16 मार्च 2021, मंगलवार
चालीसे का चौथा सप्ताह
पहला पाठ : एज़ेकिएल 47:1-9,
12
1) वह मुझे मंदिर के द्वार पर वापस ले आया। वहाँ मैंने देखा कि मन्दिर की देहली के नीचे से पूर्व की ओर जल निकल कर बह रहा है, क्योंकि मन्दिर का मुख पूर्व की ओर था। जल वेदी के दक्षिण में मन्दिर के दक्षिण पाश्र्व के नीचे से बह रहा था।
2) वह मुझे उत्तरी फाटक से बाहर-बाहर घुमा कर पूर्व के बाह्य फाटक तक ले गया। वहाँ मैंने देखा कि जल दक्षिण पाश्र्व से टपक रहा है।
3) उसने हाथ में माप की डोरी ले कर पूर्व की ओर जाते हुए एक हजार हाथ की दूरी नापी। तब उसने मुझे जलधारा को पार करने को कहा- पानी टखनों तक था।
4) उसने फिर एक हज़ार हाथ नाप कर मुझ से जलधारा को पार करने को कहा- पानी घुटनों तक था। उसने फिर एक हज़ार हाथ नाप कर मुझ से जलधारा को पार करने के कहा- पानी कमर तक था।
5) उसने फिर एक हज़ार हाथ की दूरी नापी- अब मैं उस जलधारा को पार नहीं कर सकता था, पानी इतना बढ़ गया था कि तैर कर ही पार करना संभव था। वह जलधारा ऐसी थी कि उसे कोई पार नहीं कर सकता था।
6) उसने मुझ से कहा, ’’मानवपुत्र! क्या तुमने इसे देखा?’’ तब वह मुझे ले गया और बाद में उसने मुझे फिर जलधारा के किनारे पर पहुँचा दिया।
7) वहाँ से लौटने पर मुझे जलधारा के दोनों तटों पर बहुत-से पेड़ दिखाई पड़े।
8) उसने मुझ से कहा, ’’यह जल पूर्व की ओर बह कर अराबा घाटी तक पहुँचता और समुद्र में गिरता है। यह उस समुद्र के खारे पानी को मीठा बना देता है।
9) यह नदी जहाँ कहीं गुज़रती है, वहाँ पृथ्वी पर विचरने वाले प्राणियों को जीवन प्रदान करती है। वहाँ बहुत-सी मछलिया पाय जायेंगी, क्योंकि वह धारा समुद्र का पानी मीठा कर देती है। और जहाँ कहीं भी पहुचती है, जीवन प्रदान करती है।
12) नदी के दोनों तटों पर हर प्रकार के फलदार पेड़े उगेंगे- उनके पत्ते नहीं मुरझायेंगें और उन पर कभी फलों की कमी नहीं होगी। वे हर महीने नये फल उत्पन्न करेंगे; क्योंकि उनका जल मंदिर से आता है। उनके फल भोजन और उनके पत्ते दवा के काम आयेंगे।
सुसमाचार : सन्त योहन 5:1-6
1) इसके कुछ समय बाद ईसा यहूदियों के किसी पर्व के अवसर पर येरुसालेम गये।
2) येरुसालेम में भेड़-फाटक के पास एक कुण्ड है, जो इब्रानी भाषा में बेथेस्दा कहलाता है। उसके पाँच मण्डप हैं।
3) उन में बहुत-से रोगी-अन्धे, लँगड़े और अद्र्धांगरोगी-पड़े हुए थे। (वे पानी के लहराने की राह देख रहे थे,
4) क्योंकि प्रभु का दूत समय-समय पर कुण्ड में उतर कर पानी हिला देता था। पानी के लहराने के बाद जो सब से पहले कुण्ड में उतरता था- चाहे वह किसी भी रोग से पीडि़त क्यों न हो- अच्छा हो जाता था।)
5) वहाँ एक मनुष्य था, जो अड़तीस वर्षों से बीमार था।
6) ईसा ने उसे पड़ा हुआ देखा और, यह जान कर कि वह बहुत समय से इसी तरह पड़ा हुआ है, उस से कहा, ‘‘क्या तुम अच्छा हो जाना चाहते हो’’
7) रोगी ने उत्तर दिया, ‘‘महोदय; मेरा कोई नहीं है, जो पानी के लहराते ही मुझे कुण्ड में उतार दे। मेरे पहुँचने से पहले ही उस में कोई और उतर पड़ता है।’’
8) ईसा ने उस से कहा, ‘‘उठ कर खड़े हो जाओ; अपनी चारपाई उठाओ और चलो’’।
9) उसी क्षण वह मनुष्य अच्छा हो गया और अपनी चारपाई उठा कर चलने-फिरने लगा।
10) वह विश्राम का दिन था। इसलिए यहूदियों ने उस से, जो अच्छा हो गया था, कहा, ‘‘आज विश्राम का दिन है। चारपाई उठाना तुम्हारे लिए उचित नहीं है।’’
11) उसने उत्तर दिया, ‘‘जिसने मुझे अच्छा किया, उसी ने मुझ से कहा- अपनी चार पाई उठाओ और चलो’’।
12) उन्होंने उस से पूछा, ‘‘कौन है वह, जिसने तुम से कहा- अपनी चारपाई उठाओ और चलो?’’
13) चंगा किया हुआ मनुष्य नहीं जानता था कि वह कौन है, क्योंकि उस जगह बहुत भीड़ थी और ईसा वहाँ से निकल गये थे।
14) बाद में मंदिर में मिलने पर ईसा ने उस से कहा, ‘‘देखो, तुम चंगे हो गये हो। फिर पाप नहीं करो। कहीं ऐसा न हो कि तुम पर और भी भारी संकट आ पड़े।’’
15) उस मनुष्य ने जा कर यहूदियों को बताया कि जिन्होंने मुझे चंगा किया है, वह ईसा हैं।
16) यहूदी ईसा को इसलिए सताते थे कि वे विश्राम के दिन ऐसे काम किया करते थे।
No comments:
Post a Comment