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16 दिसंबर 2020 Aआगमन का तीसरा सप्ताह, बुधवार

 

16 दिसंबर 2020
Aआगमन का तीसरा सप्ताह, बुधवार

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📒 पहला पाठ : इसायाह का ग्रन्थ 45:6c-8,21c-25

6) मैं ही प्रभु हूँ, कोई दूसरा नहीं।

7) मैं प्रकाश और अन्धकार, दोनों की सृष्टि करता हूँ। मैं सुख भी देता और दुःख भी भेजता हूँ। मैं, प्रभु, यह सब करता हूँ।

8) आकाश! धार्मिकता बरसाओ- ओस की बूँदों की तरह, बादलों के जल की तरह। धरती खुल कर उसे ग्रहण करे- मुक्ति का अंकुर फूट निकले और धार्मिकता फले-फूले। मैं, प्रभु, ने इसकी सृष्टि की है।

21) मेरे सिवा कोई दूसरा ईश्वर नहीं। मेरे सिवा कोई न्यायी और उद्धारकरर्ता ईश्वर नहीं।

22) पृथ्वी के सीमान्तों से मेरे पास आओ और तुम मुक्ति प्राप्त करोगे, क्योंकि मेरे सिवा कोई ईश्वर नहीं।

23) “मेरे मुख से निकलने वाला शब्द सच्चा और अपरिवर्तनीय है। मैं शपथ खा कर यह कहता हूँ: हर घुटना मेरे सामने झुकेगा, हर कण्ठ मेरे नाम की शपथ लेगा।

24) सब लोग मेरे विषय में कहेंगे- “प्रभु में ही न्याय दिलाने का सामर्थ्य है।“ जो उस से बैर करते थे, वे सब लज्जित हो कर उसके पास आयेंगे।

25) प्रभु इस्राएल की समस्त प्रजा को न्याय दिलायेगा और वह प्रभु का गौरव करेगी।

📙 सुसमाचार : लूकस 21:28-32

18) योहन के शिष्यों ने योहन को इन सब बातों की ख़बर सुनायी।

19) योहन ने अपने दो शिष्यों को बुला कर ईसा के पास यह पूछने भेजा, "क्या आप वही हैं, जो आने वाले हैं या हम किसी और की प्रतीक्षा करें?"

20) इन दो शिष्यों ने ईसा के पास आ कर कहा, "योहन बपतिस्मा ने हमें आपके पास यह पूछने भेजा है-क्या आप वहीं हैं, जो आने वाले हैं या हम किसी और की प्रतीक्षा करें?"

21) उस समय ईसा बहुतों को बीमारियों, कष्टों और अपदूतों से मुक्त कर रहे थे और बहुत-से अन्धों को दृष्टि प्रदान कर रहे थे।

22) उन्होंने योहन के शिष्यों से कहा, "जाओ, तुमने जो सुना और देखा है, उसे योहन को बता दो-अन्धे देखते हैं, लंगड़े चलते हैं, कोढ़ी शुद्ध किये जाते हैं, बहरे सुनते हैं, मुर्दे जिलाये जाते हैं, दरिद्रों को सुसमाचार सुनाया जाता है

23) और धन्य है वह, जिसका, विश्वास मुझ पर से नहीं उठता!"

📚 मनन-चिंतन

नाज़रेत के सभागृह में, प्रभु येसु ने अपना घोषणापत्र नबी इसायाह के अध्याय 61 पढ़ कर प्रस्तुत किया जहाँ लिखा है, “प्रभु का आत्मा मुझ पर छाया रहता है, क्योंकि उसने मेरा अभिशेक किया है। उसने मुझे भेजा है, जिससे मैं दरिद्रों को सुसमाचार सुनाऊँ, बन्दियों को मुक्ति का और अन्धों को दृष्टिदान का सन्देश दूँ, दलितों को स्वतन्त्र करूँ और प्रभु के अनुग्रह का वर्ष घोषित करूँ।" (लूकस 4:18-19)। उसके बाद “धर्मग्रन्थ का यह कथन आज तुम लोगों के सामने पूरा हो गया है” कहकर प्रभु येसु ने स्वयं को मसीह के रूप में प्रस्तुत किया। मसीह के बारे में नबी इसायाह की ये भविष्यवाणियाँ प्रभु के जीवन में पूरी हुईं। इसलिए वे संत योहन बपतिस्ता के शिष्यों से कहते हैं, "जाओ, तुमने जो सुना और देखा है, उसे योहन को बता दो- अन्धे देखते हैं, लंगड़े चलते हैं, कोढ़ी शुद्ध किये जाते हैं, बहरे सुनते हैं, मुर्दे जिलाये जाते हैं, दरिद्रों को सुसमाचार सुनाया जाता है और धन्य है वह, जिसका, विश्वास मुझ पर से नहीं उठता!" दूसरे शब्दों में कहा जाये तो प्रभु मसीहा के रूप में अपनी पहचान को स्पष्ट रूप से प्रकट करते हैं। मेरी पहचान क्या है? क्या मैं अपनी इस पहचान के प्रति वफादार हूं?



📚 REFLECTION

At the Synagogue of Nazareth, Jesus had presented his manifesto by reading from Is 61 where it is written, “The Spirit of the Lord is upon me, because he has anointed me to bring good news to the poor. He has sent me to proclaim release to the captives and recovery of sight to the blind, to let the oppressed go free, to proclaim the year of the Lord’s favor.” (Lk 4:18-19). By saying “Today this scripture has been fulfilled in your hearing”, Jesus showed himself as the Messiah. These prophecies of Prophet Isaiah about the Messiah were fulfilled in the life of Jesus. That is why he could say to the disciples of John the Baptist who came to inquire whether he was the Messiah, “Go back and tell John what you have seen and heard”. In other words, Jesus was faithful to his identity as the Messiah. What is my identity? Am I faithful to my God-given identity?

 -Br. Biniush Topno


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Praise the Lord!

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