1 मई, 2021 - शनिवार – पास्का का चौथा सप्ताह
सन्त योसेफ श्रमिक - ऐच्छिक स्मृति
पहला पाठ : प्रेरित-चरित 13:44-52
44) अगले विश्राम-दिवस नगर के प्रायः सब लोग ईश्वर का वचन सुनने के लिए इकट्ठे हो गये।
45) यहूदी इतनी बड़ी भीड़ देख कर ईर्ष्या से जल रहे थे और पौलुस की निंदा करते हुए उसकी बातों का खण्डन करते रहे।
46) पौलुस और बरनाबस ने निडर हो कर कहा, ’’यह आवश्यक था कि पहले आप लोगों को ईश्वर का वचन सुनाया जाये, परंतु आप लोग इसे अस्वीकार करते हैं और अपने को अनंत जीवन के योग्य नहीं समझते; इसलिए हम अब गैर-यहूदियों के पास जाते हैं।
47) प्रभु ने हमें यह आदेश दिया है, मैंने तुम्हें राष्ट्रों की ज्योति बना दिया हैं, जिससे तुम्हारे द्वारा मुक्ति का संदेश पृथ्वी के सीमांतों तक फैल जाये।’’
48) गैर-यहूदी यह सुन कर आनन्दित हो गये और ईश्वर के वचन की स्तृति करते रहे। जितने लोग अनंत जीवन के लिए चुने गये थे, उन्होंने विश्वास किया
49) और सारे प्रदेश में प्रभु का वचन फैल गया।
50) किंतु यहूदियों ने प्रतिष्ठित भक्त महिलाओं तथा नगर के नेताओ को उभाड़ा, पौलुस तथा बरनाबस के विरुद्ध उपद्रव खड़ा कर दिया और उन्हें अपने इलाके से निकाल दिया।
51) पौलुस और बरनाबस उन्हें चेतावनी देने के लिए अपने पैरों की धूल झाड़ कर इकोनियुम चले गये।
52) शिष्य आनन्द और पवित्र आत्मा से परिपूर्ण थे।
सुसमाचार : योहन 14:7-14
7) यदि तुम मुझे पहचानते हो, तो मेरे पिता को भी पहचानोगे। अब तो तुम लोगों ने उसे पहचाना भी है और देखा भी है।’’
8) फिलिप ने उन से कहा, ’’प्रभु! हमें पिता के दर्शन कराइये। हमारे लिये इतना ही बहुत है।’’
9) ईसा ने कहा, ’’फिलिप! मैं इतने समय तक तुम लोगों के साथ रहा, फिर भी तुमने मुझे नहीं पहचाना? जिसने मुझे देखा है उसने पिता को भी देखा है। फिर तुम यह क्या कहते हो- हमें पिता के दर्शन कराइये?’’
10) क्या तुम विश्वास नहीं करते कि मैं पिता में हूँ और पिता मुझ में हैं? मैं जो शिक्षा देता हूँ वह मेरी अपनी शिक्षा नहीं है। मुझ में निवास करने वाला पिता मेरे द्वारा अपने महान कार्य संपन्न करता है।
11) मेरी इस बात पर विश्वास करो कि मैं पिता में हूँ और पिता मुझ में हैं, नहीं तो उन महान कार्यों के कारण ही इस बात पर विश्वास करो।
12) मैं तुम लोगो से यह कहता हूँ जो मुझ में सिवश्वास करता है, वह स्वयं वे कार्य करेगा, जिन्हें मैं करता हूँ। वह उन से भी महान कार्य करेगा। क्योंकि मैं पिता के पास जा रहा हूँ।
13) तुम मेरा नाम ले कर जो कुछ माँगोगे, मैं तुम्हें वही प्रदान करूँगा, जिससे पुत्र के द्वारा पिता की महिमा प्रकट हो।
14) यदि तुम मेरा नाम लेकर मुझ से कुछ भी माँगोगें, तो मैं तुम्हें वही प्रदान करूँगा।
श्रमिक संत यूसुफ़
पहला पाठ: उत्पत्ति 1:26-2:3
26) ईश्वर ने कहा, ''हम मनुष्य को अपना प्रतिरूप बनायें, यह हमारे सदृश हो। वह समुद्र की मछलियों, आकाश के पक्षियों घरेलू और जंगली जानवरों और जमीन पर रेंगने वाले सब जीवजन्तुओं पर शासन करें।''
27) ईश्वर ने मनुष्य को अपना प्रतिरूप बनाया; उसने उसे ईश्वर का प्रतिरूप बनाया; उसने नर और नारी के रूप में उनकी सृष्टि की।
28) ईश्वर ने यह कह कर उन्हें आशीर्वाद दिया, ''फलोफूलो। पृथ्वी पर फैल जाओ और उसे अपने अधीन कर लो। समुद्र की मछलियों, आकाश के पक्षियों और पृथ्वी पर विचरने वाले सब जीवजन्तुओं पर शासन करो।''
29) ईश्वर ने कहा, मैं तुम को पृथ्वी भर के बीज पैदा करने वाले सब पौधे और बीजदार फल देने वाले सब पेड़ देता हूँ। वह तुम्हारा भोजन होगा। मैं सब जंगली जानवरों को, आकाश के सब पक्षियों को,
30) पृथ्वी पर विचरने वाले जीवजन्तुओं को उनके भोजन के लिए पौधों की हरियाली देता हूँ'' और ऐसा ही हुआ।
31) ईश्वर ने अपने द्वारा बनाया हुआ सब कुछ देखा और यह उसको अच्छा लगा। सन्ध्या हुई और फिर भोर हुआ यह छठा दिन था।
1) ईश्वर ने जिन जंगली जीव-जन्तुओं को बनाया था, उन में साँप सब से धूर्त था। उसने स्त्री से कहा, ''क्या ईश्वर ने सचमुच तुम को मना किया कि वाटिका के किसी वृक्ष का फल मत खाना''?
2) स्त्री ने साँप को उत्तर दिया, ''हम वाटिका के वृक्षों के फल खा सकते हैं।
3) परन्तु वाटिका के बीचोंबीच वाले वृक्ष के फलों के विषय में ईश्वर ने यह कहा - तुम उन्हें नहीं खाना। उनका स्पर्श तक नहीं करना, नहीं तो मर जाओगे।''
अथवा - पहला पाठ: कलोसियों 3:14-15, 17, 23-24
14) इसके अतिरिक्त, आपस में प्रेम-भाव बनाये रखें। वह सब कुछ एकता में बाँध कर पूर्णता तक पहुँचा देता है।
15) मसीह की शान्ति आपके हृदय में राज्य करे। इसी शान्ति के लिए आप लोग, एक शरीर के अंग बन कर, बुलाये गये हैं। आप लोग कृतज्ञ बने रहें।
17) आप जो भी कहें या करें, वह सब प्रभु ईसा के नाम पर किया करें। आप लोग उन्हीं के द्वारा पिता-परमेश्वर को धन्यवाद देते रहें।
23) आप लोग जो भी काम करें, मन लगा कर करें, मानों मनुष्यों के लिए नहीं, बल्कि प्रभु के लिए काम कर रहे हों;
24) क्योंकि आप जानते हैं कि प्रभु पुरस्कार के रूप में आप को विरासत प्रदान करेगा। आप लोग प्रभु के दास हैं।
सुसमाचार : मत्ती 13:54-58
54) वे अपने नगर आये, जहाँ वे लोगों को उनके सभागृह में शिक्षा देते थे। वे अचम्भे में पड़ कर कहते थे, "इसे यह ज्ञान और यह सामर्थ्य कहाँ से मिला?
55) क्या यह बढ़ई का बेटा नहीं है? क्या मरियम इसकी माँ नहीं? क्या याकूब, यूसुफ़, सिमोन और यूदस इसके भाई नहीं?
56) क्या इसकी सब बहनें हमारे बीच नहीं रहतीं? तो यह सब इसे कहाँ से मिला?"
57) पर वे ईसा में विश्वास नहीं कर सके। ईसा ने उन से कहा, "अपने नगर और अपने घर में नबी का आदर नहीं होता।"
58) लोगों के अविश्वास के कारण उन्होंने वहाँ बहुत कम चमत्कार दिखाये।
📚 मनन-चिंतन
संत युसूफ- जिन्होने मरियम, येसु और ईश्वर की योजना के लिए अपना सुख और जीवन को न्योछावर कर दिया उनका आज हम सम्पूर्ण कलिसिया के साथ मिलकर श्रमिक संत के रूप में पर्व मनाते है। यह पर्व हमारे लिए इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि संत पिता फ्रांसिस ने यह वर्ष संत युसूफ के वर्ष के रूप मंे घोषित किया है।
संत युसूफ न केवल पवित्र परिवार के रक्षक रहे है अपितु वे विश्वव्यापि कलीसिया के संरक्षक भी है। आज सम्पूर्ण कलीसिया श्रमिक संत युसूफ का पर्व मनाती है। यह पर्व हमारे समक्ष संत युसूफ के सभी गुणों में से एक- कर्मठता के गुण को विशेष रूप से प्रकट करता है।
संत युसूफ एक मेहनती संत है जिन्होनें अपने परिवार को आगे बढ़ाने के लिए न केवल आध्यात्मिक रूप से परंतु शारीरिक रूप से मेहनत और कार्य किया। वे एक बढ़ाई थे और उन्होने अपना कार्य बहुत श्रद्धापूर्वक और ईमानदारी से किया। उनका जीवन उनके परिवार के प्रति समर्पित जीवन था।
संत युसूफ हम सभी के लिए एक प्रेरणा है जो हमें बताते है कि किस प्रकार हम धर्मी होने के साथ साथ कर्मठ व्यक्ति भी हो सकते है। संत युसूफ के बचपन के विषय में हम ज्यादा नहीं जानते परंतु हम उनको येसु के जन्म के घटनाओं के बीच में एक धर्मी और रक्षक पिता के रूप में जानते है। संत युसूफ पवित्र परिवार के आदर्श पिता है। मेहनत और परिश्रम करने वाले व्यक्तियों के लिए भी संत युसूफ एक आदर्श है।
आज के इस पर्व के दिन हमे अपने परिवारों के लिए प्रार्थना करें विशेष करके परिवार के मुखिया के लिए जो अपने श्रम और बलिदान द्वारा परिवार का पालन पोषण एवं हर खतरों से बचाने के लिए अपना जीवन अर्पित करते है। संत युसूफ उन सभी पिताओं को आदर्श पिता के रूप में आशीष दें। आमेन!
📚 REFLECTION
Today we are celebratin the feast of St. Joseph-the worker, who surrendered his life and happiness for the sake of Mary, Jesus and for the plan of God. This feast is all the more important for us as this year is being declared as the year of St. Joseph by Pope Francis.
St. Joseph was not only the protector of the Holy family but He is also the Patron of the Universal Church. Today that Universal Catholic Church celebrates the feast of St. Joseph-the worker. This feast highlights the value of hard work or diligence of St. Joseph among the many other values.
St. Joseph is a hard working Saint who worked hard not only in spiritual level but also in physical level to bring forth his family. He was a carpenter and he did his work with full dedication and honesty. His life was the life surrendered for his family.
St. Joseph is an inspiration for all of us who teaches us that a person can be hard working along with the righteousness quality in him/her. We do not know much about his childhood life but we come to know him as a righteous man and the protector of his family in the midst of the event of Jesus’ birth. St. Joseph is an ideal Father of the Holy Family. St. Joseph is an ideal for the people who do hard work in their lives.
In today’s feast let us pray for our family especially for the leader of the family, who through the hard work and sacrifices upbrings the family and offers his life for the protection of his family. May St. Joseph bless all those fathers as the ideal fathers.
✍ -Br. Biniush Topno
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