहते है, ’फिर कभी कोई तेरे फल न खायें’। प्रभु फल की आशा के साथ उस अंजीर के पेड़ के पास गये जो पत्तेदार था यह सोच कर कि जिसमें पत्ते लगें है उसमें फल भी जरूर होगा, अक्सर अंजीर के पेड़ मंे पतझड़ के बाद जब पत्ते आ जाते है तब उसमें फल के अंकुर भी आ जाते है। जब येसु को वह नही मिला तो वह नाखुश हो जाते है। प्रभु हममें भी न केवल पत्ते परंतु फल भी देखना चाहते हैं। वह चाहते है कि हम न केवल बातें करें परंतु अपने जीवन में फल भी उत्पन्न करें।

दूसरी घटना में प्रभु येसु येरुसालेम मंदिर से बेचने और खरीददारों को बहार निकाल देतें है। प्रभु का मंदिर एक पवित्र जगह है जहॉं पर आराधना, प्रार्थना तथा बलि चढ़ायी जाती है। ऐसे पवित्र स्थान को कारोबार के लिए इस्तेमाल करना वहॉं पर हो रहें पवित्रता के कार्यो की अवहेलना है। हमें हर हालत में मंदिर की गरिमा और पवित्रता को बनाये रखना चाहिए।

तीसरी घटना में प्रभु येसु विश्वास का महत्व शिष्यों को समझाते है और कहते है, ‘तुम जो कुछ प्रार्थना में मॉंगते हो, विश्वास करों कि वह तुम्हें मिल गया है और वह तुम्हें दिया जायेगा’। हमारी प्रार्थनाआंे में विश्वास का होना बहुत जरूरी है।

आईये हम प्रार्थना करें कि हम अपने जीवन में फल उत्पन्न करें, गिरजाघरों और अपने शरीर रूपी मंदिर को पवित्र बनाये रखें तथा हमेंशा विश्वास के साथ प्रार्थना करें। आमेन!



📚 REFLECTION



When we will understand today’s gospel carefully then we will know that today’s gospel passage has got three parts: First- The conversation between fig tree and Jesus, Second- Jesus driving out sellers and buyers in the Jerusalem Temple and Third- Teaching about faith.

In First incident because of not receiving fruit from the fig trees Jesus says, ‘May no one ever eat fruit from you again.’ Lord Jesus went to the fig tree which was with leaves hoping to get the fruit from it thinking that if leaves are there then there will be fruit also. Usually after the leaf shed when leaves come in the fig tree then the bud of fruit also comes. When Jesus did not get that then he was sad. Lord doesn’t only want leaves in us but also the fruit. He wants that we not only talk about but bear fruits in our lives.

In Second incident Lord Jesus chases away the buyers and sellers from the Jerusalem temple. God’ temple is a holy place where prayer and worship and sacrifice are being done. Using Like this holy place for business is a disregard to the sacred work that is going on there. With all means we need to keep up the dignity and holiness of the Temple.

In the Third incident Lord Jesus make the disciples to understand the importance of faith and says, ‘Whatever you ask for in prayer, believe that you have received it, and it will be yours’. Faith is very necessary to have in our prayers.

Let’s pray that we may always bear fruit in our lives, keep holy the churches and our bodies which are like temple and always pray with faith. Amen!

 -Br Biniush Topno


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Praise the Lord!

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