सोमवार - 12 अप्रैल 2021
पहला पाठ : प्रेरित-चरित 4:23-31
23) रिहा होने के बाद पेत्रुस और योहन अपने लोगों के पास लौटे और महायाजकों तथा नेताओं ने उन से जो कुछ कहा था, वह सब बतलाया।
24) वे उनकी बातें सुन कर एक स्वर से ईश्वर को सम्बोधित करते हुए बोले, ’’प्रभु! तूने स्वर्ग और पृथ्वी बनायी, समुद्र भी, और जो कुछ उन में है।
25) तूने पवित्र आत्मा द्वारा हमारे पिता, अपने सेवक दाऊद के मुख से यह कहाः
26) राष्ट्रों में खलबली क्यों मची हुई? देश-देश के लोग व्यर्थ की बातें क्यों करते हैं? पृथ्वी के राजा विद्रोह करते हैं। वे प्रभु तथा उसके मसीह के विरुद्ध षड्यन्त्र रचते हैं।
27) वास्तव में हेरोद और पिलातुस, गैर-यहूदियों तथा इस्राएल के वंशों ने मिल कर इस शहर में तेरे परमपावन सेवक ईसा के विरुद्ध, जिनका तूने अभिशेक किया, षड्यन्त्र रचा था।
28) उन्होंने इस प्रकार वह सब पूरा किया, जिसे तू, शक्तिशाली विधाता, ने पहले से निर्धारित किया था।
29) प्रभु! तू उनकी धमकियों पर ध्यान दे और अपने सेवकों को यह कृपा प्रदान कर कि वे निर्भीकता से तेरा वचन सुनायें।
30) तू अपना हाथ बढ़ा कर अपने परमपावन सेवक ईसा के नाम पर स्वास्थ्यलाभ, चिन्ह तथा चमत्कार प्रकट होने दे।’’
31) उनकी प्रार्थना समाप्त होने पर वह भवन, जहाँ वे एकत्र थे, हिल गया। सब पवित्र आत्मा से परिपूर्ण हो गये और निर्भीकता के साथ ईश्वर का वचन सुनाते रहे।
सुसमाचार : सन्त योहन का सुसमाचार 3:1-8
1) निकोदेमुस नामक फरीसी यहूदियों की महासभा का सदस्य था।
2) वह रात को ईसा के पास आया और बोला, ‘‘रब्बी! हम जानते हैं कि आप ईश्वर की ओर से आये हुए गुरु हैं। आप जो चमत्कार दिखाते हैं, उन्हें कोई तब तक नहीं दिखा सकता, जब तक कि ईश्वर उसके साथ न हो।’’
3) ईसा ने उसे उत्तर दिया, ‘‘मैं आप से यह कहता हूँ- जब तक कोई दुबारा जन्म न ले, तब तक वह स्वर्ग का राज्य नहीं देख सकता’’।
4) निकोदेमुस ने उन से पूछा, ‘‘मनुष्य कैसे बूढ़ा हो जाने पर दुबारा जन्म ले सकता है? क्या वह अपनी माता के गर्भ में दूसरी बार प्रवेश कर जन्म ले सकता है?’’
5) ईसा ने उत्तर दिया, ‘‘मैं आप से कहता हूँ- जब तक कोई जल और पवित्र आत्मा से जन्म न ले, तब तक वह ईश्वर के राज्य में प्रवेश नहीं कर सकता।
6) जो देह से उत्पन्न होता है, वह देह है और जो आत्मा से उत्पन्न होता है, वह आत्मा है।
7) आश्चर्य न कीजिए कि मैंने यह कहा- आप को दुबारा जन्म लेना है।
8) पवन जिधर चाहता, उधर बहता है। आप उसकी आवाज सुनते हैं, किन्तु यह नहीं जानते कि वह किधर से आता और किधर जाता है। जो आत्मा से जन्मा है, वह ऐसा ही है।’’
📚 मनन-चिंतन
निकोदेमुस येसु के पास आता है। यह रोचक बात है क्योंकि निकोदेमुस जैसा प्रतिष्ठित व्यक्ति येसु के पास कुछ सिखने आता है। निकोदेमुस फरीसियों के अभिजात वर्ग से था तथा स्वयं भी अव्वल दर्जे का शिक्षक था। इतनी साख होने के बावजूद भी वह येसु के पास आता है। निकोदेमुस खुद शिक्षक होकर भी येसु को ईश्वर के पास के आये शिक्षक, गुरू कहता है। येसु के महान कार्यों को देखकर वह समझ जाता है कि येसु एक धार्मिक व्यक्ति थे। वह येसु के बारे में पूरी तरह से नहीं जानता था किन्तु वह उनके कार्यों के कारण उनकी ओर खींचा चला आता है।
निकोदेमुस का मनोभाव या रूख हमें उसके ईश्वर के प्रति खुलेपन तथा तत्परता को दर्शाता है। येसु स्वयं यहूदियों से कहते हैं वे उनके कार्यों को देखे और परखे कि वे ईश्वर की सहायता से है या मानवीय स्रोत से, ’’मुझ पर विश्वास नहीं करने पर भी तुम कार्यों पर ही विश्वास करो, जिससे यह जान जाओ और समझ लो कि पिता मुझ में है और मैं पिता में हूं।’’ (योहन 10:38) जब योहन बपतिस्ता यह जानता चाहता था कि क्या येसु ही मसीह है या फिर वे किसी और की प्रतीक्षा करे तब येसु केवल अपने कार्यों का उल्लेख करते हुये कहते हैं, ’’उन्होंने योहन के शिष्यों से कहा, ’जाओ, तुमने जो सुना और देखा है, उसे योहन को बता दो - अंधे देखते हैं, लंगडे चलते हैं, कोढी शुद्ध किये जाते हैं, बहरे सुनते हैं, मुर्दे जिलाये जाते हैं, दरिद्रों को सुसमाचार सुनाया जाता है।’’ (लूकस 7:22)
येसु के कार्य स्वर्ग राज्य के आने के चिन्ह थे। हमें कार्यों की गंभीरता को गहराई से समझना तथा उन पर विश्वास करना चाहिये। हमें अपने दैनिक जीवन चर्या के छोट-बडे कार्यों में ईश्वर की उपस्थिती को देखना तथा महसूस कहते हुये विश्वास में गहरा बनाना चाहिये। ईश्वर हमारे जीवन में अपने मुक्ति के कार्यों के द्वारा हमें उनमें विश्वास करने के लिये आमंत्रित करते हैं।
📚 REFLECTION
Nicodemus comes to Jesus. It is quite interesting to know that a person of Nicodemus’s repute came to Jesus to learn something from him. Nicodemus belonged to the elite class of Pharisees,besides, ‘Sanhedrin’ and a high-quality teacher. Yet inspite of all these credentials he came to Jesus. Nicodemus being a teacher calls teacher a teacher but one who came from God. He knows that Jesus is a godly man because of the mighty works Jesus had been performing. He didn’t have the full identity of Jesus but he was drawn towards him by the great works of the Lord.
Nicodemus’ attitude tells us about his openness and willingness to see God in the works of Jesus. Jesus himself tells the Jews to look at his work and judge for themselves whether they are from God or from human source, “But if I do them, even though you do not believe me, believe the works, so that you may know and understand that the Father is in me and I am in the Father.’ (John 10:38) When John the Baptist inquired if Jesus was the Messiah, Jesus merely pointed out the works that he was doing for John to believe, “And he answered them, ‘Go and tell John what you have seen and heard: the blind receive their sight, the lame walk, the lepers are cleansed, the deaf hear, the dead are raised, the poor have good news brought to them.” (Luke 7:22)
Works of Jesus were the signs of the coming of the Kingdom. We need to understand the gravity of the works and believe. Even in our daily life we ought to realise the presence of God by the small and big happenings that take place and come to a greater faith. God through his saving and providential acts in our life invites us to come to faith in him.
✍ -Br. Biniush Topno
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