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23 दिसंबर 2020 वर्ष का चौंतीसवाँ सामान्य सप्ताह, बुधवार

 

23 दिसंबर 2020
वर्ष का चौंतीसवाँ सामान्य सप्ताह, बुधवार

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📒 पहला पाठ: मलआकी का ग्रन्थ 3:1-4.23-24

1) प्रभु-ईश्वर यह कहता है, “देखो, मैं अपने दूत भेजूँगा, जिससे वह मेरे लिए मार्ग तैयार करे। वह प्रभु, जिसे तुम खोजते हो, अचानक अपने मन्दिर आ जायेगा। देखो, विधान का वह दूत, जिस के लिए तुम तरसते हो, आ रहा है।

2) कौन उसके आगमन के दिन का सामना कर सकेगा? जब वह प्रकट होगा, तो कौन टिकेगा? क्योंकि वह सुनार की आग और धोबी के खार के सदृश है।

3) वह चाँदी गलाने वाले और शोधन करने वाले की तरह बैठ कर लेवी के पुत्रों को शुद्ध करेगा और सोने-चाँदी की तरह उनका परिष्कार करेगा।

4) तब वे योग्य रीति से ईश्वर को भेंट चढ़ायेंगे और प्रभु-ईश्वर प्राचीन काल की तरह यूदा और यरूसलेम की भेंट स्वीकार करेगा।

23) “देखो, उस महान् एवं भयानक दिन के पहले, प्रभु के दिन के पहले, मैं नबी एलियाह को तुम्हारे पास भेजूँगा।

24) वह पिता का हृदय पुत्र की ओर अभिमुख करेगा और पुत्र का हृदय पिता की ओर। कहीं ऐसा न हो कि मैं आ कर देश का सर्वनाश कर दूँ।“

📙 सुसमाचार : सन्त लूकस 1:57-66

57) एलीज़बेथ के प्रसव का समय पूरा हो गया और उसने एक पुत्र को जन्म दिया।

58) उसके पड़ोसियों और सम्बन्धियों ने सुना कि प्रभु ने उस पर इतनी बड़ी दया की है और उन्होंने उसके साथ आनन्द मनाया।

59) आठवें दिन वे बच्चे का ख़तना करने आये। वे उसका नाम उसके पिता के नाम पर ज़करियस रखना चाहते थे,

60) परन्तु उसकी माँ ने कहा, ’’जी नहीं, इसका नाम योहन रखा जायेगा।’’

61) उन्होंने उस से कहा, ’’तुम्हारे कुटुम्ब में यह नाम तो किसी का भी नहीं है’’।

62) तब उन्होंने उसके पिता से इशारे से पूछा कि वह उसका नाम क्या रखना चाहता है।

63) उसने पाटी मँगा कर लिखा, ’’इसका नाम योहन है’’। सब अचम्भे में पड़ गये।

64) उसी क्षण ज़करियस के मुख और जीभ के बन्धन खुल गये और वह ईश्वर की स्तुति करते हुए बोलने लगा।

65) सभी पड़ोसी विस्मित हो गये और यहूदिया के पहाड़ी प्रदेश में ये सब बातें चारों ओर फैल गयीं।

66) सभी सुनने वालों ने उन पर मन-ही-मन विचार कर कहा, ’’पता नहीं, यह बालक क्या होगा?’’ वास्तव में बालक पर प्रभु का अनुग्रह बना रहा।

मनन-चिंतन

आम तौर पर माता-पिता ही अपने बच्चे का नाम रखते हैं क्योंकि उनका उस बच्चे पर जिसे वे इस दुनिया में लाते हैं अधिकार होता है। फिर भी हम बाइबिल में देखते हैं कि कुछ बच्चों के संबंध में प्रभु ईश्वर स्वयं उस विशेषाधिकार को अपने लिए सुरक्षित रखते हैं। प्रभु येसु का नाम उन्हें स्वयं ईश्वर ने दिया था। जब ज़करियस मंदिर में धूप अर्पित कर रहा था, तब स्वर्गदूत गब्रिएल ने उसे ईश्वर की कृपा से एक सन्तान प्राप्त होने का सन्देश सुनाया। उस समय ज़करियस को यह भी बताया गया कि उसे अपने बच्चे को ’योहन’ नाम देना चाहिए। इस प्रकार प्रभु ईश्वर ने ही सन्त योहन बपतिस्ता का नाम निर्धारित किया था। प्रभु ईश्वर ने ज़करियस तथा उसके बाद की पीढियों के सामने यह प्रकट किया कि वह बच्चा ईश्वर के प्रत्यक्ष संरक्षण और मार्गदर्शन के अधीन था। ईश्वर ने संत योहन बपतिस्ता को अपने कार्यों के लिए दूसरे मनुष्यों से अलग किया था। लूकस 1:80 में सन्त लूकस कहते हैं, “वह इस्राएल के सामने प्रकट होने के दिन तक निर्जन प्रदेश में रहा”। यह स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि प्रभु ईश्वर के कार्य के लिए उन्हें परिवार से कैसे बुलाया गया और अलग किया गया था।



REFLECTION

It is normally the parents who name their child because they have an authority over the child whom they bring into this world. Yet we see in the Bible that with regard to certain children God reserves that privilege to himself. The name of Jesus was given to him by God himself. The name ‘John’ was pronounced by God’s angel before Zachariah, his father when he offered incense in the temple. Thus the Lord revealed to Zachariah and to generations after him that John the Baptist was under the direct protection and guidance of God. John was set apart for God. In Lk 1:80, the evangelist notes, “he was in the wilderness until the day he appeared publicly to Israel”. This shows clearly how he was called out from the family for God’s work. We who belong to God need to submit ourselves God’s authority and God’s plans.

 -Br. Biniush Topno


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Praise the Lord!

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